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नीतीश कुमार पर अमित शाह की मेहरबानी के पीछे की मजबूरी

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नई दिल्‍ली। 2019 लोकसभा चुनाव के लिए बिहार में बीजेपी और जदयू के बीच बराबर सीटों पर चुनाव लड़ने की सहमति बन गई है। लंबे समय से सीट बंटवारे को लेकर नीतीश कुमार और अमित शाह के बीच बातचीत चल रही थी। अब जाकर दोनों दलों सहमत हुए हैं। 2014 लोकसभा चुनाव में बिहार की 30 सीटों पर चुनाव लड़कर 22 सीटें जीतने वाली बीजेपी आखिर अब 16 सीटों पर लड़ने के लिए कैसे मान गई? निश्चित रूप से नीतीश कुमार के लिए यह बड़ी जीत है, लेकिन अमित शाह इतने मेहरबान क्‍यों हो गए? यह सवाल हर किसी के जेहन में आ रहा है। क्‍या यह समझा जाए कि अमित शाह ने मान लिया है कि 2019 लोकसभा चुनाव में बीजेपी अपने दम पर सत्‍ता में वापसी नहीं कर सकती है? आखिर वे कौन से कारण हैं, जिनके चलते अमित शाह को नीतीश कुमार के सामने झुकना पड़ा।

खराब चुनावी प्रदर्शन और बढ़ती चुनौतियों से बीजेपी बैकफुट पर

खराब चुनावी प्रदर्शन और बढ़ती चुनौतियों से बीजेपी बैकफुट पर

गुजरात को बीजेपी या यूं कहें कि अमित शाह और नरेंद्र मोदी का गढ़ माना जाता है। पिछले गुजरात विधानसभा चुनाव में बीजेपी जैसे-तैसे सत्‍ता में वापसी कर सकी। इसके बाद कर्नाटक विधानसभा चुनाव में भी वह बहुमत के करीब तो आ गई, लेकिन सत्‍ता हासिल नहीं कर सकी। उत्‍तर प्रदेश समेत विभिन्‍न राज्‍यों में उपचुनावों में बीजेपी को करारी हार का सामना करना पड़ा। बात सिर्फ चुनावी हार तक ही सीमित नहीं है। नीरव मोदी और मेहुल चौकसी का देश से भाग जाना, विजय माल्‍या को अब तक देश नहीं लाया जा सका है। एमजे अकबर, राफेल, सीबीआई, किसान और दलित आंदोलनों ने बीजेपी की चुनौती बढ़ा दी है। इन सब कारणों के चलते नीतीश कुमार बीजेपी पर दबाव बनाने में कामयाब रहे।

अब गठबंधन का महत्‍व समझ रही है बीजेपी, नहीं चलेगी एकला चलो की नीति

अब गठबंधन का महत्‍व समझ रही है बीजेपी, नहीं चलेगी एकला चलो की नीति

2014 लोकसभा में प्रचंड जीत के बाद महाराष्‍ट्र, झारखंड, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश समेत कई राज्‍यों में बीजेपी ने भगवा फहराया। उस समय बीजेपी अध्‍यक्ष अमित शाह का रवैया गठबंधन सहयोगियों के प्रति इतना उदार नहीं था। चंद्रबाबू नायडू के एनडीए से अलग हो गए। शिवसेना लगातार बीजेपी के खिलाफ जहर उगल रही है। ऐसे में एनडीए कुनबे में बिखराव का डर बना हुआ है। दूसरी ओर सभी चुनावी सर्वे 2019 में मोदी की वापसी की तो बात कर रहे हैं, लेकिन अगले चुनावों में बीजेपी को प्रचंड बहुमत की भविष्‍यवाणी नहीं कर रहे हैं। ऐसे में बीजेपी को मजबूत गठबंधन सहयोगियों की जरूरत पड़ेगी। अब देखना रोचक होगा कि जिस प्रकार से नीतीश कुमार को बीजेपी ने बराबर सीटें दी हैं, क्‍या उसी प्रकार से शिवसेना के साथ भी सीट बंटवारा हो सकेगा?

बिहार में महागठबंधन को रोकना अमित शाह के लिए थी बड़ी चुनौती

बिहार में महागठबंधन को रोकना अमित शाह के लिए थी बड़ी चुनौती

उत्‍तर प्रदेश में सपा-बसपा-कांग्रेस-आरएलडी महागठबंधन की चर्चा गरम है। सपा-बसपा तो साथ आने की बात स्‍पष्‍ट कह चुके हैं। 80 लोकसभा सीटों वाले उत्‍तर प्रदेश में महागठबंधन से बीजेपी को बड़ा नुकसान हो सकता है। अगर नीतीश को अमित शाह नहीं मनाते तो जाहिर है कि बिहार में भी महागठबंधन का रास्‍ता साफ हो जाता। महागठबंधन से बिहार विधानसभा चुनाव में बीजेपी एक बार हार का सामना कर ही चुकी है। अगर यूपी और बिहार दोनों में महागठबंधन बन जाता है तो 120 लोकसभा सीटों पर बीजेपी के लिए कठिन चुनौती खड़ी हो जाती।

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English summary
why bjp president Amit Shah has been so generous to Nitish Kumar in seat sharing in Bihar
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