सऊदी अरब: क्या क्राउन प्रिंस सलमान का यह अंत है
लेकिन यह भी लोगों को याद है कि 2011 में अरब के कई देशों में जब लोकतंत्र को लेकर आंदोलन शुरू हुआ तो ऐसा लग रहा था कि सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल-असद भी बेदख़ल हो जाएंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ और सात साल बाद भी वो सत्ता में जमे हुए हैं.
ऐसे में क्राउन प्रिंस को लेकर कोई भी भविष्यवाणी जल्दबाज़ी होगी.
'यह उनका अंत है', 'वो ज़हरीले हैं'. 'वो मेरे हीरो हैं.' 'हम लोग उन्हें प्यार करते हैं.'
सऊदी अरब के विवादित क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान को लेकर लोगों की यह बँटी हुई राय है.
मोहम्मद बिन सलमान को लोग पश्चिम में एमबीएस के नाम से जानते हैं. तुर्की स्थित सऊदी के वाणिज्य दूतावास में दो अक्टूबर को सऊदी के ही जाने-माने पत्रकार जमाल ख़ाशोज्जी की हत्या के बाद पश्चिम में एमबीएस की छवि या जो उनका ब्रैंड था, वो बुरी तरह से धूमिल हुआ है.
सऊदी आधिकारिक रूप से इनकार कर रहा है कि इस हत्या में क्राउन प्रिंस का कोई हाथ था. ख़ाशोज्जी की हत्या में कई चीज़ें बाहर आई हैं और क्राउन प्रिंस सलमान के भीतरी सर्कल दीवान अल-मलिकी में इसे लेकर सक्रियता रही.
ख़ाशोज्जी की हत्या में कई तरह के संदेह हैं जो क्राउन प्रिंस एमबीएस की तरफ़ भी जाते हैं.
ख़ाशोज्जी की हत्या में सऊदी अरब का तर्क पूरी दुनिया की समझ से बाहर है. ख़ाशोज्जी के खुलकर आलोचना करने को लेकर खाड़ी के देशों में कहा जाता था कि एमबीएस कुछ करना चाहते हैं.
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एक बात यह भी कही जा रही है कि सलमान ने हत्या का आदेश नहीं दिया, लेकिन सऊदी के रॉयल कोर्ट के सलाहकार सऊद अल-क़ाहतानी की इसमें संलिप्तता कई सवाल खड़े करते हैं.
समस्या यह है कि सऊदी के बाहर उसके इन तर्कों पर कोई भरोसा नहीं कर रहा है. शुरू में तो सऊदी इस बात से ही इनकार करता रहा कि ख़ाशोज्जी सऊदी के वाणिज्य दूतावास से ग़ायब हुए हैं.
सऊदी यहां तक कहता था कि ख़ाशोज्जी दूतावास में आने के तत्काल बाद निकल गए थे. इसके बाद सऊदी ने कहा कि ख़ाशोज्जी दूतावास में आने के बाद उलझ गए थे और मामला बढ़ा तो मारे गए.
सऊदी के अभियोजक का अब नया बयान है कि ख़ाशोज्जी की हत्या पूर्वनियोजित थी.
ख़ाशोज्जी की हत्या के बाद से सऊदी के बयान और उसके रुख़ पूरी तरह से संदिग्ध रहे हैं. इससे साफ़ है कि अगर एमबीएस अच्छे वकीलों की मदद ले रहे होते और अच्छे मीडिया सलाहकार होते तो ऐसी स्थिति पैदा नहीं हुई होती.
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एमबीएस इस मामले में पूरी तरह कटघरे में हैं. इस वाक़ये के बाद से पश्चिमी सरकारों और बहुराष्ट्रीय कंपनियों का सऊदी को लेकर रुख़ बदला है.
1932 में सऊदी अरब एक देश के रूप में एकीकृत हुआ था. क्या ख़ाशोज्जी मामले में सऊदी के सीनियर राजकुमारों के भीतर एमबीएस को लेकर संदेह बढ़ रहा है?
एमबीएस की छवि बनी है कि वो केवल अमरीका को संतुष्ट करना चाहते हैं. दूसरी तरफ़ अब अमरीका के भीतर से ही आवाज़ आ रही है कि सऊदी को हथियार देने पर अमरीका को फिर से विचार करना चाहिए.
क्या सऊदी के क्राउन प्रिंस की गद्दी सुरक्षित है? यहां तक कि सऊदी शाही परिवार में भी एमबीएस के रवैऐ पर गंभीरता से चर्चा हो रही है. सत्ताधारी अल-सऊद फ़ैमिली में संकट का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि रियाद में मंगलवार को अचानक से राजकुमार अहमद बिन अब्देलअज़ीज़ पहुंचे.
अहमद बिन अब्देलअज़ीज़ 82 साल के किंग सलमान के भाई हैं. वो लंदन से आए थे और सऊद हाउस में उनके स्वागत में कोई कसर नहीं छोड़ी गई. यहां तक कि एमबीएस ने भी गले लगाया.
प्रिंस अहमद यमन में एमबीएस की तरफ़ से शुरू किए गए युद्ध के ख़िलाफ़ बोल चुके हैं. अहमद यमन में युद्ध के ख़िलाफ़ रहे हैं. प्रिंस अहमद ने इससे पहले कहा था कि वो रियाद लौटने से डरते हैं कि कहीं उन्हें नज़रबंद न कर दिया जाए. अब वो वापस आ गए हैं और सऊदी के नेतृत्व को मदद कर रहे हैं.
एमबीएस को चुनौती देने वाला कोई है?
अब सवाल उठ रहा है कि क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन-सलमान का भविष्य क्या है? पहली बात तो यह कि उन्हें कोई मज़बूत चुनौती देने वाला नहीं है.
33 साल के क्राउन प्रिंस का उदय और उनका उभार बहुत तेज़ी से हुआ है. पिछले साल जून में क्राउन प्रिंस बनने के बाद से उन्होंने सऊदी की सत्ता को पूरी तरह से अपने हाथों में ले लिया है.
मोहम्मद बिन सलमान के हाथों में गृह मंत्रालय, नेशनल गार्ड और रक्षा मंत्रालय हैं. एमबीएस रॉयल कोर्ट के भी प्रमुख हैं. इसके साथ ही आर्थिक नीतियों को भी एमबीएस ही संचालित करते हैं. हालांकि, किंग सलमान उनके पिता हैं, लेकिन मुल्क पूरी तरह से एमबीएस के ही हाथों में है.
अक्टूबर में ख़ाशोज्जी संकट आने से पहले भी एमबीएस की नीतियां काफ़ी विवादित रही हैं. सऊदी के भीतर भी एमबीएस की नीतियों को लेकर सवाल उठते रहे हैं.
पिता किंग सलमान के विश्वास और सत्ता पर पूर्ण नियंत्रण के कारण 2015 में एमबीएस ने अपने साथियों के साथ यमन के ख़िलाफ़ युद्ध छेड़ा था.
यमन के ख़िलाफ़ सऊदी के युद्ध के बारे में कहा जा रहा है कि यह कभी नहीं ख़त्म होने वाली लड़ाई है. पिछले साल एमबीएस ने दर्जनों राजकुमारों, कारोबारियों और वरिष्ठों को रियाद के रिट्ज़ कार्लटन होटल में नज़रबंद कर दिया था.
इन्हें तब तक बंद करके रखा गया जब तक ये कथित रूप से भ्रष्टाचार के ज़रिए की कमाई सौंपने के लिए राज़ी नहीं हो गए.
दूसरी तरफ़ एमबीएस ख़ुद अपनी जीवनशैली पर लाखों डॉलर खर्च करते हैं. इसके साथ ही पड़ोसी क़तर से भी सऊदी के संबंध ख़राब हैं.
पिछले हफ़्ते के आख़िर में अमरीकी विदेश मंत्री जेम्स मैटिस ने कहा था कि क़तर में उसका बड़ा एयरबेस है और अमरीका चाहता है कि सऊदी क़तर से संबंध ठीक करे.
इसी साल कनाडा के विदेश मंत्री ने सऊदी में मानवाधिकारों को लेकर एकमात्र ट्वीट किया था तो सऊदी ने कनाडा से सारे राजनयिक संबंध ख़त्म कर डाले.
सऊदी अरब में अब एमबीएस को लेकर गहन मंथन चल रहा है और उनकी विवादित नीतियों पर विचार किया जा रहा है.
सऊदी में लाखों युवाओं के लिए एमबीएस अब भी एक उम्मीद हैं. उन्हें साहसिक, चमत्कारी नेता और दूरदर्शी सुधारक के तौर पर भी देखा जाता है.
एमबीएस ने महिलाओं को गाड़ी चलाने का अधिकार दिया और मनोरंजन के कई माध्यमों से भी पाबंदी हटाई. एमबीएस की योजना है कि वो सऊदी की अर्थव्यवस्था की निर्भरता तेल से कम करें.
एमबीएस विज़न 2030 पर काम कर रहे हैं. वो तेल के अलावा बाक़ी क्षेत्रों में भी जॉब पैदा करना चाहते हैं.
सऊदी में राजशाही है. आसपास के देशों में भी लोकतंत्र के समर्थन में मुहिम चलती है तो सऊदी के शाही परिवार में डर का माहौल बन जाता है.
लेकिन यह भी लोगों को याद है कि 2011 में अरब के कई देशों में जब लोकतंत्र को लेकर आंदोलन शुरू हुआ तो ऐसा लग रहा था कि सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल-असद भी बेदख़ल हो जाएंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ और सात साल बाद भी वो सत्ता में जमे हुए हैं.
ऐसे में क्राउन प्रिंस को लेकर कोई भी भविष्यवाणी जल्दबाज़ी होगी.
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