चीन की ज़ीरो कोविड पॉलिसी का पूरा सच क्या है
पिछले कुछ समय से चीन की ज़ीरो कोविड पॉलिसी के ख़िलाफ़ कई शहरों में प्रदर्शन हो रहे हैं. लेकिन क्या वाक़ई चीन बेहद सख़्ती से ज़ीरो कोविड की नीति को लागू कर रहा है.
अगर आप ये समझना चाहते हैं कि कोविड-19 को लेकर चीन की नीति क्या है तो उससे पहले आपको ये देखना चाहिए कि वह इसे लेकर क्या कर रहा है, ना कि वो क्या कहता आ रहा है.
बीजिंग का उदाहरण लीजिए, यहां कोरोना वायरस के संक्रमण में कोई बड़ी गिरावट दर्ज नहीं की गई है, लेकिन अब यहां सार्वजनिक यातायात के लिए कोरोना की नेगेटिव रिपोर्ट की ज़रूरत नहीं है. बार-रेस्तरां धीरे-धीरे खुल रहे हैं.
कुछ जगहों पर अगर किसी को संक्रमण हो जाए तो उन्हें घर में ही आइसोलेट करने की इजाज़त है, उन्हें क्वारंटीन सेंटर में जाने की ज़रूरत नहीं है.
आप ग़ौर करेंगे तो आपको समझ में आएगा कि सरकार शांति से अपनी ज़ीरो कोविड पॉलिसी खुद ख़त्म कर रही है.
हालांकि इसका क़तई ये मतलब नहीं है कि कोरोना वायरस से जुड़े सभी नियमों को ख़त्म कर दिया गया है और बीते लगभग छह महीने से किसी तरह की पाबंदियां नहीं हैं.
ज़ीरो-कोविड लॉकडाउन में ढील
लेकिन इतना ज़रूर है कि हर आउटब्रेक को ज़ीरो कोविड से जोड़ने की कोशिश उतनी उग्र नहीं नज़र आती जैसी पहले हुआ करती थी.
चीन की नई योजना अब वायरस के संक्रमण को कम करने पर अधिक केंद्रित है, अब इसे पूरी तरह से ख़त्म करने की कोशिश नहीं हो रही है.
कई बार ज़ीरो-कोविड के कुछ नियमों को दोबारा लागू भी किया जा रहा है. लेकिन अब शहरों को दोबारा खोलने के लिए ज़ीरो-कोविड जैसी शर्त नहीं है.
बीजिंग अकेला नहीं है जहां नियमों में ढील दी गई है और भी कई क्षेत्र हैं जहां इस तरह की सुविधा लोगों को दी जा रही है.
उदाहरण के लिए दक्षिण-पूर्वी झेजियांग प्रांत, यहां कुछ ख़ास तरह की नौकरी करने वाले लोगों के अलावा और किसी का नियमित टेस्ट नहीं किया जा रहा.
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पूर्वी प्रांत में शेडोंग में लोगों को अब खांसी की दवा खरीदने पर या हाइवे पर सफ़र के दौरान टेस्टिंग से नहीं गुज़रना पड़ रहा है. मध्य प्रांत हेनान में कम्युनिटी हाउसिंग में एंट्री के लिए अब पीसीआर टेस्ट की ज़रूरत नहीं है.
इसी तरह की ढील शंघाई, वुहान, चोंगकिंग, ग्वांगज़ो, शेनझेन और चेंगदू जैसे बड़े शहरों में भी मिल रही है.
पश्चिमी शिनजिंयांग की राज़धानी उरूमची में सुपर-मार्केट, होटल, सिनेमाहॉल, जिम खोले गए हैं. तिब्बत में सार्वजनिक यातायात के साधनों को दोबोरा शुरू किया जा रहा है.
लेकिन कुछ सप्ताह पहले चीन की सरकार लोगों से अपील कर रही थी कि लोग घरों में रहें और ज़ीरो-कोविड पॉलिसी के नियमों का पालन करें.
शी जिनपिंग ने हाल ही में कम्युनिस्ट पार्टी कांग्रेस के दौरान ग्रेट हॉल ऑफ़ द पीपल में दोहराया कि ज़ीरो-कोविड नीति नहीं हटाई जाएगी. जबकि इस बात के बड़ी तादाद में सबूत हैं कि चीन के ज़ीरो-कोविड नीति के कारण वहां की अर्थव्यवस्था को भारी नुक़सान पहुंच रहा है, लोगों की आजीविका ख़त्म हो रही है.
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प्रदर्शन और सरकार का बदलता रुख़
लेकिन अब वहां लोग सड़कों पर उतर गए हैं. इस नीति का विरोध कर रहे हैं.
बीते दिनों उरूमची की एक इमारत के ब्लॉक में आग लगी और इस दुर्घटना में 10 लोगों की मौत हो गई. कहा जा रहा है कि ये लोग कोविड की कड़ी पाबंदियों के कारण भाग कर अपनी जान नहीं बचा सके. इस घटना ने चीन के लोगों में ज़ीरो-कोविड नीति के ख़िलाफ़ जमकर गुस्सा भर दिया है.
सोशल मीडिया पर लोगों की ओर से दावा किया जाने लगा कि कोरोना के नियमों के कारण ही लोगों की मौत हुई. इसके कारण ही ना तो दमकल के कर्मचारी इमारत में वक्त रहते घुस पाए, और ना ही लोग इमारत से बाहर निकल सके.
हालांकि चीन इस तरह के आरोपों को ख़ारिज करता है. बीबीसी इन दावों की पुष्टि नहीं कर सकी है. लेकिन इस घटना ने ही देश में प्रदर्शन की आग जलायी.
शहर-दर-शहर, ये प्रदर्शन फैलता गया. ये प्रदर्शनकारी ज़ीरो-कोविड को ख़त्म करने की मांग कर रहे हैं. लोग अपनी पुरानी ज़िंदगी वापस मांग रहे हैं. कई लोग राष्ट्रपति शी जिनपिंग के इस्तीफ़े की मांग तक कर रहे हैं.
चीन में, 1989 के राजनीतिक उथल-पुथल के बाद तियानानमेन स्क्वेयर पर हुए प्रदर्शन और प्रदर्शनकारियों पर तत्कालीन चीनी सरकार की ख़ूनी कार्रवाई के बाद से सत्ता के ख़िलाफ़ इस तरह का बड़ा प्रदर्शन कभी नहीं देखा गया.
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सरकारी संदेश
पिछले हफ्ते चीन के पूर्व नेता जियांग जेमिन की मौत ने सरकार पर और भी दबाव बढ़ाया है. उनके युग को कई लोग बाहरी दुनिया के साथ फिर से जुड़ने और चीन के तेज़ विकास की अवधि के रूप में देखते हैं. लोग उनके समय की तुलना मौजूदा स्थिति से कर रहे हैं.
ऐसा लग रहा है कि अब परिस्थितियां बदल रही हैं. अब चीनी सरकार को ख़ुद की साख बचाने के तरीके तलाशने की ज़रूरत है.
चीनी अधिकारी अब लोगों से इस बात की माफ़ी तो नहीं मांगेंगे कि उन्होंने ज़रूरत से अधिक अवधि के लिए लोगों को घरों में बंद रखा और पाबंदियां लगाए रखीं.
लेकिन कम्युनिस्ट पार्टी अब जनता को सरकारी मीडिया के ज़रिए एक नया संदेश देने की कोशिश ज़रूर कर रही है कि कोरोना का नया वेरिएंट ज़्यादा गंभीर संक्रमण का कारण नहीं बन रहा है.
ये बीते लंबे वक्त से दिए जा रहे संदेश से बिल्कुल अलग है जब चीन की सरकार अपने लोगों को कह रही थी कि दुनिया के देशों में कोविड के कारण लोगों की दुर्दशा हो रही है, लेकिन चीन के लोगों को ख़ुद को ख़ुशक़िस्मत मानना चाहिए कि उन्हें यहां सुरक्षित रखा जा रहा है.
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दो बड़ी चुनौतियां
सबसे पहले, बड़ी संख्या में लोग, ख़ासकर बुज़ुर्गों और जिन लोगों के संक्रमित होने की आशंका ज़्यादा है, उन लोगों को पूरी तरह टीके नहीं लगे हैं. आधिकारिक आंकड़े बताते हैं कि 80 साल से अधिक उम्र के केवल 40 फ़ीसदी लोगों ने ही बूस्टर शॉट लिया है. हॉन्ग कॉन्ग में बड़ी संख्या में उन बुज़ुर्गों की मौत हुई है जिन्होंने टीके नहीं लगवाए.
दूसरी चुनौती- अधिकारियों के पास चीन के अस्पताल की आईसीयू क्षमता का विस्तार करने के लिए सालों का समय था, लेकिन इसके बावजूद वहां आईसीयू की कमी बनी रही और जब कोविड का आउटब्रेक हुआ तो अफ़रा-तफ़री के हालात पैदा हो गए.
इन वजहों से ही चीन चाहता है कि वो धीरे-धीरे सामान्य स्थिति की ओर बढ़े ताकि अस्पतालों पर अधिक दबाव को रोका जा सके. अगर अस्पताल में दवाब बढ़ता नज़र आया तो फिर चीन पाबंदियां लगाएगा.
चीन का अगला क़दम होगा. धीरे-धीरे क़दम आगे बढ़ाना होगा. भले ही ऐसा करने के लिए उसे कुछ क़दम पीछे ही क्यों ना खींचने पड़े.
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