चीन के चंगुल में पाकिस्तान, भारत सावधान !
अब से तीन साल पहले चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग पाकिस्तान में थे.
जिनपिंग ने पाकिस्तान की संसद में वो भरोसा दिया, जिसकी पाकिस्तान को अर्से से चाहत थी.
उन्होंने 'द्वीपक्षीय आर्थिक साझेदारी और साझा विकास के लिए' चीन की ओर से सुरक्षा गारंटी दी.
उस वक़्त कम ही लोगों को अंदाज़ा था कि चीन आने वाले बरसों में पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था की बैसाखी बनने जा रहा है.
अब से तीन साल पहले चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग पाकिस्तान में थे.
जिनपिंग ने पाकिस्तान की संसद में वो भरोसा दिया, जिसकी पाकिस्तान को अर्से से चाहत थी.
उन्होंने 'द्वीपक्षीय आर्थिक साझेदारी और साझा विकास के लिए' चीन की ओर से सुरक्षा गारंटी दी.
उस वक़्त कम ही लोगों को अंदाज़ा था कि चीन आने वाले बरसों में पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था की बैसाखी बनने जा रहा है.
पाकिस्तान उस वक़्त भी निवेश के लिहाज से माकूल मुल्क नहीं था, लेकिन अमरीका से लेकर यूरोप तक उसके कई मददगार थे.
लेकिन चीन शायद बदलते वक़्त की आहट काफ़ी पहले भांप चुका था.
जनवरी 2018
संयुक्त राष्ट्र में अमरीकी राजदूत निकी हेली ने पाकिस्तान पर 'डबल गेम' खेलने का आरोप लगाया और उसे मिल रही 2550 लाख डॉलर यानी क़रीब 16 सौ करोड़ रुपए से ज़्यादा की मदद पर रोक लगाने का एलान किया.
कच्चे तेल की चढ़ती कीमत और आयात के बढ़ते बिल के बीच महज पांच महीने के अंदर पाकिस्तान की दिक्क़तें उभरकर सतह पर आ गईं.
मई 2018 में पाकिस्तान के विदेशी मुद्रा भंडार के लगातार कम होते जाने की ख़बर मीडिया में छा गई.
पाकिस्तान के अख़बार डॉन के वरिष्ठ पत्रकार ख़ुर्रम हुसैन अर्थव्यवस्था की मौजूदा स्थिति की तस्वीर पेश करते हैं.
वे कहते हैं, "मौजूदा स्थिति ये है कि पाकिस्तान के पास क़रीब ढाई महीने के आयात बिल भरने की कूवत रह गई है. अगर विदेशी मुद्रा में गिरावट जारी रही और स्थिति दो महीने के भुगतान की हैसियत से नीचे चली गई तो फिर कह सकते हैं कि गंभीर स्थिति बन गई है. अगर रिज़र्व एक महीने का रह जाए तो संकट की स्थिति होगी. कई विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर तेज़ी से उपाय नहीं किए गए तो तीन से छह महीने में ऐसी स्थिति आ सकती है."
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चीन के सहारे पाकिस्तान
साल 2013 में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने पाकिस्तान को 'बेल आउट' पैकेज देकर उबारा था. लेकिन तब पाकिस्तान और अमरीका के संबंध गहरे थे.
संकट के मौजूदा दौर में पाकिस्तान को मदद के लिए एक ही मुल्क दिख रहा है, वो है चीन.
तीन साल पहले पाकिस्तान इकॉनॉमिक कॉरिडोर यानी 'सीपेक' में 46 अरब डॉलर निवेश का भरोसा देने वाला चीन मौजूदा वित्तीय वर्ष में अर्थव्यवस्था संभालने के लिए पांच अरब डॉलर क़र्ज़ दे चुका है और आगे भी पाकिस्तान की झोली भरने को तैयार है.
लेकिन क्यों? इस सवाल पर चीन की राजधानी बीजिंग में मौजूद वरिष्ठ पत्रकार एसडी गुप्ता कहते हैं कि पाकिस्तान की मुश्किल को चीन मौक़े के तौर पर देख रहा है.
"इसमें दो मत नहीं है कि चीन पाकिस्तान को आर्थिक कॉलोनी बनाना चाहता है. उसके सैन्य कारण हैं. पाकिस्तान से भारत पर दवाब डाला जा सकता है. सीपेक का रूट समंदर तक जाता है और चीन को समंदर तक संपर्क की ज़रूरत है."
दिक्क़त की वजह चीन
ज़ाहिर तौर पर चीन मददगार दिखता है, लेकिन कई विशेषज्ञों का दावा है कि पाकिस्तान की मौजूदा मुश्किल बढ़ाने में चीन की ही अहम भूमिका है.
विदेशी मुद्रा भंडार कम होने की वजह गिनाते हुए ख़ुर्रम हुसैन कहते हैं, "पाकिस्तान का आयात तेज़ी से बढ़ रहा है. उसमें सीपेक के हवाले से हो रहे मशीनों के आयात का भी बड़ा रोल है. तेल की कीमतों और मोबाइल जैसे कंज्यूमर आइटम के आयात का भी रोल है."
विदेशों में काम करने वाले नागरिकों की ओर से भेजी जाने वाली रक़म का पाकिस्तान के विदेशी मुद्रा भंडार में बड़ा हिस्सा होता है. ख़ुर्रम कहते हैं, 'वो रक़म भी नहीं बढ़ रही है'.
पाकिस्तान में अर्थव्यवस्था के कई जानकारों को ये भी लगता है कि उनका देश चीन के चंगुल में फंसता जा रहा है.
पाकिस्तानी अर्थशास्त्री डा. क़ैसर बंगाली की राय है कि चीन के साथ हुए समझौतों में पाकिस्तान के हितों की अनदेखी हुई है.
"इस वक़्त चीन का असर ये है कि जो पाकिस्तान चीन फ्री ट्रेड अग्रीमेंट साइन हुआ है, उससे पाकिस्तान में चीन से होने वाला आयात तो बढ़ गया है, लेकिन निर्यात नहीं बढ़ा. ये पाकिस्तान की ग़लती थी कि उन्होंने उस समझौते को सही तरीक़े से नहीं किया. ये एकतरफ़ा समझौता था."
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क़र्ज़ की भारी क़ीमत
पाकिस्तान के इर्द-गिर्द चीन क़र्ज़ का चक्रव्यूह तैयार करने में जुटा है. चीन की मदद अर्थव्यवस्था पर भारी बोझ बढ़ाने वाली है.
एसडी गुप्ता डॉन अख़बार के हवाले से बताते हैं कि पाकिस्तान को क़र्ज़ 18 फ़ीसदी की दर से दिया गया है. ये ब्याज़ दर वर्ल्ड बैंक और एशियाई डिवेलपमेंट बैंक से मिलने वाले क़र्ज़ की दर से कहीं ऊंची है.
पाकिस्तान की मजबूरी ये थी कि चीन के अलावा वहां कोई और निवेश को तैयार नहीं था.
एसडी गुप्ता कहते हैं, "चीन का भरोसा दान-दक्षिणा में नही है. चीन को रिटर्न चाहिए. वाणिज्यिक तौर पर फ़ायदा नहीं हो तो कोई बात नहीं वो सामरिक फायदा चाहते हैं. चीन का आज फोकस अरब सागर तक जाने का है.''
वो कहते हैं, ''अरब सागर तक उनकी पहुंच हो गई तो साफ़ है कि मुंबई, ओमान और सऊदी अरब उनसे बहुत दूर नहीं होंगे. पाकिस्तान उनके लिए बहुत महत्व रखता है. इसके लिए वो नुक़सान उठाने को तैयार हैं. 50 अरब डालर पूरे भी डूब गए तो बहुत बड़ा नुक़सान नहीं है."
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तो चीन आख़िर पाकिस्तान पर दांव खेलकर हासिल क्या करना चाहता है? क्या वो पाकिस्तान में नीति तय करने की हैसियत चाहता है?
वरिष्ठ पत्रकार ख़ुर्रम हुसैन बताते हैं कि पाकिस्तान में कई विशेषज्ञ ऐसी आशंका ज़ाहिर कर रहे हैं.
"यहां के जानकार भी एक बात को उठा रहे हैं कि अगर चीन के क़र्ज़ बढ़ते रहे तो चीन की दिलचस्पी होगी कि पाकिस्तान के नीतिगत ढांचे को इस नज़र से तय किया जाए कि इन क़र्ज़ों की अदायगी होती रहे."
अर्थशास्त्री डा. क़ैसर कहते हैं कि फ़िलहाल पाकिस्तान में चीन ने नीति तय करने की स्थिति हासिल नहीं की है, लेकिन अगर उस पर निर्भरता बढ़ी तो हालात मुश्किल भी हो सकते हैं.
वो कहते हैं, "चाहे स्वतंत्र अर्थशास्त्री हों या अख़बार के संपादकीय या फिर स्तंभकार हों, ये सब बहुत चिंता जता रहे हैं. चिंता इस बात की है कि पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था जिस दिशा में जा रही है, वो ठीक नहीं है."
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भारत तक आ सकती है आंच!
एसडी गुप्ता की राय है कि अगर चीन पाकिस्तान में नीति प्रभावित करने की स्थिति हासिल कर लेता है तो वहां लोकतंत्र, मीडिया और सुप्रीम कोर्ट की स्वतंत्रता पर भी ख़तरा हो सकता है और इसका ताप भारत को भी महसूस करना पड़ सकता है.
"पाकिस्तान में अगर दिन ख़राब आते हैं तो भारत को ख़ुश नहीं होना चाहिए. उससे भारत पर दबाव आएगा. अगर पाकिस्तान चीन पर निर्भर हो जाता है और चीन ही पाकिस्तान की नीति तय करता है तो समझ लीजिए कि इस्लामाबाद में चीन बैठा है. ये भारत के लिए नुक़सानदायक है. भारत पाकिस्तान से आसानी से डील कर सकता है, लेकिन चीन से नहीं. ऐसा वक़्त आ गया है कि भारत को पाकिस्तान के साथ रिश्तों पर दोबारा गौर करना चाहिए."
हालांकि, पाकिस्तान के साथ साझेदारी में पलड़ा भले ही चीन का भारी दिखता हो, लेकिन खेल के सारे मोहरे उसके हाथ में नहीं है. अमरीका के शब्दों में 'डबल गेम' का महारथी पाकिस्तान भी बाज़ी पलटने का माद्दा रखता है.
वरिष्ठ पत्रकार एसडी गुप्ता की राय है, "चीन कोशिश करता है कि वो पाकिस्तान पर दबाव डाले. पाकिस्तान की कोशिश रहती है कि उल्टा चीन को फंसा दे. आज चीन पाकिस्तान पर निर्भर है. पूरी दुनिया में बेल्ट एंड रोड की कामयाबी पाकिस्तान में ही है. चीन के लिए पाकिस्तान एक शो-केस है. अगर पाकिस्तान में संसद, सरकार, सेना या तालिबान के ज़रिए कोई अड़चन आती है तो चीन के हाथ पैर फूल जाएंगे."
दूसरी तरफ चीन ये भी ज़ाहिर नहीं करना चाहता है कि वो क़र्ज़ देकर किसी देश की संप्रभुता पर काबू करना चाहता है. इससे नेपाल, श्रीलंका से लेकर म्यामांर तक उसके हित प्रभावित हो सकते हैं.
विशेषज्ञों की सलाह
लेकिन फिर भी पाकिस्तान में अर्थशास्त्री और राजनीति के जानकार चीन के साथ आर्थिक रिश्ते बढ़ाने को लेकर चौकन्ना रहने की हिदायत दे रहे हैं.
हालांकि, ज़मीन पर स्थिति ये है कि चुनावी साल में भी प्रमुख राजनीतिक दलों के बीच अर्थव्यवस्था की स्थिति बहस का बड़ा मुद्दा नहीं है.
अर्थशास्त्री डा. क़ैसर बताते हैं कि राजनीतिक दल हों या विशेषज्ञ उन्हें ये उम्मीद है कि बीते तीन दशकों की तरह पाकिस्तान इस बार भी मुश्किलों के भंवर से बाहर आने का रास्ता तलाश सकता है.
वो कहते हैं, "पाकिस्तान की तारीख़ कुछ ऐसी रही है कि हम संकट के मुहाने पर जाकर वापस आ जाते हैं. अगर इतिहास का वही ट्रेंड बना रहा तो उम्मीद है कि हम किनारे से वापस आ पाएंगे."
लेकिन एसडी गुप्ता आगाह करते हैं कि अगर ऐसा नहीं हुआ तो चीन के क़र्ज़ की बड़ी कीमत सिर्फ़ पाकिस्तान को ही नहीं चुकानी होगी, भारत जैसे पड़ोसी मुल्क पर भी असर दिखेगा.
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