15 साल की नूरिया जिसने परिवार को बचाने के लिए एके 47 उठाई
जब उनके घर पर चरमपंथियों ने हमला किया तो 15 साल की नूरिया ने आत्मरक्षा में एके47 उठा ली.
जब उनके घर पर चरमपंथियों ने हमला किया तो 15 साल की नूरिया ने आत्मरक्षा में एके47 उठा ली. उन्होंने दो लोगों को मार गिराया और तीसरे को घायल कर दिया.
अफ़ग़ान सरकार ने एक 'हीरो' के तौर पर उनकी तारीफ़ की है. हालांकि, दो हफ़्ते बाद ऐसी अफ़वाहों का बाज़ार गर्म हो रहा है जिनमें हमलावर की वास्तविक पहचान पर शक जताया जा रहा है.
क्या नूरिया चरमपंथियों से अपनी रक्षा कर रही थीं या वास्तव में उन्होंने अपने पति को ही गोली मार दी थी? लेकिन, उस रात की कहानी कहीं ज़्यादा जटिल है.
क्या नूरिया ने तालिबान हमलावर मारे थे या अपने पति को मार दिया था? या दोनों को?
इसमें शामिल सभी लोगों के नाम उनकी सुरक्षा के लिहाज से बदल दिए गए हैं. वे लोग रात के अंधेरे में गाँव आए थे. नूरिया के मुताबिक़, रात के क़रीब एक बजे थे जब उन लोगों ने उनके माता-पिता के घर के मुख्य दरवाजे पर धड़ाम की आवाज हुई.
इस आवाज से नूरिया जाग गईं थीं, लेकिन वे शांत खड़ी रहीं. उन्होंने अपने कमरे में सो रहे 12 साल के भाई के बारे में सोचा.
इसके बाद उन्होंने सुना कि पुरुष उनके मां-बाप को घर के बाहर ले गए. बीबीसी को दिए इंटरव्यू में उन्होंने इस रात की घटना के बारे में बताया है.
इसके बाद उन्होंने गोलियों की आवाज सुनी. उन्होंने उन्हें मार दिया था.
नूरिया उथल-पुथल भरे अफ़ग़ानिस्तान के एक छोटे से गाँव में बड़ी हुई थीं.
वे एक बेहद संकोची और धीरे बोलने वाली लड़की. लेकिन वे गन संभालना और उनसे सटीक निशाना लगाना भी जानती थीं. उन्हें उनके पिता ने कम उम्र से ही आत्मरक्षा में हथियार चलाना सिखा दिया था.
उस रात नूरिया ने छिपने की बजाय अपने पिता की एके47 राइफल उठा ली और बाहर खड़े आदमियों पर गोली चला दी. वे कहती हैं कि उन्होंने तब तक फायर किए जब तक कि गोलियां ख़त्म नहीं हो गईं.
वे कहती हैं कि आने के क़रीब एक घंटे बाद वे आदमी अंधेरे में वापस चले गए.
घर के बाहर पांच मृत शरीर थे. इनमें से एक उनकी मां और पिता, एक बुज़ुर्ग पड़ोसी जो कि उनके रिश्तेदार भी थे और दो हमलावर थे.
वे कहती हैं, "यह डरावना था. वे इतने क्रूर थे. मेरे पिता अपाहिज थे. मेरी मां निर्दोष थीं. और उन्होंने उन्हें मार दिया."
अफग़ानिस्तान में बड़े हुए नूरिया जैसे टीनेजरों ने युद्ध के सिवा और कुछ नहीं देखा है.
सरकार समर्थक बलों और तालिबान के बीच विवाद को चलते 25 साल से ज्यादा हो गए हैं.
सरकार समर्थक बलों के नियंत्रण में शहर और बड़े कस्बे हैं, जबकि तालिबान के हाथ में लंबा-चौड़ा दूर-दराज का इलाका है.
नूरिया के जैसे कई गाँव अक्सर इस जंग में बीच में फंस जाते हैं.
उनके ग्रामीण प्रांत घोर में तालिबान लड़ाकों द्वारा सरकार समर्थक फौजों की पोस्ट्स पर हमला किया जाना एक आम बात है. नूरिया और मिलिटरी पुलिस में अफसर उनसे उम्र में बड़े सौतेले भाई कहते हैं कि उनके पिता को चरमपंथियों ने इसलिए निशाना बनाया क्योंकि वे कबीलाई सरदार और सरकार समर्थक सामुदायिक नेता थे.
अफ़ग़ानिस्तान में क्यों छिड़ी है जंग?
लेकिन, तीन हफ़्ते बाद इस हमले और इसकी परिस्थितियों को लेकर अलग-अलग वर्ग- जिनमें नूरिया, उनके बड़े भाई, मारे गए हमलावरों के परिवार के सदस्यों, स्थानीय पुलिस, स्थानीय बड़े-बुज़ुर्ग, तालिबान प्रतिनिधि, और अफ़ग़ान सरकार शामिल हैं- घटना अलग-अलग तस्वीर दिखाते हैं.
बीबीसी को दिए गए कई बयानों के मुताबिक, एक हमलावर नूरिया का पति था और तालिबान लड़ाकों से लड़ने वाली युवा लड़की की बहादुरी की कहानी दरअसल एक पारिवारिक विवाद था.
अलग-अलग बयान नूरिया के साथ क्या हुआ इस सच को दफ्न करने की कोशिश करते हैं और ये ग्रामीण अफ़ग़ानिस्तान की एक ऐसी तकलीफ़देह हक़ीक़त बताते हैं, जिसमें युवा महिलाएं अक्सर उन्हें नियंत्रित करने वाली कबीलाई संस्कृति, पारंपरिक रीति-रिवाजों और पितृसत्ता में फंसी होती हैं.
नूरिया की तरह से ही इनके पास भी कोई ताक़त नहीं होती, इनकी पढ़ाई नहीं होती और इन्हें नहीं पता होता कि इन्हें कब हिंसा में घसीट लिया जाएगा.
उस रात क्या हुआ इसको लेकर सबसे ज्यादा विवाद इस चीज पर है कि उस रात वे आदमी वहां क्यों आए थे. सभी लोग इस बात पर सहमत हैं कि उस देर रात गांव पर हमला हुआ था.
नूरिया के मुताबिक, अजनबियों ने ख़ुद को मुजाहिदीन लड़ाके कहा था और वे वहां उनके पिता के लिए आए थे.
तालिबान ने इस टीनेज लड़की के साथ हुई झड़प में अपने शामिल होने से इनकार किया है. लेकिन, उन्होंने इस चीज की पुष्टि की है कि उस रात गांव पर हमला हुआ था. उन्होंने कहा कि एक स्थानीय पुलिस चेकपॉइंट को निशाना बनाया गया था जिसमें तालिबान के दो लोग घायल हुए, लेकिन कोई मरा नहीं.
स्थानीय और राष्ट्रीय अफ़ग़ान सरकारी अफ़सरों ने हालांकि एक बड़े तालिबान हमले के खिलाफ जीत का ऐलान किया है और दावा किया है कि नूरिया एक असली हीरो है.
नूरिया और उनके छोटे भाई को मिलिटरी हैलीकॉप्टर के जरिए गांव से निकालकर एक स्थानीय सेफहाउस में रखा गया है. लेकिन, सोशल मीडिया में यह स्टोरी जमकर चली कि एक कम उम्र की लड़की ने किस तरह से आत्मरक्षा में हथियार उठा लिए.
तालिबान हमलों को नाकाम करने के लिए अफ़ग़ानिस्तान में आम नागरिकों की राष्ट्रपति द्वारा तारीफ करना कोई नई बात नहीं है. लेकिन, जब राष्ट्रपति अशरफ गनी ने नूरिया को काबुल बुलाया तो इसकी प्रतिक्रिया मिलीजुली थी.
कुछ का कहना है कि वे एक हीरो हैं. दूसरों का कहना है कि वे एक निर्दोष बच्ची हैं जो कि दो युद्धरत पक्षों के बीच फंस गई हैं. इनमें से एक ने उनपर हमला किया जबकि दूसरे ने उन्हें पीआर स्टंट के लिए इस्तेमाल किया.
एक ट्विटर यूजर लिखते हैं, "यह समझ नहीं आता कि एक ऐसे देश में जहां लोगों ने जीवन और शांति की कीमत समझने के लिए पर्याप्त मौतें और हिंसा देख ली है, वहां कैसे इस तरह से हिंसा की वाहवाही हो सकती है और हथियार उठाने को बढ़ावा दिया जा सकता है."
"हिंसा का जवाब हिंसा नहीं"
एक अन्य शख्स ने नूरिया को "अपनी जीवन की रक्षा करने में सफल रहने वाली अफगान महिलाओं का प्रतीक बताया है."
"ऐसे कई अफ़ग़ान पीड़ित हैं जो कुछ नहीं कर पाए. वे तालिबान के जिहाद की वजह से जख्मों का दर्द सह रहे हैं."
अफ़सरों ने बीबीसी को बताया कि अगले दिन घटनास्थल पर स्थानीय पुलिस को दो मृत पुरुषों के पास से आइडेंटिटी कार्ड मिले. ये दोनों तालिबान समर्थक के तौर पर जाने जाते थे.
पुलिस ने बताया कि तीसरा शख्स जो घायल हुआ था, लेकिन भाग गया वह तालिबान का एक उच्च दर्जे का कमांडर मासूम कामरान था.
बीबीसी ने भी स्वतंत्र रूप से मरे हुए दोनों लोगों की पहचान का पता किया. ये दोनों अपनी उम्र के 20वें दशक में थे और ये पारंपरिक अफ़गान कपड़े पहने थे. इनकी कुर्ते खून से सने हुए थे.
तालिबान से जुड़े हुए सूत्रों ने बताया कि पुलिस ने घायल होकर भाग गए जिस तालिबान कमांडर का नाम बताया है वह वाकई में घायल है, लेकिन सूत्रों ने यह पुष्टि नहीं की कि वह कब और कहां घायल हुआ.
स्थानीय तालिबान सूत्रों ने यह भी पुष्टि की कि मौके पर मौजूद एक शख्स कई साल पहले हेलमंड में उनके नेटवर्क में शामिल था.
जब नूरिया और उनके 12 साल के भाई राजधानी काबुल में राष्ट्रपति की ओर से बुलाए गए तब उनके पेरेंट्स की हत्या दुखद मगर एक सपाट मामला दिख रही थी.
लेकिन, हमले के एक हफ्ते बाद ऐसी खबरें आने लगीं कि मरने वाले हमलावरों में से एक कोई अज्ञात लड़ाका न होकर वास्तव में नूरिया का पति था.
परिवार के सदस्यों और स्थानीय सूत्रों ने बीबीसी को बताया कि नूरिया के पति रहीम अपनी पत्नी को वापस लेने गांव आए थे. इससे पहले एक पारिवारिक विवाद के चलते नूरिया के पिता उन्हें अपने घर ले आए थे.
सूत्रों का कहना है कि पति तालिबान से जुड़ गया था और तालिबान चरमपंथियों को साथ लेकर वहां आया था.
जिस शख्स को वे नूरिया का पति बताते हैं वह उस रात मृत पाया गया था. नूरिया ने इनकार किया है कि उनकी कभी शादी हुई थी.
अन्य लोगों के मुताबिक, नूरिया एक 'मोखी' डील का हिस्सा थी. जिसमें दो परिवारों के बीच महिला रिश्तेदारों को शादी के लिए एक-दूसरे को दिया जाता है.
रहीम की शादी नूरिया से उसकी दूसरी पत्नी के तौर पर हुई थी, जबकि नूरिया के पिता की शादी रहीम की टीनेज भतीजी के साथ उनकी दूसरी पत्नी के तौर पर हुई थी.
हालांकि, चूंकि दोनों लड़कियां बेहद छोटी थीं, ऐसे में यह सहमति बनी थी कि वे कई वर्षों तक इंतजार करेंगे और तभी शादी को आधिकारिक करेंगे.
ग्रामीण अफ़ग़ानिस्तान में इस तरह की कहानी के पीछे की सच्चाई जानना आसान नहीं है.
नूरिया का गांव एक बड़े मैदानी इलाके में है जिसके चारों तरफ ऊंचे पहाड़ हैं. फोन सिग्नल के लिए गांव वालों को पड़ोस की पहाड़ी के ऊपर चढ़ना पड़ता है.
यह पता लगाने के लिए क्या वाकई रहीम नूरिया का पति था, बीबीसी ने उनकी मां शफीका का पता लगाया. शफीका निमरूज प्रांत में अपने बेटे की पहली पत्नी और उसके दो बच्चों के साथ रहती हैं.
निमरूज से फोन पर शफीका ने इस बात की पुष्टि की कि नूरिया की शादी इस लेनदेन के हिस्से के तौर पर तीन साल पहले उनके बेटे के साथ हुई थी.
उन्होंने बताया कि उनकी एक पोती जो कि रहीम की भतीजी है, उसकी शादी नूरिया के पिता से हुई थी.
लेकिन, उन्होंने कहा कि दो साल से भी कम वक्त में जब रहीम हेलमंड में काम कर रहा था नूरिया के पिता अचानक से उनके घर आए और अपनी बेटी को वापस ले गए और अपनी पत्नी और रहीम की भतीजी को वापस छोड़ गए.
वे कहती हैं कि एक तरह से उन्होंने यह अदला-बदली रद्द कर दी थी.
शफीका कहती हैं कि उन्होंने इस विवाद का निबटारा करने के लिए गांव के रसूखदार लोगों से मदद मांगी थी. लेकिन चूंकि, वे वित्तीय रूप से गरीब हैं ऐसे में वे नूरिया के पिता को रोक नहीं पाए.
वे इस बात की पुष्टि करती हैं कि उस रात रहीम नूरिया के घर उसे लेने गया था. लेकिन, वे इससे इनकार करती हैं कि उसका इरादा किसी को मारने का था.
वे कहती हैं, "वे ताकतवर थे. हम गरीब लोग हैं. वह वहां आधी रात के बाद नहीं गया था. वह वहां नूरिया के पिता के बुलाने पर शाम को गया था ताकि आपसी समस्याओं को हल किया जा सके. यहां तक कि इसमें तलाक पर चर्चा भी शामिल थी."
वे इस बात से इनकार करती हैं कि उनका बेटा तालिबान लड़ाका था. लेकिन, उनका उसके काम के लिए हेलमंड जाने की कहानी तालिबान सूत्रों की बताई गई टाइमलाइन से मेल खाती है कि वह करीब दो साल पहले हेलमंड में उनके नेटवर्क का हिस्सा था और उसके बाद उसने नूरिया से शादी कर ली.
वे कहती हैं, "मेरा बेटा तालिबान का सदस्य नहीं है. वह कंस्ट्रक्शन का काम करता था. उसने अपनी पूरी जिंदगी में कभी बंदूक नहीं उठाई. हम गरीब लोग हैं, कोई हमारी बात नहीं सुनता."
शफीका बताती हैं कि कैसे 12 साल पहले रहीम का भाई और उनका दूसरा बेटा जो कि एक पुलिस अफसर था वह निमरूज में एक सुसाइड हमले में मारा गया था.
अब घर में कोई भी पुरुष सदस्य नहीं है जो कि पैसे कमा सके. वे भी एक ऐसी अफ़ग़ान महिला हैं जो कि हिंसा के दौर में फंस गई हैं.
नूरिया के प्रांत की स्थानीय पुलिस और कई गांवों के मुखिया और केंद्रीय अफ़ग़ानिस्तान के अधिकारी इस बात पर जोर देते हैं कि नूरिया और रहीम की शादी नहीं हुई थी.
इनका कहना है कि नूरिया के घर पर हमला एक रुटीन तालिबान हमला था और उनके पिता साफतौर पर इस हमले में टारगेट थे.
कम ही लोगों को इस बात की असलियत पता है कि उस रात वाकई में क्या हुआ था. नूरिया और उनके छोटे भाई को शायद यह पता होगा. किसी को भी शायद पूरी सच्चाई पता न चले.
हिंसा के बाद की सुबह नूरिया और उनके पड़ोसियों ने घर के पास ही कब्रें बनाकर अपने पेरेंट्स को दफ्न कर दिया.
जब वे उन्हें दफ्न करने की तैयारी कर रहे थे, उस वक्त अफ़ग़ानिस्तान सरकार और तालिबान के बीच पहली सीधी शांति वार्ता की तैयारियां कर रहा था.
इस बातचीत पर अफ़ग़ानिस्तान के अलग-अलग तबकों की उम्मीदों का बोझ है, लेकिन हजारों अफ़ग़ान लोग हर महीने मारे जा रहे हैं.
नूरिया की तरह से कई निर्दोष महिलाएं और बच्चे हैं जिनकी सीमित शक्ति और सीमित आवाज है, इनके पास शारीरिक और भावनात्मक रूप से किसी भी तरीके से खुद को बचाने के सिवा कोई विकल्प नहीं है.