शिक्षक दिवस पर Super 30 का पोस्टर रिलीज, आनंद कुमार ने कही बड़ी बात
मुंबई। आखिरकार इंतजार की घड़ियां खत्म हुई और मोस्ट अवेटड फिल्म 'सुपर 30 (Super 30)' का नया पोस्टर रिलीज हो गया है, अभिनेता रितिक रोशन ने 'शिक्षक दिवस' के मौके पर पोस्टर जारी किया है जो कि काफी दिलचस्प है। फिल्म में रितिक रोशन Super 30 के संस्थापक आनंद कुमार का रोल निभा रहे हैं। फिल्म के पोस्टर में रितिक काफी गुस्से भरे लुक में नजर आ रहे हैं। पोस्टर की टैग लाइन है कि 'अब राजा का बेटा राजा नहीं बनेगा... अब राजा वही बनेगा जो हकदार होगा!'
देश के तमाम शिक्षकों को समर्पित है 'सुपर 30': आनंद कुमार
फिल्म के पोस्टर को काफी सकारात्मक रिएक्शन मिले हैं लेकिन सबसे दिलचस्प प्रतिक्रिया आनंद कुमार की ही ओर से आई है, उन्होंने कहा कि इस फिल्म के माध्यम से न सिर्फ युवाओं को निराशा से निकालने का प्रयास किया गया है बल्कि उन्हें शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान देकर देश को प्रगति पथ पर आगे बढ़ाने के लिए भी उत्साहित करने की कोशिश की गई है, यह फिल्म देश के उन तमाम शिक्षकों को समर्पित है, जो शिक्षण के माध्यम से राष्ट्र निर्माण में लगे हैं।
'खुशकिस्मत हूं कि आनंद कुमार का रोल निभाने का मौका मिला'
मालूम हो कि इससे पहले रितिक रोशन ने भी फिल्म को लेकर कहा था कि वो खुशकिस्मत हैं कि उन्हें आनंद कुमार का रोल निभाने का मौका मिला है, आनंद कुमार देश के रीयल हीरो हैं। आपको बता दें कि आनंद कुमार देश के उस मसीहा का नाम है, जिसने इंसानियत, खुद्दारी और ईमानदारी को जिंदा रखते हुए, देश में जीनियस की फौज खड़ी करने की कसम खाई है।
सुपर-30 कोचिंग के संस्थापक आनंद कुमार का जन्म पटना में हुआ
गौरतलब है कि बिहार की सुपर-30 कोचिंग के संस्थापक आनंद कुमार का जन्म पटना में हुआ और इनके पिता डाक विभाग में चिठ्ठी छांटने का काम करते थे। बंधी हुई आमदनी की वजह से चलने वाले घऱ में जन्मे इस बच्चे को बहुत जल्द आर्थिक अभाव और महंगी पढ़ाई का मोल समझ आ गया था।
सपना पूरा नहीं हो सका
सरकारी स्कूल से प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण करने वाले आनंद कुमार को शुरू से ही गणित में काफी रूचि थी। उन्होंने भी वैज्ञानिक और इंजीनियर बनने का सपना देखा था, ग्रेजुएशन के दौरान उन्होंने नंबर थ्योरी में पेपर सब्मिट किए जो मैथेमेटिकल स्पेक्ट्रम और मैथेमेटिकल गैजेट में पब्लिश हुए। इसके बाद उन्हें क्रैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में पढ़ने के लिए बुलावा भी आया, लेकिन परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण उनका सपना पूरा नहीं हो सका, बस इसी दुख को उन्होंने अपनी ताकत बनाकर प्रण किया कि वो देश के गरीब बच्चों का भविष्य संवारेंगे।
23 अगस्त, 1994 को हार्ट अटैक के चलते पिता का निधन हो गया
लेकिन इसी बीच 23 अगस्त, 1994 को हार्ट अटैक के चलते पिता का निधन हो गया, उनके पिता डाक विभाग में थे, इसलिए उन्हें अपने पिता की जगह डाक विभाग में नौकरी मिल रही थी लेकिन उन्होंने इस नौकरी को ना करने का फैसला किया।पिता के निधन के बाद पूरा घर गरीबी की चपेट में आ गया, घर चलाने के लिए आनंद की मां ने घर में पापड़ बनाना शुरू किया जिसे कि आनंद और उनके भाई घर-घर बांटा करते थे।
'रामानुजम स्कूल ऑफ मैथेमेटिक्स' नाम से कोचिंग खोली
इसके कुछ समय बाद हालात को सुधारने के लिए आनंद ने अपने ही घर में 'रामानुजम स्कूल ऑफ मैथेमेटिक्स' नाम से कोचिंग खोली, जिसमें शुरू-शुरू में दो विद्यार्थी आए, जिनसे आनंद ने 500 रूपए फीस ली थी, इसी दौरान उनके पास एक ऐसा छात्र आया, जिसने कहा कि वह ट्यूशन तो पढ़ना चाहता है लेकिन उसके पास पैसे नहीं हैं, उस छात्र में आनंद को अपनी छवि दिखी और उसके बाद से वो उसे पढ़ाने में जुट गए, दिन-रात की मेहनत के चलते वो छात्र आईआईटी की प्रवेश परीक्षा में सफल हुआ।
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सुपर 30 की स्थापना की
बस यहीं से उनके दिमाग में सुपर 30 का ख्याल आया और उन्होंने 2002 में सुपर 30 की स्थापना की, जिसमें उन गरीब बच्चों को पढ़ाया जाता है, जो कि आर्थिक तंगी की वजह से आईआईटी जैसे संस्थान में जाने की तैयारी नहीं कर पाते हैं। संस्थान का खर्चा आनंद खुद अपने पैसों से चलाते हैं और इस बारे में वह कहते हैं कि सुपर 30 को बड़ा करने के लिए पैसे नहीं चाहिए, हां आपके सपने जरूर चाहिए।
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