पाकिस्तान के दिवंगत इस्लामी स्कॉलर डॉक्टर इसरार अहमद का चैनल यूट्यूब ने क्यों बंद किया
दुनिया के चर्चित वीडियो स्ट्रीमिंग प्लेटफ़ॉर्म यूट्यूब ने तंज़ीम-ए-इस्लामी संगठन के दिवंगत संस्थापक और इस्लामी स्कॉलर डॉक्टर इसरार अहमद का चैनल बंद कर दिया है.
दुनिया के चर्चित वीडियो स्ट्रीमिंग प्लेटफ़ॉर्म यूट्यूब ने तंज़ीम-ए-इस्लामी संगठन के दिवंगत संस्थापक और इस्लामी स्कॉलर डॉक्टर इसरार अहमद का चैनल बंद कर दिया है.
यूट्यूब ने यहूदी समुदाय की साप्ताहिक पत्रिका 'द ज्यूस क्रोनिकल' को बताया है कि डॉक्टर इसरार अहमद के चैनल्स को नफ़रत फैलाने वाले भाषण से संबंधित नीति के ख़िलाफ़ जाने पर हटा दिया गया है. द ज्यूस क्रोनिकल के मुताबिक़ यूट्यूब बीती जून से नफ़रत फैलाने वाली सामग्रियों की खोजबीन कर रहा था.
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पत्रिका के मुताबिक़ इससे पहले यूट्यूब न सिर्फ़ चैनल्स को हटाने में नाकाम रहा था बल्कि उसने कोई जवाब भी नहीं दिया था.
यहूदियों की साप्ताहिक पत्रिका 'द ज्यूस क्रोनिकल' का दावा है कि अमेरिका में यहूदियों के धार्मिक स्थल में लोगों को बंधक बनाने वाला अभियुक्त डॉक्टर इसरार अहमद के वीडियो को देखता था.
अमेरिकी प्रांत टेक्सास के कॉलिवल नामक इलाक़े में बीते साल जनवरी में यहूदियों के धार्मिक स्थल में मलिक फ़ैसल अकरम नाम के शख़्स ने चार लोगों को बंधक बना लिया था. 10 घंटे तक चले अभियान के बाद एफ़बीआई ने उसे गोली मार दी थी और सभी बंधक सुरक्षित फ़रार होने में कामयाब हुए थे.
मलिक फ़ैसल का संबंध ब्रिटेन के ब्लैकबर्न शहर से था. साप्ताहिक पत्रिका द ज्यूस क्रोनिकल का दावा है कि उन्हें मलिक फ़ैसल के परिवार ने बताया था कि वो यूट्यूब पर डॉक्टर इसरार की वीडियो देखता था.
'यह पाबंदी इस्लामोफ़ोबिया को दिखाता है'
तंज़ीम-ए-इस्लामी के प्रमुख शुजाउद्दीन शेख़ का कहना है कि डॉक्टर इसरार के चैनल पर 'पाबंदी लगाना इस्लामोफ़ोबिया की सबसे ख़राब सूरत है, ये लाखों सब्सक्राइबर्स और करोड़ों दर्शकों वाला एक विश्व प्रसिद्ध चैनल है जो इस्लाम की दुश्मन ताक़तों की आंखों में खटकता था.'
डॉक्टर इसरार के चैनल के एक पार्टनर आसिफ़ हमीद ने बीबीसी को बताया कि 'ये तो ऐसा है जैसे पबजी गेम देखकर परिजनों को मारने वालों का दोषी पबजी बनाने वालों को ही ठहरा दिया जाए या हॉलीवुड की फ़िल्में देखकर कोई काम करने का ज़िम्मेदार फ़िल्म बनाने वालों को समझा जाए.
"डॉक्टर इसरार की ये तक़रीरें अब की नहीं है, वो कई साल पुरानी हैं. वो क़ुरान और हदीस की रोशनी में बात करते थे. क़ुरान में जो यहूदियों का ज़िक्र है उसका हवाला देते थे. उन्होंने कभी किसी को भटकाने की बात नहीं की. हमारा विरोध भी शांतिपूर्ण है. तंज़ीम-ए-इस्लामी क़ानून को हाथ में लेने की हर कार्रवाई की आलोचना करती है."
आसिफ़ हमीद का कहना है, "रमज़ान के दिनों में डॉक्टर इसरार की तक़रीर 'न सिर्फ़ पाकिस्तान बल्कि दुनियाभर में सुनी जाती है.' इस महीने में चैनल बंद करना 'इस्लामी दुश्मनी का सबूत' है. बक़ौल उनके सोशल मीडिया तो विभिन्न राय का एक प्लेटफ़ॉर्म है इस पर 'इस्लाम के ख़िलाफ़ भी सामग्री मौजूद है, उनके ख़िलाफ़ क्या कोई एक्शन लिया गया है."
आसिफ़ हमीद ने बताया कि यूट्यूब की एक प्रक्रिया है और वो इस संगठन के संपर्क में हैं और उन्हें अपनी दलील दे रहे हैं. उनके मुताबिक़ अगर वो चैनल बहाल नहीं करते तो क़ानूनी मदद ली जाएगी.
डॉक्टर इसरार अहमद कौन थे?
डॉक्टर इसरार अहमद ने जमात-ए-इस्लामी के छात्र संगठन से सफ़र शुरू किया और धार्मिक स्कॉलर तक का सफ़र तय किया. उनकी पैदाइश वर्तमान भारत के हरियाणा राज्य के हिसार में 26 अप्रैल 1932 को हुआ था.
उन्होंने 1954 में किंग एडवर्ड मेडिकल कॉलेज लाहौर से ग्रैजुएशन किया और बाद में 1965 में जामिया कराची से इस्लामिक स्टडीज़ में मास्टर्स किया.
तंज़ीम-ए-इस्लामी के मुताबिक़ वो छात्र जीवन में अल्लामा इक़बाल और मौलाना अबुल आला मौदुदी से प्रभावित रहे. उन्होंने कुछ समय के लिए मुस्लिम स्टूडेंट्स फ़ेडरेशन के लिए काम किया और पाकिस्तान के बनने के बाद इस्लामी जमीयत तलबा और फिर जमात-ए-इस्लामी के साथ जुड़े रहे.
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जमात-ए-इस्लामी ने जब चुनावी राजनीति शुरू की तो डॉक्टर इसरार अहमद ने उससे अलग राय रखी और कहा कि ऐसा करना संगठन के क्रांतिकारी तरीक़े से मेल नहीं खाता है और अपनी राहें अलग कर लीं. इसके बाद उन्होंने कई साथियों के साथ मिलकर तंज़ीम-ए-इस्लामी की बुनियाद रखी.
डॉक्टर इसरार ने 1978 में पाकिस्तान टेलीविज़न पर धार्मिक प्रोग्राम शुरू किया और बाद में निजी टीवी चैनल आए तो वो क़ुरान टीवी के साथ भी जुड़े रहे. 1981 में उन्हें नागरिक पुरस्कार तमग़ा-ए-इम्तियाज़ से नवाज़ा गया था.
अप्रैल 2010 में डॉक्टर इसरार का देहांत हो गया था.
उन्होंने इससे बहुत पहले 2002 में ही तंज़ीम-ए-इस्लामी का नेतृत्व छोड़ दिया था. तंज़ीम-ए-इस्लामी स्थानीय और अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर सीमित विरोध करता आया है जबकि ब्याज और वैलेंटाइन डे के ख़िलाफ़ उसका विज्ञापन अभियान जारी है.
सोशल मीडिया पर विरोध
डॉक्टर इसरार अहमद का यूट्यूब चैनल बंद होने पर सोशल मीडिया वेबसाइट ट्विटर पर डॉक्टर इसरार 'अहमद का चैनल बहाल करो' और 'इस्लामोफ़ोबिया' के नाम से ट्रेंड जारी है जिसमें यूट्यूब को टैग करके लोग अपील कर रहे हैं कि चैनल बहाल किया जाए.
इंजीनियर हारून नज़ीर नामक यूज़र लिखते हैं कि 'ये कैसा शर्मनाक काम है, ये इस्लामोफ़ोबिया का असल चेहरा है.'
जव्वाद ख़ान लिखते हैं, "रमज़ान में हर कोई उनकी आवाज़ सुनना चाहता है, डॉक्टर इसरार का यूट्यूब चैनल बहाल करें."
असद सोलंगी लिखते हैं कि 'यूट्यूब ने 2.9 मिलियन सब्सक्राइबर्स के साथ डॉक्टर इसरार अहमद का यूट्यूब चैनल डिलीट कर दिया. वो इस्लाम के एक उदारवादी और मज़बूत विद्वान थे, उनके लेक्चरों ने लाखों लोगों को सिखाया है. यूट्यूब को फ़ौरन चैनल को बहाल करना चाहिए.'
मोहम्मद अहसन रज़ा लिखते हैं कि 'डॉक्टर इसरार अहमद एक महान ज्ञानी इंसान थे. मैं जब भी उनके लेक्चर देखता हूं, उनके लिए दुआ करता हूं, एक मिनट के वीडियो में कितनी आध्यामिकता होती है.'
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