पूर्व चुनाव आयुक्त ने कहा- वोटिंग के बाद बजट पेश होगा तो कुछ बिगड़ नहीं जाएगा
'मेरे कार्यकाल में दो बार ऐसा हुआ जब बजट राज्यों के चुनाव के एकदम पास था। साल 2008 में नॉर्थ-ईस्ट के तीन राज्यों में चुनाव होने थे लेकिन तब किसी ने इसे मुद्दा नहीं बनाया
नई दिल्ली। चुनाव आयोग के पूर्व प्रमुख एसवाई कुरैशी ने कहा कि चुनाव के समय बजट न पेश किया जाए तो कोई बहुत बड़ा नुकसान नहीं होने वाला। उन्होंने कहा कि अगर सरकार ने पहले ही आयोग को इस बात की जानकारी दी होती तो शायद इसे लेकर बेहतर तरीके से प्लानिंग हो सकती थी। सरकार ने अगर चुनाव आयोग को बताया होता तो इस बर चर्चा के जरिए बेहतर सामाधान निकाला जा सकता था। कुरैशी ने कहा कि अगर चुनाव के पहले या बाद में बजट पेश किया जाता है तो कुछ बिगड़ेगा नहीं। उन्होंने कहा, 'मेरे कार्यकाल में दो बार ऐसा हुआ जब बजट राज्यों के चुनाव के एकदम पास था। साल 2008 में नॉर्थ-ईस्ट के तीन राज्यों में चुनाव होने थे लेकिन तब किसी ने इसे मुद्दा नहीं बनाया। साल 2012 में सरकार में सरकार ने खुद ही बजट की तारीख को आगे बढ़ा दिया था।'
'लोक
राज
ही
नहीं
लोक
लाज
की
भी
चिंता
हो'
इंडियन
एक्सप्रेस
से
बातचीत
में
एसवाई
कुरैशी
ने
कहा
कि
सरकार
आसानी
से
यह
काम
कर
सकती
है।
लेकिन
आयोग
चुनाव
के
समय
राज्यों
में
नियमों
के
तहत
चीजें
लागू
करता
है।
राज्य
और
केंद्र
के
बजट
में
ज्यादा
फर्क
नहीं
होता।
उन्होंने
कहा,
'हमें
आदर्श
आचार
संहिता
को
बरकरार
रखने
की
जरूरत
है।
निष्पक्षता
बनी
रहनी
चाहिए।
एक
सीनियर
नेता
(देवी
लाल)
ने
कहा
था-
लोगों
को
लोक
राज
की
ही
नहीं
लोक
लाज
की
भी
फिक्र
करनी
चाहिए।'
उन्होंने
कहा
कि
नियमावली
के
7वें
चैप्टर
में
यह
लिखा
है
कि
चुनाव
के
समय
ऐसी
घोषणा
योजना
की
शुरुआत
नहीं
की
जानी
चाहिए
जिससे
पार्टियों
को
नुकसान
हो।
बजट
पेश
करना
इसी
कैटेगरी
में
आएगा।
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की
तस्वीर
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मंत्री
बोले-
गांधी
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जगह
कोई
नहीं
ले
सकता
'धर्म
के
नाम
पर
मांगे
जा
रहे
वोट'
चुनाव
आयोग
के
पूर्व
प्रमुख
ने
कहा
कि
बजट
को
चुनाव
के
बाद
भी
पेश
किया
जा
सकता
है।
इसमें
कोई
परेशानी
की
बात
नहीं
है।
लेकिन
पहले
बजट
आने
से
वोट
प्रभावित
हो
सकते
हैं।
उन्होंने
कहा
कि
सुप्रीम
कोर्ट
ने
मामले
की
सुनवाई
के
दौरान
सिर्फ
वही
कहा
जो
कानूनन
लिखा
है।
यह
आने
वाले
अंजाम
का
अच्छा
रिमांइडर
भी
है।
उन्होंने
कहा
कि
सुप्रीम
कोर्ट
को
बेहतर
पता
है
कि
यहां
क्या
होना
चाहिए।
कुरैशी
ने
कहा
कि
राज्यों
में
जिस
तरह
धर्म
के
नाम
पर
वोट
मांगे
जा
रहे
हैं
वह
भी
चिंता
की
बात
है।