Pics: मलाला युसूफजई-बंदूक की गोली से लेकर नोबेल पुरस्कार तक
ओस्लो। 17 वर्ष की मलाला युसूफजई, पहली नजर में किसी को भी देखने पर लगेगा कि यह तो सिर्फ ब़ च्ची है। हकीकत में यह शायद दुनिया की वह बच्ची है जो तूफान से किश्ती को निकालकर लाई है।
अक्टूबर 2012 का वह पल अभी तक लोगों के जेहन में जिंदा है जब मलाला अपने स्कूल से वापस आने के लिए बस में सवार हो रही थी कि अचानक उसके सिर में कॉल्ट 45 से तीन गोलियां देखते ही देखते उतार दी गईं।
उसके घर वालों को लगा कि अब वह जिंदा नहीं बचेगी लेकिन उन्हें नहीं मालूम था कि अभी तो नोबेल पुरस्कार हासिल कर एक नया मुकाम अपने लिए बनाना है।
पाक के तालिबानी प्रभावी इलाके की बहादुर
मलाला पाकिस्तान के नॉर्थ-वेस्ट हिस्से में स्थित खैबर पख्तूनवा प्रांत के स्वात घाटी के मिंगोरा इलाके की रहने वाली है। पाक का यह हिस्सा अफगानिस्तान से सटा हुआ है और यहां पर तालिबानी और पाक तालिबान का काफी असर है।
तालिबान ने लगाया लड़कियों की पढ़ाई पर बैन
तालिबान ने यहां पर स्कूल जाने वाली लड़कियों की पढ़ाई लिखाई पर बैन लगा दिया था और साथ ही धमकी दी थी कि अगर कोई उनके हुकूम के खिलाफ गया तो उसे कड़े नतीजे भुगतने होंगे।
2009 में मलाला ने बयां किया सच
वर्ष 2009 में जब मलाला की उम्र 11 वर्ष थी तो उसने बीबीसी के लिए एक ब्लॉग लिखा। इस ब्लॉग में मलाला ने तालिबान के प्रभुत्व की वजह से यहां पर जिंदगी की तकलीफों को बयां किया और साथ ही इस इलाके में लड़कियों की शिक्षा के लिए अपनी आवाज भी उठाई।
एग्जाम में पढ़ाई न कर पाने की चिंता
मलाला ने अपने ब्लॉग में लिखा था कि तालिबान लगातार उनके स्कूल को बर्बाद कर रहा है। मलाला ने अपने पहले ब्लॉग के पांच दिनों बाद एक और ब्लॉग लिखा। ब्लॉग में मलाला ने लिखा एनुअल एग्जाम होने वाले हैं और यह तभी हो सकेगा तब तालिबानी लड़कियों को स्कूल जाने की मंजूरी देगा।
अक्टूबर 2012 की वह दोपहर
मलाला की लोकप्रियता धीरे-धीरे बढ़ रही थी और यह बात तालिबानी आतंकियों को हजम नहीं हो रही थी। 9 अक्टूबर 2012 को मलाला जब स्कूल से वापस आने के लिए बस में चढ़ रही थी कि अचानक किसी ने उसे पुकार और उसके सिर में गोलियां दाग दीं। एक गोली मलाला के माथे के बायीं ओर लगी और उसके चेहरे से होती हुई वह उसके कंधे तक आ गई थी।
पाक में जारी हुआ फतवा
कई दिनों तक इलाज होने के बावजूद मलाला बेहोश थी। फिर उसके पिता उसे बर्मिंघम के क्वीन एलिजाबेथ अस्पताल लेकर आए और यहां पर उसका पूरा इलाज हुआ। वहीं 12 अक्टूबर 2012 को पाक में 50 इस्लामिक धर्म गुरुओं की ओर से मलाला के हत्यारों के लिए फतवा जारी हुआ।
16वें बर्थडे पर यूएन में दी स्पीच
मलाला युसूफजई ने पिछले वर्ष अपने 16वें जन्मदिन के मौके पर यूनाइटेड नेशंस के हेडर्क्वाटर में एक स्पीच दी थी। मलाला यूएन में भाषण देने वाली दुनिया की पहली किशोर बालिका थीं।
साहस और उम्मीद का उदाहरण
ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरुन के मुताबिक मलाला दुनियाभर की लड़कियों और दुनियाभर के लोगों के लिए उम्मीद और साहस का एक सबसे बड़ा उदाहरण हैं।
घर की चहारदिवारी में नहीं होना चाहती कैद
मलाला ने अपनी यूएन की पहली स्पीच में कहा था कि वह नहीं चाहतीं कि उनका भविष्य घर की चहारदिवारी, खाना पकाने और बच्चों को जन्म देने तक ही सिमट कर रह जाए।
आम लड़कियों की ही तरह है मलाला
मलाला भले ही आज नोबेल पुरस्कार विजेता बन चुकी हों और दुनिया भर में लोग उन्हें पहचानते हों लेकिन वह भी बाकी लड़कियों की ही तरह हैं। बर्मिघम के एक स्कूल में मलाला अपनी पढ़ाई कर रही हैं। उनकी मानें तो उन्हें भी अपने होमवर्क की चिंता होती है और उन्हें अपने पुराने स्कूल के दोस्तों की याद आती है।
पाक की बेरुखी
आज मलाला भले ही पाक का गौरव बन गई है लेकिन एक समय ऐसा था जब पाक में पेशावर की सरकार ने मलाला की किताब, 'आय एम मलाला,' को बैन कर दिया था। 28 जनवरी 2014 को खैबर पख्तूनवा सरकार के हस्तक्षेप के बाद पेशावर की यूनिवर्सिटी ने इसका लांच फंक्शन कैंसिल कर दिया।