भारतीय महिला क्रिकेट का '83 वाला है ये लम्हा
महिलाओं के अंडर-19 टी-20 विश्व कप में भारत ने इंग्लैंड को सात विकेट से हरा कर इतिहास रच दिया है. इस जीत के भारतीय महिला क्रिकेट के लिए क्या मायने हैं.
भारतीय महिला क्रिकेट के लिए शायद ये 1983 जैसा लम्हा है. कपिल देव की कप्तानी में भारत ने वर्ल्ड कप जीता और उसके बाद भारतीय क्रिकेट हमेशा के लिए बदल गया. तो क्या ये महिला क्रिकेट के लिए टर्निंग प्वाइंट है?
जी हाँ, वो लंबा इंतज़ार ख़त्म हुआ. भारतीय महिला क्रिकेट के लिए 29 जनवरी की तारीख़ ख़ास बन गई. सचिन तेंदुलकर के रिकॉर्ड पर अपना नाम लिखने वाली लड़की शेफ़ाली वर्मा ने अपनी टीम को वर्ल्ड चैंपियन बना दिया.
कोच नूशीन-अल-ख़दीर उस टीम का हिस्सा थीं जो 18 साल पहले फ़ाइनल में पहुँच कर ख़िताब नहीं जीत पायी थी. वो कसक अब मुस्कान में तब्दील हो गई है.
भारतीय महिला क्रिकेट टीम पहली बार वर्ल्ड चैंपियन बनी है. कई बार ख़िताब के पास पहुँच कर चूक गयी थी. 2005 में भारत वनडे वर्ल्ड कप के फ़ाइनल में पहुँचा था, मगर ऑस्ट्रेलिया से 98 रन से हार गया था.
साल 2017 में वनडे विश्व कप के फ़ाइनल में इंग्लैंड ने भारत के हरा दिया था. 2020 के T20 वर्ल्ड कप के फ़ाइनल में ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ भारत 85 रन से हार गया था.
पिछले साल कॉमनवेल्थ गेम्स में भी भारतीय टीम ख़िताब नहीं जीत सकी थी. रविवार लड़कियों ने फ़ाइनल का जिंक्स तोड़ दिया. जूनियर टीम ने सबका बदला ले लिया वो भी प्रतिद्वंद्वी को रौंदते हुए.
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ज़बर्दस्त गेंदबाज़ी, शानदार क्षेत्ररक्षण
महिलाओं का ये पहला ही अंडर-19 वर्ल्ड कप था और भारतीय लड़कियों ने कमाल कर दिया. शेफ़ाली वर्मा और पूरी अंडर-19 महिला क्रिकेट टीम इसके लिए बधाई की हक़दार हैं.
दक्षिण अफ़्रीका के पोचेफ़स्ट्रॉम में खेले गए पहले आईसीसी महिला अंडर-19 वर्ल्ड कप ख़िताब पर भारत ने क़ब्ज़ा जमाया. इस टूर्नामेंट में भारतीय टीम ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ हारी थी जबकि इंग्लैंड की टीम टूर्नामेंट में अपराजेय थी.
ज़ाहिर है इतिहास और रिकॉर्ड दोनों इंग्लैंड के साथ थे. मगर भारत की ज़बर्दस्त गेंदबाज़ी और शानदार क्षेत्ररक्षण के सामने इंग्लैंड के मंसूबों पर पानी फिरता चला गया और तैयारियाँ धरी की धरी रह गयीं.
दोनों टीमों ने फ़ाइनल के लिए कोई बदलाव नहीं किया था. इंग्लैंड ने सेमीफ़ाइनल में ऑस्ट्रेलिया तो भारत ने न्यूज़ीलैंड को 8 विकेट से हराया था.
फ़ाइनल उसी पिच पर खेला गया जिस पर दोनों टीमों ने सेमीफ़ाइनल खेला था. भारत ने टॉस जीतकर गेंदबाजी का फ़ैसला किया.
भारतीय गेंदबाज़ों ने पिच पर क़हर बरपा दिया. तेज़ गेंदबाज़ तितास साधु, ऑफ़ स्पिनर अर्चना देवी और लेग स्पिनर पार्श्वी चोपड़ा के सामने इंग्लैंड ने मानो घुटने टेक दिए.
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इंग्लैंड को निराशा
लगातार दूसरे मैच में इंग्लैंड की बल्लेबाज़ी लड़खड़ा गयी. इंग्लैंड की टीम 18वें ओवर की पहली गेंद पर 68 रन पर ढेर हो गई.
भारत की ओर से तितास साधु, अर्चना देवी और पार्श्वी चोपड़ा ने क्रमशः 6, 17 और 13 रन देकर 2-2 विकेट लिए.
कप्तान शेफ़ाली वर्मा, मन्नत कश्यप और सोनम यादव ने भी एक-एक विकेट लिए. पार्श्वी चोपड़ा की गेंद पर एक हैरतअंगेज़ कैच पकड़कर अर्चना देवी ने क्रिकेट फ़ैंस का दिल जीत लिया.
इंग्लैंड की हॉलैंड, रेयाना मैकडोनल्ड-गे, एलेक्सा स्टोनहाउस और सोफ़िया स्मेल तीन ही खिलाड़ी दहाई का आंकड़ा छू पाईं.
भारत की ओर से शेफ़ाली वर्मा और श्वेता सहरावत ने पारी की शुरुआत की. शेफ़ाली 11 गेंद में 15 रन बनाकर आउट हुईं.
दूसरी ओपनर श्वेता सहरावत 6 गेंद में 5 रन बनाकर पवेलियन लौटीं. मगर भारत ने 14 ओवर में लक्ष्य हासिल कर लिया.
आगामी 10 फ़रवरी से सीनियर महिला क्रिकेट वर्ल्ड कप भी खेला जाना है.
शायद इसीलिए इंग्लैंड की तीन सीनियर खिलाड़ी इस मैच को देखने के लिए ख़ासतौर पर पहुँची थीं.
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तेंदुलकर का रिकॉर्ड तोड़ा था शेफ़ाली वर्मा ने
टूर्नामेंट कई लिहाज़ से दिलचस्प रहा. पहले मैच में बांग्लादेश ने ऑस्ट्रेलिया को हराकर तहलका मचा दिया. रवांडा की टीम पहली बार वर्ल्ड कप में खेली और सबको प्रभावित किया.
दक्षिण अफ़्रीका की मैडिसन लैंड्समैन ने एक तो और रवांडा की हेनरिट इशिमवे ने दो हैट-ट्रिक लगाई. ज़ाहिर है महिला क्रिकेट का स्तर और लोकप्रियता बढ़ रहा है.
अंडर-19 महिला भारतीय क्रिकेट में ग़ुरबत से शोहरत की कई कहानियाँ हैं. क़रीब तीन साल पहले दिल्ली से 70 किलोमीटर दूर रोहतक गया था.
पंद्रह साल की एक खिलाड़ी से मुलाक़ात करनी थी जिसे महिला क्रिकेट का अगला सुपर स्टार कहा जा रहा था.
उसमें क्रिकेट को लेकर जुनून इस क़दर था कि कई बार लड़कों की वेशभूषा में लड़कों का मैच खेल आती थी.
पिता ने इसीलिए बेटी के बाल छोटे करा दिए थे. आर्थिक परेशानियों से जूझ रहे स्वर्णकार पिता बेटी के ज़रिए अपना ख़्वाब पूरा करना चाहते थे. लिहाज़ा सारी ताक़त बेटी के पीछे झोंक दी थी. इस लड़की का नाम था शेफ़ाली वर्मा.
तब ये लड़की वेस्टइंडीज़ से तहलका मचा कर लौटी थी. सचिन तेंदुलकर का सबसे कम उम्र में अर्धशतक बनाने का 30 साल पुराना रिकॉर्ड तोड़ आयी थी.
उसके कोच अश्विनी कुमार का कहना था कि लड़के स्ट्रोक मेकिंग 14-15 साल में कर पाते हैं, मगर ये 11-12 साल की उम्र से ही स्ट्रोक मेकिंग करने लगी थी. कोच इसे गॉड गिफ़्टेड कह रहे थे.
शेफ़ाली का प्रदर्शन देखते हुए कोच उसे लड़कों के साथ खिलाने लगे. बाक़ी इतिहास है. शेफ़ाली वर्मा दो विश्व कप के अलावा पिछले साल बर्मिंघम राष्ट्रमंडल खेलों की रजत पदक विजेता टीम का भी हिस्सा थीं.
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अर्चना देवी और सोनम का जज़्बा
वहीं फ़ाइनल में दो विकेट और एक ज़बर्दस्त कैच पकड़ने वाली अर्चना देवी की कहानी भी कम संघर्ष भरी नहीं है.
उत्तर प्रदेश के उन्नाव ज़िले के रतई पुरवा गांव की अर्चना देवी की इस सफलता के पीछे उनकी जिद्दी मां सावित्री देवी का हाथ है, जो तमाम फ़ब्तियों और तानों के सामने बेटी को क्रिकेटर बनाने की ज़िद पर अड़ी रहीं.
कैंसर से उनके पति की और सांप काटने से बेटे की मौत हो गई तो उन्हें डायन तक कहा गया. मगर अब शेफ़ाली और अर्चना के घर पर जश्न मन रहा है और इस जश्न में वे लोग भी शामिल हैं जो कभी ताने मारते थे.
वहीं फ़िरोज़ाबाद की आलराउंडर सोनम बाएं हाथ की स्पिन बॉलर हैं और दाएं हाथ से बल्लेबाज़ी करती हैं.
सोनम पाँच बहनों में सबसे छोटी हैं, पिता कारखाने में मजदूरी करते हैं. सोनम की क्रिकेट में दिलचस्पी को देखते हुए उसके पिता ने दो समय मज़दूरी की.
इन युवा खिलाड़ियों ने दिखाया है कि भारत में सचमुच महिला क्रिकेट बदल रहा है.
महिला आईपीएल के बाद तो और भी बहुत कुछ बदल जाएगा.
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