क्विक अलर्ट के लिए
अभी सब्सक्राइव करें  
क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

अफ़ग़ानिस्तान की 'सत्ता में तालिबान', अशरफ़ ग़नी कितने ज़िम्मेदार?

अमेरिकी खुफिया विभाग का कहना था कि अफ़ग़ानिसतान की हुकूमत तीन महीनों के भीतर ढह सकती है, लेकिन तालिबान ने अनुमान से कहीं अधिक तेज़ी से अपने पैर जमा लिए. क्या राष्ट्रपति अशरफ़ ग़नी बढ़ते तालिबान के ख़तरे से बिल्कुल अनजान थे.

By BBC News हिन्दी
Google Oneindia News
अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान
AFP via Getty Images
अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान

अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान ने जिस रफ़्तार से लगभग पूरे मुल्क को अपने कब्ज़े में लिया है, उससे दुनिया भर में लोग हैरान हैं. वहां के सूबों की राजधानियां तालिबानी लड़ाकों के सामने ताश के पत्तों की तरह बिखरती जा रही हैं.

खून ख़राबा न हो इसलिए कई सूबों के गवर्नरों ने ख़ुद तालिबान के सामने आत्मसमर्पण कर दिया है. काबुल पर भी तालिबान ने बिना संघर्ष के कब्ज़ा कर लिया है.

रविवार को तालिबान ने काबुल पर कब्ज़ा कर लिया जिसके बाद राष्ट्रपति अशरफ़ ग़नी देश छोड़ कर भाग गए हैं. उनके जाने से देश में एक तरह का सियासी सूनापन छा गया है. कई लोगों को समझ में नहीं आ रहा कि जिनके हाथों में उन्होंने देश को चलाने और उन्हें महफ़ूज़ रखने की कमान सौंपी थी वो उन्हें इस तरह छोड़कर कैसे भाग सकते हैं.

मुल्ला बरादर
Reuters
मुल्ला बरादर

फ़ेल हुआ अमेरिकी आकलन

इसी हफ़्ते अमेरिकी ख़ुफ़िया विभाग की एक लीक हुई रिपोर्ट में ये अनुमान लगाया गया था कि आने वाले हफ़्तों में राजधानी काबुल तालिबान के हमले की जद में आ सकती है और मुल्क की हुकूमत तीन महीनों के भीतर ढह सकती है.

लेकिन तालिबान ने क़रीब दस दिनों में देश के सभी मुख्य शहरों पर अपने पैर जमा लिए और राजधानी भी अब उनके कब्ज़े में है. बीते 24 घंटे का घटनाक्रम किसी भी तरह समझ नहीं आ रहा कि एक लोकतांत्रिक देश की सत्ता इतनी तेज़ी से भरभरा कर कैसे बिखर सकती है.

जाते-जाते अशरफ़ ग़नी ने लिखा, "बहुत से लोग अनिश्चित भविष्य के बारे में डरे हुए और चिंतित हैं. तालिबान के लिए ये ज़रूरी है कि वो तमाम जनता को, पूरे राष्ट्र को, समाज के सभी वर्गों और अफ़ग़ानिस्तान की औरतों को यक़ीन दिलाएं और उनके दिलों को जीतें."

सवाल उठता है कि क्या अशरफ़ ग़नी को भी नहीं पता था कि उनके देश की अंदुरूनी हालत क्या है. या वो सबकुछ जानते-समझते हुए ख़ामोशी से इस दिन का इंतज़ार कर रहे थे या फिर जो हुआ है वो वाक़ई नियति थी जिससे अफ़ग़ान सत्ता और अमेरिकी ख़ुफ़िया तंत्र सब पूरी तरह अनभिज्ञ थे.

https://www.youtube.com/watch?v=GwTfPHK7EzM

साल 2001 के सितंबर में अमेरिका पर बड़ा आतंकी हमला हुआ था जिसके लिए उसने अल-क़ायदा को ज़िम्मेदार ठहराया. इसके बार अल-क़ायदा का समर्थन करने के आरोप में अमेरिका ने अफ़ग़ानिस्तान पर हमला किया और तालिबान को सत्ता से बेदखल कर वहां नई सरकार बनाने के रास्ते तैयार किए. तब से लेकर अब तक अमेरिकी अफ़ग़ानिस्तान में अपनी सैन्य मौजूदगी बनाए हुए हैं.

लेकिन तालिबान और अमेरिका के बीच शुरू हुई शांति वार्ता के बाद अमेरिका ने अपनी सेना को अफ़ग़ानिस्तान से वापिस बुलाने का फ़ैसला किया. इस बीच तालिबान ने तेज़ी से देश में शहरों और कस्बों को अपने नियंत्रण में लेना शुरू किया और अमेरिकी सेना की मौजूदगी न के बराबर होने पर अफ़ग़ान सेना तालिबान के लड़ाकों से सामने कुछ दिन भी टिक नहीं पाई.

बाइडन
Getty Images
बाइडन

अमेरिका, ब्रिटेन और नेटो के उसके सहयोगी देशों ने पिछले 20 सालों में काफ़ी समय अफ़ग़ान सुरक्षा बलों को ट्रेनिंग देने में खर्च किया था.

अमेरिका और ब्रिटेन के कितने ही आर्मी जनरलों ने ये दावा किया था कि उन्होंने एक सशक्त और ताक़तवर अफ़ग़ान फ़ौज तैयार की है. लेकिन तालिबान के सत्ता के बेहद क़रीब आने के बाद ये वादे और दावे अब खोखले नज़र आ रहे हैं.

अमेरिका ने जो आकलन किया था तालिबान का फैलना उससे कहीं अधिक तेज़ी से हुआ और शनिवार को जलालाबाद के कब्ज़े के बाद तालिबान ने रविवार को काबुल को चारों तरफ से घेर लिया.

https://twitter.com/AFP/status/1427119733665505284

जब तालिबान लड़ाके राजधानी के बाहरी इलाकों तक पहुंच गए तब राष्ट्रपति अशरफ़ ग़नी ने नागरिकों को भरोसा दिलाया कि स्थिति नियंत्रण में है.

सोशल मीडिया पर किए एक पोस्ट में उन्होंने लिखा, "काबुल में गोलीबारी की छिटपुट घटनाएं हुई हैं, लेकिन काबुल पर हमला नहीं हुआ है. शहर को सुरक्षित रखने के लिए सुरक्षाबल और सेना अंतरराष्ट्रीय सहयोगियों के साथ मिल कर काम कर रहे हैं और स्थिति फ़िलहाल क़ाबू में है."

लेकिन इस पोस्ट के कुछ घंटों बाद ही ख़बरें आने लगीं कि देर शाम काबुल शहर में तालिबान के लड़ाकों ने प्रवेश किया और रात तक ख़बर आई कि अशरफ़ ग़नी और उप-राष्ट्रपति अमीरुल्लाह सालेह ने देश छोड़ दिया है.

अशरफ़ ग़नी ने सोशल मीडिया पर सफाई देते हुए लिखा कि "मेरे रहते हुए तालिबान के काबुल में आने के बाद हिंसा होती जिससे लाखों लोगों की ज़िंदगियां ख़तरे में पड़ जातीं."

ऐसे में अब सवाल ये उठ रहा है कि क्या अशरफ ग़नी ने अचानक देश छोड़ कर देश को अलग तरह के संकट में डाल दिया है.

तालिबान का कब्ज़ा
BBC
तालिबान का कब्ज़ा

अशरफ़ ग़नी के ख़िलाफ़ रहा है तालिबान

साल 2017 में अशरफ़ गनी ने बीबीसी को दिए एक साक्षात्कार में कहा था "अफ़ग़ानिस्तान का राष्ट्रपति होना पृथ्वी की सबसे ख़राब नौकरी है. यहाँ दिक़्क़तों की कमी नहीं है. जिसमें सबसे बड़ी चुनौती सुरक्षा की है."

जिस वक्त उन्होंने ये साक्षात्कार दिया उस वक्त उन्हें अंदाज़ा नहीं रहा होगा कि उनके लिए आने वाले साल इससे भी ज़्यादा चुनौतीपूर्ण होने वाले हैं.

अफ़ग़ानिस्तान सरकार और तालिबान के बीच समझौते की कोशिशों के बीच तालिबान ने कहा था कि वो अफ़ग़ानिस्तान की सत्ता पर एकाधिकार नहीं चाहते हैं, लेकिन जब तक काबुल में नई सरकार का गठन नहीं होगा और राष्ट्रपति अशरफ़ गनी पद से हटाए नहीं जाएंगे देश में शांति स्थापित नहीं होगी.

तालिबान के प्रवक्ता सुहैल शाहीन ने कहा था, "जब बातचीत के बाद काबुल में ऐसी सरकार बनेगी जो सभी पक्षों को स्वीकार होगी और अशरफ़ गनी की सरकार चली जाएगी तब तालिबान अपने हथियार डाल देगा."

अशरफ़ ग़नी और तालिबान

अशरफ़ ग़नी की तालिबान से शुरू से ही नहीं बनी है.

अशरफ़ गनी एक पूर्व टेक्नोक्रैट हैं जिन्होंने अफ़ग़ानिस्तान लौटने से पहले अपना अधिकांश वक़्त देश के बाहर ही बिताया है. अशरफ़ ग़नी अमेरिका में लंबे समय तक प्रोफ़ेसर थे. उन्होंने वर्ल्ड बैंक में भी काम किया है.

इस वजह से जानकार मानते हैं कि उनकी पकड़ अफ़ग़ानिस्तान में वैसी नहीं जैसी पूर्व अफ़ग़ान राष्ट्रपति हामिद करज़ई की थी.

तालिबान के पतन के बाद अशरफ़ ग़नी को पहली बार शोहरत तब मिली जब वो लोया जिरगा में थे. लोया जिरगा अफ़ग़ानिस्तान की एक अनूठी संस्था है जिसमें तमाम कबायली समूहों के नेता एक साथ बैठते हैं. इसकी बैठक में देश के मामलों पर विचार विमर्श कर फ़ैसले किए जाते हैं. लोया जिरगा पश्तो भाषा का शब्द है और इसका मतलब होता है महापरिषद.

2002 में जब हामिद करज़ई अफ़ग़ानिस्तान के राष्ट्रपति थे, उस वक़्त अशरफ़ गनी उनके क़रीबी माने जाते थे. उस सरकार में उन्हें वित्त मंत्री बनाया गया था. उनके आज के प्रतिद्वंदी डॉ. अब्दुल्लाह अब्दुल्लाह उस समय अफ़ग़ानिस्तान के विदेश मंत्री थे.

बाद में हामिद करज़ई से अलग होने के बाद ग़नी दोबारा शिक्षा के क्षेत्र से जुड़े. 2004 में उन्हें काबुल विश्वविद्यालय का चांसलर नियुक्त किया गया.

उस दौरान अफ़ग़ानिस्तान में बेतहाशा अंतरराष्ट्रीय सहायता राशि आ रही थी, ख़ास तौर पर अमेरिका से.

ग़नी इसके कठोर आलोचक माने जाते थे. उनका मानना था कि इस तरह की सहायता राशि के जरिए अफ़ग़ानिस्तान में एक 'समानांतर सरकार' चलाने की कोशिश की कोशिश की जा रही थी, जो एक तरह से अफ़ग़ानिस्तान के संस्थानों को कमज़ोर करने की कोशिश थी.

अफ़ग़ानिस्तान
Getty Images
अफ़ग़ानिस्तान

अशरफ़ ग़नी और तालिबान का टकराव

पश्तून समुदाय से आने वाले अशरफ़ ग़नी जब 2014 में राष्ट्रपति का चुनाव जीते उस वक़्त उन पर धोखाधड़ी के आरोप भी लगे थे.

2019 के चुनाव में भी तालिबान ने उन पर चुनावी धांधली के जरिए जीत हासिल करने का आरोप लगाया. उनके पहले कार्यकाल से ही तालिबान ने उनके प्रभुत्व को चुनौती देने का काम किया.

साल 2019 में अमेरिका और तालिबान के बीच अफ़ग़ानिस्तान को लेकर हुई शांति वार्ता का वो हिस्सा नहीं थे. जानकारों की राय है कि तालिबान ने उन्हें हमेशा से अमेरिका के हाथों की कठपुतली के तौर पर देखा है. लेकिन सत्ता की मजबूरी कहें या फिर उसकी मज़बूती के लिए अशरफ़ ग़नी ने हमेशा तालिबान के साथ समझौते की कोशिश की.

पहली बार सत्ता में आने के बाद साल 2018 में अशरफ़ ग़नी ने तालिबान के साथ समझौते की पेशकश की थी जिसके बाद उसी साल जून के महीने में तीन दिनों तक सीज़फायर भी रहा था.

4 मई 2021 को फ़ॉरन अफ़ेयर्स डॉट कॉम के लिए लिखे एक लेख में अशरफ़ ग़नी ने लिखा था, "मेरी सरकार तालिबान के साथ बातचीत जारी रखने के लिए तैयार है. अगर तालिबान को शांति स्वीकार है, तो मैं अपना कार्यकाल जल्दी ख़त्म करने को तैयार हूँ."

लंदन के एसओएएस साउथ एशिया इंस्टीट्यूट में अंतरराष्ट्रीय संबंधों के सीनियर लेक्चरर अविनाश पालीवाल ने अफ़ग़ानिस्तान पर एक किताब लिखी है 'माय एनेमीज़ एनेमी'.

बीबीसी हिंदी से बातचीत में उन्होंने कहा था, "तालिबान का ग़नी से वैचारिक मतभेद है. अशरफ़ ग़नी एक ऐसी व्यवस्था के प्रतीक हैं, जो तालिबान को मंज़ूर नहीं है. अशरफ़ ग़नी अफ़ग़ानिस्तान रिपब्लिक के मुखिया है. अगर उन्हें तालिबान ने स्वीकार कर लिया, इसका मतलब ये निकाला जाएगा कि तालिबान ने अफ़ग़ानिस्तान गंणतंत्र को स्वीकार कर लिया. ऐसे में तालिबान जैसा अफ़ग़ानिस्तान बनाना चाहते हैं उसका कोई अस्तित्व नहीं रह जाएगा."

"दूसरी तरफ़ अशरफ़ ग़नी ने भी कहा कि अफ़ग़ानिस्तान में पिछले 20 साल में जो राजनीतिक व्यवस्था बनी है हम उसको रातों रात ख़त्म नहीं होने देंगे. ऐसे में ये टकराव दो विचारधाराओं का टकराव है."

यही है तालिबान और अशरफ़ ग़नी के बीच विरोध का मुख्य कारण. ग़नी के अलावा इस वक़्त अफ़ग़ान के राष्ट्रपति कोई और भी होते तो शायद तालिबान की समझौते के लिए उनको हटाने की शर्त रखते.

प्रोफ़ेसर ग़नी और शासक अशरफ़ ग़नी

अफ़ग़ानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ़ गनी ने 'फ़िक्सिंग फ़ेल्ड स्टेट' नाम की किताब लिखी है. लेकिन ये किताब कई बार उनकी आलोचना का आधार भी बनती हैं.

किताब में उन्होंने जिन बातों का ज़िक्र किया, जब उनके हाथ अफ़ग़ानिस्तान की सत्ता आई तब वो ख़ुद उसमें ज़्यादा तब्दीली नहीं ला सके. 'फ़ेल्ड स्टेट' यानी असफ़ल राष्ट्र को दुरुस्त करने के उनके उपाए वो ख़ुद पर आज़मा नहीं सके.

डॉक्टर अविनाश पालीवाल कहते हैं, "किताब लिखना और शासन के दौरान उनको अमल में लाना दोनों अलग बातें हैं. कोई अकेला इंसान ये कर भी नहीं सकता."

डॉक्टर अविनाश के मुताबिक़ अशरफ़ ग़नी किताब में लिखी बातों को अपने कार्यकाल के दौरान अपना नहीं पाए. उसकी एक बड़ी वजह उनका ख़ुद का व्यक्तित्व भी रहा.

वो कहते हैं, "सत्ता के शुरुआती दिनों में वो अपनी किताब के मुताबिक़ 'सिपाहसालारवाद' को ख़त्म करना चाहते थे. ऐसा करने की कोशिश में उन्होंने उस वक़्त हार्ड लाइन ले ली और चुनाव की बात करने लगे. तब उन्हें अमेरिका के साथ और अपनी सत्ता की ताक़त पर गुमान था."

"लेकिन ऐसा करने की कोशिश में उन्होंने शक्तिशाली सत्ता के सिपहसालारों से अपने संबंध ख़राब कर लिए. 2017-18 तक जब उन्होंने थोड़ा बदलाव लाने का एहसास हुआ तब तक देर हो चुकी थी. सिपाहसालारों में उनके प्रति एक परसेप्शन बन चुका था और फिर वो सबको साथ नहीं ला पाए."

अब हालात ये हैं कि अफ़ग़ानिस्तान को सुरक्षित और नए रास्ते पर ले जाने का दावा करने वाले अशरफ़ ग़नी ख़ुद देश छोड़कर चले गए हैं.

ये सवाल बने रहेंगे कि क्या वाक़ई वो तालिबान की ताक़त को समझ नहीं पाए थे, क्या वाक़ई वो अमेरिका समेत पश्चिमी देशों को अफ़ग़ानिस्तान की वास्तविक हालत के बारे में नहीं बता पाए थे या फिर सब कुछ जानते-समझते हुए वो ख़ामोश रह गए थे - इन सारे सवालों के जवाब आने वाले वक़्त में ही मिल पाएंगे.

(स्टोरी: मानसी दाश और सरोज सिंह)

(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और यूट्यूबपर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)

BBC Hindi
Comments
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
English summary
Taliban in Power in afghanistan's How responsible is Ashraf Ghani?
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X