क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

अमेरिका की सबसे कमजोर नस पर रूस का हमला, चीन और इस्लामिक देशों का मिला साथ, भारत मानेगा?

जब रूस के खिलाफ लगातार काफी ‘भयानक’ प्रतिबंध लगाए जाने शुरू हुए, उसे रूस ने अपने खिलाफ ‘आर्थिक युद्ध’ करार दिया और रूस ने साफ तौर पर कह दिया, कि अगर रूस का अस्तित्व नहीं रहेगा, तो फिर दुनिया के रहने का कोई मतलब नहीं है।

Google Oneindia News

मॉस्को/नई दिल्ली, अप्रैल 01: यूक्रेन पर रूसी हमले के बाद अमेरिका और यूरोपीय देशों ने रूस को प्रतिबंधों के जाल में बुरी तरह से जकड़ना शुरू कर दिया और रूस के पूरी दुनिया में अलग थलग करने की कोशिश शुरू हो गई। लेकिन, युद्ध के एक महीने बीतने के बाद रूस ने जो चाल चली है, उसने अमेरिका को दिन में तारे दिखा दिए हैं। रूस ने युद्ध से भी बड़ा हमला अमेरिका के डॉलर पर करना शुरू कर दिया है और इसमें उसे चीन के साथ साथ कई बड़े इस्लामिक देशों का साथ मिल रहा है।

Recommended Video

पहले Zelensky को दी कुचलने की धमकी, फिर अचानक कैसे ढीले पड़ गए Putin के तेवर ! | वनइंडिया हिंदी
आर्थिक युद्ध का करारा जवाब

आर्थिक युद्ध का करारा जवाब

यूक्रेन पर हमला शुरू होने के बाद जब रूस के खिलाफ लगातार काफी 'भयानक' प्रतिबंध लगाए जाने शुरू हुए, उसे रूस ने अपने खिलाफ 'आर्थिक युद्ध' करार दिया और रूस ने साफ तौर पर कह दिया, कि अगर रूस का अस्तित्व नहीं रहेगा, तो फिर दुनिया के रहने का कोई मतलब नहीं है। ये बयान रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने दिया था। लेकिन, रूसी राष्ट्रपति ने परमाणु युद्ध से पहले अमेरिका के खिलाफ अपना पहला वित्तीय हथियार का इस्तेमाल किया है। रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने इसी हफ्ते आदेश दिया था, कि अब रूस 'अमित्र' देशों से कारोबार रूसी करेंसी में ही करेगा। "अमित्र" देशों, जिनसे उनका वास्तव में यूरोपीय देशों से मतलब था, उन्होंने कहा कि, अमेरिकी डॉलर या यूरो के बजाय रूबल में ही प्राकृतिक गैस के लिए भुगतान करना होगा। उन्होंने मार्च के अंत तक रूसी केंद्रीय बैंक को यह पता लगाने के लिए दिया कि यह कैसे होगा। वहीं, रूसी राष्ट्रपति के इस फैसले से डॉलर को बहुत बड़ा झटका लगेगा और सबसे खास बात ये है, कि रूस ने डॉलर की जगह पर जिस करेंसी को चुना है, वो चीन की करेंसी 'युआन' है और चीन पिछले कई सालों से इसी मौके की तलाश में था, कि कब चीन की करेंसी, डॉलर को विस्थापित करने के लिए दुनिया में दस्तक दे, लिहाजा चीन ने पूरी तरह से रूस का समर्थन कर दिया है।

डॉलर के खिलाफ युद्ध

डॉलर के खिलाफ युद्ध

रूसी राष्ट्रपति का ये कदम अमेरिका की करेंसी पर सीधा हमला है और कई एक्सपर्ट मानते हैं, कि अमेरिकी डॉलर पर इसका 'विनाशकारी' प्रभाव पड़ेगा, जिसका अंदाजा आने वाले वक्त में पता लगेगा। दरअसल, यूरोपीय देश सामूहिक रूप से अपनी प्राकृतिक गैस का 40% हिस्सा रूस से खरीदते हैं और इसके लिए यूरोपीय देश हर दिन रूस को 800 मिलियन अमेरिकी डॉलर का भुगतान करते हैं और पुतिन ने अब कहा है, कि अब वो डॉलर में भुगतान नहीं लेंगे और यूरोपीय देश उन्हें रूस की करेंसी 'रूबल' में ही भुगतान करें। रूसी राष्ट्रपति का ये अद्वितीय कदम है, जिसपर यूरोपीय संघ ने काफी सख्त प्रतिक्रिया दी है, लेकिन रूस अपने फैसले पर कायम है। रूस का नवीनतम कदम डॉलर के मुकाबले बहुत लंबे समय तक चलने वाले युद्ध का हिस्सा है और इसका डायरेक्ट फायदा अब चीन को होगा, जो अमेरिका के लिए बहुत बड़ा झटका है। दरअसल, दुनियाभर की वित्तीय प्रणालियों पर अमेरिका और पश्चिमी देशों का अधिपत्य रहा है और साल 2014 में जब रूस ने क्रीमिया पर हमला किया था, तो रूस को पश्चिमी देशों के इस ताकत के बारे में पहली बार पता चला था, लिहाजा इस बार हमला करने से पहले ही रूस ने इसकी पूरी तैयारी कर रखी थी, जिसमें उसे साथ मिला है चीन का। ये एक बहुत बड़ा खेल है, जिसने अमेरिका को तिलमिला कर रख दिया है।

रूस कर रहा था तैयारी

रूस कर रहा था तैयारी

2014 से ही रूस ने अमेरिकी प्रतिबंधों से बचने की तैयारी शुरू कर दी थी और एक अनुमान के अनुसार, डॉलर में मूल्यवर्ग के रूस के निर्यात के हिस्से में 2014 के मुकाबले अब लगभग आधा हो गया है। इसी अवधि में, रूस के केंद्रीय बैंक ने अपने खजाने से डॉलर को लगातार कम करना शुरू कर दिया था और रूस के पास जो डॉलर थे, उसे उसने चीन की करेंसी युआन और फ्रांस की करेंसी यूरो से बदलना शुरू कर दिया था। 2014 से 2022 के बीच में रूस ने अपने खजाने में मौजूद 50 प्रतिशत से ज्यादा डॉलर को यूआन और यूरो में बदल दिया है, वहीं, साल 2019 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, रूस के पास अभी दुनिया में मौजूद चीनी करेंसी का एक चौथाई हिस्सा आ चुका है। यानि, काफी आसानी से समझा जा सकता है, कि रूस ने इस युद्ध की तैयारी कितने पहले शुरू कर दी थी।

क्या रातोंरात डॉलर हो जाएगा अलग?

क्या रातोंरात डॉलर हो जाएगा अलग?

इस सवाल का सीधा जवाब है, नहीं। डॉलर को दुनिया की 'आरक्षित मुद्रा' के रूप में अलग करना कुछ ऐसा नहीं है जो रातोंरात हो सकता है, और ऐसा कुछ नहीं जो एक देश द्वारा किया जा सकता है। डॉलर के खिलाफ रूस की लंबी लड़ाई युद्ध से ज्यादा विद्रोह है। ये एक ऐसा विद्रोह है, जो पहले ही शुरू हो चुका है, और जिसमें रूस का एक बड़ा समर्थक है, चीन। वर्षों से, रूस और चीन दोनों ने डॉलर से खुद का पीछा छुड़ाने की कोशिश की है, एक प्रयास जिसे डी-डॉलराइजेशन के रूप में जाना जाता है। दोनों देशों ने 2019 में उस दिशा में एक बड़ा कदम उठाया, जब वे अपने बीच सभी व्यापार को अपनी-अपनी मुद्राओं में निपटाने पर सहमत हो गये थे। चीन जानता है, कि प्रतिबंधों का असर उसकी अर्थव्यवस्था के लिए कितना खतरनाक हो सकता है, क्योंकि चीन के निशाने पर भी ताइवान है, लिहाजा बीजिंग भी उस लड़ाई की तैयारी पिछले कई सालों से कर रहा है, जो आने वाले कुछ सालों में ताइवान में शुरू हो सकती है। लिहाजा, चीन भी प्रतिबंधों से निपटने की तैयारी पिछले कई सालों से कर रहा है, और इसके लिए अगर चीन की करेंसी ही दुनिया की एक प्रमुख करेंसी बन जाए, तो ये चीन के लिए सोने पर सुहागा वाली बात होगी।

डॉलर के खिलाफ कितनी मजबूत लड़ाई?

डॉलर के खिलाफ कितनी मजबूत लड़ाई?

डॉलर के बिना दुनिया की कल्पना करना इस वक्त अकल्पनीय है, लेकिन चीन के लिए ये एक सुनहरा सपना है और चीन की यही कोशिश पिछले कई सालों से है, कि आखिर कैसे डॉलर को विस्थापित कर चीन की करेंसी दुनिया की प्रमुख करेंसी बन जाए। अगर चीन ऐसा करने में कामयाब हो जाता है, तो फिर अमेरिका की जगह पर चीन हो होगा। और चीन की शताब्दियों से यही ख्वाहिश है। लिहाजा, चीन ने ऐतिहासिक तौर पर रूस का समर्थन कर दिया है और चीन अपनी करेंसी को दुनिया के व्यापार का हिस्सा बनाने के लिए तैयार हो चुका है। लेकिन, यह एक ऐसा लक्ष्य है, जिसे बिना भारी राजनीतिक उथल-पुथल के हासिल नहीं किया जा सकता है और ये एक ऐसा उथल-पुथल है, जिसके लिए चीन भी अभी तैयार नहीं है। विश्व का इतिहास देंखें, तो अभी तक सिर्फ एक ही बार ऐसा हुआ है, जब डॉलर का वैल्यू किसी और करेंसी से कम हुआ है और वो हुआ था, द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद, जब ब्रिटेन की स्टर्लिंग, अमेरिकी डॉलर से आगे निकल गई थी। लेकिन, क्या चीन के युआन के लिए डॉलर को विस्थापित करना संभव होगा? चीन बिना लड़े दुनिया की नंबर वन की महाशक्ति की कुर्सी पर बैठना चाहता है और उसकी लिस्ट में लड़ाई नहीं है। बीजिंग की ख्वाहिश जल्द से जल्द डॉलर के बाद की दुनिया में पहुंचने की है, लेकिन रूस की तुलना में चीन काफी ज्यादा पश्चिमी देशों के वैश्विक व्यापार प्रणाली में बंधा हुआ और कसा हुआ है। इसीलिए... ये खेल इतना आसान भी नहीं है।

क्या दूसरे देश होंगे तैयार?

क्या दूसरे देश होंगे तैयार?

डॉलर का खेल खत्म करने के लिए सिर्फ चीन और रूस का राजी हो जाना ही पर्याप्त नहीं है, इसके लिए बाकी देशों को भी साथ आने के लिए राजी करना होगा। डॉलर के बाद की दुनिया में कदम रखने के लिए केवल दूसरी मुद्रा को व्यापक रूप से अपनाने के साथ ही हो ये काम संभव हो सकता है, लेकिन क्या दूसरे देश ऐसा करेंग। बहुत मुश्किल है। अभी तक के हालात को देखें, तो पहले से ही पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों में घिरे ईरान ने इसकी इजाजत दे दी है, जबकि सऊदी अरब भी इस विकल्प की तरफ तेजी से विचार कर रहा है। सऊदी अरब और चीन के बीच अपनी अपनी करेंसी में व्यापार करने के लिए सहमति भी बन चुकी है। सऊदी अरब भी रूस पर लगाए गये प्रतिबंधों से 'डरा' हुआ है, क्योंकि सऊदी अरब पर मानवाधिकार उल्लंघन के कई आरोप हैं और सऊदी को हर वक्त प्रतिबंधों का डर सताता रहता है, लिहाजा दुनिया के 'तानाशाह' किसी एक ऐसे वित्तीय प्रणाली को स्थापित करने की तरफ कदम बढ़ाने की सोच रहे हैं, जिससे वो प्रतिबंधों से बचे रहें।

मल्टीपोलर करेंसी युग की शुरूआत?

मल्टीपोलर करेंसी युग की शुरूआत?

रातोंरात डॉलर को विस्थापित करना संभव नहीं है, लेकिन वर्तमान हालातों की तरफ देखें, तो मल्टीपोलर करेंसी युग में दुनिया ने कदम रख दिया है और वित्तीय प्रणाली के बहुध्रुवीय होने की तरफ दुनिया चल पड़ी है। जिसमें फ्रांस की करेंसी यूरो और चीन की करेंसी युआन की मुख्य भूमिका है। वहीं, इनके साथ साथ डिजिटल करेंसी और सोना से भी कारोबार होना शुरू हो चुका है। और लिहाजा, कई एक्सपर्ट्स का कहना है कि, वॉशिंगटन के लिए रूस पर प्रतिबंधों को अत्यधिक स्तर पर बढ़ा देना, एक गलत कदम भी साबित हो सकता है, जिससे यूरोप में यूरो का प्रभाव बढ़ेगा और जिसका यूरोप स्वागत भी कर सकता है, लिहाजा अमेरिका को अपने प्रतिबंधों में संतुलन बिठाना आवश्यक है। हालांकि, अभी रूबल की क्षमका अभी इतनी नहीं है, कि वो नाटो को विभाजित कर सके, लेकिन एक्सपर्ट्स का मानना है, कि युआन में इतनी क्षमता है और सबसे खास बात ये है... कि चीन, रूस नहीं है।

अमेरिकी डॉलर पर पुतिन चलाएंगे हथौड़ा, रूबल में व्यापार करने का आदेश, कैसे होगा कारोबार? भारत पर प्रभावअमेरिकी डॉलर पर पुतिन चलाएंगे हथौड़ा, रूबल में व्यापार करने का आदेश, कैसे होगा कारोबार? भारत पर प्रभाव

Comments
English summary
Russia has opened a front against the dollar and has got the support of China, which wants to trade with the yuan instead of the dollar in the world.
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
For Daily Alerts
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X