शहीद संजय कुमार का राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार, बेटी ने पूछा देश से बड़ा सवाल
शहीद संजय कुमार की बड़ी बेटी अमीशा ने कहा कि 'आज पूरा देश इस हमले पर बात कर रहा है लेकिन एक हफ्ते के बाद सब भूल जाएंगे, आखिर ये कौन सी नीतियां बनती हैं जो रुकते ही नहीं हमले।'
शिमला। जिस बेटी के हाथों में मेंहदी लगाने के पिता ने सपने संजोए थे, विधि का विधान देखिए कि उसी बेटी को अपने पिता को अंतिम विदाई देनी पड़ी। जैसे ही संजय का पार्थिव शरीर घर पहुंच 'जब तक सूरज चांद रहेगा, संजय तेरा नाम रहेगा' के गगनभेदी नारे गूंजने लगे। वहीं शहीद की बड़ी बेटी अमीशा खुद अपने पिता को सैल्यूट करने आगे आई तो सब आंखे नम हो गईं।
छत्तीसगढ़ के सुकमा में नक्सली हमले में शहीद हुए एएसआई संजय कुमार का मंगलवार देर शाम पूरे राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया। शहीद संजय के भतीजे सूर्या ने उन्हें मुखागिन दी। साल 1970 में जन्में सीआरपीएफ के जवान संजय कुमार को पालमपुर के समीप उनके पैतृक गांव नगरी चचियां में अंतिम विदाई दी गई जहां सैंकड़ों लोग शामिल हुए। प्रशासन और सीआरपीएफ के अधिकारियों सहित सैंकड़ों लोग उनके अंतिम संस्कार में शामिल हुए। शहीद जवान के परिवार में उनके पिता राजेन्द्र प्रसाद शर्मा, माता शकुंतला देवी, पत्नी अंकिता और दो बेटियां अमीशा और कशिश हैं।
संजय को उनकी बहादुरी के लिए अंतिम विदाई देने के लिए जिले के आला अधिकारियों का भी हुजूम पहुंचा। सभी ने शोक संदेश के साथ शहीद संजय कुमार को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की। शहीद संजय की बड़ी बेटी अमीषा का कहना है कि सरकारें सिर्फ दावे करती हैं लेकिन कार्रवाई नहीं। अगर कार्रवाई की जाती तो हमारे वीर सैनिकों पर बार-बार हमले नहीं होते और न ही हमारे वीर सैनिक शहीद होते। शहीद की बेटी को अपने पिता से बिछडऩे का बहुत अफसोस है लेकिन उससे भी ज्यादा उन्हें सरकारी तंत्र की कार्यप्रणाली पर गुस्सा है।
अमीशा का कहना है कि जब कभी कोई हमला होता है और सैनिक शहीद होते हैं तो हमारे देश के नेता बड़े-बड़े बयान देते हैं, लेकिन असल में होता कुछ नहीं है। अमीशा ने कहा कि आज पूरा देश इस हमले पर बात कर रहा है लेकिन एक हफ्ते के बाद सब भूल जाएंगे। अमीशा ने गुस्से से तमतमाते हुए कहा कि सरकारों के नुमाइंदे बंद कमरों में बैठकें करके नीतियां बनाती है और हमलों के बाद अफसोस जाहिर करती है। एक बार वो नेता भी उन जंगलों में जाकर देखें कि आखिर ये हमले रुक क्यों नहीं रहे और आखिरकार चूक कहां हो रही है।
अमीषा ने बताया कि उसने आखिरी बार 11 अप्रैल को अपने पापा से बात की थी। पापा ने उसे अच्छे से पढ़ाई करने के बारे में कहा था। शहीद संजय कुमार चार भाई बहनों में सबसे छोटे थे। उनकी दो बेटियां हैं, बड़ी बेटी अमीशा सातवीं क्लास में पढ़ती है वहीं छोटी बेटी कशिश अभी पहली क्लास में है। संजय के पिता राजेन्द्र प्रसाद शर्मा भी सीआरपीएफ से सेवानिवृत्त हैं और पिछले करीब 7 महीने से ब्रेन हैमरेज से पीड़ित हैं। उनकी 75 वर्षीय माता शकुंतला देवी चाहकर भी अपने आंसू नहीं रोक पा रही हैं।
उनके बड़े भाई विजय कुमार ने बताया कि संजय होली के दौरान घर पर आए थे। उनकी शहादत की खबर उनके परिवार को देर रात करीब डेढ़ बजे मिली। विजय का कहना है कि शहादत किसी भी सैनिक का सपना होती है लेकिन इस तरह के कायरतापूर्ण हमलों में हम कब तक अपने वीर जवानों को खोते रहेंगे। शहीद संजय का पार्थिव शरीर जब गांव में पहुंचा तो हर तरफ से लोग एकत्रित हो गए, इस दौरान दोनों बच्चियां कभी एक दूसरे को चुप करवाने की कोशिश करती रही तो कभी अपने दादा ओर दादी को हौसला देती दिखी। खुद को संभालने का प्रयास करने की तमाम कोशिशों के बाद भी इन मासूमों की चीखें सारे माहौल को आंसुओं में डुबा रही थी।
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