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नेपाल में जातिगत आरक्षण खत्म करने की सिफारिश, आयोग ने कहा, योग्यता का होता है नाश, बवाल शुरू

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काठमांडू, 25 अगस्तः नेपाल में एक संवैधानिक आयोग की कमजोर तबकों के लिए आरक्षण खत्म करने की सिफारिश से देश में भारी विवाद शुरू हो गया है। राम कृष्ण तिमलसेना के नेतृत्व में राष्ट्रीय समावेश आयोग ने पिछड़े वर्गों, विकलांगों, बुजुर्गों, किसानों, अल्पसंख्यकों, हाशिए के समूहों, लुप्त हो रहे समुदायों और पिछड़े इलाके के बाशिंदों के लिए मिल रहे आरक्षण को जल्द से जल्द खत्म करने की सिफारिश कर दी है।

7 अगस्त को आयोग ने सौंपी रिपोर्ट

7 अगस्त को आयोग ने सौंपी रिपोर्ट

राष्ट्रीय समावेश आयोग की रिपोर्ट के कई संगठनों द्वारा निंदा की जा रही है। आयोग ने ये रिपोर्ट 7 अगस्त को ही राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी को सौंप दी थी। लेकिन इसकी सिफारिशें अब जाकर सार्वजनिक हुई हैं। आयोग ने यह भी सिफारिश की है कि सरकार को आंतरिक प्रतियोगी परीक्षाओं के माध्यम से पदोन्नति में आरक्षण प्रणाली को समाप्त करना चाहिए और नौकरीशुदा लोगों के प्रोमोशन में किसी भी रूप में आरक्षण का प्रावधान नहीं रहना चाहिए।

योग्यता के लिए घातक है आरक्षण

योग्यता के लिए घातक है आरक्षण

आयोग के अध्यक्ष तिमलसेना ने कहा कि 'आरक्षण समाप्त हो जाना चाहिए' शब्द का अर्थ है कि यह सशक्तिकरण का स्थायी उपाय नहीं हो सकता है और इसे अंततः समाप्त होना चाहिए। तिमलसेना ने कहा कि आरक्षण लंबे समय तक नहीं रह सकता क्योंकि यह योग्यता के लिए घातक है। आरक्षण, योग्यता आधारित चयन को बर्बाद कर देता है। हम चाहते हैं कि आधिकारिता लक्ष्य प्राप्त होने के बाद यह आरक्षण का प्रावधान समाप्त हो जाए।

दो वर्षों से आरक्षण की हो रही थी समीक्षा

दो वर्षों से आरक्षण की हो रही थी समीक्षा

आयोग के सदस्य विष्णु माया ओझा ने द काठमांडू पोस्ट से कहा कि आयोग दो वर्षों से आरक्षण प्रणाली की प्रभावशीलता का अध्ययन कर रहा था। उन्होंने कहा कि आयोग इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि आरक्षण प्रणाली की समीक्षा की जानी चाहिए, क्योंकि इसके ज्यादातर लाभ एक ही परिवार या समूह के लोगों को मिल रहे है। स्वतंत्र पर्यवेक्षकों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने आयोग की इस सिफारिश की आलोचना की है।

सामाजिक कार्यकर्ताओं ने आयोग की आलोचना की

सामाजिक कार्यकर्ताओं ने आयोग की आलोचना की

स्वतंत्र पर्यवेक्षकों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने आयोग की इस सिफारिश की आलोचना की है। इस आयोग का नाम इन्क्लूजन कमीशन (समावेशन आयोग) था। आलोचकों ने कहा है कि अपने नाम के विपरीत आयोग ने एक्सक्लूजन (लाभ से बाहर करने) की सिफारिश कर दी है। राष्ट्रीय दलित आयोग के अध्यक्ष देवराज विश्वकर्मा ने अखबार काठमांडू पोस्ट से कहा- आरक्षण व्यवस्था को कैसे खत्म किया जा सकता है। अभी तो इस व्यवस्था को प्रभावी ढंग से लागू भी नहीं किया गया है।

नेपाल के संविधान में आरक्षण का प्रावधान

नेपाल के संविधान में आरक्षण का प्रावधान

नेपाल के संविधान के अऩुच्छेद 18 (3) के तहत यह प्रावधान है कि नेपाल सरकार किसी के साथ उसके मूल, धर्म, नस्ल, जाति, कबीले, लिंग, आर्थिक स्थिति, भाषा या उसके भौगोलिक संबंध, विचारधारा आदि के आधार पर भेदभाव नहीं करेगी। लेकिन इसी अनुच्छेद में कहा गया है कि कमजोर तबके के लोगों के लिए विशेष उपाय करने का अधिकार उसके पास होगा। इसी प्रावधान के तहत देश में आरक्षण प्रणाली अपनाई गई थी।

'वंचित समुदायों के खिलाफ रची जा रही साजिश'

'वंचित समुदायों के खिलाफ रची जा रही साजिश'

सामाजिक कार्यकर्ताओं ने कहा है कि आयोग की रिपोर्ट प्रतिगामी है। उन्होंने इसे वंचित समुदायों को अवसरों से और वंचित करने की एक साजिश बताया है। इंडिजीनस नेशनलिटीज कमीशन के अध्यक्ष राम बहादुर थापा ने कहा कि ऐसे कई आयोग हैं, जो आरक्षण नीति खत्म करने का विरोध करेंगे। इसलिए सरकार एक आयोग की सिफारिश पर ऐसा कदम नहीं उठा सकती है। वंचित समूह इस सिफारिश के खिलाफ हैँ। इसलिए उसे लागू करने पर समाज में टकराव पैदा होगा।

नेपाल में 2007 से शुरू हुआ आरक्षण

नेपाल में 2007 से शुरू हुआ आरक्षण

नेपाल में आरक्षण नीति 2007 में अपनाई गई थी। कुछ विश्लेषकों ने कहा है कि इन्क्लूजन आयोग के गठन का विचार ही दोषपूर्ण था। इसलिए उसकी रिपोर्ट हैरतअंगेज नहीं है। लॉयर्स एसोसिएशन फॉर ह्यूमन राइट्स ऑफ नेपालीज इंडिजीनस पीपुल्स के सचिव शंकर लिम्बू ने कहा है- 'आयोग का गठन ही दुर्भावनापूर्ण ढंग से हुआ था। उसका मकसद वंचित तबकों के अधिकारों में कटौती था। इसलिए मुझे उसकी रिपोर्ट पर कोई आश्चर्य नहीं हुआ है।

नेपाल में आरक्षण का अनुपात

नेपाल में आरक्षण का अनुपात

नेपाल में राष्ट्रीय समावेश आयोग के गठन के लिए अक्टूबर में एक कानून बनाया गया था। 31 मार्च 2019 से इसने अपना काम शुरू कर दिया। बतादें कि नेपाल में सिविल सेवा अधिनियम के मुताबिक रिक्त पदों में से 70 फीसदी सीटें खुली प्रतियोगिता के माध्यम से भरी जाती हैं जबकि 30 फीसदी सीटें पदोन्नति के माध्यम से भरी जाती हैं। 70 फीसदी सीटों को 100 फीसदी माना जाता है और इनमें से 45 फीसदी सीटें आरक्षित होती हैं। जबकि 55 फीसदी सीटों पर खुली प्रतियोगिता होती है।

पहाड़ी ब्राह्मणों का नौकरी में दबदबा

पहाड़ी ब्राह्मणों का नौकरी में दबदबा

नेपाल में 2011 की जनगणना के मुताबिक 14 फीसदी दलित हैं, जबकि 12.2 फीसदी पहाड़ी ब्राह्मण हैं। लेकिन नौकरियों में कई दशकों से इन पहाड़ी ब्राह्मणों का कब्जा है। लोक सेवा आयोग की 62वीं वार्षिक रिपोर्ट के मुताबिक सामान्य कोटे में से 47.83 सीटों पर पहाड़ी ब्राह्मणों का कब्जा था। सिविल सेवा में भर्ती के लिए आयोग द्वारा अनुशंसित 138 उम्मीदवारों में से 66 पहाड़ी वर्ग से थे।

सुप्रीम कोर्ट ने भी आरक्षण को बताया गलत

सुप्रीम कोर्ट ने भी आरक्षण को बताया गलत

इससे पहले 16 दिसंबर 2020 को सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण पर बहस छेड़ते हुए एक फैसले में कहा कि वर्ग या जाति से अधिक जरूरत को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। कोर्ट ने कहा कि लक्षित समुदायों के कुछ अच्छे समूह इसका खूब फायदा उठा रहे हैं। इस आरक्षण प्रावधान पर फिर से विचार करने की जरूरत है।

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English summary
Controversy over recommendation to end reservation in Nepal, The commission said that there is an obstacle in the progress of the country
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