क्विक अलर्ट के लिए
अभी सब्सक्राइव करें  
क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

जब एक मुख्यमंत्री के विरोध से लाचार हो गये थे प्रधानमंत्री नेहरू

Google Oneindia News

नई दिल्ली, 19 जुलाई। पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने सोनिया गांधी को चुनौती दे कर भारतीय राजनीति के पुराने दौर की याद दिला दी। तब राज्यों के कई मुख्यमंत्री इतने शक्तिशाली होते थे कि वे वाजिब मुद्दों पर अपने आलाकमान (प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू) के सामने डट कर खड़े हो जाते थे। अब न तो वह कांग्रेस रही न वैसे नेता। जब 2004 से 2014 तक यूपीए का शासन था सोनिया गांधी सत्ता की सूत्रधार थीं।

when congress bidhan chandra roy opened front against Pandit jawaharlal nehru

कांग्रेस शासित राज्यों के मुख्यमंत्री आंख मूंद कर उनके आदेशों का पलन करते थे। लेकिन इस बीच पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने अपनी अलग छवि बनायी। 2017 में उन्होंने अपने दम पर कांग्रेस को सत्ता दिलायी। जनता में उनकी पैठ है। इसलिए वह सोनिया गांधी को यह कहने की हिम्मत दिखा सके कि उन्हें पंजाब के मामले में दखल देने की जरूरत नहीं है। यह कांग्रेस का पतनशील दौर है और सोनिया गांधी लुंजपुंज पार्टी का नेतृत्व कर रही हैं। लेकिन एक वह भी दौर था जब पंडित जवाहर लाल नेहरू जैसे लोकप्रिय प्रधानमंत्री को कांग्रेस के ही एक मुख्यमंत्री ने चुनौती दे कर लाचार कर दिया था। इस शक्तिशाली मुख्यमंत्री का नाम था विधानचंद्र राय जिनके हाथ में पश्चिम बंगाल की बागडोर थी।

बेरूबाड़ी समझौते पर पंडित नेहरू का विरोध

बेरूबाड़ी समझौते पर पंडित नेहरू का विरोध

डॉ. विधानचंद्र राय 1948 में पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री बने थे। जनता में उनकी अपार लोकप्रियता थी। वे विख्यात चिकित्सक थे। उन्होंने लंदन से एफआरसीएस और एमआरसीपी की डिग्री हासिल की थी जो उस समय भारत के विरले डॉक्टरों के पास ही थी। वे प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के चिकित्सक भी थे। दोनों में निकटता भी थी। लेकिन विधानचंद्र राय वाजिब मुद्दों पर पंडित नेहरू का विरोध करने में बिल्कुल नहीं हिचकते थे। 1958 में प्रधानमंत्री नेहरू ने पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री फिरोज खान नून के साथ एक समझौता किया था। इस समझौते के तहत पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के बेरूबाड़ी इलाके को पूर्वी पाकिस्तान को दिया जाना था। नेहरू के इस फैसले का विधानचंद्र राय ने विरोध किया। उन्होंने सवाल उठाया कि कैसे कोई सरकार भारतीय भूभाग को किसी दूसरे देश को दे सकती है। पूरे पश्चिम बंगाल में नेहरू के इस समझौते के खिलाफ गुस्सा फूट गया। आंदोलन होने लगे।

Recommended Video

Punjab Congress Chief Sidhu: नवजोत सिंह सिद्धू बने पंजाब कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष | वनइंडिया हिंदी
क्या है बेरूबाड़ी विवाद ?

क्या है बेरूबाड़ी विवाद ?

बेरूबाड़ी आजादी के समय से ही भारत का हिस्सा रहा था। लेकिन भारत पाकिस्तान सीमा का रेखांकन करने वाले सर रैडक्लिफ की गलती के कारण बेरूबाड़ी पर विवाद हो गया। रैडक्लिफ ने बेरूबाड़ी का नक्शा को भारतीय क्षेत्र का बना दिया लेकिन लिखित रूप में उसके थाना क्षेत्र का जिक्र नहीं किया। बेरूबाड़ी, पूर्वी पाकिस्तान के बोडा थाना क्षेत्र से सटा हुआ था। शुरू में पाकिस्तान ने इस पर कोई एतराज नहीं जताया था। लेकिन 1952 में उसने बेरूबाड़ी पर दावा कर दिया। उस समय भी पाकिस्तान के इस दावे का पश्चिम बंगाल में पुरजोर विरोध हुआ था। इसके कुछ समय बाद पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री विधानचंद्र राय ने विधानसभा में एक प्रस्ताव रखा जिसमें बेरूबाड़ी को राज्य़ का अटूट हिस्सा बताया गया। राज्य सरकार ने स्पष्ट कर दिया कि वह अपनी किसी भूमि के हस्तांतरण का विरोध करेगी। सदन ने सर्वसम्मिति से यह प्रस्ताव पारित कर दिया। इसके बाद बेरूबाड़ी के आसपास के 12 हजार लोगों ने अपनी उंगुली काट कर राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद को एक पत्र लिखा था जिसमें कहा गया था, हम अपना खून देंगे, अपनी जान देंगे लेकिन बेरूबाड़ी कभी नहीं देंगे।

मुख्यमंत्री के विरोध से प्रधानमंत्री हो गये थे लाचार

मुख्यमंत्री के विरोध से प्रधानमंत्री हो गये थे लाचार

1958 के नेहरू-नून समझौते में तय हुआ था कि बेरूबाड़ी का आधा हिस्सा भारत में रहेगा और आधा हिस्सा पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में। लोगों के भयंकर विरोध को देख कर तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने इस समझौते को स्वीकृत करने से पहले सुप्रीम कोर्ट से इसकी वैधानिकता पर सलाह मांगी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कोई सरकार किसी भारतीय भूभाग को किसी दूसरे देश को नहीं दे सकती। अगर उसे समझौता लागू करना है तो इसके लिए संविधान संशोधन करना पड़ेगा। तब पंडित नेहरू ने इसके लिए नवां संविधान संशोधन विधेयक पेश किया था। मुख्यमंत्री विधानचंद्र राय के विरोध के चलते प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू लाचार हो गये थे।

इस लड़ाई का आपसी रिश्तों पर कोई असर नहीं

इस लड़ाई का आपसी रिश्तों पर कोई असर नहीं

1962 में प्रधानमंत्री नेहरू बीमार पड़े तो उनके इलाज के लिए प्रतिष्ठित डॉक्टरों का एक पैनल बनाया गया था। इस पैनल के प्रमुख चिकित्सक थे विधानचंद्र राय। पंडित नेहरू उनकी किसी डॉक्टरी सलाह को टालते नहीं थे। उस समय विधानचंद्र राय प्रधानमंत्री नेहरू को सख्ती से आदेश भी देते थे। पंडित नेहरू ने खुद ये बात एक इंटरव्यू में बतायी थी। पंडित नेहरू की छोटी बहन कृष्णाहठी सिंह ने अपनी किताब (इंदु से प्रधानमंत्री) में डॉ. विधानचंद्र राय के बारे में एक रोचग प्रसंग लिखा है। 1962 में नेहरू बीमार पड़ गये थे। संयोग से कृष्णाहठी सिंह उस समय प्रधानमंत्री निवास में ही थीं। बीमार पंडित नेहरू का इलाज चल रहा था। लेकिन उनकी सेहत में सुधार नहीं हो पा रहा था। तब कृष्णाहठी सिंह ने टेलीफोन पर विधानचंद्र राय से बात की। तब उन्होंने कहा कि आप चिंता मत करें, मैं प्रधानमंत्री महोदय को देखने के लिए दिल्ली आ रहा हूं। वे फौरन हवाई जहाज से दिल्ली पहुंचे। जब वे प्रधानमंत्री आवास पहुंचे तो पंडित नेहरू उन्हें देख कर चौंक गये। उन्होंने पूरी बात बतायी। डॉ. विधानचंद्र ने प्रधानमंत्री नेहरू की जांच की। नये सिरे से दवाइयां लिखीं। पहले की सभी दवाएं बंद कर दी। कुछ दिनों के बाद पंडित नेहरू की तबीयत ठीक हो गयी। तब राजनीति में विरोध केवल मुद्दों पर आधारित होता था। व्यक्तिगत रिश्ते प्रगाढ़ होते थे।

Comments
English summary
when congress bidhan chandra roy opened front against Pandit jawaharlal nehru
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
For Daily Alerts
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X