जिनपिंग का भारत दौरा- सीमा विवाद से ज्यादा अहम होते व्यापारिक रिश्ते
नई
दिल्ली(विवेक
शुक्ला
चीन
के
राष्ट्रपति
शी
जिनपिंग
की
आज
से
शुरू
हो
रही
अहम
भारत
यात्रा
के
दौरान
सीमा
विवाद
पर
तो
बातचीत
होगी
ही,आपसी
व्यापार
को
बढ़ाने
पर
कुछ
फैसले
हो
सकते
हैं।
भारत-चीन के बीच जटिल सीमा विवाद के बाद भी व्यापारिक रिश्ते जिस तेजी से कदमताल कर रहे हैं,उसकी एक बनागी पेश है। आप भी नजर डालिए।
भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझीदार
करीब 49.5 अरब डॉलर के द्विपक्षीय व्यापार के साथ चीन भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक सांझीदार देश बन गया है। उद्योग संगठन पीएच.डी. चैम्बर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री की ताजा-तरीन रिपोर्ट में कहा गया है कि इसके अमरीका दूसरे और संयुक्त अरब अमीरात तीसरे स्थान पर आते हैं।
ये आंकड़े बहुत कुछ कहते हैं। भारत-चीन के व्यापारिक संबंध जिस तरह से मजबूत होते जा रहे हैं,वे उन तमाम देशों के लिए उदाहरण हो सकते हैं जो सीमा विवाद में उलझने के कारण आगे नहीं बढ़ रहे।
भारत-चीन के सीमा विवाद को मालूम नहीं कि हल होने में और कितने साल-दशक और लगेंगे, पर अच्छी बात ये है कि इन दोनों मुल्कों ने आपसी व्यापारिक संबंधों के महत्व को समझ लिया है।
दरअसल दोनों देशों की लीडरशिप जन्नत की हकीकत से वाकिफ है। उसे आपसी सहयोग के महत्व और लाभ की जानकारी है।
इसलिए भारत और चीन के बीच सहयोग की नई संभावनाओं के द्वार खुलते नजर आ रहे हैं। दोनों देशों के बीच व्यापारिक संबंध जिस रफ्तार से बढ़ रहे हैं,उसे उसी आलोक में देखने की जरूरत है।
चीन की चाहत
चीनी कारोबारी और सरकार अब भारत को एक नया रास्ता सुझा रही है। भारत को चीन को यह छूट देनी चाहिए कि वह हमारे देश में निवेश कर सके और उत्पादन कर सके ताकि उत्पादों का मूल्य वर्द्धन यहीं हो और भारत में बने उत्पादों का निर्यात चीन की तुलना में बढ़ सके।
चीन की एक इस्पात कंपनी के सीईओ ने फिक्की के एक कार्यक्रम में कहा था कि अगर उन्हें भारत में ही अयस्क प्रसंस्करण के लिए उत्पादन इकाई लगाने की मंजूरी मिल जाए तो वह खुशी- खुशी भारत से अयस्क का आयात छोड़ देगा।
क्या भारत में उत्पादन इकाइयां लगाने के लिए अनुकूल माहौल है? प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तो इस दिशा में खासे गंभीर हैं। वे तो चाहते हैं कि भारत को मैन्यूफैक्चरिंग हब बनाया जाए। जाहिर है, भारत को चीनी व्यापारियों की इच्छाओं को समझना होगा अगर उसे वहां से निवेश की दरकार है।
कुछ और देशों की तरह चीन को भी लगता है कि भारत में नौकरशाही अड़चनें दूर होनी चाहिए, बुनियादी सुविधाओं को बेहतर बनाया जाए और विदेशी निवेशकों का और तहेदिल से स्वागत किया जाना चाहिए।
चीन एक उभरता बाजार और निवेश का स्त्रोत है। चीन का दावा है कि वह निर्यात के साथ-साथ आयात शक्ति भी है और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का स्त्रोत और लक्ष्य भी है।
व्यापार घाटे का क्या हो
चीन भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है, लेकिन उसके साथ भारत का 29 अरब डॉलर का विशाल व्यापार घाटा भी है। मान कर चलिए कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी चीनी राष्ट्रपति से इस मसले को उठाएंगे। लेकिन मोदी अवश्य ही यह जानते हैं कि हर व्यापारिक भागीदार के साथ व्यापार घाटे को संतुलित करने की सोच गलत है।
विश्व व्यापार की खूबसूरती इसी बात में है कि यह हर देश को अपने विशिष्टि क्षेत्र में और ज्यादा महारत हासिल करने के लिए प्रेरित करता है। अपनी इस महारत का उपयोग निर्यात बढ़ाने में करके वह इससे अर्जित धन का इस्तेमाल उन चीजों के आयात में कर सकता है, जिन्हें अन्य देश ज्यादा बेहतर तरीके से बना सकते हैं।
इससे सभी देशों की विशेषज्ञता किसी क्षेत्र विशेष में बढ़ती है और इसका नतीजा भूमंडलीय उत्पादकता सुधरने तथा हर पक्ष के लिए फायदे की स्थिति बनने के रूप में सामने आता है।
भारत जिस भी चीज का निर्यात कर सकता है, उसको उसे अपने लिए सबसे ज्यादा फायदेमंद जगह पर अच्छी से अच्छी कीमत लेकर बेचना चाहिए। साथ ही उसे अपनी जरूरत की चीजें ऐसी हर संभव जगह से मंगानी चाहिए, जहां वे कम से कम कीमत पर उपलब्ध हों।
तात्पर्य यह कि भारत को अपेक्षाकृत कम होड़ वाले देशों से व्यापार मुनाफे की स्थिति में रहना चाहिए जबकि अधिक होड़ वाले देशों के साथ व्यापार घाटे को स्वीकार करना चाहिए। जो देश कीमतों को लेकर जितना ज्यादा होड़ करता हो, भारत को उससे उतनी ही ज्यादा खरीदारी करनी चाहिए और उसके साथ व्यापार घाटा भी उतना ही ज्यादा रखना चाहिए।
चीन का मुकाम इस मामले में अभी संसार में सबसे ऊंचा है, लिहाजा भारत का सबसे ज्यादा व्यापार घाटा उसी के साथ होगा।
बेहतर होगा कि इसको लेकर परेशान होने के बजाय हम इसको इस तरह देखें कि समझदारी दिखाते हुए अपनी जरूरतें हम सबसे सस्ते स्रोत से पूरी कर रहे हैं। शीर्ष चीनी नेता भी खुलकर कई बार चीन के साथ भारत के ऊंचे व्यापार घाटे पर चिंता व्यक्त कर चुके हैं और वर्ष 2015 तक द्विपक्षीय व्यापार को 100 अरब डालर तक पहुंचाने में इसे बड़ी अड़चन के रुप में देख रहे हैं।
व्यापार घाटे का एक सच ये भी
भारत से चीन के साथ व्यापार घाटे को समझने के लिए भारत-पाकिस्तान के बीच के व्यापारिक संबंधों को समझने की जरूरत है। पाकिस्तान ने लंबे समय से भारतीय सामानों के खिलाफ ट्रेड बैरियर खड़े कर रखे हैं।
नतीजा यह है कि अपनी जरूरत की चीजें उसे भारत से कहीं ऊंचे दामों पर खरीदनी पड़ रही हैं। इससे भारतीय निर्यातकों और पाकिस्तानी उपभोक्ताओं, दोनों का नुकसान हो रहा है।
पाकिस्तान का कहना है कि वह जल्द ही भारत के साथ व्यापार को और आसान बनाएगा। ऐसा हुआ तो पाकिस्तान के साथ भारत का ट्रेड सरप्लस और बढ़ जाएगा।
आथिर्क दृष्टि से यह दोनों के लिए अच्छा रहेगा, क्योंकि पाकिस्तानी उपभोक्ताओं के अलावा भारतीय निर्यातकों को भी इसका फायदा मिलेगा। कई पाकिस्तानी इस संभावना से क्षुब्ध हैं। उसी तरह, जैसे चीन के साथ भारत के बढ़ते व्यापार घाटे से कई भारतीय अभी इतने क्षुब्ध हैं।
क्या लेता है-क्या देता है
भारत-चीन व्यापार के स्वरूप को लेकर भी चिंताए जाहिर की जाती हैं। भारत मुख्य रूप से लौह अयस्क और अन्य जिंसों का निर्यात करता है, जबकि चीन से वह बनी-बनाई चीजें, खासकर मशीनरी और टेलिकॉम उपकरण मंगाता है। जानकार जिंसों को बनी-बनाई चीजों से निम्नतर कोटि की मानते हुए चीन-भारत व्यापार में एक किस्म का अन्याय देखते हैं।
यह सोच निराधार है। अंबानी (तेल, गैस, फाइबर), टाटा (स्टील, खाद, बिजली) और बिड़ला (अल्युमिनियम,तांबा, सीमेंट) कोई निम्नतर कोटि के उद्योगपति नहीं हैं।
चीन और भारत दोनों ने ही अभी व्यापार के रास्ते में काफी दीवारें खड़ी कर रखी हैं और उन्हें देर-सबेर इनको नीचे लाना होगा। लेकिन इस मामले में भारत की चिंता व्यापार घाटा कम करने की नहीं बल्कि अपनी उत्पादकता और होड़ की क्षमता बढ़ाने की होनी चाहिए।
एक बार ऐसा हो गया तो चीन समेत सारे ही देशों से भारत का व्यापार घाटा अपने आप नीचे आने लगेगा। देश का भारी उद्योग कच्चे माल व तैयार उत्पाद के लिए चीन पर काफी ज्यादा आश्रित है।
चीन से आयात होने वाली पांच प्रमुख चीजें हैं इलेक्ट्रिकल मशीनरी व उपकरण, मैकेनिकल मशीनरी व उपकरण, प्रोजेक्ट गुड्स, आर्गेनिक केमिकल और लौह व इस्पात। कुछ सालों से बिजली व दूरसंचार उपकरणों के आयात में काफी तेजी आई है।