चीन में जिनपिंग: क्यों भारत के लिए सिरदर्द साबित हो सकता है जिंदगीभर का शासन
रविवार को चीन में राष्ट्रपति शी जिनपिंग के कार्यकाल को असीमित करने से जुड़े एक प्रस्ताव को मंजूरी देकर संविधान में बदलाव का रास्ता साफ हो गया है। जब जिनपिंग जब तक चाहें चीन की सत्ता पर शासन कर सकते हैं। 64 वर्षीय जिनपिंग साल 2012 में पहली बार चीन के राष्ट्रपति चुने गए थे।
बीजिंग। रविवार को चीन में राष्ट्रपति शी जिनपिंग के कार्यकाल को असीमित करने से जुड़े एक प्रस्ताव को मंजूरी देकर संविधान में बदलाव का रास्ता साफ हो गया है। जब जिनपिंग जब तक चाहें चीन की सत्ता पर शासन कर सकते हैं। 64 वर्षीय जिनपिंग साल 2012 में पहली बार चीन के राष्ट्रपति चुने गए थे। उनका पहला कार्यकाल इस माह ही खत्म हो रहा है। अब वह एक बार फिर से इसी माह बतौर राष्ट्रपति फिर से अपने पद की शपथ लेंगे। जिनपिंग को पिछले कुछ वर्षों में चीन का सबसे ताकतवर नेता माना गया है। जिनपिंग चीन की कम्युनिस्ट पार्टी और चीनी सेना का नेतृत्व करते हैं। जिनपिंग का सत्ता में आना चीन के लिए भले ही फायदेमंद साबित हो लेकिन भारत के लिए यह एक सिरदर्द साबित हो सकता है। जिनपिंग को ताउम्र चीन पर राज करने की ताकत ऐसे समय में दी गई है जब भारत, चीन के साथ संबंधों में ठहराव लाने की कोशिशें कर रहा है।
पिछले वर्ष नए स्तर पर पहुंचा तनाव
भारत और चीन के बीच पिछले वर्ष जब डोकलाम विवाद हुआ तो तनाव एक नए स्तर पर पहुंच गया था। दोनों देशों की सेनाएं करीब 73 दिनों तक आमने-सामने थीं। हाल ही में ऐसी खबरें भी थीं विदेश सचिव विजय गोखले ने चिट्ठी लिखकर सरकारी अधिकारियों और कुछ नेताओं को तिब्बत की निर्वासित सरकार के उन कार्यक्रमों से दूर रहने को कहा गया है जो दलाई लामा के भारत पहुंचने के 60 वर्ष पूरे होने पर आयोजित हो रहे हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि जिनपिंग का असीमित कार्यकाल भारत के लिए मुश्किल साबित हो सकता है। जब से चीन में बतौर राष्ट्रपति शी जिनपिंग और लि कियांग ने बतौर प्रधानमंत्री अपने पद की जिम्मेदारी ली है तब से ही भारत के साथ संबंधों में उतार-चढ़ाव जारी है।
सेना पर रहेगा जिनपिंग का कंट्रोल
जिनपिंग के असीमित कार्यकाल का मतलब है वह साल 2023 के बाद तक चीन की सेना पर अपना नियंत्रण रखने वाले हैं। जवाहर लाल नेहरु यूनिवर्सिटी में चीन के विषयों को पढ़ाने वाले प्रोफेसर श्रीकांत कोंडापल्ली कहते हैं कि चीन में राष्ट्रपति और उप-राष्ट्रपति बस नाममात्र के शासक होते हैं। असली ताकत सेंट्रल मिलिट्री कमीशन के जनरल सेक्रेटरी या फिर चेयरमैन के हाथ में होती है। वहीं पूर्व विदेश सचिव कंवल सिब्बल के मुताबिक शी कह चुके हैं कि साल 2035 तक चीन की सेनाएं इतनी ताकतवर होंगी कि वह कोई भी जंग आसानी से जीत पाएंगी। उन्होंने यह भी कहा है कि साल 2049 तक वह चीन को अंतरराष्ट्रीय-संबंधों के केंद्र में देखना चाहते हैं। सिब्बल के मुताबिक इसका साफ मतलब है कि भारत पर दबाव बढ़ेगा। न सिर्फ इस क्षेत्र में बल्कि दूसरे क्षेत्र में भी।
सीमा विवाद सुलझने के आसार कम
भारत और चीन दोनों के बीच सीमा विवाद एक बड़ी समस्या है और पिछले वर्ष हुआ डोकलाम विवाद इसका ही परिणाम था। 73 दिनों तक दोनों देशों की सेनाएं आमने-सामने थीं। दोनों देशों के बीच सीमा रेखा तय न होना विवाद की असली वजह है। साल 2003 के बाद से अब तक दोनों देशों के बीच 20 दौर की बातचीत हो चुकी है और इसके बाद भी इस समस्या का कोई हल नहीं निकल सका है। अब जबकि जिनपिंग पूरी ताकत के साथ सत्ता में होंगे तो इस बात की संभावना कम ही है कि चीन, मुद्दे पर किसी भी तरह का कोई मौका भारत को देना चाहेगा।
मसूद अजहर और एनएसजी पर जारी रहेगा गतिरोध
सीमा विवाद से अलग जैश-ए-मोहम्मद के कमांडर मौलाना मसूद अजहर को यूनाइटेड नेशंस में आतंकी घोषित करने के भारत के प्रस्ताव पर हमेशा चीन, अड़गा डालता है। इसके अलावा न्यूक्लियर सप्लायर ग्रुप (एनएसजी) में भी भारत की एंट्री को लेकर चीन अक्सर ही रोड़ा अटकाता है। इन सबके अलावा भारत की कई अपील के बाद भी चीन की ओर से घुसपैठ का सिलसिला जारी है। सितंबर 2014 में जब चीनी राष्ट्रपति जिनपिंग, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बुलावे पर भारत आए थे तो उसी समय चीनी सेना की ओर से घुसपैठ हुई थी। मसूद अजहर, एनएसजी और घुसपैठ का मुद्दा जिनपिंग के शासन में सुलझेगा इस बात की संभावना कम ही नजर आती है।
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