छोटे किसानों को सामाजिक सुरक्षा देने से कामयाब होंगे कृषि क़ानून?
आईएमएफ़ की मुख्य अर्थशास्त्री गीता गोपीनाथ ने कहा है कि भारत के नए कृषि क़ानूनों में किसानों की आय बढ़ाने की क्षमता है.
आईएमएफ़ की मुख्य अर्थशास्त्री गीता गोपीनाथ ने कहा है कि भारत के नए कृषि क़ानूनों में किसानों की आय बढ़ाने की क्षमता है, लेकिन ज़रूरी है कि छोटे किसानों को सामाजिक सुरक्षा दी जाए.
गीता गोपीनाथ ने कहा, "जब भी कोई सुधार किया जाता है, तो उससे होने वाले बदलाव की एक क़ीमत होती है. ये सुनिश्चित करना चाहिए कि इससे कमज़ोर किसानों को नुक़सान न पहुंचें. ये सुनिश्चित करने के लिए सामाजिक सुरक्षा मुहैया कराई जा सकती है."
समाचार एजेंसी पीटीआई से बातचीत में उन्होंने भारतीय कृषि के क्षेत्र में सुधारों की ज़रूरत भी बताई. उन्होंने मंगलवार को कहा कि ऐसे कई क्षेत्र हैं, जहां सुधार की ज़रूरत है.
एक न्यूज़ चैनल से बातचीत में उन्होंने कहा, “कृषि क्षेत्र में कई मोर्चों पर सुधार की ज़रूरत है, जिसमें बुनियादे ढांचा और सब्सिडी शामिल है. और ये सुनिश्चित करना ज़रूरी है कि (सस्टेनेबल) टिकाऊ फसलें उगाई जाएं, इसलिए अभी बहुत कुछ किए जाने की ज़रूरत है.”
उन्होंने कहा, “ये क़ानून सिर्फ इसके एक हिस्से में सुधार कर रहे हैं, वो है मार्केटिंग. जो एक अहम हिस्सा है. ये कृषि क़ानून ख़ासतौर से मार्केटिंग क्षेत्र से संबंधित हैं. इनसे किसानों के लिए बाज़ार बड़ा हो रहा है.“
“अब किसान बिना कर चुकाए मंडियों के अलावा कई स्थानों पर भी अपनी पैदावार बेच सकेंगे. बड़े बाज़ारों तक पहुंच देकर और बाज़ार में ज़्यादा प्रतिस्पर्धा बढ़ाकर इन क़ानूनों में क्षमता है कि ये किसानों की आय को बढ़ा सकते हैं.”
उन्होंने कहा कि कि ये बहुत हद तक इसे लागू करने के तरीक़े पर निर्भर करेगा.
'गोपीनाथ का सधा हुआ बयान’
हालांकि कृषि मामलों के जानकार और रूरल वॉइस डॉट इन के एडिटर-इन-चीफ़ हरवीर सिंह कहते हैं कि आईएमएफ़ की मुख्य अर्थशास्त्री गीता गोपिनाथ ने एक सधा हुआ बयान दिया है, "क्योंकि उन्होंने कहा कि पहले छोटे किसानों की आर्थिक सुरक्षा मज़बूत की जाए. और हमारे देश में 85 फीसदी छोटे और मझोले किसान ही हैं."
दरअसल भारत के 85 प्रतिशत से अधिक किसान छोटे और सीमांत किसान हैं, और वो कुल कृषि भूमि के क़रीब 47 प्रतिशत हिस्से पर काम करते हैं.
हरवीर सिंह कहते हैं "गीता गोपीनाथ ने ये बात साफ़ कही है कि कृषि क्षेत्र में व्यापक सुधार की ज़रूरत है और इन क़ानूनों से सिर्फ एक हिस्से को एड्रेस करने की कोशिश की है, जो है मार्केटिंग."
वहीं कृषि मामलों के जानकार देवेंद्र शर्मा कहते हैं कि “अमीर देशों में ये सुधार कई दशकों से चल रहे हैं, वहां मार्केट ओरिएंटेड एग्रिकल्चर यानी बाज़ार उन्मुख कृषि है, लेकिन वहां तो किसानों की आय नहीं बढ़ी, वहां तो किसानों का लैंड होल्डिंग साइज़ भी बहुत बड़ा है.”
वो सवाल करते हैं कि गीता गोपीनाथ ज़रा ये बताने की कोशिश करें कि वहां पर ये सुधार क्यों कामयाब नहीं हुए? वहां पर किसान क्यों सब्सिडी के सहारे टिके हुए हैं?
बढ़ेगी किसानों की आय?
भारत सरकार बीते साल सितंबर में ये तीन कृषि क़ानून लाई थी और इन्हें कृषि क्षेत्र में बड़े सुधारों के रूप में पेश किया गया है, जो किसानों को बिचौलियों से राहत देगा और उन्हें देश में कहीं भी अपनी उपज बेचने की आज़ादी देगा.
भारत में हजारों किसान नए कृषि कानूनों का विरोध कर रहे हैं, जिनमें से ज्यादातर पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के हैं. इस सिलसिले में किसान संगठनों की सरकार के साथ कई दौर की वार्ता भी हो चुकी है, हालांकि उसका कोई ठोस नतीजा सामने नहीं आया है.
हरवीर सिंह कहते हैं कि ये अभी इतने साफ़ तौर पर नहीं कहा जा सकता कि इन क़ानूनों में आय बढ़ाने की क्षमता है या नहीं है. उनका कहना है कि इन क़ानूनों में कई ऐसी खामियां हैं, जिसे लेकर सवाल उठ रहे हैं.
वो कहते हैं कि इसमें जब तक सरकार सुधारों को लेकर एक समग्र नीति नहीं बनाएगी, तब तक सिर्फ मार्केटिंग से किसानों की आय बढ़ जाए, ये गारंटी काफ़ी मुश्किल है.
वहीं देवेंद्र शर्मा कहते हैं, "अमेरिका में औसत लैंड होल्डिंग साइज़ 444 एकड़ है और भारत में 86% छोटे किसान हैं, जिनकी औसतन पांच एकड़ से कम ज़मीन है. वो सवाल करते हैं कि “जो सुधार 444 एकड़ ज़मीन वाले बड़े किसानों पर काम नहीं किए वो पांच एकड़ पर कैसे करेंगे? मुझे लगता है कि अपनी आर्थिक सोच को दोबारा देखना चाहिए.”
कौन हैं गीता गोपीनाथ
साल 2018 में हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में भारतीय मूल की प्रोफ़ेसर रहीं गीता गोपीनाथ को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ़) का प्रमुख अर्थशास्त्री नियुक्त किया गया था.
गीता गोपीनाथ हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में इंटरनेशनल स्टडीज़ ऑफ़ इकनॉमिक्स में प्रोफ़ेसर थीं. उन्होंने इंटरनेशनल फ़ाइनेंस और मैक्रोइकनॉमिक्स में रिसर्च की है.
गीता गोपीनाथ की नियुक्ति के वक़्त आईएमएफ़ की प्रमुख क्रिस्टीन लगार्डे ने कहा था, ''गीता दुनिया के बेहतरीन अर्थशास्त्रियों में से एक हैं. उनके पास शानदार अकादमिक ज्ञान, बौद्धिक क्षमता और व्यापक अंतरराष्ट्रीय अनुभव है.''
आईएमएफ़ में इस पद पर पहुंचने वाली गीता दूसरी भारतीय हैं. उनसे पहले भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन भी आईएमएफ़ में प्रमुख अर्थशास्त्री रह चुके हैं.
गीता गोपीनाथ अमेरिकन इकनॉमिक्स रिव्यू की सह-संपादक और नेशनल ब्यूरो ऑफ़ इकनॉमिक रिसर्च (एनबीइआर) में इंटरनेशनल फ़ाइनेंस एंड मैक्रोइकनॉमिक की सह-निदेशक भी हैं.
गीता ने व्यापार और निवेश, अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संकट, मुद्रा नीतियां, कर्ज़ और उभरते बाज़ार की समस्याओं पर लगभग 40 रिसर्च लेख लिखे हैं.
वो साल 2001 से 2005 तक शिकागो यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर थीं. इसके बाद साल 2005 में हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर के तौर पर उनकी नियुक्ति हुई.
साल 2010 में गीता इसी यूनिवर्सिटी में प्रोफ़ेसर बनीं और फिर 2015 में वे इंटरनेशनल स्टडीज़ एंड ऑफ़ इकनॉमिक्स की प्रोफ़ेसर बन गईं.
गीता गोपाीनाथ ने ग्रेजुएशन तक की शिक्षा भारत में पूरी की. गीता ने साल 1992 में दिल्ली विश्वविद्यालय के लेडी श्रीराम कॉलेज से अर्थशास्त्र में ऑनर्स की डिग्री प्राप्त की.
इसके बाद उन्होंने दिल्ली स्कूल ऑफ़ इकनॉमिक्स से अर्थशास्त्र में हीमास्टर डिग्री पूरी की. साल 1994 में गीता वाशिंगटन यूनिवर्सिटी चली गईं.
साल 1996 से 2001 तक उन्होंने प्रिंसटन यूनिवर्सिटी से अर्थशास्त्र में पीएचडी पूरी की.
गीता केरल सरकार में राज्य की वित्तीय सलाहकार भी रह चुकी हैं. गीता का जन्म केरल में ही हुआ था. जब केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने गीता की नियुक्ति की थी तो उस समय उन्हीं की पार्टी के कुछ लोग नाराज़ भी हुए थे.