जानिए क्यों दिल्ली में कांग्रेस ने बीजेपी के खिलाफ आप से गठबंधन करने से इनकार किया
नई दिल्ली: आम आदमी पार्टी के साथ दिल्ली में आगामी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पर गठबंधन की अटकलों पर सोमवार को एक बार फिर विराम लग गया। दिल्ली की कांग्रेस अध्यक्ष और 15 साल तक दिल्ली की गद्दी संभालने वाली शीला दीक्षित ने कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी से मुलाकात कर ये साफ कर दिया कि वो आने वाले आम चुनाव में अरविंद केजरीवाल की अगुवाई वाली आम आदमी पार्टी से कोई गठबंधन नहीं करेंगी। दिल्ली में कांग्रेस के आप के साथ संभावित गठबंधन को लेकर अहम बैठक हुई। इस बैठक में राहुल की बहन और कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी भी मौजूद थी। इससे पहले अटकलें लगाई जा रही थी कि कांग्रेस और आप दिल्ली की सात सीटों में 3-3 सीटों पर चुनाव लड़ सकती हैं और एक सीट निर्दलीय को दी जा सकती है। इस सीट पर बीजेपी के बागी सीनियर नेता और अटल विहारी सरकार में वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा की लड़ने की खबरें थी। वहीं एक अन्य फॉर्मूले जो सामने आया था, उसके मुताबिक आम आदमी पार्टी के दो और कांग्रेस के 5 सीटों पर चुनाव लड़ने की बात कही जा रही थी। दरअसल कांग्रेस की दिल्ली प्रदेश इकाई चाहती थी कि आने वाले चुनावों में अकेले लड़ा जाए। हालांकि इसे लेकर कांग्रेस में दो खेमे थे। एक खेमा चाहता था कि बीजेपी को दिल्ली में हराने के लिए कांग्रेस को आप से हाथ मिलाना चाहिए। गौरतलब है कि साल 2014 के चुनाव में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी का दिल्ली में खाता नहीं खुला था। वहीं बीजेपी ने सात सीटों पर क्लीन स्वीप किया था।
'कांग्रेस अकेले लडे़गी चुनाव'
राहुल गांधी से मुलाकात के बाद शीला दीक्षित ने कहा कि दिल्ली में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस में गठबंधन नहीं होगा। हमने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को भी इस बारे में बताया है और वह भी सहमत थे। इस बैठक में सर्वसम्मति से यह फैसला लिया गया। हम अकेले पूरे साहस के साथ चुनाव लड़ेंगे। इससे पहले भी शीला दीक्षित ने बयान दिया कि आप के साथ गठबंधन को लेकर कोई बातचीत नहीं हुई है। शीला के बयान के बाद ये तय हो गया है कि दिल्ली में लोकसभा चुनाव में त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिल सकता है। आम आदमी पार्टी की राज्य में सरकार और वहीं बीजेपी की केंद्र में सरकार है। कांग्रेस इन दोनों के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर का फायदा उठाने की भरपूर कोशिश करेगी। दिल्ली की शीला दीक्षित के पास दिल्ली की कमान है और उन्हें दिल्ली की राजनीति का खासा अनुभव हैं और कांग्रेस हाईकमान इसका पूरा फायदा उठाना चाहती है।
'आम आदमी पार्टी का दवाब काम नहीं आया'
दिल्ली की आम आदमी पार्टी ने पिछले शनिवार को दिल्ली की सात सीटों में 6 सीटों पर लोकसभा चुनाव के लिए अपने उम्मीदवारों का ऐलान किया था। उसने वेस्ट दिल्ली को छोड़कर बाकी सीटों पर अपने उम्मीदवार घोषित कर दिए हैं। अरविंद केजरीवाल ने पार्टी के भरोसेमंद लोगों को टिकट दिया था ताकि अगर भविष्य में कांग्रेस के साथ कोई गठबंधन की संभावना बने तो ये लोग विरोध ना करें। इसे कांग्रेस पर उनके गठबंधन के लिए दवाब की रणनीति के तौर पर भी देखा जा रहा था। आम आदमी पार्टी गठबंधन चाहती थी लेकिन कांग्रेस इसके लिए तैयार नहीं हुई। इससे पहले दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा था कि कांग्रेस दिल्ली में गठबंधन नहीं करना चाहती है। गोपाल राय ने भी पार्टी के उम्मीदवारों का ऐलान करते समय कहा था कि शीला दीक्षित ने सीधे गठबंधन से इनकार कर दिया। राहुल गांधी ने भी कहा कि ये संभव नहीं है। आम आदमी पार्टी गठबंधन चाहती थी लेकिन कांग्रेस इसके लिए तैयार नहीं हुई।
ममता, शरद और चंद्रबाबू चाहते थे गठबंधन
बीजेपी के खिलाफ प्रस्तावित महागठबंधन को लेकर टीडीपी प्रमुख चंद्र बाबू नायडू और एनसीपी प्रमुख शरद पवार पूरी ताकत से लगे हुए हैं। उन्होंने राहुल गांधी से आग्रह किया था कि वो दिल्ली में बीजेपी को कड़ी चुनौती देने के लिए आम आदमी पार्टी से गठबंधन करे। लेकिन उनकी ये कोशिश परवान नहीं चढ़ सकी। इससे पहले जनवरी में दिल्ली में शरद पवार के घर विपक्षी दलों की मीटिंग हुई थी। इसमें अरविंद केजरीवाल और राहुल गांधी भी शामिल हुए थे और सबने सहमति जताई कि बीजेपी की अगुवाई वाली एनडीए के खिलाफ राज्यों में विरोधी दलों को एक साथ आना चाहिए। तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी इस बैठक के बाद मीडिया को बताया था कि उन्होंने राहुल और केजरीवाल से साथ आने को कहा है।
आप का वोट शेयर हर चुनाव में बढ़ा
आम आदमी पार्टी ने साल 2013 में पहला चुनाव लड़ा था। उस समय दिल्ली में कांग्रेस की सरकार थी और शीला दीक्षित सीएम थीं। साल 2013 के चुनाव में आम आदमी पार्टी को 28 सीटें और 29 फीसदी वोट मिले थे। भाजपा को इस चुनाव में 31 सीटें मिली थीं और उसका वोट शेयर 33 फीसदी थी। कांग्रेस को इस चुनाव में सबसे ज्यादा नुकसान हुआ और उसे सिर्फ 8 सीटें मिली। इस चुनाव में इसका वोट शेयर 25 फीसदी था, जो बीजेपी और कांग्रेस से कम था। हालांकि चुनाव के बाद कांग्रेस के सहयोग से आम आदमी पार्टी से सरकार बनाई। लेकिन लोकपाल के मुद्दे पर केजरीवाल ने सीएम पद से इस्तीफा दे दिया। दिल्ली में कांग्रेस और आप की सरकार 49 दिन चली। इसके बाद साल 2014 में लोकसभा चुनाव हुए, जिसमें भाजपा ने राज्य में क्लीन स्वीप किया और सभी सीटें जीती। इस चुनाव में भाजपा को 47 फीसदी वोट मिले। वहीं आम आदमी पार्टी ने इस चुनाव में अपना खाता नहीं खोला पर उसे 33 फीसदी वोट मिला जो विधानसभा चुनाव से अधिक था। कांग्रेस इस चुनाव में बुरी तरह हारी और उसका वोट शेयर विधानसभा की तुलना में गिरकर 15 फीसदी हो गया। इसके बाद साल 2015 में हुए दिल्ली विधानसभा चुनाव में आप की लहर में भाजपा और कांग्रेस दोनों उड़ गए। आम आदमी पार्टी ने इस चुनाव में 67 सीटें जीती और उसका वोट शेयर बढ़कर 54 फीसदी हो गया। बीजेपी को मात्र 3 सीटें मिली और वोट शेयर घटकर 32 फीसदी हो गया। कांग्रेस का इस चुनाव में खाता नहीं खुला और वो 10 फीसदी वोट शेयर पर सिमट गई। आप के दिल्ली में उभरने का सबसे बड़ा नुकसान कांग्रेस को हुआ है और कांग्रेस को डर है कि अगर वो आप के साथ मिलकर लड़ती है तो राज्य में उसका अस्तित्व खत्म हो सकता है।