Climate change: 2022 में कैसे डाल रहा है असर ? पूरी दुनिया में मचा रहा है उथल-पुथल
लंदन, 30 जून: जलवायु परिवर्तन को लेकर जो आशंका जताई जा रही थी, वह सच होने लगी है। पिछले 6 महीनों में ही दुनिया में मौसम ने अपना जो मिजाज दिखाया है, उसने पर्यावरण विज्ञानिकों का दिमाग घुमा दिया है। मौसम की जो भी घटनाएं हो रही हैं, वह अपने कठोर स्वरूप को दिखाने लगी हैं। चाहे गर्मी हो या बारिश या फिर बाढ़। कई जगहों पर सामान्य से बहुत ही ज्यादा होने लगी है। पर्यावरण वैज्ञानिकों ने पिछले 20 साल के डेटा के विश्लेषण के आधार पर बताने की कोशिश की है कि किस तरह से यह संकट हमारे जीवन में उथल-पुथल मचाने लगा है।
जलवायु परिवर्तन की वजह से मौसम का बदल रहा है मिजाज
पूरी दुनिया ने इस साल अबतक मौसम की कई अप्रत्याशित घटनाएं देख ली हैं। कहीं भयानक हीटवेव का सामाना करना पड़ा है तो कहीं असामान्य बारिश ने तबाही मचाई है। मौसम के इस तरह से कठोर रूप दिखाने की वजह से धरती पर हजारों लोगों की जानें इस साल अभी ही जा चुकी हैं और कई लाख लोगों को अपना घर छोड़कर बेघर होना पड़ा है। रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक पिछले तीन महीनों में बारिश के कहर ने बांग्लादेश में तबाही मचायी है तो दक्षिण अफ्रीका और यूरोप के कई हिस्से हीटवेव की चपेट में आए हैं। भारत की बात करें तो असम इस समय भी बाढ़ की तबाही झेल रहा है। वहीं लंबे समय तक सूखे की वजह से पूर्वी अफ्रीका में लाखों लोग अकाल का सामना कर रहे हैं। मौसम की इस बेरहमी पर वैज्ञानिकों का यही कहना है कि जलवायु परिवर्तन की वजह से तो यह होना ही है।
रिसर्च में वैज्ञानिकों को क्या पता चला ?
मंगलवार को पर्यावरण वैज्ञानिकों की एक टीम ने एक जर्नल एनवायरनमेंटल रिसर्च: क्लाइमेट में एक शोध प्रकाशित किया है। इसे इस लिंक पर क्लिक करके देख सकते हैं। जलवायु परिवर्तन ने मौसम को किस तरह से बदला है, इसके लिए शोधकर्ताओं ने पिछले दो दशकों में मौसम की घटनाओं का परीक्षण किया है। इसके नतीजे ने इस बात की पुष्टि की है और साथ ही इस बात की चेतावनी भी दी है कि कैसे ग्लोबल वॉर्मिंग हमारी दुनिया को बदल डालेगा। वेलिंगटन के विक्टोरिया यूनिवर्सिटी के जलवायु वैज्ञानिक और इस स्टडी के को-ऑथर ल्यूक हैरिंगटन ने हीटवेव और अतिवृष्टि को लेकर कहा है, 'हमने पाया कि जलवायु परिवर्तन के कारण इन घटनाओं की तीव्रता कैसे बदल रही है, इसकी हमें बेहतर समझ हो चुकी है।' लेकिन, इसको लेकर अभी भी ज्यादा समझ विकसित करनी है कि जलवायु परिवर्तन जंगल की आग और सूखे को कैसे प्रभावित करता है।
हीटवेव की स्थिति क्या है ?
जहां तक हीटवेव की बात है तो शोध में यह पाया गया है कि इसकी संभावना बहुत ज्यादा है कि जलवायु परिवर्तन के चलते हालात भयावह हो रहे हैं। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के पर्यावरण वैज्ञानिक और इस रिसर्च के को-ऑथर बेन क्लार्क ने कहा, 'दुनिया भर में लगभग सभी हीटवेव को जलवायु परिवर्तन ने ज्यादा तीव्र और अधिक संभावित बना दिया है।' सामान्य रूप से देखें तो पहले हीटवेव की संभावना यदि 10 में से 1 होती थी, तो वह अब तीन हो रही है। यही नहीं बिना जलवायु परिवर्तन की तुलना में तापमान करीब 1 डिग्री ज्यादा हो जा रहा है। वर्ल्ड वेदर एट्रिब्यूशन (डब्ल्यूडब्ल्यूए) के मुताबिक उदाहरण के लिए अप्रैल में हीटवेव के दौरान भारत और पाकिस्तान में पारा 50 डिग्री के ऊपर चला गया तो, इसकी 30 गुना संभावना है कि यह जलवायु परिवर्तन के चलते हुआ है। इसी तरह जून में यूरोप और अमेरिका में भी जो हीटवेव देखने को मिला है, वह भी बहुत ज्यादा है।
बारिश और बाढ़
पिछले हफ्ते भारी बारिश के बाद चीन में भयावह बाढ़ देखी गई। उसी समय बांग्लादेश में भी जलप्रलय की स्थिति पैदा हो गई। असम अभी भी बाढ़ की चपेट में है। कुल मिलाकर भारी बारिश की घटनाएं सामान्य हो गई हैं और अक्सर होने लगी हैं। यह इसलिए कि गर्म हवाएं ज्यादा नमी सोख लेती हैं, जिसके चलते तूफानी बादल भारी हो जाते हैं और फिर बारिश बनकर गिर पड़ते हैं। लेकिन, फिर भी यह सब जगह एक जैसा नहीं होता। कई जगहों पर तबाही मचती है और कुछ जगहों पर बरसात की कमी रह जाती है।
सूखे पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव
सूखे को जलवायु परिवर्तन कैसे प्रभावित करता है, यह पता लगाने में वैज्ञानिकों को बहुत ज्यादा माथा खपाना पड़ा है। कुछ क्षेत्र अभी भी सूखे की चपेट में हैं। शोध के मुताबिक पश्चिमी अमेरिका में गर्म तापमान के चलते बर्फ तेजी से पिघल रहे हैं, जिससे वाष्पीकरण अधिक हो रहा है। लेकन, पूर्वी अफ्रीका के सूखे को अभी भी सीधे जलवायु परिवर्तन से नहीं जोड़ा जा सका है। वैज्ञानिकों का कहना है कि यहां वसंत ऋतु में बारिश में कमी हिंद महासागर में गर्म पानी से जुड़ा है। इसके चलते बादल वहां तक पहुंचने से पहले समुद्र में ही बरस पड़ते हैं।
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जंगल की आग की घटनाओं में बढ़ोतरी
हीटवेव और सूखे की वजह से जंगल में आग लगने की घटनाएं भी बढ़ती जा रही हैं, खासकर इसके चलते बहुत बड़ी आग की घटनाओं में बढ़ोतरी हो रही है, जिसमें 1,00,000 एकड़ से ज्यादा जमीन जल जाती है। अप्रैल में अमेरिका के न्यू मेक्सिको में अत्यधिक सूखे वातावरण में जंगल को नियंत्रित रूप से जलाने की कोशिश अनियंत्रित हो गई और अमेरिकी वन सेवा के मुताबिक इसकी चपटे में 3,41,000 एकड़ के जंगल राख बन गए। (कुछ तस्वीरें- प्रतीकात्मक)