क्या यह सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस सलमान के हनीमून का अंत है
सऊदी में अफ़वाहों का बाज़ार गर्म है कि इस्तांबुल में जो हुआ वो क़तर और तुर्की की ओर से सऊदी को बदनाम करने के लिए एक साज़िश है. लेकिन सवाल ये भी उठ रहा है कि क्या 33 वर्षीय प्रिंस जिसे एक बार सऊदी अरब के दूरदर्शी उद्धारकर्ता माना जा रहा था, अब भी वैसे ही हैं?
सऊदी यमन में एक ग़ैरज़रूरी युद्ध का हिस्सा है. वह पड़ोसी क़तर के साथ एक ऐसे विवाद में उलझा हुआ है जो देश को नुक़सान पहुंचा सकता है.
अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने पहले विदेशी दौरे के लिए सऊदी अरब को चुना था तो यहां के ज़्यादातर नागरिकों में ख़ुशी की अनुभूति थी.
पिछले साल मई महीने में ट्रंप एयर फ़ोर्स वन के विमान से रियाद पहुंचे थे. ट्रंप जब सऊदी पहुंचे तो उन्होंने अपने पूर्ववर्ती बराक ओबामा की मध्य-पूर्व की नीतियों को पूरी तरह से किनारे रख दिया था. ट्रंप को हमेशा से लगा है कि ओबामा ने ईरान के साथ परमाणु समझौता कर ग़लत किया था.
डोनल्ड ट्रंप ने अपनी विदेश नीति में मध्य-पूर्व को सबसे आगे रखा. ट्रंप ने यमन में युद्ध के कारण हथियारों के सौदे पर ओबामा कार्यकाल में लगाई पाबंदी को ख़त्म कर दिया.
मानवाधिकारों पर उपदेशों से भी उन्होंने ख़ुद को अलग रखा. इसके बदले सऊदी प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने भी व्हाइट हाउस, अमरीकी ख़ुफ़िया एजेंसी पेंटागन और हॉलीवुड का दौरा किया. इसके अलावा युद्ध विरोधी प्रदर्शनों के बीच उनका लंदन में भी स्वागत किया गया.
सऊदी अरब की घरती पर भी इस दौरान कुछ बेहतर आधुनिकता की ओर बढ़ने वाले सुधार किए गए, जिसमें महिलाओं को गाड़ी चलाने का अधिकार, इंटरटेनमेंट के लिए कई नियम उदार बनाए गए और धार्मिक पुलिस की शक्ति कम की गई.
इस बीच सऊदी ने अपनी उस महत्वकांक्षी योजना का भी ऐलान किया, जिसमें आय के सबसे बड़े स्त्रोत तेल व्यापार से अलग रेगिस्तान में 500 अरब डॉलर की लागत से भविष्य के शहर का निर्माण करने की बात कही.
ये क़दम तेल पर देश की निर्भरता कम करने के उद्देश्य से उठाया गया. पिछले साल रियाद में हुए अंतरराष्ट्रीय निवेश सम्मेलन के उद्धाटन कार्यक्रम में दुनियाभर के देश सऊदी अरब भी पहुंचे.
सऊदी अरब में काफ़ी कुछ बदल रहा है, लेकिन इन सब के बीच कई ऐसी घटनाएं हैं जो इस बात के संकेत देती हैं कि प्रिंस मोहम्मद बिन-सलमान एक उदार सुधारक नहीं हो सकते.
ऐसी ही एक घटना है जब उन्होंने दर्जनों प्रिंस और व्यापारियों को भ्रष्टाचार के आरोप में एक आलीशान होटल में बंद कर दिया था.
इतना ही नहीं उन्होंने लेबनान के प्रधानमंत्री साद हरीरी से कथित तौर पर इस्तीफ़ा मांगते हुए उन्हें कुछ वक़्त के लिए नज़रंबद कर दिया था.
प्रिंस सलमान ने ये भी आदेश दिया था कि उनके सुधार पर सवाल उठाने वाले हर शख़्स को जेल भेज दिया जाए. यदि कोई ट्वीट भी इस सुधार के विरोध में किया जाता है तो भी उसकी गिरफ़्तारी के आदेश दिए गए.
सऊदी के जाने-माने पत्रकार जमाल ख़ाशोज्जी तुर्की में अंकारा स्थित सऊदी वाणिज्य दूतावास से दो अक्टूबर से ग़ायब हैं. अभी तक इसके सबूत नहीं मिले हैं कि वो दूतावास से ज़िंदा बाहर निकले थे.
इसे लेकर दुनिया भर में प्रिंस सलमान पर सवाल उठ रहे हैं. सऊदी के क़रीबी डोनल्ड ट्रंप भी कह रहे हैं कि अगर इस मामले में सऊदी अरब की ग़लती साबित हो जाती है तो 'कड़ी सज़ा' मिलनी चाहिए.
दूसरी तरफ़ सऊदी अरब का कहना है कि ख़ाशोज्जी दूतावास से तत्काल बाहर निकल गए थे. अमरीका और सऊदी के आपसी हित जुड़े हुए हैं. दोनों देशों के बीच अरबों डॉलर का हथियार सौदा है.
सऊदी में अफ़वाहों का बाज़ार गर्म है कि इस्तांबुल में जो हुआ वो क़तर और तुर्की की ओर से सऊदी को बदनाम करने के लिए एक साज़िश है. लेकिन सवाल ये भी उठ रहा है कि क्या 33 वर्षीय प्रिंस जिसे एक बार सऊदी अरब के दूरदर्शी उद्धारकर्ता माना जा रहा था, अब भी वैसे ही हैं?
सऊदी यमन में एक ग़ैरज़रूरी युद्ध का हिस्सा है. वह पड़ोसी क़तर के साथ एक ऐसे विवाद में उलझा हुआ है जो देश को नुक़सान पहुंचा सकता है. प्रिंस सलमान ने दर्जनों लोगों को होटल में बंद करने के बावजूद कनाडा से मानवाधिकार के मुद्दे पर उलझ चुका है. ऐसे में अपनी रूढ़िवादी नीति के लिए सऊदी परेशानी में फंस सकता है.
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