'सुंदर, घरेलू और सुशील' दूल्हा क्यों नहीं ढूंढते?
मैचमेकिंग वेबसाइटों पर ऐसे सवालों का क्या मतलब है?
क्या आप खाना बना सकती हैं? आप किस तरह के कपड़े पहनती हैं? मॉडर्न, ट्रेडिशनल या दोनों? शादी के बाद नौकरी करेंगी या नहीं?
ये सवाल मुझसे लड़के के माता-पिता या घरवालों ने नहीं पूछा. ये सवाल पूछती हैं प्यार और शादी कराने का दावा करने वाली मैट्रिमोनियल वेबसाइटें.
पिछले कुछ दिनों से घरवाले मुझे शादी कराने वाली इन वेबसाइटों पर अकाउंट बनाने के लिए मनाने की कोशिश कर रहे थे.
इसे टालने के लिए सभी पैंतरे आज़माने के बाद उकताकर मैंने अकाउंट बनाने के लिए हां कही. सोचा, इसी बहाने बोरिंग ज़िंदगी में थोड़ा रोमांच आएगा.
पहली वेबसाइट पर मुस्कुराते जोड़े नज़र आए. साथ ही बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा था- 'love is looking for you, be found'. यानी हिंदी के आसान शब्दों में कहें तो प्यार आपको ढूंढ रहा है, उसकी रडार में तो आइए.
यानी मैं प्यार के रास्ते पर बढ़ रही थी. इसके लिए मुझे अपने धर्म, जाति, गोत्र, उम्र, शक्ल-सूरत, पढ़ाई-लिखाई और नौकरी की जानकारी देनी था.
सवालों की बौछार
खाना वेज खाती हूं या नॉनवेज, दारू-सिगरेट पीती हूं या नहीं, कपड़े मॉडर्न पहनती हूं या ट्रेडिशनल... ऐसी तमाम सवालों के जवाब देने थे.
फिर वही सवाल, इस लड़की से शादी कौन करेगा?
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फिर सवाल आया, क्या आप खाना बना सकती हैं? जवाब में 'नहीं' टिक करके आगे बढ़ी.
अगला सवाल था, शादी के बाद नौकरी करना चाहेंगी?
इतना सब बताने के बाद ये बताना था कि मैं किस तरह की लड़की हूं, लाइफ़ में मेरा क्या प्लान है...वगैरह-वगैरह.
मैं टाइप करने लगी- मुझे जेंडर मुद्दों में दिलचस्पी है...फिर याद आया ये रेज़्यूमे नहीं है. आख़िरकार जैसे-तैसे अकाउंट बन गया.
अब लड़कों के अकाउंट खंगालने की बारी थी. किसी ने नहीं बताया था कि वो खाना बना सकते हैं या नहीं.
किसी ने नहीं बताया था कि वो शादी के बाद ऑफ़िस का काम करना चाहेंगे या घर का. वो कौन से कपड़े पहनते हैं, इसका भी कोई ज़िक्र नहीं किया था.
लड़कों से ये सवाल नहीं
थोड़ी और पड़ताल करने पर पता चला कि लड़कों से ये सवाल पूछे ही नहीं गए थे.
बदलते वक़्त के साथ कदम मिलाकर चलने का दावा करने वाली आधुनिक वेबसाइट पर पुरुषों और महिलाओं को अलग-अलग चश्मों से देखा जा रहा था.
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इसके बाद शादी अरेंज करने वाली तीन-चार और वेबसाइटों पर नज़र दौड़ाई. सबमें तकरीबन एक से ही सवाल पूछे गए थे.
एक मैट्रिमोनियल साइट पर अगर आप दुल्हन ढूंढते हैं तो तो डिफ़ॉल्ट एज 20-25 साल दिखेगी और अगर दूल्हा ढूंढ रहे हैं तो डिफ़ॉल्ट एज '24-29'.
यानी लड़की की उम्र लड़के से कम होनी चाहिए, चाहे-अनचाहे इस धारणा को पुख़्ता किया जा रहा है.
दूसरी वेबसाइट पर अगर आप ये बताते हैं कि अकाउंट आपने ख़ुद बनाया है तो आपको कम लोग अप्रोच करेंगे. ऐसा वेबसाइट पर आने वाला नोटिफ़िकेशन कहता है.
मतलब आज भी हम अपने लिए जीवनसाथी ढूंढने वालों को शक़ की निगाह से देखते हैं. अगर किसी को शादी करनी है तो उसे अपने माता-पिता या भाई-बहन से अकाउंट बनाने के लिए कहना चाहिए.
फ़र्क बस इतना ही नहीं था. लड़के और लड़कियों की तस्वीरों में भी अंतर साफ़ देखा जा सकता है.
सेल्फ़ी में फर्क
लड़के जहां सेल्फ़ी और पूल में नहाने वाली तस्वीरें पोस्ट करते हैं वहीं ज्यादातर लड़कियां टिपिकल दुल्हन वाली भावभंगिमा में नज़र आती हैं.
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अख़बारों में छपे 'सुंदर, गोरी, पतली और घरेलू बहू' की मांग करने वाले विज्ञापन खूब देखे थे लेकिन इंटरनेट के ज़माने में मैट्रिमोनियल वेबसाइटों का यह रवैया हैरान करने वाला था.
अख़बारों में शायद ही कभी किसी ने 'सुंदर, घरेलू और सुशील' वर की मांग करने वाला विज्ञापन देखा हो. शायद ही कभी लड़कों को ख़ास तरह के कपड़ों में फ़ोटो भेजने को कहा गया हो.
ख़ैर, इन्हें तो पुरानी बातें कहकर जानें भी दें मगर इंटरनेट के ज़माने में मैट्रिमोनियल वेबसाइटों के यह रवैये पर सवाल कैसे न उठाएं?
ख़ासकर जब ऑनलाइन मैचमेकिंग इंडस्ट्री का मार्केट हज़ारों करोड़ रुपये का हो.
अरबों का कारोबार
एसोचैम के आंकड़ों के मुताबिक पिछले पांच सालों में मैट्रिमोनियल वेबसाइटों का बाज़ार तेजी से बढ़ा है और अब यह तकरीबन 15,000 करोड़ तक पहुंच गया है.
मैंने वेबसाइटों पर दिए नंबरों पर फ़ोन करने यह जानने की कोशिश की कि लड़कों और लड़कियों से पूछे जाने वाले सवालों में ये अंतर क्यों है.
ज्यादातर जगहों पर फ़ोन उठाने वालों ने व्यस्त होने की बात कहकर सवाल टाल दिए. मेरे भेजे ईमेल्स का भी कोई जवाब नहीं आया.
काफी देर बाद एक वेबसाइट के ऑफ़िस में आलोक नाम के कस्टमर केयर रिप्रजेंटेटिव ने फ़ोन उठाया.
उन्होंने कहा,"हमें अपने सवाल लोगों की ज़रूरतों के हिसाब से तय करने होते हैं. लगभग सभी लोग ऐसी लड़की चाहते हैं जो नौकरी के साथ-साथ घर भी संभाल सके.''
मेरी एक दोस्त से सैंडल उतारकर खड़े होने को कहा गया था ताकि भावी ससुराल वालों को उसकी लंबाई का सही अंदाज़ा लग सके.
मैचमेकिंग साइटों का तौर-तरीका मुझे इससे ज़्यादा अलग नहीं लगा.
मैट्रिमोनियल वेबसाइटों पर खूब पढ़े-लिखे और ऊंचे पदों पर काम करने वाले युवा रजिस्टर करते हैं. एनआरआई माता-पिता अपने बच्चों के लिए जीवनसाथी तलाशने यहां आते हैं.
ऐसी स्थिति में भी अगर कोई इस दोहरे रवैये पर आपत्ति नहीं कर रहा है तो निश्चित तौर पर परेशान करने वाली बात है.