भारत के इन दो पड़ोसी देशों में सैन्य चौकियां बनाना चाहता है चीन, भारत के लिए बढ़ेंगी मुश्किलें
चीन अब पाकिस्तान और अफगानिस्तान में मिलिट्री कैंप बनाना चाहता है। चीन इन दोनों देशों में अपने निवेश की सुरक्षा को लेकर ऐसा कदम उठाने पर विचार कर रहा है।
बीजिंग, 17 अगस्तः चीन अब पाकिस्तान और अफगानिस्तान में मिलिट्री कैंप बनाना चाहता है। चीन इन दोनों देशों में अपने निवेश की सुरक्षा को लेकर ऐसा कदम उठाने पर विचार कर रहा है। दरअसल चीन ने पाकिस्तान और अफगानिस्तान में अपने बेहद महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के हिस्से के रूप में काफी निवेश कर रखा है। अब चीन को अपने निवेश के सुरक्षा की चिंता है। चीन जानता है कि पाकिस्तान की सेना काबिल नहीं है और अफगानिस्तान में तो भक्षक ही रक्षक बने हुए हैं। ऐसे में वह इन दोनों देशों में अपनी सैन्य चौकियां स्थापित करना चाहता है।
पाक-अफगानिस्तान में चीन का है भारी निवेश
शीर्ष राजनयिक सूत्रों से यह जानकारी सामने आयी है। समाचार एजेंसी एएनआई के मुताबिक चीन, पाकिस्तान-अफगानिस्तान मार्ग के माध्यम से मध्य एशिया में अपना प्रभाव का विस्तार करने का इच्छुक है और उसने दोनों देशों में रणनीतिक निवेश किया है। कुछ अनुमानों के आधार पर पाकिस्तान में चीनी निवेश 60 अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक का हो चुका है। पाकिस्तान न सिर्फ अपनी वित्तीय स्थिति बल्कि सैन्य और राजनयिक समर्थन के लिए भी चीन पर बुरी तरह से निर्भर हो चुका है।
पाकिस्तान पर दबाव बना रहा चीन
अपने पक्ष में सत्ता के भारी असंतुलन को देखते हुए चीन ने पाकिस्तान पर उन चौकियों के निर्माण की अनुमति देने का दबाव बनाना शुरू कर दिया है। इन चौकियों पर सशस्त्र चीनी बल तैनात होंगे। अफगानिस्तान जहां तालिबान अभी भी शासन कर रहा है, वह अभी तक चीन की कसौटियों पर खड़ा नहीं उतर पाया है। इस्लामाबाद में शीर्ष राजनयिक और सुरक्षा स्रोत जिन्होंने इस रिपोर्ट के लिए नाम न छापने का अनुरोध करते हुए कहा कि पाकिस्तान में चीनी राजदूत नोंग रोंग ने इस संबंध में प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ, विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो और सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा के साथ बैठकें की हैं।
चीनी राजदूत ने प्रधानमंत्री संग की बैठक
राजदूत नोंग रोंग इस साल मार्च 2022 के अंत से पाकिस्तान में नहीं थे। वह हाल ही में पाकिस्तान आए हैं। हालांकि, जिस बैठक में उन्होंने चीनी सेना के लिए चौकियों के निर्माण की मांग की, वह शायद नई सरकार और राज्य के प्रतिनिधियों के साथ राजदूत रोंग की पहली औपचारिक बैठक थी। सूत्रों के मुताबिक चीनी राजदूत लगातार चीनी परियोजनाओं की सुरक्षा और अपने नागरिकों की सुरक्षा पर जोर देते रहे हैं। इससे पहले चीन ग्वादर में अपने लड़ाकू विमानों के लिए और ग्वादर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे का उपयोग करने के लिए सुरक्षा चौकियों की मांग कर चुका है।
पाकिस्तानी जनता का भड़क सकता है गुस्सा
हालांकि, चीन की मांग को मांग लेने पाकिस्तान में जनता का गुस्सा भड़क सकता है क्योंकि पाकिस्तानी लोग देश में भारी चीनी सैन्य उपस्थिति के साथ सहज नहीं हो पाते हैं। वहीं अफगानिस्तान पर चीन और पाकिस्तान दोनों की अपनी-अपनी चिंताएं हैं। तालिबान के कब्जे के बाद पाकिस्तान और चीन दोनों ही देश से निर्विवाद सहयोग की उम्मीद कर रहे थे। हालांकि, यह पूरी तरह से अमल में नहीं आ सका है। पाकिस्तानियों की सबसे प्रमुख मांगों में से एक यह थी कि वे भारतीयों को अफगानिस्तान से बाहर रखना चाहते थे। लेकिन तालिबान भारत के साथ संबंधों सहित एक स्वतंत्र विदेश नीति के लिए उत्सुक रहा है।
तालिबान से निराश है पाकिस्तान
तालिबान के रक्षा मंत्री मुल्ला याकूब ने भी भारत में सैन्य प्रशिक्षण का सुझाव दिया है। इसके अलावा भी तालिबान ने पाकिस्तान को कई मामलों में निराश ही किया है। पाकिस्तान ने तालिबान से तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान को नष्ट करने और वांछित आतंकवादियों को पाकिस्तानी सेना को सौंपने की मांग की थी। तालिबान ने जल्द ही स्पष्ट कर दिया कि वे इसका पालन नहीं करेंगे। यही वजह है कि पाकिस्तानी सेना को टीटीपी के साथ जटिल संघर्ष विराम वार्ता में शामिल होना पड़ा है। इसके अलावा पाकिस्तान ने हाल के वर्षों में डूरंड लाइन पर काफी खर्च किया और तार की बाड़ खड़ी की थी, लेकिन कुछ ही हफ्तों में तालिबान और टीटीपी ने उन तारों को काट दिया और पाकिस्तान के फाटा क्षेत्र पर अपना दावा जताने लगे।
तालिबान ने चीन से किया वायदा तोड़ा
चीन की अपनी चिंताएं हैं। तालिबान अपने वादे से पलट चुका है और उइगर विद्रोहियों को सौंपने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखा रहा है। बीजिंग में चिंताएं हैं कि उइगर चरमपंथियों ने चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) को कमजोर करने के लिए बलूची समूहों और टीटीपी के साथ सहयोग करना शुरू कर दिया है। विद्रोहियों द्वारा पाकिस्तान के अंदर कई हमले हुए हैं जिनमें चीनी नागरिकों को निशाना बनाया गया है, जिसमें अप्रैल 2021 में क्वेटा में बम विस्फोट भी शामिल है, जिसमें चीनी राजदूत बाल-बाल बचे थे। एक साल बाद, कराची के कन्फ्यूशियस संस्थान के पास एक बलूची आत्मघाती हमलावर ने तीन चीनी नागरिकों को मार डाला था।
चीन ने पाकिस्तान को याद कराया इतिहास
सूत्रों के मुताबिक चीन अपनी परियोजनाओं और वहां के नागरिकों की सुरक्षा के लिए अपने सुरक्षाकर्मी तैनात कर पाकिस्तान में अपनी रणनीतिक भूमिका का विस्तार करना चाहता है। सूत्र ने यह भी कहा कि चीन अफगानिस्तान में निवेश करने का इच्छुक है और अपनी बीआरआई परियोजना का विस्तार करना चाहता है, इसलिए बीजिंग को अपनी सैन्य चौकियों के साथ पाकिस्तान और अफगानिस्तान को सुरक्षित करने की जरूरत है। चीन ने पाकिस्तान को शीत युद्ध के दौरान अमेरिका और अन्य देशों को चौकी देने के अपने इतिहास की याद दिलाई है। वर्तमान में, चीन ने पाकिस्तान में भारी निवेश किया है और समय बीतने के साथ चौकी और सुरक्षा की व्यवस्था की मांग गंभीर होती जा रही है।
बीच मंझदार में फंस गया पाकिस्तान
एक तरफ पाकिस्तान चीन की कर्ज-जाल कूटनीति में फंसा हुआ है, वहीं दूसरी तरफ चीनी प्रशासन उन्हें लगातार याद दिला रहा है कि उन्हें पाकिस्तानी सुरक्षा तंत्र पर भरोसा नहीं है। पाकिस्तान चीन को नाराज नहीं करना चाहता जिससे वह बार-बार आर्थिक मदद लेता है। हालांकि, मांग की स्वीकृति से न केवल इसकी वैश्विक छवि को नुकसान होगा, बल्कि इससे घरेलू जटिलताएं भी हो सकती हैं। कुल मिलाकर पाकिस्तान एक मुश्किल स्थिति में पहुंच गया है जहां वह इन मांगों को माने या ना माने दोनों ही सूरत में उसे परिणाम भुगतना होगा।