Sardar : 'आयरन मैन' नाम बचपन के 'घाव' से मिला, बापू के विश्वसनीय साथी ने ग्लैमरस नेहरू के लिए दिया बलिदान !
Sardar Patel की 72वीं पुण्यतिथि के मौके पर जानिए वो कहानी जिसके कारण उन्हें 'आयरन मैन' की पहचान बचपन के 'घाव' के उपचार के दौरान मिली। जानिए कैसे बापू के विश्वसनीय साथी- पटेल ने ग्लैमरस नेहरू के लिए दिया बलिदान।
Sardar Patel : सरदार वल्लभ भाई पटेल आजाद भारत की बुनियाद में ऐसे पत्थर हैं, जिनके बिना भारत की कल्पना बेमानी लगती है। लौह पुरुष की उपमा से नवाजे जा चुके वल्लभ भाई पटेल को 'आयरन मैन' की पहचान कैसे मिली ? इसका जवाब बेहद रोचक है। बचपन में मिले एक घाव के कारण वल्लभ भाई पटेल को आयरन मैन की पहचान मिली। जानिए आजाद भारत के पहले गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल से जुड़ी 10 रोचक बातें- (कुछ तस्वीरें साभार- यूट्यूब वीडियो ग्रैब- कुछ तस्वीरें-पीटीआई-ANI से)
कैसे कहा जाने लगा 'लौह पुरुष'
1875 में जन्मे वल्लभभाई पटेल को किशोरावस्था में घाव हुआ। डॉक्टर ने लोहे की गर्म सलाख से घाव के उपचार का परामर्श दिया। बालक वल्लभ ने खुद डॉक्टर के हाथ से गर्म लोहा लिया और अभूतपूर्व साहस दिखाते हुए खुद ही अपना घाव साफ किर दिया। इसी प्रभाव से उन्हें लौह पुरुष कहा जाने लगा।
शादी 18 साल की आयु में हो गई
महज 18 साल की उम्र में झाबेर बा से वल्लभ भाई का विवाह हुआ। चार साल बाद उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा पास की। वकालत की पढ़ाई के बाद उन्हें शुरुआती दिनों गुजरात के गोधरा प्रैक्टिस शुरू की। फौजदारी के वकील के रूप में शोहरत मिली।
सरदार महात्मा गांधी से कहां मिले
अक्टूबर 1917 में महात्मा गांधी से मिले वल्लभ भाई पटेल ने आजादी के दौरान अंग्रेजी हुकूमत की चूलें हिला दीं। हालांकि, सियासत का एक सवाल आज आजादी के 75 साल बाद भी पूछा जाता है कि नेहरू ही पहले पीएम क्यों बने, सरदार पटेल प्रधानमंत्री क्यों नहीं बने।
सरदार और बापू के बीच दोस्ताना रिश्ते
बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक आजाद भारत में सरदार पटेल की जगह पंडित जवाहर लाल नेहरू के प्रधानमंत्री बनने की कहानी दिलचस्प है। राष्ट्रपिता गांधी और पटेल की उम्र में महज 6 साल का अंतर था, ऐसे में दोनों के बीच दोस्ताना रिश्ता था।
ग्लैमरस नेहरू के लिए विश्वसनीय साथी का बलिदान
महात्मा गांधी ने सरदार पटेल को चार मौकों पर कांग्रेस प्रमुख बनने रोका। साल 1929, 1936, 1939 और 1946 में पटेल ने गांधी के कहने पर अध्यक्ष पद के चुनाव से नाम वापस ले लिया। पत्रकार दुर्गादास इंडिया फ्रॉम कर्जन टू नेहरू में लिखा, 'राजेंद्र प्रसाद ने मुझसे कहा, गांधी जी ने ग्लैमरस नेहरू के लिए विश्वसनीय साथी का बलिदान कर दिया।' इस रिएक्शन के लिए गांधी ने राजेंद्र बाबू की सराहना की और कहा, भावी चुनौतियों के लिए खुद को तैयार कर चुके हैं। जवाहर दूसरे नंबर पर नहीं रहना चाहते थे। पटेल को इससे कोई ऐतराज नहीं हुआ।
क्या सरदार vs नेहरू की रही लड़ाई
गांधी की राय में विदेश में रहने के कारण 1947 में सत्ता हस्तांतरण के मौके पर अंग्रेजी माहौल से अच्छे से वाकिफ पंडित नेहरू पटेल के मुकाबले बेहतर विकल्प थे। अंग्रेजी-हिंदी लिखने में माहिर नेहरू की छवि आकर्षक व्यक्तित्व वाले शख्स होने के अलावा सौंदर्य प्रेमी और उदार भी थे। सरदार की छवि बेबाकी से टिप्पणी और भरपूर जमीनी पकड़ रखने वाले नेता की रही।
सरदार और गांधी के बीच का रिश्ता
बापू की समझ का सम्मान करते हुए पटेल और नेहरू ने खुद को दरकिनार किया और देशहित को सबसे ऊपर रखा। गांधी ने 1942 में ही नेहरू को उत्तराधिकारी मान लिया था। मतभेदों के कारण नेहरू और गांधी को अलग किए जाने की खबरों पर कभी खुद गांधी ने कहा था, हमें अलग करने के लिए मतभेदों से कहीं अधिक ताकतवर शक्तियों की जरूरत पड़ेगी। सरदार की तबियत का ध्यान रखते हुए बापू ने उन्हें कई पत्र लिखे जिनसे उनके रिश्तों की बानगी मिलती है।
बापू की मौत से लगा झटका
1948 में राष्ट्रपिता गांधी की मौत से वल्लभ भाई हिल गए। गहरे आघात के कारण दो साल बाद हार्ट अटैक हुआ। 15 दिसंबर 1950 को सरदार चिरनिद्रा में सो गए। निधन के 41 साल बाद 1991 में सरदार वल्लभ भाई पटेल को देश के सबसे बड़े नागरिक सम्मान भारत रत्न से नवाजा गया।
सरदार पर डॉ राजेंद्र प्रसाद ने क्या कहा ?
बिस्मार्क ऑफ इंडिया नाम से भी मशहूर हुए सरदार की पर्सनैलिटी को सहनशीलता, निडरता और दृढ़ इच्छाशक्ति से परिभाषित किया जाता है। लौह पुरुष के निधन पर भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने कहा, जब आदमी अपने पद से नहीं कर्म से प्यार करता है, वही सरदार पटेल बन पाता है।
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