ईरान ने कहा, सभी मुस्लिम देश फ़लस्तीनियों की सैन्य और आर्थिक मदद करें
ईरान के सर्वोच्च नेता आयातुल्लाह अली ख़ामेनेई ने दुनिया के सभी मुसलमानों से यह माँग की है कि वो अपनी-अपनी सरकारों से फ़लस्तीनियों का समर्थन करने की अपील करें.
ईरान के सर्वोच्च नेता आयातुल्लाह अली ख़ामेनेई ने सभी मुस्लिम देशों से फ़लस्तीनियों को सैन्य और आर्थिक रूप से समर्थन देने के अलावा ग़ज़ा के पुनर्निर्माण में उनकी मदद करने का आह्वान किया है. ईरानी मीडिया ने ख़ामेनेई के इस बयान को प्रमुखता से जगह दी है.
ख़ामेनेई ने शुक्रवार को, इसराइल और फ़लस्तीनियों के बीच 11 दिन तक चले हिंसक संघर्ष के थमने के बाद यह बयान दिया.
इसराइल के साथ हिंसक संघर्ष के दौरान ईरान ने खुलकर फ़लस्तीनियों का समर्थन किया. ईरान ग़ज़ा-वेस्ट बैंक क्षेत्र में सक्रिय इस्लामिक चरमपंथी समूह हमास का भी समर्थन करता है.
हमास फ़लस्तीनी चरमपंथी गुटों में सबसे बड़ा गुट है जिसके चार्टर में लिखा है कि वो इसराइल को तबाह करने के लिए संकल्पबद्ध है.
हमास के अलावा, ईरान ने कब्ज़े वाले वेस्ट बैंक में फ़लस्तीनी आबादी के नेता मोहम्मद अब्बास का भी समर्थन किया है.
हमास समेत अन्य जिहादी संगठनों ने शुक्रवार को संघर्ष विराम की घोषणा होने से पहले इसराइल पर सैकड़ों रॉकेट दागे थे, हालांकि इसराइली प्रशासन का कहना है कि "इसराइल के आयरन डोम डिफ़ेंस सिस्टम ने चरमपंथियों के अधिकांश रॉकेट हवा में ही मार गिराये."
आयातुल्लाह अली ख़ामेनेई ने अपने ताज़ा बयान में कहा कि "मुस्लिम देशों को बड़ी ईमानदारी से फ़लस्तीनियों की सैन्य और वित्तीय सहायता करनी चाहिए, ताकि वो ग़ज़ा के बुनियादी ढांचे को फिर से खड़ा कर सकें."
आयातुल्लाह अली ख़ामेनेई ने दुनिया के सभी मुसलमानों से यह माँग की है कि वो अपनी-अपनी सरकारों से फ़लस्तीनियों का समर्थन करने की अपील करें.
ख़ामेनेई ने कहा कि "इसराइली शासन के सभी 'प्रभावशाली तत्वों' और दोषी प्रधानमंत्री नेतन्याहू पर अंतरराष्ट्रीय और स्वतंत्र अदालतों द्वारा मुक़दमा चलाया जाना चाहिए."
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'फ़लस्तीनी भाई-बहनों को बधाई'
इसराइल और फ़लस्तीनियों के बीच युद्ध-विराम से पहले ख़ामेनेई ने कहा था कि "यहूदी सिर्फ़ ताक़त की भाषा समझते हैं. इसलिए फ़लस्तीनियों को अपनी शक्ति और प्रतिरोध बढ़ाना चाहिए ताकि अपराधियों को आत्म-समर्पण करने और उनके क्रूर कृत्यों को रोकने के लिए मजबूर किया जा सके."
ख़ामेनेई से पहले ईरान के विदेश मंत्री ने कहा था कि फ़लस्तीनियों ने इसराइल पर एक 'ऐतिहासिक जीत' हासिल की है.
ईरान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता सईद ख़ातिबज़ादेह ने इस संबंध में एक ट्वीट भी किया जिसमें उन्होंने लिखा, "हमारे फ़लस्तीनी भाई-बहनों को इस ऐतिहासिक जीत की बधाई. आपके प्रतिरोध ने हमलावर को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया."
ईरान के रिवॉल्युशनरी गार्ड्स ने भी एक बयान में कहा कि "फ़लस्तीनियों का संघर्ष पत्थरों के इस्तेमाल से शक्तिशाली और सटीक मिसाइलों के प्रयोग तक चला गया है. ऐसे में इसराइल को भविष्य में कब्ज़े वाले क्षेत्रों के भीतर और ज़्यादा घातक वार सहना पड़ सकता है."
हमास के नेताओं और अन्य जिहादी संगठनों ने सैन्य और आर्थिक सहायता देने के लिए कई मौक़ों पर ईरानी प्रशासन की प्रशंसा की है, लेकिन ईरान ने शायद ही कभी खुलकर यह माना है कि वो हमास को हथियारों की आपूर्ति करता है.
हालांकि, पिछले साल सर्वोच्च नेता आयातुल्लाह अली ख़ामेनेई ने ईरान के हथियारों की सप्लाई की सराहना करते हुए ये कहा था कि "ईरान ने इसराइल और फ़लस्तीनियों के बीच सैन्य शक्ति के संतुलन को बदल दिया है."
शुक्रवार को ईरान ने एक देसी लड़ाकू ड्रोन का भी प्रदर्शन किया जिसके बारे में कहा गया है कि वो दो हज़ार किलोमीटर तक मार कर सकता है. ईरान के सरकारी मीडिया के अनुसार, ईरान ने फ़लस्तीनियों के संघर्ष के सम्मान में इस नये ड्रोन का नाम 'ग़ज़ा' रखा है.
इसराइल और हमास, दोनों का जीत का दावा
शुक्रवार को ही इसराइल और फ़लस्तीनी चरमपंथी संगठन हमास के बीच संघर्ष-विराम की ख़बर आयी थी. दोनों ने ही संघर्ष-विराम को अपनी जीत बताया है.
ख़बरों के अनुसार, संघर्ष-विराम के लागू होते ही बड़ी संख्या में फ़लस्तीनी लोग ग़ज़ा में सड़कों पर उतरकर जश्न मनाने लगे थे.
इस बीच हमास ने यह चेतावनी भी दी कि उसके हाथ अभी ट्रिगर से हटे नहीं हैं. यानी वो इसराइली हमले की स्थिति में जवाब देने को तैयार है.
दोनों पक्षों ने 11 दिन की लड़ाई के बाद आपसी सहमति से संघर्ष-विराम का निर्णय लिया. इस दौरान 240 से ज़्यादा लोग मारे गये जिनमें ज़्यादातर मौतें ग़ज़ा में हुईं.
इसराइली कैबिनेट ने आपसी सहमति और बिना शर्त के युद्ध-विराम के फ़ैसले पर मुहर लगा दी थी.
हमास के एक अधिकारी ने भी शुक्रवार को इसकी पुष्टि की थी कि ये सुलह आपसी रज़ामंदी से और एक साथ हुई है.
ग़ज़ा में लड़ाई 10 मई को शुरू हुई थी. इससे पहले इसराइल और फ़लस्तीनी चरमपंथियों के बीच पूर्वी यरुशलम को लेकर कई हफ़्ते से तनाव था.
7 मई को अल-अक़्सा मस्जिद के पास यहूदियों और अरबों में झड़प हुई जिसे दोनों ही अपना पवित्र स्थल मानते हैं. इन हिंसक झड़पों के दो दिन बाद ही इसराइल और हमास ने एक-दूसरे पर हमले शुरू कर दिए थे.
ग़ज़ा में अब तक कम से कम 232 लोगों की जान जा चुकी है. ग़ज़ा पर नियंत्रण करने वाले हमास के स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, मारे गए लोगों में लगभग 100 औरतें और बच्चे हैं.
इसराइल का कहना है कि ग़ज़ा में मारे जाने वालों में कम से कम 150 चरमपंथी शामिल थे. हमास ने अपने लोगों की मौत के बारे में कोई आँकड़ा नहीं दिया है.
वहीं इसराइल के अनुसार उनके यहाँ 12 लोगों की मौत हुई जिनमें दो बच्चे शामिल थे.
कैसे हुआ संघर्ष-विराम
दोनों पक्षों पर पिछले कई दिनों से लड़ाई बंद करने का अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ता ही जा रहा था.
बुधवार को अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने इसराइल के प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू से कहा था कि "उन्हें अपेक्षा है कि आज ग़ज़ा में जारी लड़ाई में कमी आएगी जिससे युद्ध-विराम का रास्ता निकल सके."
मिस्र, क़तर और संयुक्त राष्ट्र ने भी इसराइल और हमास के बीच मध्यस्थता करने में अहम भूमिका निभाई.
मिस्र के सरकारी टीवी पर बताया गया था कि राष्ट्रपति अब्दुल फ़तेह अल-सीसी ने संघर्ष-विराम करवाने के लिए दो सुरक्षा प्रतनिधिमण्डलों को इसराइल और फ़लस्तीनी क्षेत्रों में भेजा है.
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