मनीषा रुपेता: आजादी के 75 सालों के बाद पाकिस्तान में पहली बार हिंदू लड़की बनी DSP, जानें कौन हैं?
अपनी बहनों की तरह मनीषा ने भी डॉक्टर बनने के लिए तैयारी की और उन्होंने परीक्षा भी दिया था, लेकिन सिर्फ एक नंबर की कमी के चले उनका सलेक्शन एमबीबीएस के लिए नहीं हो पाया।
इस्लामाबाद, जुलाई 27: साल 1947 में भारत से अलग होकर इस्लाम के नाम पर एक अलग देश बना, नाम पड़ा पाकिस्तान। लेकिन, आजादी के 75 साल से ज्यादा बीत जाने के बाद अब एक हिंदू लड़की की चर्चा सिर्फ पाकिस्तान में ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में हो रही है। उस लड़की का नाम है, मनीषा रुपेता, जो पाकिस्तान में डीएसपी बनने वाली पहली हिंदू लड़की हैं। जैसे भारतीय राज्यों में पब्लिक सर्विस कमीशन की परीक्षा होती है, उसी तरह से पाकिस्तान के सिंध प्रांत में सिविल सर्विस की परीक्षा होती है, जिसमें पास होकर मनीषा ने ट्रेनिंग खत्म कर डीएसपी का कार्यभार संभाल लिया है।
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डीएसपी बनी पहली हिंदू लड़की
बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, मनीषा रूपेता पाकिस्तान में डीएसपी नियुक्त होने वाली पहली हिंदू महिला हैं। सिंध सिविल सर्विस की परीक्षा पास करने और ट्रेनिंग लेने के बाद उन्होंने यह उपलब्धि हासिल की है। मनीषा सिंध जिले के पिछड़े और छोटे जिले जकूबाबाद की रहने वाली हैं। यहीं से उन्होंने अपनी प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा पूरी की। उनके पिता जकूबाबाद में एक व्यवसायी थे, लेकिन जब मनीषा 13 साल की थीं, तो उनके पिता का निधन हो गया था। मनीषा की मां ने अपने दम पर पांच बच्चों की परवरिश की और बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए कराची चली आईं। मनीषा ने अपने संघर्ष के दिनों को याद करते हुए बीबीसी को बताया कि, जकूबाबाद में लड़कियों को पढ़ाने-लिखने का माहौल नहीं था और इसीलिए परिवार को कराची आना पड़ा और फिर मां और पूरे परिवार का संघर्ष रंग लाया, मनीषा की तीन बहनें एमबीबीएस डॉक्टर हैं, जबकि उनका इकलौता और छोटा भाई मेडिकल मैनेजमेंट की पढ़ाई कर रहा है।
'पुलिस अफसर बनना लुभावना था'
अपनी बहनों की तरह मनीषा ने भी डॉक्टर बनने के लिए तैयारी की और उन्होंने परीक्षा भी दिया था, लेकिन सिर्फ एक नंबर की कमी के चले उनका सलेक्शन एमबीबीएस के लिए नहीं हो पाया, जिसके बाद उन्होंने डॉक्टर ऑफ फिजिकल थेरेपी की डिग्री ली। डॉक्टरी की पढ़ाई करने के दौरान ही उन्होंने सिंध लोक सेवा आयोग की तैयारी करनी शुरू कर दी। हालांकि, पाकिस्तान जैसे अल्पसंख्यकों के लिए असुरक्षित देश में, जहां पिछले 75 सालों के इतिहास में एक भी हिंदू महिला पुलिस अधिकारी नहीं बनी हो, मनीषा के लिए इस परीक्षा की तैयारी का चुनाव करना आसान नहीं था। लेकिन, उन्होंने ना सिर्फ परीक्षा में पास की, बल्कि 438 सफल आवेदकों में वो 16वें स्थान पर आईं।
पुलिस में महिलाओं का जाना कम
पाकिस्तान की सामाजिक व्यवस्था काफी ज्यादा कट्टर है और बहुसंख्यक महिलाओं के पास आजादी नाम की कोई चीज नहीं होती है, जबकि अल्पसंख्यक आबादी अपनी बेटियों को काफी संभाल कर रखते हैं, ताकि, कोई बहुसंख्यक अपने पागलपन में उनका अपहरण ना कर ले, या फिर बंदूक दिखाकर धर्म परिवर्तन ना करवा दे। मनीषा के सामने भी इस तरह की चुनौतियां थीं, लेकिन उन्होंने हर चुनौती के खिलाफ डटकर मुकाबला करने की ठानी और जिस पाकिस्तान में महिलाएं आमतौर पर पुलिस थानों और अदालतों के अंदर तक नहीं जाती हैं, उस पाकिस्तान के अंदर मनीषा एक पुलिस अधिकारी बनकर पहुंच गई हैं। पाकिस्तानी समाज में थाने के अंदर महिलाओं का आना सही नहीं माना जाता है, लिहाजा मनीषा के लिए भी ये फैसला करना आसान नहीं था और उन्होंने बताया कि, वो पूरे विश्वास के साथ इस धारणा को बदलना चाहती हैं कि अच्छे परिवारों की लड़कियां थाने नहीं जा सकती हैं।
कराची में ट्रेनिंग करना काफी कठिन
एक इंटरव्यू के दौरान मनीषा ने कहा कि, 'मेरा मानना है कि हमारे समाज में ज्यादातर पीड़ित महिलाएं होती हैं, इसलिए उनकी सुरक्षा के लिए पुलिस महकमे महिलाओं का होना काफी जरूरी बन जाता है'। उन्होंने कहा कि, ये एक ऐसी प्रेरणा है, जिसने हमेशा से मेरा हौसला बढ़ाया और मैं लगातार पुलिस बल का ही हिस्सा बनना चाहती थी। हालांकि, मनीषा के लिए ये आसान नहीं था, क्योंकि परीक्षा पास करने के बाद कराची के एक बेहद दुर्गम इलाके में उन्हें कठिन ट्रेनिंग से गुजरना था और उन्हें अपना ट्रेनिंग पीरियड सफलता के साथ पूरा तिया और फिर मनीषा पुलिस अधिकारी बन गईं। मनीषा ने एएसपी आतिफ आमिर की देखरेख में ट्रेनिंग ली है और आमिर मानते हैं कि, महिला पुलिस अधिकारियों की संख्या अगर बढ़ाई जाए, तो पुलिस विभाग की छवि बदलने में मदद मिलेगी।
क्या मनीषा जारी रख पाएंगी नौकरी?
इंटरव्यू के दौरान मनीषा बताती हैं, कि पाकिस्तान के अल्पसंख्यक समुदाय के लोग, जो उनके पड़ोसी हैं, वो उनकी नौकरी से काफी खुश हैं, लेकिन हर किसी को डर इस बात का है, कि वो पता नहीं कितने दिनों तक इस नौकरी में टिक पाएंगी और मनीषा इस बात को लेकर सतर्क भी हैं। मनीषा बताती हैं, कि 'मेरी सफलता से हमारे समुदाय के लोगों में काफी खुशी है और पूरे देश की तरफ से मुझे बधाई मिली है। लेकिन, एक अजीब बात भी हो रही है, कि ज्यादातर लोगों का मानना है, कि मैं कुछ ही दिनों में अपनी नौकरी बदल लूंगी'। हालांकि, मनीषा अभी भी अपने रिश्तेदारों को समझाने की कोशिश कर रही हैं, कि वो इस नौकरी को करेंगी और आने वाले मुश्किलों को सामना करेंगी। उन्होंने कहा कि, "एक पितृसत्तात्मक समाज में पुरूषों का मानना होता है कि, पुरूष ही सिर्फ पुलिस विभाग का काम कर सकता है। हो सकता है, उनका ये सोचने का एक तरीका हो, लेकिन आने वाले कुछ सालों में लोगों की मानसिकता बदलेगी और फिर आने वाले सालों में बेटियां पुलिस महकमें में शामिल होने आएंगी।
बच्चों को पढ़ाती भी हैं मनीषा
मनीषा सिर्फ नौकरी ही नहीं करती हैं, बल्कि उन्होंने एक इंस्टीट्यूट में पढ़ाने का काम भी शुरू कर दिया है, ताकि लड़कियों को आगे बढ़ने में मदद कर सकें और परीक्षा की तैयारी करवा सकें। उन्होंने कहा कि, 'पढ़ाने का काम मेरे लिए एक प्रेरणा काम करता है और अगर मेरे मार्गदर्शन में लड़कियां आगे बढ़ती हैं, तो उससे मुझे काफी खुशी मिलेगी।' मनीषा का सोचना है कि, पुलिस की एक ऐसी सेवा है जो लिंग और धर्म से अलग हटकर है और उन्होंने इस बात को लेकर उम्मीद जताई, कि आने वाले दिनों में अल्पसंख्यक समुदाय की ज्यादा से ज्यादा महिलाएं पुलिस विभाग में शामिल होंगी।