नीतीश के गढ़ में आना पड़ा तेजस्वी-तेज प्रताप को एकसाथ
हालांकि विपक्ष हमेशा दोनों भाईयों के बीच आपसी होड़ को परिवारवाद और उसमें भी आपसी वर्चस्व की लड़ाई के तौर पर पेश करता आया है.
किसी को इसकी कोई जानकारी नहीं थी कि दोनों भाई एक साथ यहां नज़र आ सकते हैं. छठे चरण के प्रचार ख़त्म होने तक ऐसा नहीं हुआ था लिहाज़ा पार्टी और महागठबंधन के उम्मीदवार की तरफ से ऐसा कोई आग्रह भी नहीं किया गया था.
हैलीपैड से मंच तक की दूरी तय करने के दौरान तेजस्वी और तेज प्रताप, दोनों को समर्थकों की भीड़ से रास्ता बनाना पड़ा. जब दोनों मंच तक पहुंचे तो स्थानीय नेताओं की भीड़ दोनों के इर्द गिर्द जमा हो गई. बार-बार सुरक्षाकर्मियों को उन्हें हटाना पड़ रहा था.
लेकिन तेज प्रताप लोगों से हाथ मिलाते रहे है और मंच के चारों तरफ खड़े लोगों से मिलते रहे. मंच से उन्होंने भाषण भी पहले दिया. तेज प्रताप ने अपने भाषण में कहा, "लालू जी जेल से बाहर होते तो वो भी आज इस मंच पर होते है, हमारी त्रिमूर्ति यहां होती और आप लोगों से महागठबंधन के उम्मीदवार चंद्रवंशी अशोक आजाद जी को जिताने की अपील करती. लालू जी यहां क्यों नहीं हैं, ये आप लोग सोचिएगा."
उन्होंने अपने भाषण का समापन करते हुए कहा कि आप लोगों को क्यों महागठबंधन को वोट देना चाहिए, इसके बारे में तेजस्वी जी बोलेंगे और उनको ध्यान से सुनना है आप लोगों को.
यह भी एक संकेत है कि तेज प्रताप खुद की जगह तेजस्वी को अहमियत देना सीख रहे हैं और पार्टी के नेतृत्व के रूप में तेजस्वी को स्वीकार कर रहे हैं.
वहीं तेजस्वी यादव ने अपने भाषण में मुख्य रूप से संविधान और आरक्षण को ख़तरे में बताते हुए महागठबंधन के उम्मीदवार को जीत दिलाने की अपील की.
दरअसल, बिहार के चुनाव में तेजस्वी यादव एक तरह से महागठबंधन का चेहरा बन कर उभरे हैं. लेकिन उन्हें किन चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, इस सवाल के जवाब में कई विश्लेषकों का मानना है कि तेजस्वी को राज्य में नरेंद्र मोदी-नीतीश कुमार गठबंधन के साथ-साथ अपने परिवार के अंदर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है और ये चुनौती उन्हें तेज प्रताप से मिलने की बात कही जा रही है.
समय समय पर यह बात तेज प्रताप के कदमों से जाहिर भी होती रहा है, उन्होंने कुछ सीटों पर अपने समर्थकों को चुनाव मैदान में उतार दिया और पहले छह चरण के चुनावी मतदान के दौरान दोनों भाई एक साथ चुनाव प्रचार करते नहीं नजर आए.
दोनों भाईयों के बीच उम्मीदवारों के चयन से लेकर सीट शेयरिंग के मुद्दे पर मतभेद की ख़बरें भी आती रही हैं, लेकिन तेजस्वी इसके बारे में पूछे जाने पर कहते हैं, "आप देखिए कि हम दोनों भाई एक साथ प्रचार करने निकले हैं. हम अपनी रणनीति के तहत ज़िम्मेदारी बांटकर काम कर रहे हैं और करते रहेंगे. यह कोई मुद्दा है ही नहीं."
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वहीं तेज प्रताप कहते हैं, "हम दोनों के बीच कोई विवाद नहीं है, ये मीडिया दिखाता रहता है. तेजस्वी मेरे अर्जुन हैं, यह बात तो हम लगातार कह रहे हैं. तो विवाद का सवाल कहां है, हां जहां हमें कुछ गलत लगता है तो हम अपनी बात कहते हैं, वो हम कहते रहेंगे. इसमें विवाद क्या है."
तेज प्रताप ये भी मानते हैं कि उनमें लालू जैसा भदेसपन है जबकि तेजस्वी में कहीं ज्यादा पॉलिटिकल समझ है.
रविवार को तेजस्वी यादव और तेज प्रताप यादव ने नालंदा, आरा और दानापुर में एक साथ सभाओं को संबोधित किया.
खास बात यह है कि तेजस्वी यादव- तेज प्रताप यादव ने एक साथ चुनाव प्रचार करने के लिए सबसे पहले जिस इलाके को चुना है वह बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का गढ़ माना जाता है. नालंदा की सियासत में 1996 से ही नीतीश कुमार और उनकी पार्टी का दबदबा रहा है. 2004 और 2009 में उन्होंने कौशलेंद्र कुमार पर भरोसा जताया जो लगातार दो बार से चुनाव जीत रहे हैं.
रणनीतिक तौर पर तेजस्वी नीतीश कुमार को नालंदा में ही घेरने की कोशिशों में जुटे हैं. वे कहते हैं, "अब यह हमारे चाचा का गढ़ नहीं रहा है. हम लोग यहां काफी ताकत से लड़ रहे हैं और हमारी स्थिति यहां बेहद मज़बूत है."
तेज प्रताप ने कहा, यहां पलटु चाचा को आज़ाद जी पलटनिया देने का काम करेंगे.
तेजस्वी और तेज प्रताप को एक साथ देखकर चुनावी सभा में मौजूद एक युवा कार्यकर्ता ने कहा कि दोनों भाईयों के एकसाथ आने से लोगों का मनोबल काफी बढ़ा है.
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वहीं युवा राष्ट्रीय जनता दल, नालंदा के अध्यक्ष सुनील यादव ने बताया, "हमलोग थोड़े चिंतित तो रहते ही थे कि पता नहीं दोनों भाईयों में कल को क्या हो जाएगा. समर्थकों के भी बंटने का खतरा था. दोनों को एक साथ देखकर ये साफ है कि तेजस्वी जी के नेतृत्व में सबकुछ ठीक है."
तेजस्वी और तेज प्रताप के बीच सबकुछ ठीक ना भी हो तो भी दोनों भाईयों की ओर से कोशिश यही की जा रही है कि समर्थकों की एकजुटता बनी रहे. हालांकि इसमें बहुत देरी हो चुकी है.
वैसे तेज प्रताप की नालंदा में मौजूदगी की एक वजह और हो सकती है, महागठबंधन बनने के चलते ये सीट जीतन राम मांझी की पार्टी हम को चली गई है. इससे पहले राष्ट्रीय जनता दल के स्थानीय नेता इस सीट पर अपना दावा जता रहे थे.
इस फैसले से निराश पार्टी कार्यकर्ताओं को मनाने की चुनौती भी तेज प्रताप के ज़िम्मे रही होगी. वे कार्यकर्ताओं के साथ कहीं ज्यादा सहज रूप से फोटो खिंचते खिंचवाते नजर आए. हालांकि सुनील यादव कहते हैं, "हमारा पूरा संगठन, आजाद जी के पीछे खड़ा है. कहीं कोई नाराजगी नहीं है. हमारा उम्मीदवार नीतीश कुमार के उम्मीदवार को यहां हराएगा."
तेजस्वी और तेज प्रताप को एकसाथ होने से महागठबंधन की राजनीति पर पड़ने वाले असर के बारे में राष्ट्रीय जनता दल के एक समर्थक ने कहा, "ये सवाल केवल मीडिया वाले पूछते हैं. हम लोगों को मालूम है कि तेजस्वी यादव ही हमारे नेता लालू की विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं."
हालांकि विपक्ष हमेशा दोनों भाईयों के बीच आपसी होड़ को परिवारवाद और उसमें भी आपसी वर्चस्व की लड़ाई के तौर पर पेश करता आया है.
बगल में मौजूद एक दूसरे समर्थक ने बताया, "परिवार के अंदर कोई चुनौती का तेजस्वी पर अब क्या असर होगा, आप बताइए. वे बहुत आगे निकल चुके हैं. परिवार के लोगों को उनके नेतृत्व में काम करना होगा. नहीं तो वे अकेले ही पार्टी को चला सकते हैं. इसमें किसको संदेह है."
हालांकि पास ही चाय की एक दुकान पर एक शख्स ने कहा कि दोनों भाईयों के आने से यहां क्या होगा, नीतीश जी ने हमलोगों के लिए बहुत काम किया है. वे यहां से जितबे करेंगे.