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वियतनाम के बाद बुरी तरह हारा सुपर पावर अमेरिका, अफगानिस्तान में 21 साल बाद तालिबान सरकार!

इराक हो या अफगानिस्तान...अमेरिका ने इन देशों में तबाही फैलाने के लिए जितनी तेजी से कदम रखा, उतनी ही तेजी से इन देशों से अमेरिका भाग भी रहा है। वियतनाम के बाद अमेरिका को फिर से करारी हार मिली है।

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काबुल, अगस्त 15: करीब 21 सालों के बाद अफगानिस्तान में एक बार फिर से तालिबान का साम्राज्य कामय होने जा रहा है और काबुल में दाखिल होने के साथ ही अफगानिस्तान सरकार ने तालिबान के आगे घुटने टेकते हुए सत्ता तालिबान के हाथ सौंपने के लिए तैयार हो गई है। ताजा अपडेट ये है कि राष्ट्रपति भवन में अफगान सरकार और तालिबान के नेताओं के बीच सत्ता हस्तांतरण को लेकर बातचीत हो रही है। माना जा रहा है कि अगले कुछ दिनों में अफगानिस्तान में तालिबान का आधिकारिक तौर पर राज कायम हो जाएगा। हालांकि, तालिबान ने वादा किया है कि वो लोगों के खून नहीं बहाएगा और सैनिकों को छुएगा भी नहीं। लेकिन, ये जानना आज जरूरी है कि आखिर तालिबान ने कैसे अमेरिका को अफगानिस्तान में धूल चटा कर रख दी।

हार गया सुपर पावर अमेरिका!

हार गया सुपर पावर अमेरिका!

इराक हो या अफगानिस्तान...अमेरिका ने इन देशों में तबाही फैलाने के लिए जितनी तेजी से कदम रखा, उतनी ही तेजी से इन देशों से अमेरिका भाग भी रहा है। अफगानिस्तान से अमेरिका करीब करीब भाग चुका तो इस साल दिसंबर तक इराक से भी अमेरिकी फौज निकल जाएगी। वहीं, काबुल में तालिबान के आते ही अब इस बात पर मुहर लग चुकी है कि सुपर पावर अमेरिका को तालिबान ने बुरी तरह से धूल चटा दिया है। करीब 20 सालों में अरबों-खरब खर्च करने के बाद भी तालिबान को शिकस्त देने में सुपर पावर अमेरिका पूरी तरह से नाकाम रहा है। अफगानिस्तान को लेकर अमेरिका ने जो भी दावे किए...एक एक कर सारे दावे फेल साबित हुए और 20 सालों के बाद एक बार फिर से अफगानिस्तान में तालिबान का राज कायम हो रहा है और सवाल उठ रहे हैं कि क्या अमेरिका अपनी गलतियों को मानने के लिए तैयार होगा?

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Afghanistan: Kabul में दाखिल हुआ Taliban, राजधानी पर भी हो गया कब्जा ? | वनइंडिया हिंदी
अफगानिस्तान में तालिबान का राज

अफगानिस्तान में तालिबान का राज

2001 में जब अफगानिस्तान में अमेरिका ने कदम रखा था तो उसने दावा किया था वो तालिबान को जड़ से खत्म कर देगा, अलकायदा को उखाड़ फेंकेगा। लेकिन, अमेरिका के दावे झूठे निकले। तालिबान 20 सालों तक शांत जरूर रहा, लेकिन वो ज्वालामुखी की तरह धरती के नीचे दबा रहा। अमेरिका इस आग को बुझाने में नाकाम साबित हुआ। क्योंकि, अमेरिका अगर कामयाब होता तो सिर्फ तीन या चार महीने में तालिबान फिर से अफगानिस्तान पर कब्जा नहीं कर लेता। तो सवाल ये उठता है कि अमेरिकी सैनिकों ने अफगानिस्तान की धरती को बमों का जो ढेर बनाया, उसकी जवाबदेही किसकी होगी? अफगानिस्तान में हजारों-लाखों बच्चों का जो भविष्य बर्बाद हुआ है और आने वाले वक्त में अफगानिस्तान का भविष्य जो बर्बाद होने वाला है, उसकी जिम्मेदारी कौन लेगा?

अमेरिका की सबसे बड़ी नाकामी

अमेरिका की सबसे बड़ी नाकामी

वियतनाम युद्ध के बाद अमेरिका की ये दूसरी सबसे बड़ी नाकामी है। सिर्फ अमेरिका की सरकार नहीं, बल्कि पूरी की पूरी अमेरिका की खुफिया एजेंसी अफगानिस्तान में नाकाम हो गई है। अमेरिकी रक्षा विशेषज्ञ और लॉंग वॉर जर्नल के संपादक बिल रोग्गियो ने सीधे तौर पर अफगानिस्तान में हार के लिए अमेरिकी सेना के कमांडर को जिम्मेदार ठहराया है। इसके साथ ही उन्होंने कहा है कि अफगानिस्तान की स्थिति को जिस तरह से अमेरिका की खुफिया एजेंसियों ने संभाला है, वो गैर-जिम्मेदाराना और सबसे बड़ी नाकामी है। उन्होंने अमेरिका की सरकार पर गंभीर सवाल उठाए हैं और सारे सवालों का जवाब मांगा है।

कहां व्यस्त थी अमेरिकन इंटेलीजेंस?

कहां व्यस्त थी अमेरिकन इंटेलीजेंस?

बिल रोग्गियो ने अमेरिकी सरकार से पूछा है कि आखिर ये कैसे हो गया कि अफगानिस्तान में अमेरिका की नाक के नीचे तालिबान लगातार विकसित होता रहा और अमेरिकी अधिकारियों को पता नहीं चल पाया। उन्होंने पूछा कि आखिर ये कैसे हो गया कि अमेरिकी का नाक के नीचे तालिबान के लोग योजना बनाते रहे, खुद को एकजुट करते रहे, पूरे देश को हथियाने के लिए इतने बड़े स्तर पर रणनीति तैयार करते रहे और ना सिर्फ रणनीति तैयार करते रहे, बल्कि अपने सभी प्लानिंग को पूरा भी करते रहे, लेकिन अफगानिस्तान की एक भी खुफिया एजेंसी को कोई जानकारी नहीं मिल पाई। उन्होंने पूछा है कि आखिर सीआईए, डीआईए, एनडीएस और अमेरिका के द्वारा ही ट्रेन की गई सेना क्या करती रही?

'जंगली' तालिबान ने दिया चकमा

'जंगली' तालिबान ने दिया चकमा

अमेरिका के अधिकारी तालिबान को पहाड़ों में रहने वाला और जंगली बताते रहे। अमेरिका समझता रहा कि तालिबान के पास अब वो हिम्मत नहीं है कि अफगानिस्तान में फिर से सिर उठा सके। लेकिन, तालिबान ने जो दिमाग लगाया, उसमें अमेरिका का पूरा खुफिया तंत्र उलझ कर रह गया। बिल रोग्गियो ने कहा है कि ''अमेरिकी सेना और खुफिया अधिकारी खुद को तसल्ली देते रहे कि तालिबान बातचीत करेगा और वो आक्रामक नहीं हो सकता है, जबकि, तालिबान ने अपनी रणनीति बदलते हुए खुद को बातचीत की टेबल पर भी ले आया और बातचीत का फायदा उठाते हुए अफगानिस्तान में पैर भी पसारता रहा। अमेरिका इस बात को समझ ही नहीं पाया कि तालिबान का असल मकसद क्या है। अमेरिकी अधिकारियों ने सपने में नहीं सोचा कि सिर्फ चार महीने के अंदर तालिबान पूरे अफगानिस्तान पर कब्जा कर सकता है।

अफगान सेना से 'गुप्त' समझौता

अफगान सेना से 'गुप्त' समझौता

अफगानिस्तान के पत्रकार बिलाल सरवरी ने तालिबान की एक और अचूक रणनीति का खुलासा किया है। उन्होंने कहा कि तालिबान के नेता गांव-गांव की गुप्त यात्रा कर रहे थे और उन परिवारों से मिल रहे थे, जिनके बच्चे अफगान फौज का हिस्सा थे। तालिबान ने संपर्क अभियान अफगानिस्तान के गांवों से लेकर शहर तक चलाया और अफगान सैनिकों के साथ साथ उनके परिवारों के साथ गुप्त समझौता करने लगे। अमेरिकन खुफिया एजेंसियों को इस गुप्त समझौते के बारे में कुछ भी पता नहीं चल पाया और जब अफगानिस्तान में तालिबान ने लड़ाई का ऐलान किया तो अफगान फौज अचानक कमजोर लगने लगी। ज्यादातर जवानों ने तालिबान के सामने सरेंडर कर दिया।

अमेरिका ने 'शीशे के महल' की तरह बनाई अफगान सेना, तालिबान के एक पत्थर से टूटकर बिखर गई! आखिर क्यों?अमेरिका ने 'शीशे के महल' की तरह बनाई अफगान सेना, तालिबान के एक पत्थर से टूटकर बिखर गई! आखिर क्यों?

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English summary
After Vietnam, the world super power America has suffered another crushing defeat in Afghanistan. Know how Taliban captured Afghanistan after 21 years.
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