कभी भी और किसी भी जगह विरोध करने का अधिकार नहीं दिया जा सकता- सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने 2019 में दिल्ली के शाहीन बाग में नागरिकता संशोधन एक्ट के खिलाफ आयोजित किए गए धरने पर दिए गए अपने फैसले पर पुनर्विचार करने की याचिका को खारिज कर दिया।
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने 2019 में दिल्ली के शाहीन बाग में नागरिकता संशोधन एक्ट के खिलाफ आयोजित किए गए धरने पर दिए गए अपने फैसले पर पुनर्विचार करने की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि असहमति और विरोध करने का अधिकार के साथ कुछ जिम्मेदारिया जुड़ी हुई हैं और इसे किसी भी वक्त और हर जगह नहीं किया जा सकता।
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आपको बता दें कि 12 सामाजिक कार्यकर्ताओं ने अक्टूबर 2020 में सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले पर पुर्नविचार करने वाली याचिका डाली थी जिसमें कोर्ट ने शाहीन बाग में आयोजित नागरिकता संशोधन एक्ट के खिलाफ हो रहे विरोध प्रदर्शनों को अवैध करार दिया।
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जस्टिस एसके कौल, अनिरुद्ध बोस और कृष्ण मुरारी की तीन जजों की बेंच ने रिव्यू पिटीशन खारिज करते हुए कहा कि विरोध कभी भी और किसी भी जगह नहीं किया जा सकता। कुछ सहज विरोध हो सकते हैं लेकिन लंबे समय तक असंतोष या विरोध के मामले में, दूसरों के अधिकारों को प्रभावित करने वाले सार्वजनिक स्थान पर लगातार कब्जा नहीं किया जा सकता।"
तीन न्यायाधीशों वाली पीठ ने दोहराया कि विरोध प्रदर्शनों के लिए सार्वजनिक स्थानों पर कब्जा नहीं किया जा सकता है और सार्वजनिक विरोध प्रदर्शन "अकेले खाली क्षेत्रों में" होना चाहिए। गौरतलब है कि शीर्ष अदालत ने अपने अक्टूबर के फैसले में कहा था कि "इस तरह के विरोध स्वीकार्य नहीं हैं।"
आपको बता दें कि साल 2019 में शाहीन बाग में केंद्र सरकार के नाकरिकता संशोधन कानून के खिलाफ लंबे वक्त तक प्रदर्शन किया गया था, जिस पर सुप्रीम ने कहा था कि पुलिस के पास सार्वजनिक स्थलों को खाली कराने का अधिकार है और किसी भी सार्वजनिक स्थान को घेर कर अनिश्चितकाल तक प्रदर्शन नहीं किया जा सकता। कोर्ट के इसी फैसले पर पुनर्विचार के लिए 12 सामाजिक कार्यकर्ताओं ने यह कहते हुए याचिका डाली थी कि कोर्ट की यह टिप्पणी नागरिक के आंदोलन करने के अधिकार पर संशय व्यक्त करती है।