क्विक अलर्ट के लिए
अभी सब्सक्राइव करें  
क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

वैलेंटाइन डे पर पनपे सऊदी-अमरीकी अटूट इश्क की वो कहानी

सऊदी ईरान के साथ ओबामा के परमाणु समझौते का विरोध कर रहा था, इसलिए वो चाहता था कि ट्रंप चुनाव जीते क्योंकि ट्रंप अपने चुनावी अभियानों में इस समझौते के तोड़ने की बात कर रहे थे.

एमबीएस ईरानी महत्वाकांक्षा को दबाने के लिए कुछ भी करने को तैयार थे. जनवरी 2015 में एमबीएस को सऊदी का रक्षा मंत्री बना दिया गया. रक्षा मंत्री बनते ही एमबीएस ने यमन में ईरान समर्थित विद्रोहियों के ख़िलाफ़ हमला बोल दिया.

By BBC News हिन्दी
Google Oneindia News
14 फ़रवरी 1945 को सऊदी के किंग अब्दुलअज़ीज़ इब्न सऊद और अमरीका के तत्कालीन राष्ट्रपति फ़्रैंकलीन डी रूज़वेल्ट उस बैठक में
Getty Images
14 फ़रवरी 1945 को सऊदी के किंग अब्दुलअज़ीज़ इब्न सऊद और अमरीका के तत्कालीन राष्ट्रपति फ़्रैंकलीन डी रूज़वेल्ट उस बैठक में

कनाडा ने शायद ही कभी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कोई कलह पैदा करने की कोशिश की हो. सऊदी अरब ने महिला अधिकारों के लिए मुखर रहने वाली कई एक्टिविस्टों को गिरफ़्तार किया तो कनाडा के विदेश मंत्रालय ने ट्विटर पर उन्हें तत्काल रिहा करने का आग्रह किया. सऊदी को कनाडा की यह पहल रास नहीं आई और उसने इसे बहुत गंदे तरीक़े से लिया.

सऊदी अरब ने कहा कि कनाडा शाही शासन के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप कर रहा है. सऊदी अरब ने ओटावा से अपने राजदूत को बुला लिया और साथ ही रियाद से कनाडा के राजदूत को जाने के लिए कह दिया. सऊदी ने कनाडा के राजदूत को महज एक दिन का समय दूतावास खाली करने के लिए दिया.

सऊदी ने कनाडा के साथ व्यापार ख़त्म करने की घोषणा कर दी और कनाडा के साथ हवाई सेवा भी बंद कर दी. इसके साथ ही सऊदी के शाही शासन ने कनाडा की यूनिवर्सिटी में पढ़ रहे अपने दस हज़ार छात्रों को भेजे जाने वाले पैसे रोक दिए. इतना ही नहीं सऊदी ने कनाडा में इलाज कराने गए पांच हज़ार अपने नागरिकों के पैसे भी रोकने का फ़रमान जारी कर दिया.

कनाडा पर सऊदी का अतिआक्रामक होना

सऊदी के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन-सलमान जो कि एमबीएस नाम से जाने जाते हैं, की यह उग्र प्रतिक्रिया ही उनकी पहचान बन गई है. हाल के वर्षों में दुनिया भर के देशों में यह धारणा मज़बूत हुई है कि सऊदी अरब की असली सत्ता मोहम्मद बिन-सलमान के पास ही है.

हालांकि कनाडा और सऊदी के बीच व्यापार बहुत कम है. विशेषज्ञों का कहना है कि क्राउन प्रिंस का संदेश साफ़ है और उनका निशाना कनाडा तक सीमित नहीं है. मध्य पूर्व में सीआईए के पूर्व विश्लेषक ब्रुस राइडल ने न्यूज़वीक से कहा, ''अगर आप सऊदी की आलोचना करेंगे तो उसकी क़ीमत चुकानी होगी.''

कनाडा और अमरीका के द्वीपक्षीय संबंधों में दोस्ती और भरोसे की कभी नहीं रही है. सऊदी के इस अपमान का संदेश कनाडा ने अमरीका तक पहुंचाया, लेकिन ट्रंप प्रशासन ने ख़ुद को पूरी तरह से अलग कर लिया. अमरीकी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता हीदर नॉर्ट ने प्रेस कॉन्फ़्रेंस में कहा, ''हमलोग इसमें कुछ नहीं कर सकते हैं और दोनों देशों को ही चीज़ें ठीक करनी होंगी.''

अब खुलकर सामने आ रहा सऊदी

कनाडा के साथ क्राउन प्रिंस सलमान का रवैया सऊदी के नेतृत्व की शैली में आक्रामकता का परिचायक बना. वो दिन बीत गए जब सऊदी अरब विदेश नीति पर्दे की पीछे से संचालित करता था और अपने दुश्मनों से सैन्य टकराव से बचता था.

सऊदी ने उन तरीक़ों को भी पीछे छोड़ दिया है जब वो अपनी शक्ति का प्रदर्शन दोस्त देशों, मुस्लिम नेताओं और मीडिया घरानों को पैसे देकर करता था.

अब क्राउन प्रिंस सलमान की छवि बनी है कि वो अपने आलोचकों और शत्रुओं को सज़ा देने के लिए बेशुमार दौलत खर्च करते हैं.

कहा जा रहा है कि एमबीएस की डिप्लोमेसी में भी सूझ-बूझ से ज़्यादा उनकी ज़िद भरी रहती है. यमन युद्ध का मैदान बना हुआ है जहां सऊदी ईरान के छद्म युद्ध के ख़िलाफ़ लड़ रहा है.

आलोचकों का यह भी कहना है कि अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप अमरीका के मानवाधिकारों को लेकर झंडाबरदार बनने वाली छवि को स्वेच्छा से पीछे छोड़ देना चाहते हैं और वो सऊदी के साथ रिश्तों में इसे बिल्कुल आड़े नहीं आने देना चाहते. हालांकि ये भी कहा जाता है कि अमरीका मानवाधिकारों की पैरोकारी का चोला बहुत पहले ही उतार चुका है.

अमरीका और सऊदी अरब
Getty Images
अमरीका और सऊदी अरब

सऊदी के हर गुना माफ़ क्यों?

दुनिया के तानाशाही शासन और उनके भ्रष्ट नेताओं का लेखा-जोखा इंटरनेशनल ट्राइब्यूनल्स या ट्रूथ-एंड-रिकॉन्सिलीएशन कमीशन रखता था, लेकिन सऊदी अरब इन संस्थानों के लिए हमेश अपवाद रहा. सऊदी में 1938 में तेल का जब विशाल भंडार मिला तो यहां के शाही परिवार के पास एक ज़बर्दस्त ताक़त आई.

यह ताक़त ऐसी है जिसके ज़रिए विश्व अर्थव्यवस्था को स्थिर किया जा सकता है या फिर तोड़-फोड़ की स्थिति लाई जा सकती है. इस ताक़त की आड़ में अमरीका समेत पूरा पश्चिम और यहां तक कि संयुक्त राष्ट्र ने भी सऊदी की हर ज़िद को बर्दाश्त किया.

सऊदी ने न केवल अपने घर में मानवाधिकारों को ताक पर रखा बल्कि चरमपंथी इस्लामिक समूह तालिबान, नुसरा फ़्रंट और सीरिया में सक्रिय अल-क़ायदा को वित्तीय मदद पहुंचाने के मामले में भी संदिग्ध है.

इन सबके बदले में सऊदी ने अमरीका को कई तरह की रियायतें दीं. सऊदी ने अमरीकी एयरफ़ोर्स के लड़ाकू विमानों को दुनिया के सबसे अहम इलाक़ों में उड़ान भरने की अनुमति दी और साथ ही अमरीकी सैन्य साजो-सामान के लिए एक मुनाफ़े वाला बाज़ार भी मुहैया कराया.

ईरान के साथ मुक़ाबला करने में भी अमरीका ने सऊदी का खुलकर साथ दिया. ऐसे में राजनयिकों के लिए यह बात कोई रहस्य नहीं रह जाती है कि कनाडा के अपमान में अमरीका चुप क्यों रहा.

सऊदी और ट्रंप
Getty Images
सऊदी और ट्रंप

अमरीका से रिश्तों में कोई बाधा नहीं

सऊदी में अमरीका के राजदूत रहे चैसा फ़्रीमैन ने न्यूज़वीक से कहा है, ''मानवाधिकार और मूल्यों की अमरीका-सऊदी संबंधों में कोई भूमिका नहीं रही है. शुरू से ही दोनों देशों के संबंध पारस्परिक राष्ट्र हितों से संचालित होते रहे हैं.''

अमरीका और सऊदी के रिश्तों की बुनियाद 1945 में वेलेंटाइन डे को रखी गई. इसी दिन अमरीकी राष्ट्रपति फ़्रैंकलीन डी रूज़वेल्ट और सऊदी अरब के संस्थापक किंग अब्दुलअज़ीज़ इब्न साऊद की मुलाक़ात स्वेज़ नहर में अमरीकी नेवी के जहाज में हुई थी.

इसी मुलाक़ात में किंग अब्दुलअज़ीज़ अमरीका को सऊदी का तेल सस्ते में देने पर सहमत हुए थे. इसके बदले में रूज़वेल्ट ने किंग को सऊदी को बाहरी दुश्मनों से बचाने का संकल्प लिया था.

वेलेंटाइन डे को दोनों देशों के बीच पनपा यह इश्क छह इसराइली-अरब युद्ध झेल चुका है जबकि दोनों अलग-अलग खेमे में खड़े थे. 1973 के अरब तेल संकट में भी दोनों देशों के इश्क पर आंच नहीं आई.

तेल के बदले सुरक्षा का समीकरण दोनों के बीच इस क़दर मज़बूत है कि उस पर 9/11 के हमलों का भी असर नहीं पड़ा जबकि विमान हाइजैक करने वाले ज़्यादातर लोग सऊदी अरब के नागरिक थे.

सऊदी के क्राउन प्रिंस मोहम्मज बिन-सलमान
Getty Images
सऊदी के क्राउन प्रिंस मोहम्मज बिन-सलमान

हर मुश्किल वक़्त में भी बना रहा दोनों का 'प्यार'

अमरीका ने 2003 में इराक़ पर हमला किया तो सऊदी को पता था कि सद्दाम हुसैन की सत्ता ख़त्म होने से ईरान मज़बूत होगा, लेकिन उस दौर की आंच से भी दोनों के संबंधों में बिखराव नहीं आया.

1991 में फ़ारस की खाड़ी में युद्ध छिड़ा तो अमरीका के तत्कालीन राष्ट्रपति जॉर्ज एच डब्ल्यू बुश ने रूज़वेल्ट के समझौते का सम्मान करते हुए सऊदी की इराक़ी सेना से रक्षा की थी.

1945 में रिश्तों की जो बुनियाद पड़ी वो बेशक मज़बूती से आगे बढ़ी, लेकिन सऊदी में संपूर्ण राजशाही और उसके सामाजिक-धार्मिक नियम, जैसे- अपराधियों के सिर कलम, पश्चिम के लोकतांत्रिक मूल्यों के ख़िलाफ़ हैं. अमरीका कई बार इन चीज़ों के लेकर असहज हुआ है.

73 साल के संबंधों में ऐसे केवल दो मौक़े आए हैं जब अमरीका और सऊदी में तनाव की स्थिति बनी.

ब्रुकिंग्स इंस्टीट्यूशन और 'किंग्स एंड प्रेसिडेंट्स: सऊदी अरबिया एंड द यूनाइटेड स्टेट्स सिंस एफ़डीआर' के लेखक राइडेल ने वॉल स्ट्रीट जर्नल से कहा है, ''1962 में राष्ट्रपति जॉन एफ़ केनेडी को तब के क्राउन प्रिंस फ़ैसल को दास प्रथा को ख़त्म करने के लिए मनाना पड़ा था. दूसरा मौक़ा तब आया जब 2015 में राष्ट्रपति बराक ओबामा को किंग सलमान को जेल में बंद राइफ़ बदावी को सार्वजनिक रूप से शारीरिक सज़ा देने से रोकने के लिए मनाना पड़ा था. बदावी को दस सालों की क़ैद और इस्लाम को अपमानित करने के मामले में एक हज़ार कोड़े मारने की सज़ा मिली है. उन्हें ये सज़ा एक ब्लॉग लिखने के कारण मिली है. 50 कोड़े बदावी को पहले ही लगाए जा चुके हैं.''

ट्रंप के दामाद और सऊदी के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन-सलमान
Getty Images
ट्रंप के दामाद और सऊदी के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन-सलमान

किसी राष्ट्रपति ने नहीं दिखाई हिम्मत

जिमी कार्टर को अमरीका का इस मामले में पहला राष्ट्रपति माना जाता है जिन्होंने विदेश नीति में मानवाधिकार को शीर्ष पर रखा. 1977 से अमरीकी विदेश मंत्रालय ने दुनिया के देशों की मानवाधिकारों पर वार्षिक रिपोर्ट बनानी शुरू की थी. राइडेल का कहना है कि न तो कार्टर ने और न ही बाक़ी राष्ट्रपतियों ने कभी सऊदी पर इस तरह की रिपोर्ट बनाई.

क्राउन प्रिंस सलमान के आने के बाद से सऊदी में बड़ी संख्या में मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, महिला अधिकारों के लिए लड़ने वाली महिलाओं और वक़ीलों को गिरफ़्तार कर जेल में डाल दिया गया और राष्ट्रपति ट्रंप ने भी अपने पूर्ववर्तियों का ही रुख़ अख़्तियार किया.

यहां तक कि सऊदी के जाने-माने पत्रकार जमाल ख़ाशोज्जी की तुर्की स्थित सऊदी के वाणिज्य दूतावास में हत्या कर दी गई और सऊदी ने इस हत्या को कबूल भी किया, फिर भी अमरीका को ग़ुस्सा नहीं आ रहा.

न्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक़ ट्रंप ने कहा, ''मैं नहीं चाहूंगा सऊदी से 110 अरब डॉलर का सौदा रद्द कर दूं. यह अब तक का सबसे बड़ा सौदा है. इसे रूस और चीन दोनों लपकने के लिए तैयार हैं.''

किंग अब्दु्ल्लाह
Reuters
किंग अब्दु्ल्लाह

'मैं भाषण देने नहीं आया हूं'

ट्रंप ने अपने इस बयान में पिछले साल दोनों देशों के बीच हुए रक्षा सौदों का हवाला दिया है. ट्रंप का कहना है इस सौदे से अमरीकी नागरिकों को नौकरी मिलेगी.

ट्रंप ने साफ़ कर दिया है कि 'उनके लिए फ़ायदे के आर्थिक संबंध मायने रखते हैं न कि मानवाधिकार'. मई 2017 में ट्रंप ने पहला विदेशी दौरा के लिए सऊदी अरब को चुना. इससे पहले के राष्ट्रपति पहले विदेशी दौरे के तौर पर पड़ोसी कनाडा या मेक्सिको को चुनते थे.

ट्रंप अमरीका के पहले राष्ट्रपति बने जिन्होंने स्पष्ट कर दिया कि उनके लिए राजनयिक संबंधों में मानवाधिकारों की कोई जगह नहीं है. अपने सऊदी दौरे पर ट्रंप ने कहा था, ''मैं यहां भाषण देने नहीं आया हूं. मैं यहां इसलिए नहीं आया हूं कि आपको बताऊं कि कैसे रहना है, क्या करना है और कैसे अपने अराध्य की पूजा करनी है.''

पिछले तीन सालों में हाउस ऑफ साऊद और व्हाइट हाउस में क़रीबी और बढ़ी है. ट्रंप के दामाद जैरेड कशनर और सऊदी के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन-सलमान में गहरी दोस्ती है. दोनों के बीच ये संबंध अमरीका में राष्ट्रपति चुनाव के दौरान पनपा था और 2016 में ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद भी जारी रहा.

सऊदी अरब
Getty Images
सऊदी अरब

ओबामा की थी अलग नीति

सऊदी ईरान के साथ ओबामा के परमाणु समझौते का विरोध कर रहा था, इसलिए वो चाहता था कि ट्रंप चुनाव जीते क्योंकि ट्रंप अपने चुनावी अभियानों में इस समझौते के तोड़ने की बात कर रहे थे.

एमबीएस ईरानी महत्वाकांक्षा को दबाने के लिए कुछ भी करने को तैयार थे. जनवरी 2015 में एमबीएस को सऊदी का रक्षा मंत्री बना दिया गया. रक्षा मंत्री बनते ही एमबीएस ने यमन में ईरान समर्थित विद्रोहियों के ख़िलाफ़ हमला बोल दिया.

ओबामा एमबीएस के इस हमले से सहमत नहीं थे और वो हथियारों की आपूर्ति को लेकर भी अनिच्छुक बताए जाते हैं. एमबीएस ने जब सऊदी की अर्थव्यवस्था की निर्भरता तेल से कम करने, विदेशी निवेश के लिए खोलने और सामाजिक सुधारों जैसी बातें कहीं तो पश्चिम को लगा कि वो क्रांतिकारी शासक हैं. एमबीएस ने महिलाओं से जुड़े कई सुधार किए. सऊदी में महिलाएं अब सड़क पर बिना मुंह ढके चल सकती है, रंगीन बुर्क़ा पहन सकती हैं और गाड़ी भी चला सकती हैं.

सऊदी और ईरान
BBC
सऊदी और ईरान

ट्रंप को क्यों आता है इतना प्यार

सऊदी पर ट्रंप पश्चिम के किसी भी देश की तुलना में सबसे ज़्यादा निसार हुए. एमबीएस ने देश के भीतर और बाहर अपने प्रतिद्वंद्वियों के साथ जैसी क्रूरता बरती उसे लेकर वो ख़ामोश रहे. ईरान से क़रीबी का आरोप लगाकर सऊदी ने क़तर के ख़िलाफ़ नाकाबंदी कर दी.

लेबनान के सुन्नी प्रधानमंत्री साद हरीरी को पिछले साल सऊदी में हिरासत में ले लिया गया और उन्हें ईरान समर्थित हिज़बुल्लाह के समर्थन के आरोप में इस्तीफ़ा देने पर मज़बूर किया गया.

एमबीएस ने देश के भीतर भ्रष्टाचार विरोधी अभियान में सैकड़ों धनी कारोबारियों को मनमानी तरीक़े जेल में डालना शुरू किया जिसमें हाई-प्रोफ़ाइल दर्जनों प्रिंसों को भी गिरफ़्तार किया गया.

कहा जा रहा कि सितंबर तक एमबीएस ने 2000 के क़रीब लोगों को राजनीतिक बंदी बनाया है. इन सारे वाक़यों पर ट्रंप चुप रहे. कई विश्लेषकों का मानना है कि अमरीका मध्य-पूर्व में किसी युद्ध में नहीं उलझना चाहता है क्योंकि उसके पास इराक़ और अफ़ग़ानिस्तान का अनुभव ठीक नहीं है.

ट्रंप और सऊदी
Getty Images
ट्रंप और सऊदी

अमरीका के हित भी दांव पर

सऊदी अरब की आक्रामकता से मध्य-पूर्व में अमरीका के हित भी प्रभावित हो रहे हैं. यमन में सऊदी के हवाई हमले से आम नागरिक और बच्चे मारे जा रहे हैं. आलोचकों का कहना है कि सऊदी अरब यमन में अमरीकी हथियारों के दम पर ही लड़ रहा है. दूसरी तरफ़ सऊदी ने क़तर पर नाकाबंदी लगाकर भी अमरीका को असहज कर दिया है.

मध्य-पूर्व में क़तर में अमरीकी एयर फ़ोर्स का सबसे बड़ा बेस है. सऊदी के इस क़दम से गल्फ़ कोऑपरेशन काउंसिल की एकता भी ध्वस्त हो गई है. इसमें ख़ाड़ी के छह देश हैं. ऊर्जा ज़रूरतों को लेकर भी सऊदी और अमरीका की दोस्ती से दुनिया की परेशानी बढ़ रही है.

अमरीकी अनुरोध पर सऊदी तेल का उत्पादन बढ़ाने को लेकर लंबे समय से सहमत रहा है, लेकिन शर्त यह होती है कि पश्चिम गैसोलीन की क़ीमत ज़्यादा दे. अगर सऊदी को पश्चिम के देशों से ऊंची क़ीमत नहीं मिलती है तो ऊर्जा संकट का दायरा बढ़ सकता है. दूसरी तरफ़ अमरीका ने ईरान से तेल आयात करने वाले देशों को रोक दिया है.

सऊदी और ट्रंप
Getty Images
सऊदी और ट्रंप

अमरीकी सैन्य हार्डवेयर के लिए सऊदी अरब सबसे भरोसेमंद बाज़ार है. केवल ओबामा के कार्यकाल के दौरान ही सऊदी ने 100 अरब डॉलर के हथियारों का सौदा किया था.

ट्रंप ने कहा है कि वो चाहते हैं कि क्राउन प्रिंस 110 अरब डॉलर का एक और हथियार सौदा करें जिससे ईरान के ख़िलाफ़ मज़बूती से सामना किया जा सके. जब ओबामा ने ईरान के साथ परमाणु समझौता किया तो सऊदी ने भी हथियारों पर अमरीकी निर्भरता कम करते हुए ब्रिटेन, रूस, चीन, फ़िनलैंड और तुर्की की तरफ़ रुख़ किया.

न्यूज़वीक से सऊदी अरब के एक डिप्लोमैट ने कहा है कि पिछले साल ट्रंप ने रियाद में 110 अरब डॉलर के हथियारों के सौदे की सार्वजनिक रूप से घोषणा की थी, लेकिन सच यह है कि इस सौदे पर अब तक हस्ताक्षर तक नहीं हुआ है.

BBC Hindi
Comments
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
English summary
The story of Saudi-American unbreakable Ishq that thrills on Valentines Day
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X