
यहां है 'Lilliput' का गांव, रहस्य जानकर होश उड़ जाएंगे आपके
तेहरान, 12 जुलाई : विज्ञान की बदौलत लोगों को दुनिया बेशक छोटी लगती हो, लेकिन इसकी विशालता का आप अंदाजा नहीं लगा सकते हैं। धरती के बारे में जितना भी आप सोचेंगे, उतना ही उलझते चले जाएंगे। हम आज आपको एक अनोखे गांव के बारे में बताएंगे, जिसके बारे में आप सुनकर हैरत में पर जाएंगे और कह उठेंगे, क्या वाकई में दुनिया में ऐसा भी कोई विलेज है ? आपने ईरान के पूर्वी क्षेत्र तेहरान का नाम तो सुना ही होगा, यहां अफगानिस्तान की सीमा से सटे एक छोटा सा गांव है, जिसका नाम मखुनिक है (Makhunik a area of Iran mysterious village of little people)। लोग इसे रहस्यमयी गांव कहते हैं।

लिलिपुट का गांव
इस गांव की खासियत यह थी कि यहां के लोग बौने होते थे। इसलिए इस गांव को लिलिपुट गांव के नाम से लोग जानते हैं। बता दें कि, ये गांव पूर्वी ईरान में स्थित है। जानकारी के मुताबिक, लगभग एक सदी पहले तक अफगानिस्तान की सीमा से करीब 75 किमी पश्चिम में 1 हजार 500 साल पुराने गांव मखुनिक के कुछ निवासियों की लंबाई केवल एक मीटर थी जो उस समय की औसत लंबाई से लगभग 50 सेमी कम थी। 2005 में यहां से एक ममी मिली थी, जिसकी लंबाई मात्र 25 सेमी थी। इस नई खोज ने हमें यह बताया कि ईरान के सुदूर मखुनिक समेत 13 गांव कभी प्राचीन बौनों का शहर हुआ करता था।

तेहरान में रहते थे बौने लोग
दक्षिण खुरासान प्रांत की राजधानी बिरजंद से 143 किमी दूर स्थित, मखुनिक गांव की घरेलू वास्तुकला में घर के तंग दरवाजे, असाधारण रूप से कम ऊंचाई वाले घरों की विशेषता रही है। यहां लोग बिना झुके घर में प्रवेश ही नहीं कर सकते है।गांव की अनूठी वास्तुकला और इसकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि अभी भी पर्यटन विकास की मार झेल रहा है। यहां पर्यटन का विकास नहीं होने के कारण कई लोगों को इस गांव के बारे में जानते तक नहीं हैं।

कुपोषण के कारण नहीं बढ़ी लंबाई
जानकार बताते हैं कि, मखुनिक गांव में लोगों की लंबाई नहीं बढ़ने की मुख्य वजह कुपोषण था। इसका मुख्य कारण यह था कि इस सूखे क्षेत्र में जानवारों को पालना मुश्किल था, खाने -पीने के लिए लोग काफी संघर्ष करते रहे होंगे। यहां सिर्फ खजूर और कुछ पेड़ ही पाए जाते हैं। शोधकर्ताओं ने यह निष्कर्ष एक बच्चे की ममी से निकाला था, जिसकी मृत्यु 400 साल पहले हुई थी। जानकार बताते हैं कि, मखुनिक के लोगों की लंबाई न बढ़ने में कुपोषण सबसे बड़ा कारण रहा होगा।

अब मिल रहा चिकन और चावल
कभी कुपोषण का शिकार रहा यह गांव आज हरा-भरा है। लोगों को भरपूर पोषण मिल रहा है। 20वीं सदी के मध्य में यहां कम्यूनिकेशन का विस्तार हुआ और लोगों तक पर्याप्त मात्रा में पोषणयुक्त भोजन पहुंचना शुरू हुआ और धीरे-धीरे लोगों की शारीरिक बनावट बदलने लगी। आज यहां के लोग चिकन और चावल खाते हैं। अब यहां कई लोगों की लंबाई औसत लंबाई के बराबर है। हालांकि, अभी भी कुछ बौने कद के लोग आपको देखने को मिल जाएंगे।
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(फोटो सौ. सोशल मीडिया)