यह हैं 'पीके' जो प्यार के लिए नई दिल्ली से स्वीडन साइकिल चलाकर पहुंचे
स्टॉकहोम। बॉलीवुड फिल्मों में अक्सर आपने रोमांस को 'लार्जर देन लाइफ' यानी कल्पना से परे देखा होगा जिसमें हीरो अपने प्यार को पाने के लिए किसी भी हद से गुजर जाता है। रील लाइफ से बाहर आइए और आज हम आपको एक ऐसी लवस्टोरी के बारे में बता रहे हैं जिसमें 'हीरो' ने वाकई कुछ ऐसा कर डाला जिसे देखकर बॉलीवुड के हीरो भी पानी मांगेंगे।
यह कहानी है भारतीय मूल के स्वीडिश आर्टिस्ट डॉक्टर प्रद्ययुम कुमार माहानंदिया उर्फ पीके की जो भारत की राजधानी यानी नई दिल्ली से स्वीडन पहुंचे और वह भी साइकिल पर और वह भी अपने प्यार को हासिल करने के लिए। वह भी नई साइकिल नहीं बल्कि सेकेंडहैंड साइकिल पर।
इस कहानी में पीके की हीरोईन हैं स्वीडिश नागरिक शैरलॉट वॉन स्केडविन और इनकी लवस्टोरी में इमोशन है, ड्रामा है और थोड़ी बहुत ट्रैजेडी भी है। लवस्टोरी की शुरुआत होती है ओडिशा के ढेकनाल से जहां पर सन 1949 में पीके का एक गरीब परिवार में जन्म होता है।
पीके जो बचपन से ही आर्ट और पेंटिंग के मास्टर थे, उनके परिवार के पास उनकी शिक्षा और उनके टैलेंट को आगे बढ़ाने के लिए बिल्कुल पैसे नहीं थे। पीके को उस दौर में समाज में फैली जातिवाद की समस्या से भी गुजरना पड़ा।
सन 1971 में पीके दिलवालों की दिल्ली आ गए और यहां पर उन्होंने आर्ट कॉलेज में दाखिल लिया। उनके पोट्रेट्स उन्हें दुनियाभर में प्रसिद्धि दिला रहे थे। सन 1975 में स्वीडन ने शैरलॉट जो उस समय लंदन में पढ़ाई कर रही थीं, पीके के बारे में सुनकर दिल्ली आती हैं। वह यहां पर सिर्फ पीके से अपना पोट्रेट बनवाने के लिए आई थीं।
जहां पीके, शैरलॉट की खूबसूरती से प्रभावित थे तो पीके की सादगी ने शैरलॉट का दिल जीत लिया था। यहां से ही इनके प्यार की शुरुआत हुई। पीके के प्यार में शैरलॉट ने अपना नाम बदलकर चारूलता रखा और फिर दोनों ने शादी कर ली। आगे की स्लाइड्स में पढ़िए इस अजब प्रेम की गजब कहानी।
भारत में रुक गए पीके
कुछ दिनों बाद शैरलॉट को वापस लौटना था।उन्होंने पीके से कहा कि वह भी उनके साथ चलें लेकिन पीके को अपनी पढ़ाई पूरी करनी थी और ऐसे में उन्हें भारत में ही रुकना पड़ा। जब शैरलॉट ने पीके को एयरटिकट भेजने का प्रस्ताव दिया तो उन्होंने साफ इंकार कर दिया। शैरलॉट के जाने के बाद दोनों के बीच लव लेटर्स के जरिए संपर्क बना रहा।
सारा सामान बेचकर निकल पड़े
पीके ने वादा तो कर दिया था लेकिन उनके पास अपने वादे को पूरा करने के लिए पैसे नहीं थे। उन्होंने अपना हौसला जरा भी नहीं छोड़ा और फिर अपना सबकुछ बेच दिया। इससे उन्हें जो पैसे मिले, उनकी मदद से उन्होंने एक साइकिल खरीदी। साइकिल पर सारी पेटिंग्स और ब्रश रखें और बस निकल पड़े स्वीडन के लिए।
साइकिल हुई खराब और रहना पड़ा भूखा
यह बात सन 1978 की है। वह नई दिल्ली से पहले अमृतसर पहुंचे। यहां से अफगानिस्तान, र्इरान, टर्की, बुल्गारिया, युगोस्लाविया, जर्मनी, ऑस्ट्रिया और डेनमार्क होते हुए वह अपनी मंजिल तक पहुंचे थे। रास्ते में कई बार उनकी साइकिल खराब हुई और कई दिनों तक भूखा भी रहना पड़ा।
अधिकारी भी रह गए हैरान
चार माह, तीन हफ्तों का सफर तय कर वह अंतत: स्वीडन के शहर गॉटेनबर्ग पहुंचे जहां पर शैरलॉट उनका इंतजार कर रही थीं। हालांकि स्वीडिश इमीग्रेशन ऑफिसर्स ने उनसे पूछताछ जरूर की। पीके ने शैरलॉट के साथ हुई शादी की फोटोग्राफ भी अधिकारियों को दिखाई। शैरलॉट एक शाही परिवार से हैं और अधिकारियों को जरा भी यकीन नहीं हो रहा था कि एक गरीब भारतीय उनसे मिलने कुछ ऐसा भी कर सकता है।
दो बच्चों के माता-पिता शैरलॉट और पीके
दोनों की शादी को 40 वर्ष हो चुके हैं। आज पीके यानी डॉक्टर प्रद्ययुम कुमार माहानंदिया भारतीय उड़िया कल्चरल एंबेसडर के तौर पर स्वीडन में काम करते हैं। वह शैरलॉट और अपने दो बच्चों के साथ वहीं बसे हुए हैं। उनका गांव जो उन्हें अछूत मानता था आज उनके आने पर उनका शानदार स्वागत करता है।