अब तक 56 नहीं, 444 एनकाउंटर करने वाला पाकिस्तानी पुलिस अफ़सर
कराची में 'फ़र्ज़ी मुठभेड़ों' की झड़ी लगाने वाले पुलिस अफ़सर राव अनवार कई मामलों में ग़ैर-मामूली हैं.
इस साल 17 जनवरी तक कराची के मलीर इलाक़े के एसएसपी रहे राव अनवार के मुक़ाबले, महाराष्ट्र के एनकाउंटर स्पेशलिस्ट दया नायक बहुत छोटे मालूम पड़ते हैं.
राव अनवार ने 35 साल के करियर में कितने लोगों को मारा है इसका सही अंदाज़ा लगाना एक मुश्किल काम है.
कराची में 'फ़र्ज़ी मुठभेड़ों' की झड़ी लगाने वाले पुलिस अफ़सर राव अनवार कई मामलों में ग़ैर-मामूली हैं.
इस साल 17 जनवरी तक कराची के मलीर इलाक़े के एसएसपी रहे राव अनवार के मुक़ाबले, महाराष्ट्र के एनकाउंटर स्पेशलिस्ट दया नायक बहुत छोटे मालूम पड़ते हैं.
राव अनवार ने 35 साल के करियर में कितने लोगों को मारा है इसका सही अंदाज़ा लगाना एक मुश्किल काम है.
पाकिस्तान सुप्रीम कोर्ट में जो दस्तावेज़ दाख़िल किए गए हैं उनके मुताबिक़, सिर्फ़ जुलाई 2011 से जनवरी 2018 के बीच, साढ़े छह साल में अनवार की निगरानी में 192 एनकाउंटरों में 444 लोग मारे गए.
कई दौर ऐसे रहे हैं जब अनवार का 'किल-टू-अरेस्ट रेशियो' (गिरफ़्तारी और मौत का अनुपात) 80/20 रहा है, यानी 100 में से 80 लोग मारे गए जबकि सिर्फ़ 20 गिरफ़्तार हुए, पाकिस्तान के अख़बार 'डॉन' ने लिखा है कि आप राव अनवार को किसी भी एंगल से देखें वो आपको कसाई ही दिखेगा.
सभी लोगों के लिए विलेन नहीं हैं राव अनवार
लेकिन ऐसा नहीं है कि सभी लोग अनवार को विलेन मानते हों, पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति आसिफ़ ज़रदारी ने एक टीवी चैनल पर 'ब्रेव ब्वॉय' कहा था, इसके बाद काफ़ी हंगामा हुआ और उन्होंने अपनी बात वापस ले ली. लेकिन इससे ये ज़रूर पता चला कि अनवार के प्रशंसक और शुभचिंतक कहाँ-कहाँ बैठे हैं.
पाकिस्तान के पत्रकार बताते हैं कि अनवार न सिर्फ़ ज़रदारी बल्कि नवाज़ शरीफ़ और पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के कई बड़े नेताओं के क़रीबी रहे हैं और पाकिस्तान के बड़े नेताओं और फ़ौजी जनरलों के सारे 'गंदे काम' अनवार ख़ुशी-ख़ुशी करते रहे हैं.
यही वजह है कि इतने लोगों को 'फ़र्ज़ी मुठभेड़ों' में मारने के बाद भी उनका कुछ नहीं बिगड़ा, बीच-बीच इक्का-दुक्का जाँच का सामना उन्हें करना पड़ा, लेकिन हर बार उन्हें 'क्लीन चिट' मिल गई, दिलचस्प ये भी है कि अनवार की निगरानी में मारे गए इतने सारे 'शातिर अपराधियों' और 'खूँख़ार आतंकवादियों' ने पुलिसवालों को कभी कोई नुक़सान नहीं पहुँचाया.
अख़बार 'डॉन' ने लिखा है कि अनवार की निगरानी में हुई सैकड़ों मुठभेड़ों में किसी पुलिसवाले का मारा जाना तो दूर, कोई घायल तक नहीं हुआ, जो ये दिखाता है कि फ़र्ज़ी मुठभेड़ का नाटक रचने की भी ज़रूरत अनवार को महसूस नहीं होती थी कि उन्हें शायद इस बात का भरोसा था कि उनसे कोई सवाल नहीं पूछे जाएँगे, लेकिन नक़ीबुल्ला महसूद नाम के एक ख़ूबसूरत युवा पठान को मारने के बाद मामला बिगड़ गया.
'कायरों की तरह क्यों फ़रार थे अनवार?'
वज़ीरिस्तान इलाक़े से कराची आए 27 साल के महसूद किसी फ़िल्मी हीरो की तरह दिखते थे, एक दुकान चलाते थे और मॉडल बनने के सपने देखते थे, उन्हें तहरीक़-ए-तालिबान पाकिस्तान का 'आतंकवादी' बताकर गोली मार दी गई थी, लेकिन पाकिस्तानी तालिबान ने साफ़ कहा कि उसका महसूद से कोई संबंध नहीं था.
वे जिस तरह तीन महीने फ़रार रहे, फिर सुप्रीम कोर्ट में उनके हाज़िर होने का अंदाज़ भी गज़ब था. वे एक गाड़ी में बड़ी शान से सुप्रीम कोर्ट में वहाँ तक पहुँच गए जहाँ सिर्फ़ पाकिस्तान के चीफ़ जस्टिस की गाड़ी जा सकती है. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें हिरासत में भेज दिया है, एक बख़्तरबंद गाड़ी में उन्हें इस्लामाबाद से कड़ी सुरक्षा में कराची ले जाया गया है.
पाकिस्तानी मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक़, सुप्रीम कोर्ट के जज ने उनसे पूछा, "आपको तो लोग बहुत बहादुर आदमी बताते हैं, फिर आप कायरों की तरह फ़रार क्यों थे?"
इसके जवाब में अनवार ने कहा कि उन्हें 'फँसाया' जा रहा है. अदालत ने अनवार की पक्की सुरक्षा का बंदोबस्त करने, उनकी सैलरी जारी रखने, उनके बैंक खाते पर लगी रोक हटाने के निर्देश दिए.
अनवार के अब तक के कारनामे
अनवार की निजी ज़िंदगी के बारे में पाकिस्तान के पत्रकार भी ज़्यादा नहीं जानते, कराची में लंबे समय से रिपोर्टिंग कर रहे बीबीसी उर्दू के रियाज़ सुहैल कहते हैं, "पुलिस फ़ोर्स में अनवार अपने सहकर्मियों के साथ कम ही मिलते-जुलते थे, यही वजह है कि उनके बारे में ज़्यादा जानकारी नहीं है. वे अकेले ही रहना पसंद करते हैं, कई पुलिस अधिकारी भी उनसे दूरी बनाए रखते हैं क्योंकि उनकी इमेज कंट्रोवर्शियल है."
रियाज़ ये भी बताते हैं कि लोग उनके परिवार के बारे में कुछ नहीं जानते, पाकिस्तान के पुलिस अधिकारी सुरक्षा कारणों से अपने परिवार की जानकारी गुप्त रखते हैं, "कराची के बड़े पुलिस अधिकारी तो अपने परिवार को हर कुछ महीनों पर एहतियातन एक जगह से दूसरी जगह भेजते रहते हैं."
58 साल के अनवार की हर तस्वीर पुलिस की वर्दी में ही दिखती है, सांवला रंग, औसत क़द, कनपटी पर पके बाल, हल्की मूँछों वाले अनवार एक मामूली पुलिसकर्मी ही दिखते हैं कोई बड़े पुलिस अधिकारी नहीं, इसकी वजह भी है.
अनवार असिस्टेंट सब-इंस्पेक्टर से सीढ़ियाँ चढ़ते-चढ़ते एसएसपी के ओहदे तक पहुँचने वाले पाकिस्तान के अकेले पुलिस अधिकारी हैं, वे फ़ेडरल सर्विस के अधिकारी नहीं हैं, वे एलीट अफ़सरों की तरह अँगरेज़ी नहीं बोलते, उर्दू में ही बात करते हैं.
बीबीसी उर्दू सेवा के पत्रकार असद चौधरी कहते हैं कि पाकिस्तान में पुलिस की वर्दी की--गहरी नीली कमीज़ और ख़ाकी पतलून--फ़ौजी वर्दी के सामने कोई इज्ज़त नहीं है, लेकिन अनवार का रुतबा बिल्कुल अलग था, वे मानो क़ानून से ऊपर उठ चुके थे. इसकी एक मिसाल ये है कि वे एसएसपी बनने के बाद से वे 74 बार दुबई गए मगर इसके लिए उन्हें किसी तरह के डिपार्टमेंटल पेपरवर्क की ज़रूरत नहीं पड़ी.
ये सवाल भी वाजिब है कि एक लाख रुपये महीना कमाने वाले सरकारी पुलिस अधिकारी के पास कुछ ही महीनों में 74 बार दुबई जाने के लिए पैसे कहाँ से आए?
कराची शहर और अनवार साथ-साथ बढ़े
एक दौर था जब कराची की गलियों में मुत्तहिदा क़ौमी मूवमेंट (एमक्यूएम) की तूती बोलती थी, बिहारी या मुहाजिर कहे जाने वाले उर्दूभाषी नौजवानों को अल्ताफ़ हुसैन ने संगठित किया था जो पठानों और दूसरे गुटों से हिंसक झड़पों में लगे थे और कराची पर नियंत्रण हासिल करने की कोशिश कर रहे थे.
कराची की सड़कों पर हर रोज़ बोरियों में बंद लाशें मिलने को आम बात समझा जाने लगा था, कई ऐसे इलाक़े थे जहाँ एमक्यूएम का राज चलता था और वहाँ जाने से पुलिस भी कतराती थी, 1990 के दशक में एक युवा पुलिस अधिकारी ने एनकाउंटरों का सिलसिला शुरू किया, उसका नाम था राव अनवार.
जब मुशर्रफ़ सत्ता में आए तो उन्होंने एमक्यूएम को सत्ता में शामिल कर लिया, अब अनवार के लिए कराची में ज़िंदा रह पाना असंभव हो गया क्योंकि उन्होंने एमक्यूएम के बहुत सारे लोगों को मारा था, मुशर्रफ़ ने अनवार को कुछ समय के लिए दुबई भेज दिया.
रियल स्टेट के धंधे में ख़लल डालने वालों को ठिकाने लगाया
जब माहौल थोड़ा बदला तो वे पुलिस की नौकरी में आए, लेकिन सिंध में नहीं, बल्कि बलूचिस्तान में क्योंकि उन्हें कराची या सिंध के दूसरे इलाक़े में तैनात करना असुरक्षित माना गया, 2008 में पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी उनको एक बार फिर कराची ले आई और उन्हें मलीर इलाक़े का एसपी बना दिया गया.
2008 से 2018 के बीच दस सालों में अनवार का क़द और रौब बढ़ता ही गया.
वरिष्ठ पत्रकार असद चौधरी बताते हैं, "मलीर एक नदी है, उसके पास बहुत बड़ी ख़ाली ज़मीन थी, वहाँ एक्सप्रेस वे बनाया गया, ज़मीन डेवलप हुई और देखते-देखते पॉश बहरिया टाउन में अरबों रुपये का रियल स्टेट तैयार हो गया, कंस्ट्रक्शन का काम चलने लगा, नदी से रेत निकाली जाने लगी, माफ़िया खड़े होने लगे और मलीर के एसपी ने अपना जलवा दिखाना शुरू कर दिया."
कुछ साल पहले उन्होंने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करके कहा था, "मैंने पिछले कुछ समय में मलीर में 150 से ज्यादा एनकाउंटर किए हैं और मैं यहाँ तैनात रहा तो एनकाउंटरों की तादाद बढ़ेगी ही. इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने अपनी बहादुरी के कई क़िस्से सुनाए थे और बताया था कि किस तरह उन्होंने पहला एनकाउंटर एमक्यूएम के फ़हीम कमांडो का किया था."
अनवार के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने बड़े नेताओं और फौजी अफ़सरों की लगातार मदद की और उनके रियल स्टेट के धंधे में ख़लल डालने वालों को ठिकाने लगाया, पुलिस में उन्हें चाहने वालों की तादाद कम ही है.
एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा था, "अनवार के हाथों या उनकी निगरानी में बहुत सारे लोग मारे गए हैं, इसका ख़ामियाजा पुलिस वालों को भुगतना पड़ा है, बड़ी संख्या में पुलिस के लोग बदले की कार्रवाई में मारे गए हैं."
असद चौधरी बताते हैं कि कई बार मारे गए पुलिसवालों की लाशों के पास पर्ची मिली है जिसमें लिखा गया है कि यह उनके रिश्तेदार की फ़र्ज़ी मुठभेड़ में हुई मौत का बदला है.
अब अदालत ने कहा है कि अनवार के मामले में पूरी पारदर्शिता और निष्पक्षता से अदालती प्रक्रिया अपना काम करेगी, लेकिन पाकिस्तानी प्रेस ये सवाल पूछ रहा है कि इतने दिनों तक नियम-क़ानून कहाँ थे, और क्या कर रहे थे?
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