
पुतिन को हर हाल में जीतना ही होगा युद्ध, चाहे उन्हें परमाणु बम ही क्यों ना चलाना पड़े, जनता मांगे जवाब
Vladimir Putin News: पिछले एक हफ्ते में रूस ने जिस तरह से यूक्रेन पर हमले शुरू किए हैं, उसे देखकर साफ तौर पर कहा जाता जा सकता है, कि ये हमले रूस की बेचैनी, बेबसी और खीझ को दिखाता है। वहीं, ब्रिटिश जीसीएचक्यू के प्रमुख सर जेरेमी फ्लेमिंग ने कहा कि, रूसी लोगों को आखिरकार अपने देश की युद्ध को चुनने का नतीजा दिखाई देने लगा है। युद्ध में लगातार पिछड़ते जा रहे पुतिन की प्रोपेगेंडा मशीनरी इसे विजय बताकर प्रचार-प्रसार कर रही है, लेकिन यूक्रेन का ये युद्ध किसी डरावनी फिल्म की तरह बन गई है, जहां सिर्फ लोग मारे जा रहे हैं। एक इंडिपेंटेड पोलिंग कंपनी लेवाडा सेंटर ने अपने सर्वे में पाया है, कि रूस की 50 प्रतिशत से ज्यादा की आबादी यूक्रेन में अपने देश के 'स्पेशल मिलिट्री ऑपरेशन' को लेकर अब चिंतित हैं, या डरे हुए हैं या फिर अब गुस्से में भरे हुए हैं। वहीं, पुतिन की घेराबंदी भी शुरू हो गई है और माना जा रहा है, कि युद्ध में हार के साथ ही पुतिन का खेल भी खत्म हो जाएगा।

युद्ध को लेकर क्या है रूसियों की राय?
सर्वे के मुताबिक, ज्यादातर रूसी नागरिक युद्ध को झेल रहे हैं और बर्दाश्त करने के लिए मजबूर हो रहे हैं। ज्यादातर रूसी युद्ध को इस समझौते के आधार पर बर्दाश्त कर रहे हैं, कि ये एक तरह का समझौता है, कि हम आपकी राजनीति में दखल नहीं देंगे और रूस आपके हवाले हैं और आपको रूस को फिर से महान बनाना है। पुतिन ने यूक्रेन युद्ध को एक मौके की तरह भुनाने की कोशिश की, ताकि उनकी जनता एक महान शक्ति की तरह महसूस करे और इसे महसूस करना शायद जरूरी भी है, लेकिन अब ज्यादातर रूसी इस बात को महसूस करवने लगे है, कि जवाब देने में उनका पेश पीछे छूट गया है, लेकिन जब पुतिन ने रिजर्व सैनिकों की लामबंदी की घोषणा की, उस दिन पुतिन का 'रूस को महान बनाने का मकसद' पूरी तरह से फेल हो गया और जिस जनता ने खुद को राजनीति से बाहर कर लिया था, उसके लिए राजनीति में बाहर रहना असंभव हो गया।

रूस में कैसी चल रही थी राजनीति?
पुतिन ने सत्ता में आने से पहले से ही लोगों को ग्रेट सोवियत संघ को फिर से एकत्रित करने के ख्वाब दिखाने शुरू कर दिए थे और 'रूस को फिर से महान' बनाने का नारा काफी प्रसिद्ध भी हुआ और जनता ने इसी मकसद के साथ पुतिन को राष्ट्रपति चुना, जिन्होंने सत्ता पर अधिकार जमाने के बाद राजनीतिक स्वतंत्रता को खत्म कर दिया और रूसी लोगों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ा, क्योंकि उन्हें मतलब सिर्फ रूस के आर्थिक विकास से था। रूस में होने वाले चुनावों में पुतिन की पार्टी 90 प्रतिशत से ज्यादा मतों से जीतती रही और अभी भी रूस की राजनीति में कोई दूसरा या तीसरा नहीं है और रूस की राजनीति में किसी दूसरे को पुनर्जीवित करने के प्रयास भी निरर्थक ही हैं, लेकिन यूक्रेन में मिली हार ने पुतिन के उन नेताओं को ही उनके खिलाफ करना शुरू कर दिया है, जो उनके सबसे बड़े समर्थकों में से एक रहे हैं और इस तरह से पुतिन की घेराबंदी भी शुरू हो गई है।

तानाशाह नहीं, हताश हो रहे हैं पुतिन
कई सहयोगियों ने पुतिन पर प्रेशर बनाना शुरू कर दिया, जिनमें चचेन्या नेता रमजान कादिरोव और भाड़े के लड़ाके वैगनर ग्रुप के प्रमुख येवगेनी प्रिगोझिन शामिल हैं, जिनकी जवाब की वजह से पुतिन ने पहले सैनिकों की लामबंदी की घोषणा की और फिर यूक्रेन में नए कमांडर के रूप में सर्गेई सुरोविकिन, जिनका उपनाम "जनरल आर्मगेडन" है, उन्हें नियुक्त किया। लेकिन, पुतिन की ये कोशिशें एक हताश आदमी की कोशिशों की तरह है, जो रूसी अभिजात्य वर्ग के बीच पहली बार कमजोर दिख रहा है और जो अब अपने अधिकारियों को एक तानाशाह की तरह हुक्म देने के बजाए अनुरोध करता भी दिखता है।

पुतिन क्यों दिख रहे हैं बेबस?
महान सोवियत संघ के नाम पर पुतिन ने सालों से दिन वारलॉर्ड्स और दक्षिणपंथी राष्ट्रवादी नेताओं को पाला था और जिन्होंने यूक्रेन युद्ध में लगातार पुतिन का साथ दिया और उनकी हर कार्रवाई का समर्थन किया, वो अब युद्ध में मिल रही हार को पचा नहीं पा रहे हैं और काफी आक्रामक बयानबाजी कर रहे हैं। रूसी राष्ट्रवादी परमाणु युद्ध की बात कर रहे हैं और मीडिया उनके पक्ष में है, तो रूसी नागरिक भी उन्हें पसंद कर रहे हैं, क्योंकि उनका कहना है, कि यूक्रेन युद्ध के इतने महीनों से चलने की वजह से रूसी नागरिक जिन समस्याओं का सामना कर रहे हैं, वो इसलिए नहीं है, कि रूस ने क्रूरता से लड़ाई लड़ी है, बल्कि लोग कई महीनों से इसलिए परेशान हैं, क्योंकि अभी तक रूसी सैनकों ने जिस तरह की लड़ाई लड़ी है, उसमें कुछ भी क्रूरता नहीं है। लिहाजा, रूसी सैनिकों को अब पूरी ताकत के साथ टूट पड़ना चाहिए। ये राष्ट्रवादी रूस के अंदर पुतिन पर 'नरमी' बरतने का आरोप लगा रहे हैं। लिहाजा, रूस में अब एक अलग तरह का प्रोपेगेंडा भी शुरू हो गया है, जो जल्द से जल्द यूक्रेन को टूटा हुआ देखना चाहता है, भले उसके लिए कुछ भी करना पड़ा।

पुतिन के दिखाए सपने टूटे
पुतिन ने रूसियों को जमकर सपने दिखाए और अब वही सपने पुतिन को परेशान कर रहे हैं और वो चाहकर भी यूक्रेन से पीछे नहीं हट सकते हैं। बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, देश की दक्षिणपंथी ताकतें चाहती हैं, कि रूस को अब अपनी पूरी ताकत यूक्रेन में झोंक देनी चाहिए। इन राष्ट्रवादियों में नेशनल डेमोक्रेट्स से लेकर नव नाज़ीवादी राष्ट्रवादी, रूस की मिलिशिया, सैन्य ब्लॉगर्स और डोनबास में रूस समर्थक अलगाववादी नेता और लड़ाके भी शामिल हैं। बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, रशिया टूटे के लिए लिखने वाले एक फीचर राइटर येगोर खोल्मोगोरोव कहते हैं, कि अगर यूक्रेन पर जीत और वैश्विक परमाणु युद्ध के बीच किसी एक का चुनाव करना हो, तो परमाणु युद्ध का चुनाव किया जाएगा। वहीं, रूस में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के पक्षधर रहे एलेक्जेंडर खामोव का मानना है, कि अगर पश्चिमी देशों की मदद से यूक्रेन इस युद्ध को जीत लेता है, तो फिर रूस छोटे-छोटे राज्यों में बिखर जाएगा और रूसी कौम पूरी तरह से खत्म हो जाएगी। यानि, पुतिन के लिए पैर पीछे हटाना अब संभव नहीं है।