डिस्काउंट पर तेल बेचकर क्या रूस ने भारत को मूर्ख बनाया? पुतिन से दोस्ती में हुआ बड़ा नुकसान!
अगर भारत रूस के साथ रुपया-रूबल ट्रेड ट्रांजेक्शन में शामिल हो जाता है, तो फिर चीन अपनी करेंसी को लेकर आने वाले वक्त में भारत पर प्रेशर बनाएगा। ऐसा इसलिए, क्योंकि रूस ने जो काम यूक्रेन में किया है, वही काम तो चीन भी करेगा
मॉस्को, अगस्त 25: यूक्रेन पर आक्रमण करने के कुछ दिनों के बाद अमेरिका और उसके सहयोगियों के सख्ततम प्रतिबंधों से बचने के लिए रूस ने अचानक भारत को भारी छूट पर तेल निर्यात करने की घोषणा कर दी और भारत ने अपने पश्चिमी सहयोगियों की आपत्तियों को पूरी तरह से नजरअंदाज करते हुए रूस से भारी डिस्काउंट पर ऊर्जा का आयात करना शुरू कर दिया। भारत ने पिछले पांच महीनों में रूस से कितना तेल खरीदा है, इसका अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं, कि जो रूस भारत को तेल निर्यात करने में 10वें नंबर पर हुआ करता था, वो अब इराक के बाद दूसरे नंबर पर आ पहुंचा है। लेकिन, क्या रूस डिस्काउंट पर तेल बेचकर भारत को मूर्ख बना रहा है? क्या रूस जो तेल भारत को भारी छूट पर देने का दावा करता है, क्या असल में वो डिस्काउंट है भी? आइये समझने की कोशिश करते हैं, भारत के रूस से तेल खरीदने का असल सच...
रूसी तेल पर भारत के साथ बड़ा खेल
भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने रूस से तेल आयात करने को भारत का संप्रभु अधिकार बताया और उन्होंने पश्चिमी मीडिया को आईना भी दिखाया, कि खुद यूरोप सबसे ज्यादा रूसी तेल का आयात करता है। अमेरिका ने हालांकि भारत के रूस से तेल आयात को अपने प्रतिबंधों का उल्लंघन तो नहीं माना, लेकिन अमेरिका इसको लेकर कई बार नाराजगी जाहिर कर चुका है, लेकिन भारत ने अमेरिकी नाराजगी को सिरे से खारिज कर दिया। लेकिन, अब जो नया एंगल निकलकर सामने आया है, उससे पता चलता है, कि रूस से तेल खरीदकर भारत अपना भारी आर्थिक नुकसान तो कर ही रहा है, इसके साथ साथ भारत अपना रणनीतिक नुकसान भी कर रहा है। अब सवाल उठ रहे हैं, कि क्या भारत ने रूस से भारी मात्रा में तेल खरीदकर नजदीकी फायदा उठाने के चक्कर में अपने दीर्घकालिक फायदे का गंभीर नुकसान कर दिया है?
रूस के ऑफर का मतलब समझिए
दरअसल, रूस ने भारत को डिस्काउंट पर तेल बेचने का ऑफर तो जरूर दिया, लेकिन वो ऑफर डॉलर में नहीं था। यानि, मान लीजिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल की कीमत 130 डॉलर प्रति बैरल है और रूस ने भारत को 80 डॉलर प्रति बैरल का ऑफर दिया है, तो भारत को इसका पेमेंट डॉलर में नहीं, बल्कि रूसी करेंसी रूबल में करना था। लिहाजा इसका सीधा असर रुपये पर पड़ा और राष्ट्रपति पुतिन ने अपने रूबल को तो संभाल लिया, लेकिन रुपया डॉलर के मुकाबले गिनने लगा और 80 के करीब पहुंच गया। वहीं, भारत अपनी जरूरत का 80 प्रतिशत से ज्यादा तेल दूसरे देशों से खरीदता है और इस साल जनवरी और फरवरी महीने में भारत ने रूस से कोई तेल आयात नहीं किया, लेकिन उसके बाद के महीनों में भारत ने पिछले साल जनवरी 2021 के मुकाबले 10 गुना ज्यादा तेल खरीदा। वहीं, दूसरी तरफ अमेरिका का कहना है, कि भारत के तेल आयात की वजह से रूस को अपना युद्ध जारी रखने में मदद मिलेगी, लिहाजा अमेरिका पर कुछ व्यापारिक प्रतिबंध लगाने की धमकी दे रहा है, लेकिन भारत का कहना है, कि आपको अगर प्रतिबंध लगाना है, तो लगा दीजिए, हमें फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि आपका असल दुश्मन चीन है, और चीन को अगर आपको रोकना है, तो आपका काम हम ही देंगे।
जियोपॉलिटिक्स में हो रहा है बड़ा गेम
जब जो बाइडेन राष्ट्रपति का चुनाव लड़ रहे थे, तो उन्होंने जोश जोश में कह दिया था, कि अगर वो राष्ट्रपति बने, तो मानवाधिकारों को कुचलने वाले सऊदी अरब का वो इलाज करेंगे। लेकिन, चुनाव जीतने के बाज जियोपॉलिटिक्स ने ऐसा टर्न लिया, कि सऊदी अरब के सामने गिड़गिड़ाने खुद राष्ट्रपति जो बाइडेन पहुंच गये और उनके जोश का सारा नशा उतर चुका था। जो बाइडेन सऊदी क्राउन प्रिंस को मनाने गये थे, कि वो तेल का प्रोडक्शन बढ़ाएं, लेकिन प्रिंस सलमान ने ऐसा करने से इनकार कर दिया, लिहाजा तेल की कीमतों में लगातार इजाफा होता रहा, जिससे सऊदी अरब को काफी फायदा हो रहा है।
भारत के लिए नुकसानदायक कैसे?
दरअसल, भारत रूस से डिस्काउंट पर जो तेल का आयात करता है, वो डॉलर में नहीं, बल्कि रूसी करेंसी रूबल में करता है और रूस ने डॉलर के वैल्यू को मानने से इनकार कर दिया है, लिहाजा अब सवाल ये उठ रहे हैं, कि आखिर रूबल का वैल्यू तय कैसे होगा? ये बात तो सही है, कि रूस भारत को डिस्काउंट पर तेल बेचता है, लेकिन उसे खरीदने के लिए भारत को रूबल में पेमेंट करना होगा, जिसके लिए भारत को रूसी बैंक से रूबल खरीदने होंगे, तो फिर रूबल का असल वैल्यू क्या होगा, ये कैसे तय होगा? तो फिर टेक्निकली देखा जाए, तो ये भारत ये लिए घाटे का सौदा भी हो सकता है, क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कम ट्रांजेक्शन के चलते रूबल तो कमजोर चल रहा है। चूंकी अंतर्राष्ट्रीय बाजार में रूबल का एक्सचेंज हो नहीं रहा है, तो फिर इसका पता कैसे लगाया जाए, कि रूबल की असल वैल्यू कितनी है? रूसी शेयर मार्केट को इसी महीने खुले हैं और बाजार खुलने से पहले ही अंतर्राष्ट्रीय निवेशकों, खासकर अमेरिका और पश्चिमी देशों के निवेशकों को बाहर कर दिया गया है, ताकि रूसी बाजार से पश्चिमी निवेशक पैसे निकाल नहीं पाएं, तो फिर एक तरह से जबरदस्ती रूबल के रेट को रोकने की कोशिश की गई है, क्योंकि जैसे ही निवेशक पैसे निकालेंगे, रूबल का वैल्यू धड़ाम से गिरेगा, लिहाजा इस एंगल से देखा जाए, तो भारत के लिए नुकसान ज्यादा दिख रहा है। वहीं, भारत और रूस के बीच रुपया-रूबल ट्रांजेक्शन को लेकर बात अभी तक चल ही रही है और किसी नतीजे पर नहीं पहुंचा जा सका है।
अगर रूबल-रुपया ट्रांजेक्शन हो तो?
हालांकि, भारत और रूस के बीच अपनी अपनी करेंसी में ट्रांजेक्शन करने की बातचीत चल रही है, लेकिन बात अभी तक असली अंजाम तक नहीं पहुंच पाई है। वहीं, अगर इस ट्रांजेक्शन पर गौर करें, तो ये पहली नजर में देखने में काफी अच्छा विकल्प दिखाई देता है, लेकिन हकीकत कुछ और ही है। रुपया-रूबल ट्रांजेक्शन के तहत होगा ये, कि भारत रूस से जो सामान खरीदेगा, उसका पेमेंट वो रूबल में करेगा, जबकि रूस भारत से जो सामान खरीदेगा, उसका ट्रांजेक्शन वो रुपये में करेगा। लेकिन, दिक्कत ये है, कि इसमें मुनाफे में वो देश रहेगा, जो कम सामान खरीदता है और भारत-रूस व्यापार पर नजर डालें, तो भारत रूस के मुकाबले दोगुना सामान खरीदता है। यानि, अगर इस ट्रांजेक्शन सिस्टम के हिसाब से भी चला जाए, तो नुकसान में भारत ही रहेगा। यानि, इस ट्रेड सिस्टम से हम ट्रेड बैलेंस को प्राप्त नहीं कर सकते हैं और इसका सबसे बड़ा नुकसान ये होगा, कि भारत अंतर्राष्ट्रीय करेंसी सिस्टम को दरकिनार कर रहा होगा, क्योंकि अब इस सिस्टम में चीन अपनी करेंसी युआन को तेजी से लाने की दिशा में आगे बढ़ चुका है।
...तो फिर चीन बढ़ाएगा प्रेशर?
अगर भारत रूस के साथ रुपया-रूबल ट्रेड ट्रांजेक्शन में शामिल हो जाता है, तो फिर चीन अपनी करेंसी को लेकर आने वाले वक्त में भारत पर प्रेशर बनाएगा। ऐसा इसलिए, क्योंकि रूस ने जो काम यूक्रेन में किया है, वही काम तो अब चीन भी ताइवान में करने जा रहा है और जाहिर सी बात है, ताइवान पर आक्रमण के साथ ही अमेरिका और सहयोगी देश चीन पर प्रतिबंध लगाना शुरू कर देंगे और फिर चीन भी भारत समेत तमाम उन देशों को अपनी करेंसी में ट्रेड करने के लिए कहेगा, जो उसकी लोकल करेंसी है, यानि युआन। तो फिर ऐसे में भारत क्या करेगा, क्योंकि वो पहले ही रूस के साथ रुपया-रूबल ट्रेड में जाकर अंतर्राष्ट्रीय डॉलर सिस्टम को बाइपास कर चुका है? और अगर भारत ऐसा करता है, तो फिर इसका सीधा फायदा चीन को होगा, क्योंकि वो कई और देशों के साथ ऐसा करेगा और चीन की जो कोशिश ग्लोबल पावर बनने की है, वो और भी ज्यादा मजबूत हो जाएगी और इसका इस्तेमाल चीन भारत के ही खिलाफ करेगा। यानि, रूस से तेल खरीदना भारत को इस लिहाज से भी आगे चलकर भारी पड़ने वाला है, भले ही आज की तारीख में ये फायदेमंद दिख रहा हो।
क्या भारत को होगा दीर्घकालिक नुकसान?
अगर भारत अलग अलग देशों के साथ लोकल करेंसी में ट्रांजेक्शन करता है और डॉलर को साइडलाइन करता है, तो फिर भारत का अंतर्रष्ट्रीय ट्रेड प्रभावित होगा, क्योंकि दुनिया के ज्यादातर देश डॉलर में ही ट्रेड करते हैं और भारत का लोकल करेंसी में ट्रांजेक्शन इसे बाइपास करेगा, लिहाजा डॉलर को लेकर जो एक कॉमन फैक्टर है, उसे नुकसान होगा। वहीं, जियोपॉलिटिक्स के नजरिए से भी रूस के साथ व्यापार में रॉकेट साइज उछाल, अमेरिका को काफी नाराज कर रहा है और आने वाले वक्त में अमेरिका इसका 'बदला' भी ले सकता है। इसमें कोई शक नहीं, कि भारत किसी भी देश के साथ व्यापार को बढ़ाने और घटाने के लिए स्वतंत्र है, लेकिन इस बात को भी ध्यान में रखना काफी जरूरी है, कि भारत का दीर्घकालिक हित किस चीज में है, रूस के साथ सारी सीमाओं को तोड़ते हुए ट्रेड को बनाए रखने में या फिर अमेरिका को नाराज नहीं करने की, क्योंकि चीन और रूस जिस तरह से करीब आए हैं, अब रूस के लिए भारत के समर्थन में पहले की तरफ खड़ा रहना, नामुमकिन सरीखा हो गया है।
Book of the Dead : आत्मा को रास्ता दिखाने वाली मिस्र की रहस्यमयी किताब, जो गुप्त मंत्रों से भरा है