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सुप्रीम कोर्ट ने कहा- 'हिजाब में महिलाएं कैरिकेचर नहीं, उन्हें सम्मान की नजर से देखा जाए'

सुप्रीम कोर्ट ने कहा 'हिजाब में महिलाएं कैरिकेचर नहीं, उन्हें सम्मान की नजर से देखा जाए

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नई दिल्ली, 13 सितंबर: कर्नाटक में कुछ माह पहले कालेजों में हिजाब पर प्रतिबंध लगाए जाने के बाद जमकर बवाल हुआ। हिजाब पर प्रतिबंध को बरकरार रखने के कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए छात्राओं ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। वहीं सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को इस पर सुनवाई करते हुए कहा हिजाब पहनने वाली महिलाओं को कैरिकेचर के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि उन्हें सम्मान के साथ देखा जाना चाहिए।

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वरिष्ठ अधिवक्ता यूसुफ मुछला ने कहा

हिजाब पहनने वाली महिलाओं को कैरिकेचर के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। उन्हें सम्मान की नजर से देखना चाहिए। वे मजबूत इरादों वाली महिलाएं हैं और उन्हें लगता है कि इस वजह से उन्हें ताकत मिली है। कोई भी उन पर अपना फैसला नहीं थोप सकता। वरिष्ठ अधिवक्ता यूसुफ मुछला ने न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ से इस मामले को संविधान पीठ को भेजने की गुजारिश की।

केवल सिर पर कपड़ा पहनने के कारण, शिक्षा से इनकार नहीं किया जा सकता है
वरिष्ठ अधिवक्ता यूसुफ मुछला ने यह तर्क दिया कि हिजाब पहनने वाले छात्राओं को प्रवेश से वंचित करने से शिक्षा, व्यक्तिगत गरिमा, गोपनीयता के साथ-साथ धर्म का पालन करने के मौलिक अधिकार का उल्लंघन हुआ है।

उच्च न्यायालय के पास ऐसा करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था
न्यायमूर्ति गुप्ता ने कहा कि

उच्च न्यायालय ने केवल इतना कहा कि अंतरात्मा का अधिकार और धर्म का पालन करने का अधिकार परस्पर अनन्य हैं। अधिवक्‍ता मुछला ने दलील दी थी कि उच्च न्यायालय को कुरान की व्याख्या में नहीं जाना चाहिए था। उसके जवाब में पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय के पास ऐसा करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था क्योंकि यह तर्क दिया गया था कि हिजाब पहनना एक आवश्यक धार्मिक प्रथा थी। मुछला ने कहा था "संविधान स्पष्ट रूप से यह प्रावधान करता है कि अदालत को लोगों के पालन के लिए धर्म निर्धारित नहीं करना चाहिए और अदालत को धार्मिक ग्रंथों की व्याख्या नहीं करनी चाहिए।

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English summary
Supreme Court said 'women in hijab are not caricatures, they should be seen with respect'
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