शिवसेना ने लालकृष्ण आडवाणी के ब्लॉग पर पूछा- निशाने पर कौन और इसके पीछे मंशा क्या?
मुंबई: बीजेपी के संस्थापक और दिग्गज नेता लालकृष्ण आडवाणी के ब्लॉग से राजनीति में भूचाल आया है। आडवानी के ब्लॉग में लिखी बातों को लेकर विपक्षी पार्टियां बीजेपी पर हमलावर है। वहीं एनडीए में सहयोगी पार्टी शिवसेना ने भी अपने मुखपत्र सामना के जरिए आडवानी के ब्लॉग को लेकर कुछ सवाल पूछे हैं। शिवसेना ने आडवाणी ने अपने ब्लॉग में लिखा था कि चुनाव लोकतंत्र का उत्सव हैं और इन्हें निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से संचालित कराना चाहिए। इसे लेकर शिवसेना ने कहा कि आडवानी की इस टिप्पणी के निशाने पर कौन है?
'आडवाणी के ब्लॉग की मंशा क्या?'
शिवसेना ने अपने मुख पत्र सामना के संपादकीय में लिखा कि आखिरकार लालकृष्ण आडवाणी ने अपनी चुप्पी तोड़ी है। इस बार उन्होंने खुद को लेखन के जरिए व्यक्त किया है। उन्होंने ब्लॉग लिखा, लेकिन उन्हें ऐसा करने में पांच साल लग गए। आडवाणी ने कहा कि बीजेपी में अपने विरोधियों को राष्ट्रद्रोही समझने की परंपरा नहीं रही है। उन्होंने कहा कि पार्टी ने कभी भी राजनीतिक रूप से असहमति रखने वालों को कभी राष्ट्रद्रोही या दुश्मन नहीं समझा, बल्कि उन्हें एक सिर्फ विरोधी माना है। सामना में आगे लिखा गया है कि ये बयान आडवाणी जैसे सीनियर नेता द्वारा दिया गया है, इस वजह से यह महत्वपूर्ण हो जाता है। उन्होंने अपने ‘मन की बात' बीजेपी के स्थापना दिवस के मौके पर व्यक्त की है। लेकिन पार्टी के संस्थापकों में से एक(आडवाणी) द्वारा की गई इस टिप्पणी के पीछे मंशा क्या है?
'विपक्ष चुनावों में पाकिस्तान की भाषा बोल रहा है'
शिवसेना ने अपने मुख पत्र सामना में कहा कि लोकसभा चुनाव के प्रचार के दौरान रैलियों में विपक्ष पाकिस्तान और दुश्मन की भाषा बोल रहा है। प्रचार के दौरान विकास, प्रगति, महंगाई के मुद्दे पीछे छूट गए हैं, जबकि पाकिस्तान, राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे मुद्दे महत्वपूर्ण बन गन गए हैं । इससे ऐसा लग रहा है कि पुलवामा आतंकी हमले में 40 जवानों के बलिदान और उसके बाद हुई एयर स्ट्राइक ने बाकी सभी मुद्दों को पीछे छोड़ दिया है। लेकिन यह अस्थायी था।
'विपक्ष को राष्ट्र विरोधी मानना गलत'
शिवसेना ने कहा कि आडवाणी की ब्लॉग में लिखी बातों से ऐसा लगता है कि विपक्ष का एयर स्ट्राइक पर सबूत मांगना गलत है, वैसे ही विपक्ष को राष्ट्रविरोधी मानना भी गलत है। जो लोग मोदी के साथ नहीं हैं वह राष्ट्र के साथ नहीं हैं ये बीजेपी के प्रचार का केंद्रीय बिंदु है और विपक्ष इसे स्वीकार करने को तैयार नहीं है। विपक्ष कह रहा है कि मोदी देश नहीं हैं। हालांकि जो वो कह रहे हैं वो गलत नहीं हो सकता है। साल 1975 के बाद पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के मामले में भी कुछ अलग नहीं हो रहा था। 'इंदिरा इज इंडिया' के नारे उस समय लगाए जा रहे थे। अब उनकी अगली पीढ़ी कह रही है कि 'मोदी इज नॉट इंडिया'। 'इंदिरा इज इंडिया'का नारा लोगों को अच्छा नहीं लगा था। यह हमारे लोकतंत्र की खूबसूरती है और आडवाणी ने भी इसी भावना को व्यक्त किया है। गौरतलब है कि इस बार लालृष्ण आडवाणी को पार्टी ने गांधीनगर से टिकट नहीं दिया है। उनकी जगह बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह को यहां से मैदान में उतारा गया है। उनके इस ब्लॉग को उनकी नाराजगी से जोड़कर भी देखा जा रहा है।
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