भारत के हित की बात: अमेरिका की गर्दन तक पहुंच चुके चीन को लेकर क्या होगा बाइडन का रवैया?
पिछले हफ्ते चीन ने अपनी अर्थव्यवस्था के आंकड़े को जारी करते हुए दावा किया उसकी GDP 3.2% से बढ़ गई है। और अब चीन की अर्थव्यवस्था 16 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर को छूने वाली है, यानि अमेरिका की गर्दन तक चीन पहुंच चुका है...
Biden Inauguration: वाशिंगटन: कुछ घंटे बाद अमेरिका (America) जो बाइडन (Joe Biden) के शासनकाल में पहुंच जाएगा। अभी तक राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप (Donald Trump) अपने विवादास्पद फैसलों और अमेरिकी संसद पर उनके समर्थकों द्वारा किए गये हमलों को लेकर काफी विवाद में रहे। लेकिन, डोनल्ड ट्रंप अपने एक और कदम को लेकर अपने पूरे शासनकाल में काफी सुर्खियों में रहे। और वो था चीन को लेकर बाइडन प्रशासन का सख्त रवैया। आईये समझने की कोशिश करते हैं कि आखिर बाइडन प्रशासन का रूख चीन को लेकर क्या होने वाला है।
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अमेरिका के गले तक पहुंचा चीन
पिछले हफ्ते चीन ने अपनी अर्थव्यवस्था के आंकड़े को जारी करते हुए दावा किया कि कोरोना संक्रमण के दौर में भी उसकी GDP 3.2% से बढ़ गई है। और अब चीन की अर्थव्यवस्था 16 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर को छूने वाली है। अगस्त 2020 तक अमेरिकी अर्थव्यवस्था करीब साढ़े 21 ट्रिलियन डॉलर की थी। कोविड की वजह से अमेरिकी अर्थव्यवस्था बुरी तरह से प्रभावित हुई है। हालांकि, अभी तक इस वित्तवर्ष के आंकड़े नहीं आए हैं, मगर माना जा रहा है कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था करीब 8 प्रतिशत तक गिरेगी। यानि, चीन और अमेरिका की अर्थव्यवस्था में ज्यादा फासला नहीं है। यानि, चीन अमेरिका के गले तक पहुंच चुका है। यानि चीन अब वास्तव में उस स्थिति में पहुंच चुका है, जहां अकेले अमेरिका उसे रोकने की स्थिति में नहीं रहा। रोकना तो दूर की बात है, अब अमेरिका चीन को धमकाने की स्थिति में भी नहीं है। और अमेरिकी धमकियों का असर अब चीन पर क्या पड़ता है, ये हमने ट्रंप के शासनकाल में देख लिया है।
...तो फिर क्या करेगा अमेरिका?
अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडेन चीनी खतरे से वाकिफ हो चुके होंगे। डोनल्ड ट्रंप ने चीन के साथ ट्रेड वार की शुरूआत कर एक्सपोर्ट इम्पोर्ट बैलेंस करने की कोशिश की लेकिन चीन की चतुर नीति से ट्रंप को फायदा नहीं हुआ। हालिया अमेरिकी रिपोर्ट के मुताबिक चीन के साथ अमेरिका का व्यापारिक घाटा और ज्यादा हो चुका है। साथ ही चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने 2035 तक चीनी अर्थव्यवस्था को दोगुना करने का लक्ष्य रखा है। साथ ही स्पेस और आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस क्षेत्र में चीन अमेरिका से काफी आगे निकल चुका है। साथ ही IMF यानि इंटरनेशनल मॉनेट्री फंड ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि चीन के अर्थव्यवस्था का आकार कुछ ही सालों में अमेरिका से बड़ा हो जाएगा। ऐसे में बाइडड प्रशासन के सामने अमेरिकी अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देते हुए चीन के साथ बिजनेस में संतुलन लाना भी महत्वपूर्ण होगा। लिहाजा, अमेरिका के लिए विश्व की तीसरी अर्थव्यवस्था भारत के साथ नजदीकी रिश्ता रखने के अलावा और कोई विकल्प नहीं है। बाइडेन के नेतृत्व में अमेरिका एक बार फिर आर्थिक वैश्वीकरण का चैंपियन बनने की कोशिश करेगा। अगर जो बाइडन अमेरिकी अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने में कामयाब होते हैं तो निश्चित तौर पर इसका फायदा भारत को होगा।
सैन्य शक्ति में चीन की चुनौती
सीमा विवाद को लेकर चीन और भारत की तनातनी पिछले कुछ सालों से काफी ज्यादा बढ़ चुकी है। कई बार स्थिति युद्ध जैसी बन चुकी है। बात अमेरिका की करें तो वर्तमान वैश्विक परिदृश्य में अब अमेरिका के पास भारत का साथ देने के अलावा कोई और विकल्प बचा भी नहीं है। अमेरिका की विदेश नीति अमेरिकन ब्यूरोक्रेट्स ही तैयार करते हैं। और पिछले हफ्ते 2018 में ट्रंप सरकार द्वारा तैयार की गई एक खुफिया रिपोर्ट का खुलासा अमेरिकी वेबसाइट एक्सिओस ने किया है। इस रिपोर्ट में ट्रंप प्रशासन चीन को रोकने के लिए भारत को मिलिट्री, इंटेलीजेंस और पॉलिटिकल सपोर्ट देने की बात की गई है। इसके साथ ही अमेरिका अपनी इंडो-पैसिफिक रणनीति में भारत को आगे बढ़ाना चाहता है, ताकि चीन से मुकाबला किया जा सके। अमेरिका की इस खुफिया रिपोर्ट में वैश्विक रणनीति और सुरक्षा चुनौतियों से निपटने के लिए कई पहलुओं का जिक्र किया गया है। साथ ही कहा गया है कि मजबूत भारत से ही चीन की बढ़ती ताकत को संतुलित किया जा सकता है।
रिपोर्ट में इस बात भी खास तौर पर जोर दिया गया है, कि चीन एशिया में अमेरिका के बढ़ते वर्चस्व और अमेरिकी गठबंधन को खत्म कर खुद सबसे बड़ा खिलाड़ी बनना चाहता है। वहीं, रिपोर्ट में भारत को प्रमुख साथी के तौर पर बताया गया है। माना जा रहा है कि चीन को लेकर बायडेन सरकार की भी कमोबेश यही रणनीति रहने वाली है।
भले नवनिर्वाचित राष्ट्रपति जो बायडेन डोनल्ड ट्रंप की तरह बोलकर चीन पर जुबानी हमला नहीं करे, मगर चीन के खिलाफ आक्रामक रणनीति रखना अमेरिका की अब मजबूरी बन चुकी है। लिहाजा, चीनी फ्रंट पर भारत को अमेरिका का साथ अभी कई सालों तक मिलता रहेगा, ऐसी संभावना जताई जा रही है।
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