BIMSTEC: पीएम मोदी के एक अहम फैसले पर चीन की नजर, जानें और सभी Facts
नई दिल्ली। 'बिम्सटेक' मतलब 'द बे ऑफ बंगाल इनिशिएटिव फॉर मल्टी-सेक्टोरल टेक्निल एंड इकनॉमिक कोऑपरेशन'। 'बिम्सटेक' में भारत के अलावा बंगाल की खाड़ी के आसपास के देश बंग्लादेश, भूटान, नेपाल, श्रीलंका, म्यांमार और थाईलैंड भी शामिल हैं। पीएम नरेंद्र मोदी चौथे 'बिम्सटेक' शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए काठमांडू पहुंच चुके हैं। 'बिम्सटेक' संगठन का भारत की विदेश नीति के लिहाज से विशेष महत्व है। यह भारत सरकार की नेबर फर्स्ट और एक्ट-ईस्ट पॉलिसी के लिहाज से बेहद अहम है।
'बिम्सटेक' में इस बार इन मुद्दों पर होगा फोकस
-'बिम्सटेक' के 7 सदस्य राष्ट्रों के प्रतिनिधि दो दिवसीय (30 और 31 अगस्त) सम्मेलन में हिस्सा ले रहे हैं। इसका आयोजन नेपाल में किया जा रहा है।
-'बिम्सटेक' के सदस्य राष्ट्र भारत, बांग्लादेश, म्यांमार, श्रीलंका, भूटान, थाईलैंड और नेपाल के बीच आर्थिक और रणनीतिक तेजी से बढ़ रहा है। इस बार सुरक्षा, काउंटर टेरिरिज्म, ट्रांसपोर्ट, कम्युनिकेशंस, पर्यावरण, आपदा प्रबंधन, आर्थिक सहयोग और बढ़ाने जैसे मुद्दों पर 'बिम्सटेक' देशों के प्रतिनिधि चर्चा करेंगे। इन सभी मुद्दों में सबसे अहम माना जा रहा है ट्रांसपोर्ट। दक्षिण एशिया और दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के साथ इंटीग्रेशन इस बार बड़ा मुददा है। इससे सभी देशों को आर्थिक प्रगति करने में काफी मदद मिलेगी।
-'बिम्सटेक' को लेकर काठमांडू में इस समय सबसे बड़ा सवाल यही पूछा जा रहा है कि क्या भारत नेपाली ट्रकों और ट्रेनों को अपनी सरजमीं पर चलने की अनुमति देते हुए बांग्लादेश और म्यांमार तक कनेक्टिविटी को मंजूरी देगा? यदि ऐसा हुआ तो 'बिम्सटेक' के इतिहास में यह सबसे बड़ा कदम होगा। अगर ऐसा हुआ तो चीन के सामने भी भारत कड़ी चुनौती पेश करेगा। यही कारण है कि 'बिम्सटेक' पर चीन की नजरें लगी हैं।
-पीएम नरेंद्र मोदी 'बिम्सटेक' सम्मेलन में सभी देशों के प्रतिनिधियों के साथ अलग से बैठक भी करेंगे। माना जा रहा है कि इन बैठकों में ट्रांसपोर्ट और काउंटर टेरिरिज्म पर सबसे ज्यादा फोकस रहेगा।
-पीएम नरेंद्र मोदी नेपाल पहुंच चुके हैं। वह नेपाल के प्रधानमंत्री केपी ओली के साथ काठमांडू स्थित विश्व प्रसिद्ध पशुपतिनाथ मंदिर में नेपाल-भारत मैत्री धर्मशाला का उद्घाटन भी करेंगे।
'बिम्सटेक' के बारे में कुछ फैक्ट्स
-'बिम्सटेक' में शामिल भारत, बंग्लादेश, भूटान, नेपाल, श्रीलंका, म्यांमार और थाईलैंड में दुनिया की 22 प्रतिशत आबादी रहती है। 'बिम्सटेक' देशों की अर्थव्यवस्था 2.8 खरब डॉलर है। इससे भी ज्यादा अहम बात यह है कि इन सभी देशों की विरासत साझा है और इन सभी महत्वाकांक्षा क्षेत्र में शांति, समृद्धि और विकास करने की है।
-'बिम्सटेक' की स्थापना 1997 में बैंकॉक में हुई थी। इसमें पांच देश- बांग्लादेश, भूटान, इंडिया, नेपाल और श्रीलंका दक्षिण एशिया से हैं, जबकि म्यांमार और थाईलैंड दक्षिण-पूर्व एशिया से हैं। स्थापना के बाद काफी समय तक 'बिम्सटेक' का अस्तित्व महत्वहीन ही रहा, लेकिन 2014 के बाद 'बिम्सटेक' ने गति पकड़ी। इस क्षेत्रीय सहयोग संगठन को मजबूत बनाने में भारत ने काफी रुचि दिखाई, जिसका परिणाम दिख भी रहा है।
-आर्थिक दृष्टि देखा जाए तो 'बिम्सटेक' भारत के लिए बेहद अहम है। हालांकि, बहुत से लोग यह भी सवाल करते हैं कि जब साउथ एशियन एसोसिएशन फॉर रीजनल कोऑपरेशन (SAARC) जैसा क्षेत्रीय संगठन पहले से मौजूद है तो 'बिम्सटेक' की जरूरत क्या है?
-सार्क में पाकिस्तान की मौजूदगी क्षेत्रीय सहयोग के कार्य में बाधा डाल रही है। सार्क में अफगानिस्तान, भूटान, बांग्लादेश, इंडिया, मालदीव, नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका शामिल हैं। वहीं, 'बिम्सटेक' में भारत, बांग्लादेश, म्यांमार, श्रीलंका, भूटान, थाईलैंड और नेपाल शामिल हैं।
-मतलब 'बिम्सटेक' में पाकिस्तान, अफगानिस्तान और मालदीव नहीं है। इसमें म्यांमार और थाईलैंड शामिल हैं, जो कि सार्क में नहीं है। आर्थिक दृष्टि से म्यांमार और थाईलैंड दोनों भारत के लिए पाकिस्तान और मालदीव से ज्यादा अहमियत रखते हैं। दूसरी एक परेशानी यह चली आ रही थी कि सार्क में सभी निर्णय आपसी सहमति से लेने होते हैं, लेकिन पाकिस्तान की ओर से कई बार अड़ंगा लगाया जाता रहा। इस वजह से क्षेत्रीय सहयोग के कार्य लटक रहे थे। 2016 में इस्लामाबाद में सर्क सम्मेलन होना था, लेकिन भारत ने उसमें शिरकत करने से इनकार कर दिया था।
-सार्क में नेपाल और पाकिस्तान दोनों ने चीन की एंट्री कराने के लिए भी बैकिंग की थी, लेकिन भारत को यह प्रस्ताव पसंद नहीं आया। यही वजह रही कि पीएम नरेंद्र मोदी ने 'बिम्सटेक' पर दांव खेला है। इससे भारत की पकड़ दक्षिण एशिया पर तो बनी ही रहेगी, बल्कि दक्षिण-पूर्व एशिया मतलब चीन के प्रभुत्व वाले क्षेत्र के भी दो राष्ट्र शामिल कर लिए गए हैं। दरअसल, भारत दक्षिण एशिया में अपना प्रभुत्व बनाए रखना चाहता है, जबकि चीन की कोशिश है कि वह किसी प्रकार से दक्षिण एशिया में भी धाक जमाए।