अफ़ग़ानिस्तान: तालिबान की इस्लामिक स्टेट से लड़ाई नहीं है आसान
तालिबान अफ़ग़ानिस्तान में इस्लामिक स्टेट पर लगाम लगाने की कोशिश कर रहा है. लेकिन काबुल में अस्पताल पर हुआ हमला दर्शाता है कि वो तालिबान के गढ़ में भी हमले कर सकता है.
बीते मंगलवार काबुल के एक प्रमुख सैन्य अस्पताल पर हुआ हमला तालिबान के लिए बड़ा धक्का था. हालांकि उन्होंने इसके असर को कम करके बताने की कोशिश की. इस हमले में कम-से-कम 20 लोगों की मौत हो गई.
ख़बरों के अनुसार, तालिबान के एक वरिष्ठ अधिकारी मौलवी हम्दुल्लाह की हमले में मौत हो गई. हम्दुल्लाह काबुल आर्मी कोर के कमांडर थे. यदि उनकी मौत की बात सच साबित होती है, तो फिर तय है कि तालिबान जवाबी हमला करेगा और देश में हिंसा का नया दौर शुरू हो सकता है.
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इस्लामिक स्टेट ने इसी अस्पताल पर 2017 में भी हमला किया था. बीते 18 सितंबर को खुरासान स्थित इस्लामिक स्टेट ने, जो अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान की सीमा पर बसे इस इलाक़े में सक्रिय है, तालिबान को कमज़ोर करने के लिए अभियान शुरू किया है. इस अभियान में अब तक 68 लोग मारे जा चुके हैं.
इन हमलों में बड़े पैमाने पर तालिबान को निशाना बनाया जा रहा है. इसमें शिया अल्पसंख्यकों को भी निशाना बनाया जा रहा है. तालिबान ने अल्पसंख्यकों को सुरक्षा देने का वादा किया था, पर अब तक इसमें वो नाकाम साबित हुए हैं.
हाल के दिनों में तालिबान आईएस की मौजूदगी को सीमित करने के लिए कड़ी कोशिश कर रहा है. तालिबान उन्हें कम प्रभावशाली दिखाने की कोशिश भी कर रहा है. लेकिन काबुल के अस्पताल पर हुआ हमला ये दर्शाता है कि इस्लामिक स्टेट तालिबान के गढ़ में भी हमले को अंजाम दे सकता है.
दोनों के अपने-अपने दावे
दो नवंबर को हमले के बाद इस्लामिक स्टेट ने तालिबान को निशाना बनाने का दावा किया है. इस्लामिक स्टेट ने अपने दावे में कहा है कि अस्पताल विरोधियों का है और मारे जाने वाले तालिबान के सदस्य थे, आम लोग नहीं. बयान में ये भी कहा गया कि हमला तालिबान के रक्षा प्रमुख के अस्पताल के दौरे के कुछ ही दिनों बाद किया गया.
ये साफ है कि इस्लामिक स्टेट 27 अक्टूबर को तालिबान शासन के कार्यकारी रक्षा मंत्री मुल्ला मोहम्मद याक़ूब के अस्पताल दौरे का ज़िक्र कर रहा था. याक़ूब तालिबान के संस्थापक मुल्ला उमर के बेटे हैं. अस्पताल का दौरा वो पहला मौक़ा था, जब वो सार्वजनिक तौर पर दिखे थे.
वहीं दूसरी ओर तालिबान ने इस हमले को आम नागरिकों पर हमला बताया है और दावा किया है कि उन्हें बहुत कम नुक़सान हुआ है.
दो नवंबर के हमले के बाद जारी बयान और ट्वीट में तालिबान ने कहा कि इस्लामिक स्टेट देश के आम नागरिकों, मरीज़ों और डॉक्टरों को निशाना बना रहा है. तालिबान ने कहा है कि इस हमले में तीन महिलाएं, एक बच्चा और तालिबान के तीन सदस्यों की मौत हुई है. वहीं इसमें पांच लोग घायल हुए हैं.
इस्लामिक स्टेट ने हमले को घातक बताया और कहा कि इसमें एक आत्मघाती हमलावर, विस्फोटक से लदी एक कार और दूसरे लोग शामिल थे. संगठन ने दावा कि कि हमले ने तालिबान की सुरक्षा व्यवस्था को धता बता दिया है.
इस्लामिक स्टेट ने दावा किया है कि दर्जनों तालिबान के लड़ाके मारे गए हैं या फिर घायल हुए हैं. इनमें तालिबान के शीर्षस्थ अधिकारी भी मारे गए हैं.
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पाकिस्तान स्थित अफ़ग़ान इस्लामिक प्रेस न्यूज़ एजेंसी (एआईपी) ने अज्ञात स्रोतों के हवाले से दावा किया है कि तालिबान के काबुल मिलिट्री कैंप और तालिबान स्पेशल फोर्सेस के कमांडर मौलवी हम्दुल्ला की हमले में मौत हो गई. तालिबान ने अब तक हम्दुल्ला की मौत की पुष्टि नहीं की है, लेकिन तालिबान से संबंधित एक ट्विटर एकाउंट पर इसका ज़िक्र है.
स्थानीय मीडिया में मृतकों की संख्या 20 बताई गई है.
तालिबान लगातार इस हमले के असर को कम से कम बताने की कोशिश कर रहा है. वो कह रहा है कि उसके सुरक्षा बलों ने हमले को नाकाम कर दिया. वो ये भी दावा कर रहा है कि हमलावरों को अस्पताल पहुंचने से पहले रोक लिया गया.
तालिबान ने ये भी दावा किया है कि महज़ 15 मिनट के अंदर हालात पर क़ाबू कर लिया गया. वहीं इस्लामिक स्टेट का कहना है कि उसके लोग आख़िर तक लड़ते रहे और अस्पताल में घुस गए.
वहीं तालिबान का दावा है कि उनके लोग पूरी तरह से हथियारों से लैस थे और वायु सेना को भी इस काम में लगाया गया.
तालिबान ने कहा कि घटनास्थल पर हेलिकॉप्टरों को बहुत कुछ नहीं करना पड़ा, क्योंकि तब तक हमलावरों का काम तमाम हो गया था. तालिबान ने वीडियो फुटेज भी पोस्ट किया है, जिसमें स्थिति शांत दिख रही है.
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आईएसआईएल का आपरेशन
हाल के हमलों का उद्देश्य तालिबान शासन को अस्थिर करना है. ये अभियान 18 सितंबर को शुरू हुआ. अगस्त महीने में काबुल एयरपोर्ट पर भी इस्लामिक स्टेट के हमलावरों ने हमला किया था, लेकिन उसमें बताया गया था कि तालिबान निशाने पर नहीं था.
18 सितंबर से दो नवंबर के बीच इस्लामिक स्टेट के खुरासान प्रांत इकाई ने 68 हमले करने का दावा किया है. इसमें 59 हमले अफ़ग़ानिस्तान में हुए और नौ पाकिस्तान के ख़ैबर पख्तूनख़्वा में किए गए.
अधिकांश हमले उत्तरी नांगरहार प्रांत की राजधानी जलालाबाद में हुए. वहां 41 हमले किए गए. इस्लामिक स्टेट ने काबुल में सात, कुनार में छह, परवान में तीन, कुंदूज़ और कंधार में एक-एक हमला करने का दावा किया है. कंधार तालिबान का गढ़ माना जाता है.
इनमें से अधिकांश यानी 53 हमलों में तालिबान सदस्यों को सीधे तौर पर निशाना बनाया गया, जबकि दो सदस्यों का सिर कलम भी किया गया. इसके अलावा तालिबान की संपत्तियों मसलन ईंधन की लॉरियाँ, अस्पताल और बिजली संयंत्र को भी निशाना बनाया गया.
इन हमलों में इस्लामिक स्टेट ने कम से कम 86 तालिबानी सदस्यों को मारने का दावा किया है. इन हमलों में तेल के टैंकरों, मूलभूत सुविधाओं जैसे बिजली सप्लाई के खंभों और अस्पताल को निशाना बनाया गया.
आईएस ने कुल 86 तालिबान सदस्यों को मारने का दावा किया है, जिसमें तालिबान के अधिकारी भी शामिल थे.
तीन अक्टूबर को अपने नए अभियान के तहत इस्लामिक स्टेट ने तालिबान अल-फतह को निशाना बनाया. इसमें पहली बार आत्मघाती हमलावर का इस्तेमाल तालिबान के ख़िलाफ़ किया गया.
इसके तुरंत बाद, आठ अक्टूबर और 15 अक्टूबर को शुक्रवार की नमाज़ के दौरान शिया मस्जिदों पर बड़े हमले किए गए. उन हमलों में बहुत सारे लोग मारे गए. दूसरा हमला कंधार में किया गया. ये पहला मौका था, जब इस्लामिक स्टेट ने तालिबान की रूहानी राजधानी पर हमला किया था.
दूसरे जिहादी समूहों ने तालिबान पर हमले की निंदा की है. उन्होंने शिया अल्पसंख्यकों पर हुए हमलों को भी ग़लत बताया. इन समूहों का आरोप है कि इस्लामिक स्टेट दुश्मन की उन एजेंसियों के हाथों में खेल रही है, जो तालिबान शासन को नुक़सान पहुंचाना चाहते हैं.
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जिहादी दुश्मनी
अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान के हाथों में सत्ता आने के बाद 19 अगस्त को पहली प्रतिक्रिया देते हुए इस्लामिक स्टेट ने चेतावनी दी थी कि उनके लड़ाके अफ़ग़ानिस्तान में जिहाद के नए चरण की तैयारी कर रहे हैं. और ऐसा लग रहा है कि मौजूदा हमले उसी का हिस्सा हैं.
सत्ता में तालिबान की वापसी से इस्लामिक स्टेट नाराज़ दिखा. उसने तालिबान पर आरोप लगाया कि अमेरिका के साथ मिलकर वो वास्तविक जिहादियों को क्षेत्र से खदेड़ने की कोशिश कर रहा है. उसने देश में अपनी गतिविधियां जारी रखने का संकल्प लिया है.
तालिबान के सत्ता में आने के बाद अंतरराष्ट्रीय समुदाय, विदेशी निवेशकों और धार्मिक अल्पसंख्यकों को सकारात्मक संदेश देने की कोशिश कर रहा है. इनसे इस्लामिक स्टेट की साख पर चोट पहुंचेगी.
तालिबान ने इनका जवाब भी दिया है और नांगरहार, काबुल और दूसरे प्रांतों में इस्लामिक स्टेट के सदस्यों को बंधक बनाया गया. साथ ही, उनकी हत्याएं भी की गईं.
सात अक्टूबर को तालिबान के प्रवक्ता और सूचना एवं सांस्कृतिक मामलों के उप मंत्री ज़बीहुल्लाह मुजाहिद ने इस्लामिक स्टेट की तुलना सिर दर्द से की थी. उन्होंने कहा था कि इस्लामिक स्टेट को ज़मीनी स्तर पर समर्थन हासिल नहीं है और जल्दी ही उसका सफ़ाया हो जाएगा.
उन्होंने दो नंवबर को अफ़ग़ान सरकार में शामिल पूर्व अधिकारियों के इस्लामिक स्टेट में शामिल होने के आरोपों का भी खंडन किया.
तालिबान के उप प्रवक्ता बिलाल करीमी ने स्वतंत्र अफ़ग़ान अख़बार हश्त सोब से कहा था कि अफ़ग़ानिस्तान में इस्लामिक स्टेट की कोई मौजूदगी नहीं है.
लेकिन तालिबान के दावों और उसकी आईएस को दबाने की कोशिशों के बावजूद समूह लगातार छोटे-बड़े हमले कर रहा है. इसमें लोगों की जानें जा रही हैं.
अगर ये जारी रहा तो तालिबान शासन की छवि को उस समय नुक़सान होगा, जब वो अंतरराष्ट्रीय समुदाय में सक्षम प्रशासक के तौर पर पहचान बनाने की कोशिशें कर रहा है. दूसरी ओर उन स्थानीय लोगों की नज़र में भी तालिबान की स्थिति कमज़ोर होगी, जिनकी सुरक्षा का दावा वो करता आया है.
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