सूरज में 'आग के समंदर' को पहली बार स्पेसक्राफ्ट ने छुआ, सूर्य ग्रहण को लेकर भेजी दुर्लभ जानकारी
सूरज की गर्मी को देखते हुए इसे इंसानी इतिहास के कठिनतम मिशन कहा जाता है। वहीं, पिछले महीने 14 दिसंबर को नासा की तरफ से एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया था कि, पार्कर सोलर प्रोब सूरज के और भी ज्यादा नजदीक पहुंच गया है।
वॉशिंगटन, जनवरी 08: इंसानी इतिहास में विज्ञान का सबसे जटिल मिशन सूरज है और मानव इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है, जब इंसानों के द्वारा बनाया गया अंतरिक्षयान सूरज के वायुमंडल में पहुंचा हो और सूरज की धधकती आग से उसका संपर्क हुआ हो। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के पार्कर सोलर प्रोब ने इतिहास रच दिया है और असंभव से लगने वाले मिशन को पूरा करते हुए सूरज के कोरोना में प्रवेश कर गया हो। इंसानी एयरक्राफ्ट इस वक्त जहां मौजूद है, वहां का तापमान 20 लाख डिग्री फॉरेनहाइट है। पार्कर सोलर प्रोब ने सूरज के वायुमंडल में प्रवेश करने के बाद उस घटना को महसूस किया है, जिसे धरती पर सिर्फ सूर्य ग्रहण के वक्त महसूस किया जाता है।
क्या होता है कोरोना?
सूरज के ऊपरी वायुमंडल को वैज्ञानिक भाषा में कोरोना कहा जाता है और नासा के एयरक्राफ्ट ने कोरोना में प्रवेश करने के बाद सूरज के किरणों और सूरज के चुंबकीय क्षेत्र में मौजूद आंकड़ों को जुटाए हैं। नासा द्वारा लॉन्च किए गए एक अंतरिक्ष यान ने वह किया है जो कभी असंभव माना जाता था। वैज्ञानिकों के मुताबिक, पिछले साल 28 अप्रैल को पार्कर सोलर प्रोब ने सूर्य के कोरोना में सफलतापूर्वक प्रवेश किया है। सेंटर फॉर एस्ट्रोफिजिक्स के सदस्यों और वैज्ञानिकों ने कड़ी मेहनत के बाद इस ऐतिहासिक सफलता को हासिल किया है। हार्वर्ड एंड स्मिथसोनियन (CfA) जिन्होंने जांच में एक महत्वपूर्ण उपकरण सोलर प्रोब कब बनाया और उसकी निगरानी की थी।
सूर्य ग्रहण पर भेजी दुर्लभ जानकारी
सूरज के वायुमंडल में प्रवेश करने वाले नासा के एयरक्राफ्ट पार्कर सोलर प्रोब ने एक ऐसी घटना देखी जो हमने पहले केवल पृथ्वी पर सूर्य ग्रहण के दौरान देखी थी। पार्कर सोलर प्रोब ने पता लगाया है कि, जब पूर्ण सूर्य ग्रहण होता है, तो चंद्रमा हमे सूरज को देखने के रास्ते को पूरी तरह से ब्लॉक कर देता है। हालांकि, उस वक्त भी सूरज का कोरोना खाली रहता है और उसके रास्ते को चंद्रमा ब्लॉक नहीं कर पाता है।
कोरोना के पार इंसानी स्पेसक्राफ्ट
नासा के वैज्ञानिकों के मुताबिक, ऐसा पहली बार हुआ है, जब कोई इंसानी यान सूरज के इतने करीब पहुंचा है। हालांकि, पार्कर सोलर प्रोब का अभी सूरज के और भी ज्यादा नजदीक पहुंचना बाकी है। रिपोर्ट के मुताबिक, जिस वक्त स्पेसक्राफ्ट कोरोना के अंदर घुसा था, उस वक्त वो सूरज से सिर्फ 133 करोड़ किलोमीटर की दूरी पर मौजूद था। नासा के पार्कर सोलर प्रोब स्पेसक्राफ्ट ने कई तस्वीरें भेजी हैं, जिसमें उसे सूरज के तूफान के बीच से आगे बढ़ता हुआ देखा जा रहा है।
इंसानी इतिहास का 'असंभव' मिशन
सूरज की गर्मी को देखते हुए इसे इंसानी इतिहास के कठिनतम मिशन कहा जाता है। वहीं, पिछले महीने 14 दिसंबर को नासा की तरफ से एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया था कि, पार्कर सोलर प्रोब सूरज के और भी ज्यादा नजदीक पहुंच गया है और सूरज के सतह से उसकी दूरी 79 लाख किलोमीटर ही बची है। हालांकि, नासा की तरफ से कहा गया है कि, सूरज के सबसे ज्यादा नजदीक पहुंचने में पार्कर सोलर प्रोब को अभी तीन साल का वक्त और लगेगा।
सूरज के वातावरण की जांच
प्रसिद्ध खगोलविद माइकल स्टीवंस, जो पार्कर सोलर प्रोब के कप को मॉनिटर कर रहे है, उन्होंने कहा कि, "इस पूरे मिशन का लक्ष्य यह सीखना है कि सूर्य कैसे काम करता है। हम इसे सौर वातावरण में उड़कर देख रहे हैं''। उन्होंने कहा कि, "ऐसा करने का एकमात्र तरीका अंतरिक्ष यान के लिए बाहरी सीमा को पार करना है, जिसे वैज्ञानिक भाषा में अल्फवेन बिंदु कहते हैं। इसलिए, इस मिशन का एक बुनियादी हिस्सा यह मापने में सक्षम होना है कि हमने इस महत्वपूर्ण बिंदु को पार किया है या नहीं।''
सूरज के करीब पहुंचर एयरक्राफ्ट का क्या होगा?
नासा के मुताबिक, पार्कर सोलर प्रोब साल 2025 में सूरज के सबसे ज्यादा करीब होगा और उस वक्त सूरज से स्पेसक्राफ्ट की दूरी 61.15 लाख किलोमीटर होगी। हालांकि, सूरज के इतनी ज्यादा नजदीक पहुंचने के बाद पार्कर सोलर प्रोब स्पेसक्राफ्ट का क्या होगा, इसके बारे में ना ही नासा ने कुछ बताया है और ना ही इसको लेकर खगोलविदों ने ही कुछ कहा है। हालांकि, नासा ने कहा है कि, सूरज के वायुमंडल में पहुंचने से नासा का ये स्पेसक्राफ्ट तीन बड़े रहस्यों से पर्दा हटाएगा।
तीन रहस्यों से हटेगा पर्दा
नासा के मुताबिक, पार्कर सोलर प्रोब सूरज के वायुमंडल में पहुंचने के बाद तीन प्रमुख चीजों की पड़ताल करेगा। सबसे प्रमुख पड़ताल इस बात की होगी, कि सूरज के कोरोना में कितनी ऊर्जा का संचार होता है, वहां पर कितनी गर्मी होती है और सौर हवाओं का बहाव किस तरह होता है। दूसरी पड़ताल ये होगी कि, सूरज के मैग्नेटिक फिल्ड यानि चुंबकीय क्षेत्र का ढांचा और डायनेमिक्स क्या है और तीसरी पड़ताल सूरज से निकलने वाली आवेशित कणों की उत्पत्ति, व्यवहार और उनका बहाव क्या है। नासा के मुताबिक, इन तीन चीजों की पड़ताल करने के बाद इंसानों को सौर तूफानों से बचने में काफी मदद मिलेगी।
कैसे बनाया गया था स्पेसक्राफ्ट?
करीब 20 लाख डिग्री फॉरेनहाइट तापमान में जाने वाले इस स्पेसक्राफ्ट को स्पेशल तरीके से डिजाइन किया गया था। वैज्ञानिक एंथनी केस ने बताया कि, "स्पेसक्राफ्ट पार्कर सोलर प्रोब से जितनी मात्रा में सूरज से निकलने वाली गर्मी टकराने वाली थी, उससे बचने के लिए और उस गर्मी से उपकरण को बटाने के लिए पहले ये समझा गया कि, स्पेसक्राफ्ट कितना गर्म होने वाला है''।
शील्ड से सुरक्षित था स्पेसक्राफ्ट
वैज्ञानिक केस ने समझाते हुए कहा कि, ''अंतरिक्ष यान को सुरक्षित रखने के लिए उसे एक शील्ड से सुरक्षित किया गया था और उनमें से सिर्फ दो ऐसे कप थे, जो बिना किसी सुरक्षा के स्पेसक्राफ्ट से चिपके हुए थे। वैज्ञानिक केस ने कहा कि, ये दोनों ही कप सीधे तौर पर सूरज की गर्मी में खुले तौर पर थे और उनकी कोई सुरक्षा नहीं की जा सकती थी। उन्होने कहा कि, ये दोनों कप पूरी तरह से लाल हो गये थे। उन्होंने कहा कि, कप को पिघलने से बचाने के लिए उसका निर्माण टंगस्टन, नाइओबियम, मोलिब्डेनम और नीलम जैसे उच्च गलनांक धातुओं और पत्थरों से किया गया था।
सूर्य के वातावरण का वर्णन
पृथ्वी के विपरीत, सूर्य की कोई ठोस सतह नहीं है। लेकिन इसमें अत्यधिक गर्म वातावरण होता है, जो गुरुत्वाकर्षण और चुंबकीय फोर्स के द्वारा सूर्य से कोर से बंधा हुआ सामग्री होता है। जैसे-जैसे बढ़ती गर्मी और दबाव उस सामग्री को सूर्य से दूर धकेलते हैं, यह एक ऐसे बिंदु पर पहुंच जाता है जहां गुरुत्वाकर्षण और चुंबकीय क्षेत्र इसे अपने अंदर बनाए रखने के लिए काफी कमजोर हो जाते है।
सूरज के सबसे करीब मिशन
अब तक वैज्ञानिक इस बात का पता लगाने में अनिश्चित थे कि, अल्फवेन की महत्वपूर्ण सतह कहां है। कोरोना की दूरस्थ तस्वीरों के आधार पर वैज्ञानिकों ने अनुमान लगाया था कि, सूर्य की सतह से 10 से 20 सौर त्रिज्या यानि, 4.3 से 8.6 मिलियन मील के बीच कहीं अल्फवेन मौजूद है। 28 अप्रैल 2021 से पहले, पार्कर सोलर प्रोब इस बिंदु से ठीक आगे उड़ रहा था, लेकिन 28 अप्रैल को अपनी आठवीं उड़ान के दौरान वो अल्फवेन तक पहुंच गया और इसके साथ ही वैज्ञानिकों को अल्फवेन की सटीक जानकारी भी मिल गई है, जो 18.8 सौर त्रिज्या (लगभग 8.1 मिलियन मील) पर विशिष्ट चुंबकीय कणों के बीच मौजूद है। नासा के इस रॉकेट ने इतिहास में पबली बार अल्फवेन नाम के इस महत्वपूर्ण सतह को पार कर लिया और अंत में सूरज के वातावरण में प्रवेश कर गया।
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सौर तूफान पर मिलेगी ज्यादा जानकारी
सूरज के वातावरण की जानकारी मिलने के बाद अब वैज्ञानिकों को सौर फ्लेयर्स यानि, सूरज में उठने वाली तूफान की वजह से आसमान में बनने वाले फ्लेयर्स और सौर हवाओं पर ज्यादा जानकारियां मिल सकेंगी। जिनका अक्सर पृथ्वी पर सीधा प्रभाव पड़ता है, जहां वे बिजली ग्रिड और रेडियो संचार को बाधित करते हैं। नासा ने कहा कि, "कोरोना में प्रवेश करने में पहली बार मिली सफलना के बाद हम वादा करते हैं कि हम अब कई और स्पेसक्राफ्ट को फ्लाईबाई में भेजेंदें, ताकि और ज्यादा जानकारियां जुटाई जा सके और सूरज के बारे में हम ज्यादा से ज्यादा जानकारी हासिल कर सके। क्योंकि, सूरज पर दूर से जानकारियां हासिल करना असंभव है''।
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