
मलाला के सिर पर तालिबान ने मारी थी गोली, सुनिए अब उन्होंने क्या कहा?
नई दिल्ली, 17 अगस्त: अफगानिस्तान में राष्ट्रपति राष्ट्रपति अशरफ गनी के देश छोड़कर भाग जाने के बाद सत्ता तालिबान के हाथ में आ गई है। पूरे देश पर तालिबान के कब्जे के बाद हजारों लोग किसी तरह से अफगानिस्तान छोड़ने के लिए परेशान हैं। इस पूरे हालात को लेकर नोबल पुरस्कार विजेता मलाला यूसुफजई ने चिंता जाहिर की है। 2012 में तालिबान के हमले का शिकार हो चुकीं मलाला ने अपने बयान में कहा है कि ये एक बहुत बड़ा मानवीय संकट है और दुनिया के दूरे देशों को मदद के लिए आगे आते हुए अफगान शरणार्थियों के लिए अपनी सीमाएं खोल देनी चाहिए।

मैंने इमरान खान को लिखा है खत
मलाला ने कहा, आज दुनिया में बराबरी और साइंस की बात हो रही है लेकिन इसी समय में एक देश सैकड़ों साल पीछे धकेला जा रहा है। हम इसे चुप रहकर नहीं देख सकते। खासतौर से महिलाओं, लड़कियों, अल्पसंख्यकों को बचाने के लिए दुनिया को कुछ करना होगा। मलाला ने कहा, मैंने पाक पीएम इमरान खान से अपील की है कि वो बेघर हुए लोगों के लिए बॉर्डर खो दें। साथ ही बच्चियों की तालीम का भी इंतजाम करें ताकि उनका भविष्य बर्बाद ना हो। उन्होंने कहा कि वो ब्रिटिश पीएम से भी मिलना चाहती थीं लेकिन उनसे बात नहीं हो सकी।
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ये अफगानिस्तान नहीं, पूरी दुनिया का मामला
मलाला ने कहा है कि मानवाधिकारों की रक्षा के लिए अफगानिस्तान को लेकर कदम उठाया जाना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि विश्व की शान्ति के लिए भी येजरूरी है। मलाला ने अपने एक ट्वीट में लिखा है, तालिबान जिस तरह से अफगानिस्तान में कब्जा जमाया है, उससे हम सब हैरत में हैं। मुझे महिलाओं और अल्पसंख्यकों की काफी ज्यादा चिंता है। हर छोटे-बड़े देश से अपील है कि अफगानिस्तान में तुरंत सीजफायर करवाया जाए और शरणार्थियों और आम लोगों को भी सुरक्षित बाहर निकाला जाए।
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2012 में मलाला पर हुआ था हमला
24 साल की नोबेल शांति पुरस्कार विजेता मलाला यूसुफजई पाकिस्तान के पेशावर से हैं। उनको 2012 तालिबान आतंकी ने सिर में गोली मार दी थी, जब वो स्कूल जा रही थीं। इसके बाद उनको ब्रिटेन लाया गया था। ब्रिटेन में लंबे समय तक इलाज कराने के बाद वे ठीक हो पाईं और तब से पाकिस्तान से बाहर ही रह रही हैं। मलाला ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से दर्शनशास्त्र, राजनीति और अर्थशास्त्र में डिग्री हासिल कर चुकी हैं। उन्हें 2014 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। वह सबसे कम उम्र की नोबेल पुरस्कार विजेता हैं। मलाल को एक मुखर मानवाधिकार कार्यकर्ता के तौर पर पहचाना जाता है। खासतौर से लड़कियों की शिक्षा और महिलाओं के मुद्दों को लेकर वो काम कर रही हैं।