खिलाड़ी के हारने पर उत्तर कोरिया क्या सज़ा देता है?
क्या होता है जब उत्तर कोरिया के किसी खिलाड़ी को मिलती है हार?
उत्तर कोरिया जैसे देश में जहां राष्ट्र की छवि को सर्वोपर्रि समझा जाता हो वहां किसी खिलाड़ी का ओलंपिक खेलों में भाग लेना किसी पहेली से कम नहीं.
ओलंपिक में जीत दर्ज करने वाले खिलाड़ियों को देश और नेताओं के सम्मान के रूप में इस्तेमाल किया जाता है.
लेकिन एक हार मौजूदा शासन के पूरे नज़रिए को बदलने के लिए काफ़ी होती है. वह हार तब और दर्दनाक हो जाती है जब वह किसी दुश्मन देश के हाथों मिली हो, जैसे जापान, अमरीका या दक्षिण कोरिया.
हाल के कुछ दिनों में ऐसे हालात बने हैं कि उत्तर कोरिया फरवरी में होने वाले विंटर ओलंपिक में हिस्सा ले सकता है. ये खेल इसलिए भी दिलचस्प हैं क्योंकि इनका आयोजन दक्षिण कोरिया के शहर प्योंगचांग में होने जा रहा है.
अगर उत्तर कोरिया इन खेलों में हिस्सा लेता है तो युद्ध की कगार पर खड़े उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया के बीच जमी बर्फ़ पिघलने के भी कुछ आसार नज़र आते हैं.
हालांकि इन खेलों के लिए उत्तर कोरिया के महज़ दो ही एथलीट क्वालिफाई पर सके हैं.
कब से है ओलंपिक का हिस्सा?
उत्तर कोरिया साल 1964 से विंटर ओलंपिक में और साल 1972 से ग्रीष्मकालीन ओलंपिक में हिस्सा ले रहा है. अभी तक उसके नाम कुल 56 पदक हैं जिसमें से 16 स्वर्ण हैं.
आर्थिक आधार पर देखें तो ग्रीष्मकालीन ओलंपिक में जितने पदक उत्तर कोरिया ने जीते हैं उस हिसाब से वह 7वें पायदान पर है.
उत्तर कोरिया ने अधिकतर पदक कुश्ती, भारोत्तोलन, जूडो और मुक्केबाजी में जीते हैं. विंटर ओलंपिक में उसे दो ही पदक मिले हैं
हार को टीवी पर नहीं दिखाते
उत्तर कोरिया में आमतौर पर खेलों के आयोजन बाद में टेलीकास्ट किया जाता है, मतलब उनका लाइव प्रसारण नहीं होता. यह बात तब और बढ़ जाती है जब उसे किसी खेल में हार का सामना करना पड़ जाए.
2014 के एशियाई खेलों में पुरुषों की फुटबॉल टीम फ़ाइनल में जगह बना चुकी थी, जहां उसका सामना दक्षिण कोरिया से होना था.
इस मैच से पहले उत्तर कोरिया में जीत की उम्मीदों से लबरेज़ माहौल बनाया गया, लेकिन अंत में नतीजा 1-0 से दक्षिण कोरिया के पाले में रहा. उत्तर कोरिया ने इस मैच के समाचार को कभी प्रसारित ही नहीं किया और इतिहास से इस मैच को हमेशा के लिए मिटा दिया.
बीबीसी मॉनिटरिंग के उत्तर कोरिया के विश्लेषक एलिस्टर कोलमैन बताते हैं, ''उस मैच का नतीजा कभी सामने नहीं आया, उत्तर कोरिया की आम जनता से लेकर आधिकारिक मीडिया तक को नहीं पता कि उस मैच में क्या हुआ था.''
अग़र मिल जाए हार तो...
विजेताओं का उत्तर कोरिया में बहुत सम्मान होता है, यह लाज़िमी भी है. और यह जीत अगर ओलंपिक के मैदान में हासिल हो तो पुरस्कारों के झड़ी लग जाती है जैसे कार, घर आदि.
विजेताओं का विक्ट्री मार्च निकाला जाता है, आम जनता को यह बताया जाता है कि यह जीत उत्तर कोरिया के बेहतरीन शासन, और उनके गौरवशाली नेताओं की वजह से प्राप्त हुई है.
लेकिन अग़र खिलाड़ी को हार मिल जाए तो क्या हो? यह एक बड़ा सवाल है.
ऐसी बातें उत्तर कोरिया में अक्सर सुनने को मिलती हैं कि हार जाने पर उस खिलाड़ी को जेल में डाल दिया जाता है, हालांकि इस बात के अभी तक कोई पुख्ता प्रमाण नहीं मिले हैं.
उत्तर कोरिया की समाचार वेबसाइट एनके न्यूज़ में विश्लेषक फेदूर टेर्टिट्सकी कहते हैं, ''पिछले कुछ सालों में हार को लेकर यहां नज़रिया बदला है, राष्ट्र के नेताओं ने यह समझा है कि अगर हारने वाले हर खिलाड़ी को वे कंसेंट्रेशन कैंप में डाल देंगे तो उनके पास खिलाड़ियों की कमी हो जाएगी.''
साल 1990 में बीजिंग एशियाई खेलों में एक जूडो खिलाड़ी को हार का सामना करना पड़ा था, उन्होंने बाद में बताया था कि उस हार के बाद उन्हें कोयले की खदान में भेज दिया गया था.
खेलों का बहिष्कार और धमाके
कई वामपंथी राष्ट्रों की तरह उत्तर कोरिया ने भी साल 1984 में हुए लॉस एंजिल्स ओलंपिक खेलों का बहिष्कार किया था. लेकिन उत्तर कोरिया को इससे ज़्यादा गुस्सा तब आया जब 1988 के ओलंपिक खेलों की मेजबानी दक्षिण कोरिया को मिल गई.
फेदूर टेर्टिट्सकी बताते हैं कि उस समय उत्तर कोरिया ने यह बात बहुत ज़ोरशोर से उठाई कि इन खेलों का आयोजन या तो किसी दूसरी जगह किया जाए या फ़िर उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया मिलकर इनकी मेजबानी करेंगे.
अपने इस अभियान को सफल बनाने के लिए उत्तर कोरिया ने दूसरे रास्ते भी अपनाए, उसने 1987 में कोरियन एयरलाइन के हवाई जहाज़ में धमाका तक करवा दिया, जिसमें 115 लोगों की मौत हुई थी.
क्या होगा इन विंटर ओलंपिक में?
अगर उत्तर कोरिया प्योंगचैंग में होने वाले विंटर ओलंपिक में हिस्सा लेता है तो पूरे देश की उम्मीदें सिर्फ़ दो खिलाड़ियों के कंधों पर टिकी होंगी.
ये एथलीट एक स्केटिंग जोड़ा है, जिसमें 25 साल के किम जु-सिक और 18 वर्षीय रयोम टे-ओक शामिल हैं.
उनके कनाडाई कोच को उनसे काफी उम्मीदें हैं, वे कहते हैं कि इन दोनों एथलीट का सपना विश्व चैंपियन बनना है.
उत्तर कोरियाई शासक किम जोंग उन इन विंटर ओलंपिक में इतनी दिलचस्पी क्यों ले रहे हैं, इसके पीछे कुछ विश्लेषकों का मानना है कि किम इन खेलों के जरिए परमाणु परीक्षणों के कारण दुनिया के सामने अपनी धूमिल हो चुकी छवि में सुधार लाना चाहते हैं.
वहीं दूसरी तरफ उत्तर कोरिया का इन खेलों में हिस्सा लेना दक्षिण कोरिया के लिए भी राहत भरा कदम ही होगा क्योंकि इन हालात में उसे यह चिंता नहीं सताएगी कि खेलों के दौरान प्योंगयांग की तरफ़ से कोई हमला न हो जाए.