करुणानिधि ने अपने बेटे का नाम इसलिए स्टालिन रखा था
स्टालिन करुणानिधि की दूसरी पत्नी दयालु अम्मल के बेटे हैं. डीएमके की कमान अब उन्हीं के पास है लेकिन इसे लेकर आपस में भाइयों के बीच काफ़ी विवाद भी है.
स्टालिन ने डीएमके के एक स्थानीय प्रतिनिधि के तौर पर अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की थी.
स्टालिन जब डीएमके की युवा इकाई के सचिव के तौर पर चर्चा में आए, तब इसकी वंशवाद की राजनीति कहकर आलोचना की गई. बाद में अपनी मेहनत से स्टालिन ने साबित कर दिया कि उन्हें सिर्फ़ इसलिए सत्ता नहीं मिली है क्योंकि वो करुणानिधि के बेटे हैं.
एम करुणानिधि और उनकी दूसरी पत्नी दयालु अम्मल के घर एक मार्च, 1953 को स्टालिन का जन्म हुआ था. एमके मुथु और एमके अलागिरी के बाद वो करुणानिधि के तीसरे बेटे हैं.
उनके जन्म के चार दिन बाद सोवियत नेता जोसेफ़ स्टालिन का निधन हो गया था, इसलिए करुणानिधि ने उनका नाम स्टालिन रखा.
स्टालिन ने चेन्नई के चेटपेट में क्रिश्चियन कॉलेज उच्चतर माध्यमिक विद्यालय से अपनी स्कूली पढ़ाई की और विवेकानंद कॉलेज से प्री यूनिवर्सिटी कोर्स किया. उन्होंने चेन्नई के प्रेजिडेंसी कॉलेज में स्नातक की पढ़ाई पूरी की.
स्टालिन ने पिता करुणानिधि को जब से देखा, विधानसभा के सदस्य के तौर पर ही देखा.
राजनीति की शुरुआत
एमके मुथु की दिलचस्पी फ़िल्म इंडस्ट्री में ज़्यादा थी, वहीं स्टालिन राजनीति की ओर आकर्षित हुए.
उन दिनों डीएमके, पोंगल और अपने संस्थापक नेता अन्नादुरई का जन्मदिन धूम-धाम से मनाया करती थी. 1960 के दशक के आख़िर में स्टालिन ने गोपालपुरम के युवाओं के साथ मिलकर यूथ डीएमके नाम की एक छोटी संस्था बनाई. अहम नेताओं के जन्मदिन मनाना उनका अहम उद्देश्य था.
एम करुणानिधि, एमजी रामचंद्रन, नंजिल मनोहरन और पीयू शनमुगम जैसे नेताओं ने इस संस्था की बैठकों में हिस्सा लिया. बाद में इस संस्था को डीएमके यूथ विंग बना दिया गया. स्टालिन को थाउज़ैंड लाइट्स निर्वाचन क्षेत्र में 75वें सर्कल के डीएमके स्थानीय प्रतिनिधि के रूप में चुना गया.
ये पार्टी में उनका पहला आधिकारिक पद था. ये बहुत ही छोटे कद का पद था.
उन्होंने 1968 के चेन्नई निगम चुनाव में डीएमके के लिए प्रचार किया था. तब उन्होंने सार्वजनिक आयोजनों में शामिल होना शुरू किया और डीएमके की बैठकों में सार्वजनिक भाषण देने लगे.
1975 में उनकी शादी दुर्गावती उर्फ़ सांता से हुई. इसके कुछ ही महीनों बाद पूरे देश में आपातकाल की घोषणा कर दी गई. उस वक़्त राज्य में डीएमके सत्ता में थी.
मुख्यमंत्री करुणानिधि प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के सहयोगी थे, लेकिन वो आपातकाल के आलोचक थे. इसकी वजह से सरकार गिर गई.
गिरफ़्तारी के बाद मिली अलग पहचान
स्टालिन को 1976 की फ़रवरी में उनके गोपालपुरम स्थित घर से गिरफ़्तार कर लिया गया. जेल में उनके साथ बुरी तरह मारपीट की गई.
एक साल जेल में रहने के बाद, उन्हें 23 जनवरी 1977 को रिहा कर दिया गया.
जेल जाने से पहले तक पार्टी के सदस्य उन्हें सिर्फ़ करुणानिधि के बेटे के तौर पर जानते थे. उनकी गिरफ़्तारी और उसके बाद के घटनाक्रम से उन्हें एक नई पहचान मिली.
उन्होंने डीएमके की युवा इकाई के लिए काम करना जारी रखा. 20 जून 1980 को युवा इकाई को आधिकारिक तौर पर लॉन्च किया गया और उन्हें उसका नेता नियुक्त किया गया.
उन दिनों डीएमके की श्रम इकाई सबसे मज़बूत थी. लेकिन आधिकारिक लॉन्च के कुछ वक़्त बाद ही युवा इकाई ने ख़ुद को मज़बूत दावेदार साबित किया और डीएमके की सबसे मज़बूत सहयोगी इकाई बन गई.
युवा इकाई ने पूरे तमिलनाडु में अपनी मौजूदगी दर्ज करानी शुरू की और हर ज़िले और नगर पालिका में सचिव और उप सचिव बनाए. युवा इकाई ने पार्टी की तरह ही अपने पैर हर जगह फैला लिए.
इस सफलता के पीछे का कारण स्टालिन की मेहनत और समर्पण ही था.
जब युवा इकाई ने अपना ख़ुद का दफ़्तर बनवाने के लिए अपील की, तो पार्टी ने कहा कि अगर युवा इकाई पार्टी फंड के तौर पर 10 लाख रुपए जुटा लेती है तो उसे अनबगम नाम की इमारत दे दी जाएगी.
एमके स्टालिन ने 11 लाख रुपए इकट्ठा किए और युवा इकाई के दफ़्तर के लिए इमारत हासिल की. 1988 से युवा इकाई का दफ़्तर विशालकाय अनबगम इमारत में है.
1984 में चुनावी राजनीति में रखाकदम
स्टालिन ने 1984 में चुनावी राजनीति में क़दम रखा, उन्होंने थाउज़ैंड लाइट्स निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ा. हालांकि वो हार गए, 1989 में उन्होंने उसी निर्वाचन क्षेत्र से दोबारा चुनाव लड़ा और वो जीत गए.
1991 के चुनाव में वो फिर हार गए, तब राजीव गांधी ही हत्या के बाद कांग्रेस के सहयोगी एआईडीएमके के पक्ष में सहानुभूति की लहर चल रही थी. लेकिन 1996 के अगले चुनाव में वो थाउज़ैंड लाइट्स निर्वाचन क्षेत्र से जीत गए. वो चेन्नई नगर निगम के मेयर पद का चुनाव भी लड़े और जीते.
मेयर के तौर पर अपने कार्यकाल के दौरान उनकी काम ने बहुत ध्यान खींचा. "सिंगारा चेन्नई" एक्शन प्लान की शुरुआत कर उन्होंने कई आइडिया और योजनाएं सामने रखीं.
रेन वॉटर हार्वेस्टिंग के व्यापक कार्यान्वयन और 65 करोड़ रुपये की लागत से चेन्नई में 9 फ्लाईओवर के निर्माण की दो उपलब्धियों की चर्चा आज भी की जाती है. 1996 में चेन्नई में आई बाढ़ के दौरान उनके राहत कार्य को बहुत सहराना की गई.
उन्होंने 2001 में थाउज़ैंड लाइट्स निर्वाचन क्षेत्र से फिर चुनाव लड़ा और उसी साल फिर से मेयर बने.
एक नए क़ानून के तहत एक व्यक्ति एक वक़्त में दो पदों पर नहीं रह सकता था, इसलिए उन्होंने मेयर के पद से इस्तीफ़ा दे दिया.
साहित्यिक क्षेत्र और फ़िल्म उद्योग में स्टालिन की उपलब्धियां उनके पिता की तुलना में कम हैं. उन्होंने ओरे राथम और मक्कल अयनायितल जैसी फ़िल्मों में काम किया, साथ ही कुरिन्जी मलार और सूर्या जैसे टेलीविजन धारावाहिकों में अभिनय किया था. जब उन्हें एहसास हुआ कि ये इस क्षेत्र में उनकी विशेष योग्यता नहीं है तो उन्होंने अभिनय छोड़ दिया.
2006 में डीएमके जब दोबारा सत्ता में आई तो स्टालिन को स्थानीय प्रशासन मंत्री नियुक्त किया गया. उन्होंने अपने अधिकारियों को ख़ुद चुना और अशोक वर्धन शेट्टी और डी.उदयचंद्रन जैसे काबिल अधिकारियों को नियुक्त किया. स्थानीय प्रशासन मंत्री के तौर पर उन्होंने काफ़ी कुछ किया.
होगेनक्कल पेयजल योजना और अन्ना ग्रामीण विकास योजना जैसी उनके द्वारा लागू की गई परियोजनाओं की काफी सराहना हुई. उस वक़्त पार्टी बहुत नकारात्मक आलोचना झेल रही थी, लेकिन स्थानीय प्रशासन मंत्री के तौर पर उनका योगदान डीएमके के लिए रियायत साबित हुआ.
एमके स्टालिन को तब पार्टी का कोषाध्यक्ष नियुक्त किया गया. फिर उन्हें उप मुख्यमंत्री बनाया गया.
फिर मिली लगातार हार
2011 में डीएमके के विधानसभा चुनाव हारने के बाद उन्हें 2014 के संसदीय चुनाव और 2016 के विधान सभा चुनाव में लगातार हार का सामना करना पड़ा.
एम करुणानिधि अपनी ख़राब सेहत के चलते राजनीतिक दायित्वों से मुक़्त हो गए और एमके स्टालिन को डीएमके का कार्यकारी नेता बना दिया गया.
एम करुणानिधि ने हालांकि कहा नहीं, लेकिन साफ़ कर दिया कि उनके बाद पार्टी की कमान स्टालिन संभालेंगे.
उन्होंने जनवरी 2013 में एक प्रेस वार्ता की. उस आयोजन में उन्होंने कथित तौर पर कहा, "अगर स्टालिन मेरे राजनीतिक उत्तराधिकारी हैं तो क्या ग़लत है? अगर मेरे पास अपना उत्तराधिकारी नियुक्त करने की शक्ति होती, तो मैं उनका नाम सामने रख देता."
उन्होंने 2016 के एक इंटरव्यू में भी इस बात को ज़ोर देकर कहा.
2018 में करुणानिधि के निधन के बाद, बहुत आसानी से सत्ता का हस्तांतरण हो गया. 2019 के आम चुनाव पार्टी ने उनके नेतृत्व में लड़ा और 38 निर्वाचन क्षेत्रों में से 37 जीत लीं.
थाउज़ैंड लाइट्स निर्वाचन क्षेत्र से लोगों के प्रतिनिधि के तौर पर राजनीतिक करियर की शुरुआत करने वाले स्टालिन को लेकर उनके पिता ने हमेशा से ही संकेत दे दिए थे. ये उनके लिए एक ताक़त भी रही और कमज़ोरी भी.
स्टालिन को करुणानिधि के उत्तराधिकारी के तौर पर पेश किए जाने के आरोपों की वजह से 1993 में पार्टी दो हिस्सों में बंट गई. नई पार्टी का नेतृत्व वाइको ने किया.
स्टालिन पर भी हैं 'वंशवाद की राजनीति' के आरोप
एमजीआर के डीएमके छोड़कर अपनी ख़ुद की पार्टी बनाने के बाद से ये सबसे बड़ी टूट थी. जैसे-जैसे पार्टी में स्टालिन की ताक़त और शोहरत बढ़ती गई, वैसे-वैसे परिवार में उनका विरोध बढ़ता गया.
2014 में करुणानिधि ने सार्वजनिक तौर पर स्वीकार किया कि स्टालिक को ज़्यादा ज़िम्मेदारियां देने की वजह से एमए अलागिरी ने उनके साथ बुरा व्यवहार किया. लेकिन करुणानिधि अपनी बात पर बने रहे और मुसीबतें खड़ी करने वाले अलागिरी को आख़िरकार पार्टी से निकाल दिया गया.
1970 और 1980 के दशक में उनके कामों को लेकर उनकी काफ़ी आलोचना हुई. लेकिन अपनी कड़ी मेहनत से उन्होंने सभी आलोचनाओं को दूर कर दिया.
अब स्टालिन पर भी उनके पिता की तरह ही "वंशवाद की राजनीति" के आरोप लगते हैं, क्योंकि उनके बेटे उदयनिधि को पार्टी में अहमियत दी जा रही है.
2021 का आगामी विधान सभा चुनाव ना सिर्फ एमके स्टालिन का राजनीतिक भविष्य तय करेगा, बल्कि उनकी पार्टी का भी भविष्य इसी पर निर्भर है.