भारत ने ग्लोबल मार्केट से कोरोना वैक्सीन खरीदने की प्रक्रिया में काफी देरी की, टॉप वायरोलॉजिस्ट ने कही ये बात
भारत ने ग्लोबल मार्केट से कोरोना वैक्सीन खरीदने की प्रक्रिया में काफी देरी की, टॉप वायरोलॉजिस्ट ने कही ये बात
नई दिल्ली, 24 मई: भारत की टॉप वायरोलॉजिस्ट (शीर्ष विषाणु विज्ञानी) डॉ. गगनदीप कांग ने कहा है कि भारत ने अंतरराष्ट्रीय बाजार से कोरोना वायरस की वैक्सीन खरीदने की प्रक्रिया में काफी देरी की है। इसलिए अह भारत के पास बहुत ही सीमित विकल्प बचे हैं। डॉ. गगनदीप कांग ने सवाल उठाते हुए कहा क्या हमने इस प्रक्रिया को टेबल पर आने में थोड़ी देर नहीं कर दी है, अब हमारे पास ऑप्शन ही क्या बचे हैं? वायरोलॉजिस्ट डॉ. गगनदीप कांग सुप्रीम कोर्ट द्वारा मेडिकल ऑक्सीजन पर गठित समिति की सदस्य भी हैं। गगनदीप कांग ने कहा, "बाकी दुनिया एक साल से जोखिम उठाकर वैक्सीन खरीद रही है, तो अब ग्लोबल मार्केट में हमारे लिए क्या सप्लाई बची है, कि अभी जाकर कहें कि हम टीके खरीदना चाहते हैं?''
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एनडीटीवी से बात करते हुए डॉ. गगनदीप कांग का ये बयान ऐसे वक्त आया है, जब कई राज्यों ने कोविड-19 वैक्सीन के लिए ग्लोबल टेंडर जारी किए हैं। केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने राज्यों को ग्लोबल टेंडर जारी कर सीधे विदेश से वैक्सीन थोक ऑर्डर लेने को कहा है। उत्तर प्रदेश, ओडिशा, महाराष्ट्र, दिल्ली समेत कुछ राज्यों ने विदेश से सीधे वैक्सीन खरीदने के लिए ग्लोबल टेंडर जारी किए हैं।
डॉ. गगनदीप कांग ने कहा, अगर आप जाइडस कैडिला, बायोलॉजिकल ई जैसी कंपनियों के पास जा सकते हैं, जिसकी कोविड वैक्सीन इस साल के अंत तक आने वाली है, आप उनसे ये बोल सकते हैं कि वह अपने प्रोडक्शन में तेजी लाएं और ज्यादा से ज्यादा वैक्सीन पैदा करें। आप उनसे कह सकते हैं कि अगर आपके ट्रायल सफल रहे तो हम सारी खरीद लेंगे। मुझे लगता है कि हमें इस तरह से और ज्यादा वैक्सीन मिल सकती है।
ट्रायल मोड में ही कोविड-19 वैक्सीन को लेकर निवेश के जोखिम के सवाल पर डॉ. कांग ने कहा, मुझे निश्चित रूप से लगता है कि हमें जोखिम उठाकर ऐसा करना चाहिए। और यदि हम करते हैं, तो यह हमें भविष्य के लिए भी अच्छी तरह से तैयार करता है क्योंकि आप एक मिसाल कायम करते हैं। हम इससे पैमाना साबित करेंगे और बताएंगे कि हम शोध और इनोवेशन में भी निवेश करने को तैयार हैं।
बता दें कि वैक्सीन की खरीद पर भारत की नीति की व्यापक रूप से आलोचना की गई है। संयुक्त राज्य अमेरिका ने पिछले साल मार्च में कोविड वैक्सीन लगवाने के लिए ऑपरेशन वार्प स्पीड में 10 बिलियन का निवेश किया था, वो भी उस वक्त जब वैक्सीन बनी भी नहीं थी। भारत ने कभी भी वैक्सीन के क्लीनिकल ट्रायल के लिए कोई भुगतान नहीं किया है।