धारा 124ए क्या है ? सुप्रीम कोर्ट ने महात्मा गांधी, बाल गंगाधर तिलक का नाम लेकर क्यों उठाए सवाल
नई दिल्ली, 15 जुलाई: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को आईपीसी की धारा 124ए के प्रावधान पर सवाल उठाए हैं। इस धारा के तहत राजद्रोह अपराध की श्रेणी में आता है। अदालत ने कहा है कि यदि पुलिस किसी को फंसाना चाहती है तो इस धारा का इस्तेमाल कर सकती है। इस धारा के इस्तेमाल किए जाने को लेकर हर किसी में डर रहता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि राजद्रोह का कानून का इस्तेमालअंग्रेज, महात्मा गांधी और बाल गंगाधर के खिलाफ आजादी की आवाज को दबाने के लिए करते थे, आज इसका बेजा इस्तेमाल किया जा रहा है। कोर्ट ने कहा है कि जब सरकार कई कानूनों को खत्म कर चुकी है तो फिर इसमें क्या दिक्कत है।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा है ?
राजद्रोह को अपराध बनाने वाली आईपीसी की धारा 124ए अभी इसलिए चर्चा में है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जिस प्रावधान का इस्तेमाल अंग्रेज गांधी और तिलक जैसे स्वतंत्रता सेनानियों की आवाज दबाने के लिए करते थे, उसकी आज की तारीख में क्या आवश्यकता है। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एनवी रमना ने इस मामले पर सुनवाई करते हुए गुरुवार को कहा कि 'विवाद यह है कि यह एक औपनिवेशिक कानून है, जिसका इस्तेमाल अंग्रेजों की ओर से स्वतंत्रता को दबाने के लिए किया गया था और महात्मा गांधी और बाल गंगाधर तिलक के खिलाफ इस्तेमाल किया गया था। क्या आजादी के75 वर्ष बाद भी इस कानून की आवश्यकता है? हमारी चिंता इसके गलत इस्तेमाल को लेकर है और कार्यपालिका की कोई जवाबदेही नहीं है।' कोर्ट ने कहा है कि पुलिस किसी को भी फंसाना चाहती है तो यह धारा लगा सकती है और लोग इसको लेकर डरे रहते हैं।
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किसने दायर की है याचिका ?
सुप्रीम कोर्ट ने सेना के वयोवृद्ध मेजर-जनरल एसजी वोम्बटकेरे (सेवानिवृत्त) की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की है। उन्होंने अदालत में इस धारा को यह कहकर चुनौती दी है कि यह 'बोलने और अभिव्यक्ति की आजादी' का उल्लंघन करती है। बुधवार को अदालत ने अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल से इसपर सहायता मांगी थी। गुरुवार को सुनवाई के दौरान उन्होंने कहा कि 'इस धारा को खत्म करने की आवश्यकता नहीं है और केवल दिशा-निर्देश निर्धारित किए जाने चाहिए ताकि धारा अपने कानूनी उद्देश्य को पूरा कर सके।'
राजद्रोह कानून पर सुप्रीम कोर्ट ने क्यों जताई चिंता ?
चीफ जस्टिस के अलावा जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस हृषिकेश रॉय की अदालत ने इसपर कहा है कि सरकार ने आजादी के पहले के कई कानूनों को खत्म किया है, लेकिन राजद्रोह के प्रावधान को नहीं। कोर्ट ने कहा है, 'सरकार ने अब कई कानून वापस ले लिए हैं। मैं नहीं समझता कि आप इसे क्यों नहीं देख रहे हैं।' कोर्ट ने आगे कहा कि '(अगर) कोई दूसरे की आवाज को नहीं सुनना चाहता तो वह इस तरह के कानून का इस्तेमाल कर सकता है और दूसरे व्यक्ति को फंसा सकता है। यह लोगों (की आजादी)के लिए गंभीर सवाल है।' इस मामले में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने केंद्र सरकार की ओर से अदालत का नोटिस स्वीकार किया है।
धारा 124ए क्या है ?
आईपीसी की धारा 124ए के तहत राजद्रोह अभी एक अपराध है। इसके मुताबिक भारत में सरकारों के खिलाफ लिखित, मौखिक या किसी भी अन्य तरीके से अवमानना या घृणा पैदा करने या उकसाने की कोशिश पर इसका इस्तेमाल किया जा सकता है। यह एक गैर-जमानती अपराध है, जिसमें 3 साल से लेकर उम्रकैद तक की सजा या जुर्माना या दोनों हो सकती है। अगर किसी व्यक्ति पर यह धारा लगा दी जाए तो उसे सरकारी नौकरी करने में अड़चन आ सकती है और पासपोर्ट बनवाने में भी परेशानी हो सकती है। (अंतिम तस्वीर प्रतीकात्मक)