नज़रिया: 'किम जोंग उन से मुलाक़ात के लिए डोनल्ड ट्रंप की हाँ के पीछे असल वजह कुछ और'
अमरीका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप उत्तर कोरिया के नेता किम जोंग उन से मई में मुलाक़ात करेंगे.
दक्षिण कोरिया के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार चुंग ईयू योंग ने व्हाइट हाउस में पत्रकारों से कहा कि मई में ट्रंप, कोरियाई शासक किम से मिलेंगे. योंग ने ये भी कहा कि किम जोंग ने भविष्य में परमाणु बम और मिसाइल परीक्षण नहीं करने का आश्वासन भी दिया है.
अमरीका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप उत्तर कोरिया के नेता किम जोंग उन से मई में मुलाक़ात करेंगे.
दक्षिण कोरिया के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार चुंग ईयू योंग ने व्हाइट हाउस में पत्रकारों से कहा कि मई में ट्रंप, कोरियाई शासक किम से मिलेंगे. योंग ने ये भी कहा कि किम जोंग ने भविष्य में परमाणु बम और मिसाइल परीक्षण नहीं करने का आश्वासन भी दिया है.
इस नए एलान से तमाम विश्लेषक हैरान हैं तो कई इसे उत्तर कोरियाई नेता और अमरीकी राष्ट्रपति की 'चालाकी' भी करार दे रहे हैं. उनका मानना है कि कुछ ही महीने पहले तक एक-दूसरे के ख़िलाफ़ ज़हर उगलने वाले ट्रंप और किम जोंग उन कैसे गले मिलने के लिए तैयार हो गए.
हाल में जब दक्षिण कोरिया का एक उच्च स्तरीय प्रतिनिधिमंडल उत्तर कोरिया गया था और इस दौरान दोनों देशों के बीच शिखर वार्ता आयोजित करने पर सहमति बनी थी. उत्तर कोरिया ने अमरीका के साथ बातचीत की पेशकश भी की. तब जापानी प्रधानमंत्री शिंज़ो अबे ने कहा था कि उन्हें उत्तर कोरिया के बदले रुख पर संदेह है. उन्होंने जापानी सांसदों से कहा था कि बातचीत को लेकर उत्तर कोरिया की पहलकदमी दरअसल एक छलावा हो सकती है जिसके जरिए वह ज़्यादा से ज़्यादा समय हासिल करना चाहता है.
उधर, ये भी कहा जा रहा है कि राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप भी अमरीकी मीडिया में उन पर हो रहे निजी हमलों को लेकर परेशान हैं.
अमरीका में डोनल्ड ट्रंप और एक पोर्न स्टार के साथ उनके कथित संबंधों पर सुबह से लेकर शाम तक मीडिया कवरेज हो रहा है.
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बीबीसी संवाददाता वात्सल्य राय ने अमरीका की डेलावेयर यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर मुक़्तदर ख़ान से बातचीत की. मुक्तदर ख़ान का भी मानना है कि राष्ट्रपति ट्रंप ने उत्तर कोरियाई नेता के साथ बातचीत की हामी इसलिए भरी क्योंकि वो मीडिया को नया मुद्दा देना चाहते हैं.
मुक़्तदर ख़ान का नज़रिया
ट्रंप अमरीकी मीडिया में चर्चा का विषय बदलना चाह रहे हैं. अमरीकी मीडिया में पिछले चार दिनों से लगातार एक ही मुद्दा छाया हुआ है और वो है ट्रंप पर यौन संबंधों का आरोप लगाने वाली पोर्न स्टार का.
दरअसल, उत्तर कोरिया को लेकर अमरीका पिछले कुछ समय से लगातार दोहरी चालें चल रहा था. जहाँ एक ओर राष्ट्रपति ट्रंप किम जोंग उन के ख़िलाफ़ सख्त लहजे में बात कर रहे थे और यहाँ तक कि उन्होंने उत्तर कोरिया के ख़िलाफ़ परमाणु बम इस्तेमाल करने की धमकी तक दे डाली थी.
लेकिन साथ ही साथ विदेश मंत्री रैक्स टिलरसन उत्तर कोरिया को लेकर बहुत मुखर नहीं रहे और ख़ास बात ये है कि ये जो घोषणा हुई है वो टिलरसन की ग़ैरमौजूदगी में हुई है. टिलरसन इन दिनों अफ्रीका के दौरे पर हैं.
मैंने कुछ और विश्लेषकों से भी बात की तो उनका भी मानना है कि किम जोंग से मुलाक़ात के इस दांव से ट्रंप मीडिया को अपने एजेंडे में लाना चाहते हैं.
आपको याद होगा कि जिस तरह से तत्कालीन राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने मोनिका लेविंस्की मसले से मीडिया का ध्यान हटाने के लिए सूडान में एक फैक्ट्री पर हमला कर दिया था. बाद में इस दवा फैक्ट्री के मालिक ने इस हमले के लिए अमरीका पर मुकदमा भी किया था और ढ़ाई करोड़ डॉलर का मुआवजा भी हासिल किया.
लेकिन क्लिंटन के इस दांव ने मोनिका लेविंस्की मामले को ठंडा कर दिया था. तो हो सकता है कि ट्रंप का ये दांव भी कुछ उसी तरह का हो.
अगर देखा जाए तो ये उत्तर कोरिया की जीत है. अमरीका ने उत्तर कोरिया को अलग-थलग करने की पूरी कोशिश की, लेकिन वो कामयाब नहीं हो पाए.
दक्षिण कोरिया में विंटर ओलंपिक के दौरान जो नज़ारा दिखा, उससे साफ हो गया कि उत्तर कोरिया ने अपने कूटनीतिक चाल बेहतर तरीके से चली है.
अलग तरह की सौदेबाज़ी
दूसरा ये है कि अगर बातचीत होती भी है तो वो भी एक अलग तरह की सौदेबाज़ी हो सकती है.
उत्तर कोरिया किसी भी सूरत में अपने हथियार नष्ट नहीं करेगा. भारत, पाकिस्तान और इसराइल का उदाहरण सामने हैं और उत्तर कोरिया अच्छी तरह समझता है कि तमाम अंतरराष्ट्रीय बंदिशों के बावजूद परमाणु ताक़त हासिल करने के बाद अब उसे छोड़ा नहीं जा सकता.
इतिहास गवाह है कि जो मुल्क परमाणु ताक़त हासिल कर लेते हैं वो तमाम दबावों के बावजूद इस ओहदे को नहीं खोना चाहते और धीरे-धीरे अंतरराष्ट्रीय बिरादरी भी उन्हें उसी रूप में स्वीकार करने लगती है.
ये हो सकता है कि समझौते के तहत उत्तर कोरिया को कुछ सुविधाएं मिल जाएं, जो अभी तक वो चोरी-छिपे कर रहा है.
मसलन, जैसे उत्तर कोरिया अब भी अपना सस्ता श्रम चीन को बेच रहा है. चीन के 'वन बेल्ट, वन रोड' प्रोजेक्ट में बहुत सारे मजदूर उत्तर कोरिया से हैं. उत्तर कोरिया किसी भी सूरत में उस टेक्नोलॉज़ी को नहीं गंवाएगा जो उसने इतने दबाव में हासिल की हैं. हाँ, वो अमरीका और अंतरराष्ट्रीय बिरादरी को ये भरोसा दिला सकता है कि वो ऐसा काम नहीं करेगा,जिससे दुनिया का ध्यान उसकी तरफ जाए.
ये भी हो सकता है कि उत्तर कोरिया का रुख़ इसलिए भी नरम हो कि उन्हें दक्षिण कोरिया ने किसी तरह की वित्तीय मदद का आश्वासन दिया हो. दक्षिण कोरिया को प्रायद्वीप में तनाव ख़त्म होने का सबसे अधिक फ़ायदा होगा.
जहाँ तक चीन की भूमिका की बात है तो उत्तर कोरिया पर चीन जितना दबाव डाल सकता था, उतना डाल चुका है. चीन को उत्तर कोरिया में अमरीका का दखल पसंद नहीं है और इसलिए वो अपनी भूमिका को समय-समय पर दुनिया के सामने लाता रहा है.
यहाँ डर इस बात का है कि उत्तर कोरिया के परमाणु हथियार नष्ट नहीं करने की स्थिति में कहीं जापान भी परमाणु हथियार बनाना न शुरू कर दे, उसकी तकनीकी दक्षता को देखते हुए ये अंदाज़ा लगाना मुश्किल नहीं है कि वह कुछ ही समय में परमाणु ताक़त हासिल कर सकता है.