रुपये के गिरने की यात्रा: डॉलर के आगे बच्चे से बूढ़ा और अब कैसे सुपर सीनियर सिटिजन हो गया रुपया
देश की संसद में भारत की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन बताती हैं कि, पिछले एक साल में रुपये की वैल्यू 7 प्रतिशत गिरी और पीएम मोदी के पहली बार प्रधानमंत्री बनने के बाद रुपये का वैल्यू 25% गिर गया है।
नई दिल्ली, जुलाई 20: मंगलवार सुबह को 80 का आंकड़ा पार करते हुए भारतीय करेंसी रुपया अब डॉलर के सामने सुपर सीनियर सिटिदन बन गया है। साल 1991 में पहली बार रुपया वयस्क बना था, जिसके बाद रुपया लगातार बूढ़ा ही होता गया, कभी रुपये को वापस जवान होने का मौका नहीं मिला। महज 30 सालों में ही रुपया महा-बुजुर्ग हो गया है और डॉलर के आगे इसका नुकसान ही हुआ है।
जब नया-नया हुआ था जवान
आज से 32 लाव पहले भारतीय रुपये ने किशोरावस्था में कदम रखा था और उस वक्त भारत के प्रधानमंत्री थे चंद्रशेखर और पहली बार उनके ही कार्यकाल के दौरान भारत का विदेशी मुद्रा भंडार घटना शुरू हुआ था। प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के कार्यकाल में पहली बार रुपये को नुकसान पहुंचना शुरू हुआ और प्रमुख विदेशी मुद्रा डॉलर के सामने भारतीय रुपया 21 रुपये के एक्सचेंज रेट से बढ़कर 23 रुपये पर पहुंच गया। और उसके बाद चंद्रशेखर का दौर खत्म हो गया और भारत में आर्थिक सुधार लागू करने वाले पीवी नरसिम्हा राव भारत के प्रधानमंत्री बने। हालांकि, उन्होंने भारत को आर्थिक सुधार की पटरी पर तो ला दिया, लेकिन वो भी रुपये की वैल्यू नहीं घटा सके। साल 1993 में जब नरसिम्हा राव भारत के प्रधानमंत्री थे, उस वक्त रुपया 30 का हो गया।
आर्थिक संकट ने बनाया अधेड़
साल 1997 में भारत एक बार फिर से आर्थिक संकट में फंस गया और उस वक्त भारत के प्रधानमंत्री थे, इंद्र कुमार गुजराल, जो एक गठबंधन सरकार को चला रहे थे। साल 1997 में एक बार फिर से डॉलर के सामने रुपये के कमजोर होने का सिलसिला शुरू हो गया और साल 1998 में रुपया पहली बार अधेड़ उम्र में पहुंचा, जब रुपये की वैल्यू बढ़कर 40 पर पहुंच गया और फिर उसके बाद भारत लगातार राजनियक झंझावातों में घिरा रहा और कोई भी सरकार रुपये की कीमत कम करवाने में कामयाब नहीं हो पाया और वक्त बीतता गया और साल 2008 का वो दौर आ गया, जब पूरी दुनिया ही आर्थिक मंदी की चपेट में फंस गई। अक्टूबर 2008 में रुपया 50 तक पहुंचा और उस वक्त सरकार प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह चला रहे थे और फिर जब मनमोहन सरकार के कुछ महीने बचे थे, तब तक रुपये का फिसलना जारी रहा। साल 2013 में पहली बार रुपये ने 60 का बैरियर को क्रॉस किया और फिर अगले साल नई दिल्ली में सत्ता बदल गई और नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री बनकर संसद पहुंचे।
रुपये के गिरने का सिलसिला लगातार है जारी
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार नये विचारों के साथ आई थी और भारत का वित्त मंत्रालय स्वर्गीय अरूण जेटली के हाथों में था, लेकिन कोई भी रुपये की उम्र कम नहीं कर पाया। साल 2017 में रुपया 70 का हुआ और साल 2022 में, ठीक पांच सालों के बाद रुपया अब 80 का होकर सुपर सीनियर सिटिजन बन चुका है। भारत सरकार ने रुपये के सीनियर सिटिजन बनने पर कहा है, कि इसमें सरकार की कोई गलती नहीं है, इसके पीछे विदेशी घटनाक्रमों का हाथ है। भारत की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन ने देश की संसद को बताया है, कि दिसंबर 2014 के बाद से रुपया 25 प्रतिशत और भी ज्यादा गिर गया है, यानि पीएम मोदी की सरकार भी रुपये को गिरने से बचा नहीं सकी है, वहीं अनुमान है, कि जल्द ही रुपया अपनी एक और वर्षगांठ मनाते हुए 81 का हो जाएगा।
किस दहलीज तक पहुंचेगा रुपया?
देश की संसद में एक तारांकित प्रश्न के जवाब में भारत की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन बताती हैं कि, पिछले एक साल में रुपये की वैल्यू 7 प्रतिशत गिरी और पीएम मोदी के पहली बार प्रधानमंत्री बनने के बाद रुपये का वैल्यू 25 प्रतिशत गिरा है। यानि, पिछले आठ सालों में रुपये का वैल्यू 25 प्रतिशत गिरा है और 80 पार कर गया है। निर्मला सीतारमण ने लोकसभा में एक प्रश्न के जवाब में कहा कि, 31 दिसंबर 2014 को एक अमेरिकी डॉलर की कीमत 63.33 भारतीय रुपये थी। भारतीय रुपये में हर दिन गिरावट आ रही है और लोकसभा में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि, "रूस-यूक्रेन संघर्ष जैसे वैश्विक कारक, कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी और वैश्विक वित्तीय स्थितियों का सख्त होना, अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपये के कमजोर होने के प्रमुख कारण हैं।" हालांकि, उन्होंने संसद के निचले सदन को सूचित किया है कि, भारतीय मुद्रा अन्य प्रमुख वैश्विक मुद्राओं के मुकाबले मजबूत हुई है।
आरबीआई और केन्द्र सरकार एक साथ
वहीं, इकोनॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारतीय रिजर्व बैंक और केंद्र सरकार, रुपये की गिरावट को रोकने के लिए एकतरफा कदम उठा सकते हैं। इनमें गैर-जरूरी सामानों के आयात पर प्रतिबंध, निवासी भारतीयों द्वारा कुल विदेशी निवेश पर सीमा में कमी, और निर्यातकों के लिए अपने यूएसडी प्रेषण में तेजी लाने के लिए आदेश शामिल हो सकते हैं। वहीं, बैंक ऑफ बड़ौदा के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने कहा कि, "केंद्रीय बैंक निर्यातकों को अपने डॉलर जल्दी लाने के लिए कहने या आयातकों को सीधे तेल उत्पादक कंपनियों को डॉलर बेचने के लिए कहने जैसे हस्तक्षेपों की तरफ आगे बढ़ सकता है।" उन्होंने कहा कि, "हमारी तरह एक मुक्त प्रणाली में, कुछ वस्तुओं और सेवाओं के आयात पर कठोर नियंत्रण लगाए बिना, इस तरह के मूल्यह्रास को रोकना असंभव है।"
रुपये के गिरने का क्या होगा असर?
वहीं, भारत सरकार के अधिकारियों ने नाम ना छापने की शर्त पर कहा कि, आरबीआई विदेशी मुद्रा बाजार की बारीकी से निगरानी कर रहा है और जरूरत पड़ने पर अपने भंडार का उपयोग कर रहा है। हस्तक्षेपों के बावजूद यह सहज स्तर पर बना हुआ है। वहीं, आपको बता दें कि, अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपये का गिरना उद्योग जगत के लिए मिश्रित बैग बन रहा है, जिसका खामियाजा कुछ क्षेत्रों को भुगतना पड़ रहा है, जबकि कई उद्योग क्षेत्र, खासकर सॉफ्टवेयर निर्यातक लगातार फायदा उठा रहे हैं। रुपये के मूल्यह्रास का सबसे अधिक प्रभाव आयातित वस्तुओं या आयातित घटकों का उपयोग करने वाले सामानों पर पड़ेगा, और इस श्रेणी में सबसे अधिक मांग की जाने वाली वस्तु मोबाइल फोन है। यानि, मोबाइल फोन की खरीदारी और भी ज्यादा महंगी होती जाएगी।
अब भारतीय रुपये का क्या होगा? 20 सालों बाद डॉलर के सामने यूरो धड़ाम, आंखों के सामने आर्थिक मंदी?