गुजरात चुनाव का गेम प्लान, इन 2 कार्ड से होगा जीत-हार का फैसला
नई दिल्ली। गुजरात में क्या असल चुनावी जंग शुरू हो चुकी है, क्या बीजेपी और कांग्रेस ने अपने सारे मुद्दे जनता के सामने रख दिए हैं। क्या वाकई ये चुनाव बीजेपी के 'मैं विकास हूं, मैं गुजरात हूं' और कांग्रेस के 'विकास पागल हो गया है' मुद्दे पर ही लड़ा जाएगा। क्या नोटबंदी और जीएसटी बीजेपी के प्रमुख हथियार हैं जिनके दम पर उसकी नैया पार लग जाएगी, क्या कांग्रेस इन्हीं मुद्दों पर बीजेपी को घेर लेगी। ये कुछ सवाल हैं जो राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बने हुए हैं लेकिन उन दो मुद्दों पर सीधे सीधे कोई भी राजनीतिक दल बोलने से बच रहा है जिन पर पूरे चुनाव का दारोमदार है।
वो दो कार्ड जो पूरे गुजरात की हवा का रुख बदल देंगे
वो दो कार्ड कौन से हैं जिनसे पूरे गुजरात की हवा का रुख बदलेगा और पहले भी बदलता आया है जिसे बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही बहुत ही गहराई से महसूस कर रहे हैं। गुजरात ही नहीं देश भर के राजनीतिक विद्वान भी उस हवा का रुख भांपने में लगे हैं जिससे चुनाव की शह और मात होनी है। ये दो कार्ड ही हैं, जिसके पास आ गए, समझ लो उसकी नैया पार हो गई, फिर चाहे कोई कितने ही जतन कर ले क्योंकि इनमें ही पूरा वोट बैंक खींचने की ताकत है।
पहला कार्ड है हिंदूत्व
इनमें पहला कार्ड है हिंदूत्व का। ये कार्ड गुजरात में नया नहीं है। हिंदू और मुस्लिम वोट बैंक के नजरिए से देखा जाए तो 10 और 90 फीसदी वोट बैंक का अनुपात बनता है। पिछले चुनाव तक जो नजरिया बनता आया है उसमें मोटे तौर पर कांग्रेस को मुस्लिम पक्षधर और बीजेपी को हिंदू पक्षधर का माहौल बना या बनाया गया। तो क्या यही वजह है कि राहुल गांधी गुजरात के मंदिरों में दर्शनों के लिए उतावले हो रहे हैं और नरेंद्र मोदी भी अक्षरधाम मंदिर में मत्था टेक रहे हैं जिससे बड़ी तादाद में पाटीदार समाज जुड़ा है। तो क्या यही वजह है कि दो संदिग्धों के पकड़े जाने पर अहमद पटेल के लिंक जुड़ने का मामला तूल पकड़ रहा है। क्या यही वजह है कि अहमद पटेल को राज्यसभा चुनाव में हराने के लिए बीजेपी ने जमीन-आसमान एक कर दिया। इसमें कोई शक नहीं कि आज की स्थिति में गुजरात में वो सबसे बड़े मुस्लिम चेहरे हैं, भले ही गुजरात में वो उनके लिए कुछ न कर पाए हों। इसमें भी कोई शक नहीं कि गुजरात की राजनीति में ही नहीं राष्ट्रीय स्तर पर भी कांग्रेस के लिए अहमद पटेल की सबसे ज्यादा अहमियत है तो क्या इसीलिए बीजेपी की कांग्रेस को लेकर सबसे बड़ी चिंता अहमद पटेल हैं। राहुल जिस गति से सॉफ्ट हिंदुत्व की छवि को धारण कर चुके हैं और बीजेपी उसकी इस छवि को उभरने से पहले से ही अहमद पटेल की हकीकत का आईना दिखाने में जुटी है। जाहिर है कि बीजेपी पहले मुद्दे पर बढ़त लेती रही है।
दूसरा मुद्दा है जातिगत समीकरण का
अब बात करते हैं दूसरे मुद्दे की, जब पहले मुद्दे की लहर नहीं बनती है, इकतरफा हवा नहीं बहती है तो दूसरा मुद्दा ही कारगर होता है। दूसरा मुद्दा है जातिगत समीकरण का। कांग्रेस लंबे अरसे बाद इस मुद्दे को हथियाने की पूरी कोशिश में जुटी है। सभी को मालूम है कि हार्दिक पटेल, अल्पेश ठाकोर और जिग्नेश मेवाणी वो तीन चेहरे हैं जो अपने समाज के पैरोकार बने हुए हैं और कांग्रेस तीनों पर डोरे बहुत पहले से डाल रही है। इनके साथ प्लस प्वाइंट ये भी है कि तीनों ही युवा हैं तो समाज के साथ यूथ की भागीदारी सीधे सीधे दिख रही है। यहां बीजेपी फिलहाल पिछड़ रही है। कोशिश पूरी है कि चाहे सरदार पटेल के बहाने हो या फिर हार्दिक पटेल के करीबी तोड़कर, इस समीकरण को उलझाया जाए। ये बात अलग है कि भले ही समाज में सेंधमारी कर ली जाए लेकिन इन तीनों का टूट पाना मुमकिन नहीं। ये तीनों भी जानते हैं कि उनकी राजनीति बीजेपी की खिलाफत से चमकी है। बीजेपी की असल चिंता दूसरा मुद्दा ही है।
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