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चीन की राजनीति में चरम पर पहुंची गुटबाजी, शी जिनपिंग को राष्ट्रपति बनने से रोक सकते हैं ये नेता

लोकतांत्रिक देशों की राजनीति में जब कलह मचती है, तो वो दुनियाभर की अखबारों की सुर्खियां बनती हैं, लेकिन चीन दिखाने की कोशिश में रहता है, कि उसकी राजनीति में कोई मतभेद नहीं होता है। लेकिन असलियत काफी अलग है...

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बीजिंग, जनवरी 08: शी जिनपिंग जब से चीन की राजनीति में शीर्ष पर पहुंचे हैं, तब से वो अकेले ही चीन का चेहरा बने हुए हैं और ऐसा लगता है कि, चीन की राजनीति में एक स्थिर पानी की तरह है, जिसमें सिर्फ एक मगरमच्छ है और जो पूरी तरह से एकजुट है, लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। चीन की कम्युनिस्ट पार्टी कई भागों में विभाजित हो चुकी है और इसीलिए चीन में 'सोवियत संघ के विघटन' पर स्टडी की जा रही है, ताकि चीन को भविष्य में टूटने से रोका जा सके। लेकिन, सवाल ये है कि, क्या शी जिनपिंग इस साल अपनी सत्ता बचा पाएंगे और चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की वो सच्चाई, जिसे उसने दुनिया से छिपा कर रखा हुआ है, क्या वो बेनकाब हो पाएगी?

कम्युनिस्ट पार्टी में चरम पर गुटबाजी

कम्युनिस्ट पार्टी में चरम पर गुटबाजी

भारतीय खुफिया एजेंसी रॉ के पूर्व अधिकारी विक्रम सूद और रिसर्च स्कॉलर शांतनु रॉय चौधरी ने चाणक्य फोरम में लिखे एक लेख में चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के अंदर चरम पर पहुंच चुकी गुटबाजी को लेकर लिखा है कि, आज चायनीज कम्युनिस्ट पार्टी की राजनीति पर हावी होने वाले दो गुट हैं। एक गुट है कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव और देश के राष्ट्रपति शी जिनपिंग का गुट और दूसरा गुट है चीन के पूर्व राष्ट्रपति जियांग जेमिन और उनके डिप्टी जेंग किंगहोंग के नेतृत्व वाले समूह का, और इनके समूह को अक्सर "शंघाई गिरोह" कहा जाता है। कम्युनिस्ट पार्टी के अंदर जियांग गुट का प्रभाव भी अच्छा खासा है और शी जिनपिंग, जिनके इस साल देश में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव में फिर से चुने जाने की पूरी संभावना है, उनके रास्ते को रोक सकते हैं।

कम्युनिस्ट पार्टी का कलह आएगा सामने?

कम्युनिस्ट पार्टी का कलह आएगा सामने?

विश्व में जितने भी लोकतांत्रिक देश हैं, हर देश की राजनीति में तुफान मचा रहता है। चाहे वो अमेरिका हो, भारत हो, फ्रांस हो या ब्रिटेन हो या फिर पाकिस्तान ही क्यों ना हो। इन सभी देशों की राजनीतिक कलह दुनियाभर के अखबारों की सुर्खियों में होते हैं, लेकिन चीन की राजनीति में क्या होता है, इसकी खबर किसी को नहीं मिल पाती है और चीन की घरेलू राजनीति में जो चलता रहता है, उसका अनुमान भी आसानी से नहीं लगाया जा सकता है। क्योंकि, चीन की राजनीति में विरोध करने वाला बहुत जल्दी 'शिकार' बन जाता है और शी जिनपिंग भी अपने विरोधियों को ठिकाने लगाते आए हैं और अभी भी कई ऐसे कदम उठा रहे हैं और अगर वो अपने विरोधी खेमे को खामोश रखने में कामयाब हो जाते है, तो फिर उनका राष्ट्रपति बनना तय हो जाएगा। (तस्वीर-जियांग जेमिन)

चीन की राजनीति की अंदर की बातें

चीन की राजनीति की अंदर की बातें

चीन की राजनीति नेताओं, राजनीतिक गुटों की चीन के उद्योगपतियों के साथ काफी घनिष्ठ रिश्ता होता है और चीन की राजनीतिक गतिविधियों में ऐसे उद्योगपतियों का काफी महत्वपूर्ण स्थान भी होता है और ये उद्योगपति भी राजनीतिक मंच पर काफी सक्रिय रहते हैं, लेकिन शी जिनपिंग ने ऐसे कई उद्योगपतियों के पर कतरने शुरू कर दिए हैं। खासकर पिछले दिनों चीन में कई कारोबारियों के खिलाफ 'टैक्स चोरी' का आरोप लगाकर जांच बिठा दी गई है और उन उद्योगपतियों को ऑनलाइन स्ट्रीमिंग से बैन कर दिया गया है। चूंकी चीन में भारत जैसे देशों की तरह लोकतंत्र नहीं है, इसीलिए 'आजादी' जैसे बातें करने वाले गायब कर दिए जाते हैं। देश की सरकारी मीडिया ने शी जिनपिंग के इस फैसले को 'कर सुधार' कार्यक्रम कहा, जबकि विशेषज्ञों का कहना है कि, 'शंघाई गैंग' को साफ करने की साजिश की गई है। (तस्वीर- जियांग जेमिन और जेंग किंगहोंग)

विरोधी हो जाते हैं चीन में गायब

विरोधी हो जाते हैं चीन में गायब

लोकतांत्रिक देशों में आजादी की मांग की जाती है, जबकी चीन में पिछले दिनों एक प्रसिद्ध अभिनेत्री झाओ वेई को अचानक सभी ऑनलाइन प्लेटफॉर्स से गायब कर दिया गया। ऐसा माना जाता है, कि अभिनेत्री झाओ वेई चीन के प्रसिद्ध उद्योगपति जैक मा की करीबी हैं और खुद जैक मा पिछले दो सालों से शी जिनपिंग के निशाने पर हैं। जैक मा को लेकर रिपोर्ट है कि, वो पिछले कुछ सालों में 'शंघाई गैंग' की तरफ चले गये हैं, लिहाजा शी जिनपिंग के प्रकोप का सामना कर रहे हैं। हालांकि, जैक मा समेत कई और उद्योगपतियों को काबू में करने में शी जिनपिंग पूरी तरह से कामयाब हुए हैं, लेकिन उन्हें पार्टी के अंदर भारी विरोध का सामना करना पड़ा है।

विरोधियों को निपटाने में हुए कामयाब?

विरोधियों को निपटाने में हुए कामयाब?

पिछले साल नवंबर महीने में चायनीज कम्युनिस्ट पार्टी के छठवें महाधिवेशन का आयोजन किया गया था, जिसमें तीसरा ऐतिहासिक संकल्प प्रकाशित किया गया था, जिसके जरिए ये साफ करने की कोशिश की गई थी कि, शी जिनपिंग के हाथ ही चीन का शासन रहेगा और इस दौरान पार्टी के सभी नेताओं से कहा गया था कि, वो शी जिनपिंग का समर्थन करें। लिहाजा एक्सपर्ट्स का मानना है कि, इसका साफ मतलब है कि, कम्युनिस्ट पार्टी के अंदर गुटबाजी है और उनका विरोध किया गया है। वहीं, संकल्प पत्र को देश के पूर्व राष्ट्रपति और शंघाई गैंग के जियांग जेमिन और हू जिंताओ को समर्पित किया गया है, लिहाजा एक संदेश ये भी है, कि विरोधी गुट का वर्चस्व भी कायम है और भले ही जिनपिंग को फिलहाल समर्थन दे रहे हैं, लेकिन विरोध कभी भी बढ़ सकता है।

पार्टी पर पूरी तरह काबू करने में नाकाम

पार्टी पर पूरी तरह काबू करने में नाकाम

शी जिनपिंग के लिए एक दिक्कत ये भी है कि, विरोधी खेमे के कई बड़े नेता पार्टी के वरिष्ठ पदों पर अभी भी मौजूद हैं और सरकार में उनकी भी दखलअंदाजी है। जिससे ये साबित हो रहा है, कि 9 सालों तक सत्ता में रहने के बाद भी, विरोधियों को निपटाने के लिए भ्रष्टाचार विरोधी अभियान चलाने के बाद भी शी जिनपिंग अपने राजनीतिक विरोधियों को दरकिनार करने और पार्टी पर उनके प्रभाव को खत्म करने में नाकामयाब रहे हैं। इसके साथ ही विरोधी गुट का पार्टी पर अभी भी कितना प्रभाव है, इस बात का पता इससे भी चलता है कि, नवंबर महीने में हुए अधिवेशन के दौरान पार्टी के प्रस्ताव को पेश करने में काफी देरी हुई, जो पार्टी के अंदर बढ़ी गुटबाजी की तरफ इशारे करता है। लिहाजा एक्सपर्ट्स का मानना है कि, ज्यादा उम्मीद यही है कि शी जिनपिंग ही चीन में फिर से राष्ट्रपति बनेंगे, लेकिन इस बात से इनकार भी नहीं किया जा सकता है, कि विरोधी खेमा जिनपिंग की सत्ता का तख्तापलट कर सकते हैं।

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English summary
High-level factionalism has broken out in the Communist Party of China, which could sabotage Xi Jinping's dream of becoming president for the third time.
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